||| सुबह 8:30 |||
मैंने टैक्सी ड्राईवर से पुछा- “और कितनी देर लगेंगी।” उसने कहा – “साहब बस 30 मिनट में पहुंचा देता हूँ।” मैंने घडी देखी 8:40 हो रहे थे। मैंने कहा – “यार 9 बजे की गाडी है।” थोडा जल्दी करो यार। उसने स्पीड बढ़ा दी. मैं
नासिक की सडको को देखने लगा।
मैं अपनी कंपनी के काम से आया हुआ था. कल ही काम खतम हो गया
था पर मेरी तबियत कुछ ठीक न होने की वजह से मैं रात को यही रुक गया था. और आज की
गीतांजलि एक्सप्रेस से टिकेट करवा लिया था और अब ट्रेन 9:25 को आनेवाली थी नासिक रोड
स्टेशन पर और मैं नागपुर जा रहा था और वहां से अपना काम खत्म करके कोलकता जाना था।
अचानक एक तेज आवाज के साथ गाडी लहराई और रुक गयी। मेरे मुंह
से चीख निकल गयी। गाडी से उतरा तो पाया कि पंक्चर हो गया था. ड्राईवर बोला – “सर आप ऑटो से निकल जाईये।” मैंने उसे रूपये दिए और एक
ऑटो को रोका और स्टेशन के लिए चलने के लिए कहा। वो कितना भी तेज चलाये,लेट हो ही गया था, बस जैसे तैसे स्टेशन
पहुंचा और उसे रुपये देकर भीतर की ओर दौड़ा !
||| सुबह 9:30 |||
मैं दौड़ते दौड़ते स्टेशन के भीतर पहुंचा और प्लेटफ़ॉर्म से
निकलती ट्रेन में किसी तरह से एक बोगी को पकड़ कर भीतर घुसा। ट्रेन के अन्दर ही
अन्दर चलते हुए मैं एसी कोच के अपने फर्स्ट क्लास केबिन में पहुंचा और जाकर अपनी
सीट पर बैठ गया। कुछ देर तो आँखे बंद करके बैठा रहा। और भगवान का शुक्रिया अदा
किया कि ट्रेन मिल गयी,वरना नागपुर में कल की मीटिंग्स नहीं हो पाती।
मेरी गहरी और तेज साँसे चल ही रही थी कि टीटी की आवाज़ सुनाई
दी। “टिकट प्लीज।” मैंने आँखे खोली और टीटी को टिकट दिखाया। वो चेक करके चला गया तो मैंने चारो
तरफ नज़र दौड़ायी एसी के फर्स्ट क्लास के इस डब्बे में मैं था और मेरे सामने एक आदमी
था। मैंने उसे गौर से देखा. वो एक फ्रेंच-कट दाढ़ी के साथ सूट बूट पहने हुए करीब ४०
साल का बंदा था. मैंने उसकी ओर हाथ बढ़ाया और मुस्कराते हुए कहा – “हेल्लो,आय ऍम कुमार। आप कहाँ जा
रहे है, मैं तो नागपुर जा रहा हूँ।”
वो कुछ देर हिचकचाया फिर उसने भी अपने हाथ बढाए और मुझसे
हाथ मिलाकर कहा, “आय ऍम मायकल,मैं कोलकता जा रहा हूँ।” मैंने गौर किया कि उसके
हाथ पर सफ़ेद दस्ताने थे और उसकी आँखे बड़ी सर्द थी। उसकी कोट पर एक सफ़ेद गुलाब का
फूल लगा हुआ था। मुझे थोडा अजीब लगा, पर मुझे क्या, ये दुनिया एक से बढ़कर एक नमूनों से भरी हुई है।
मैंने अपना ताम-झाम सीट के नीचे रखा और अपने बेड पर पसर कर
बैठ गया।
कुछ देर बाद मैंने उससे पुछा “आप क्या करते हो।” उसने कहा – “कुछ नहीं बस, गोवा में छोटा सा बिजनेस है।” मैंने कहा- “मैं एक कंपनी में
मार्केटिंग करता हूँ। मैं कोलकता में रहता हूँ। यहाँ नासिक में काम के सिलसिले में
आया था।”
फिर हम दोनों चुप से हो गए। कुछ देर में चाय वाला आया, अब मुझे ठण्ड भी लग रही थी।
मैंने उससे दो चाय ली और मायकल को एक कप दिया। उसने कहा – “मैं चाय नहीं पीता हूँ।” मैंने दोनों कप की चाय खुद
ही पी ली.
कुछ देर मैं आँखे बंद करके बैठा रहा, पर ठण्ड फिर भी लग रही थी।
मैंने कोच अटेंडेट को बुलाया और उसे एसी कम करने को कहा, उसने कहा – “साब ये तो 24 डिग्री पर है। कम ही है। आपको बुखार तो नहीं, जो आपको इतनी ठण्ड लग रही
है।” मैंने उससे एक बेडरोल और मंगा लिया और कम्बल ओढ़कर बैठ गया।
मैंने मायकल को देखा वो चुपचाप बैठा था।उसने मुझसे कहा – “आप कोई स्वेटर पहन लो। नहीं
है तो मैं अपना कोट देता हूँ।” मैंने कहा – “थैंक्स मायकल। देखता हूँ थोड़ी देर में ठण्ड शायद
चली जाए. आपको ठण्ड नहीं लग रही है ?”
उसने कहा – “नहीं। मुझे ठण्ड नहीं लगती है। जहाँ मैं रहता हूँ वहां काफी
ठण्ड रहती है। इसलिए मैंने अपने साथ वहां
की कुछ ठण्ड को लेकर चलता हूँ।........हा….हा….हा !”
मुझे ये बात बड़ी अजीब सी लगी। पर मैं भी हंसने लगा !
फिर थोड़ी देर रुक कर उसने कहा – “एक काम करो, मेरे पास थोड़ी सी व्हिस्की
है अगर आप एक घूँट ले लो तो शायद ठण्ड न लगे !”
मैंने कहा – “हां यार ये ठीक रहेंगा।” उसने ये सुनकर अपने
सीट के नीचे से एक पुराने से बैग से एक ब्लेंडर्स प्राइड की बोतल निकाली। मैंने देखकर कहा – “अरे ये तो मेरा
ब्रांड है, पर गिलास का क्या।” मायकल ने कहा – “अरे ऐसे ही लगा लो कोई वान्दा नहीं है।
पर तुम्हे गिलास चाहिए तो मेरे पास उसका भी इंतजाम है।” उसने बैग से दो अच्छे से
वाइन ग्लासेज निकाला। ये देखकर मैंने कहा – “अरे यार तुम तो बड़े छुपे रुस्तम हो।
सारा इंतजाम करके निकलते हो.” हम दोनों ने उन्ही ग्लासेज में व्हिस्की के साथ थोडा
पानी मिलाकर लम्बे घूँट लिए। मेरा कलेजा जल गया, पर कुछ मिनट में राहत लगने लगी।
मायकल ने फिर बैग से एक छोटा सा चांदी का डब्बा निकाला, उसमे काजू थे, उसने मुझे खाने को कहा।
मुझे तो मज़ा ही आ गया। मुझे अब थोडा सा सुरूर आ रहा था।
ड्रिंक्स हो गए, अब मैं बेड पर लेट गया था। मायकल ने कहा बत्तियां बंद कर दो।
मुझे रोशनी ज्यादा पसंद नहीं है। मैंने केबिन की बत्तियां बंद कर दी।
मैं गुनगुनाने लगा। “ मायकल की दारु झटका देती है। मायकल की
दारु फटका देती है।” ये सुनकर वो हंसने लगा. उसकी हंसी बड़ी अजीब सी थी। मैंने आँखे
बंद कर ली। मुझे हलकी सी नींद आ गयी .
||| सुबह 12:30 |||
मोबाइल की घंटी की आवाज़ से मेरी नींद खुली। मैंने समय देखा
और मोबाइल में देखा तो मेरे नागपुर वाले कस्टमर का फ़ोन था। उसे रीसिव किया, वो कह रहा था कि उसे अचानक ही बॉम्बे जाना पड़ रहा
है। इसलिए वो मुझसे मिल नहीं पायेंगा. उसने अपॉइंटमेंट कैंसल कर दी थी। मैं सोच
में पड़ गया मैंने बॉस को फ़ोन लगाया। उसे
लेटेस्ट डेवलपमेंट के बारे में बताया उसने मुझे कोलकता वापस बुला लिया। मैं उठकर
बैठ गया। सर में हल्का सा दर्द था, शायद शराब का ही नशा था। शराब से मुझे मायकल याद आया। देखा तो वो वैसे ही
सामने बैठा था।
उसने कहा – “अब ठीक हो ?” मैंने कहा – “हां, लेकिन टूर कैंसिल हुआ है।
अब कोलकता जाना है। देखता हूँ टीटी से बात करके आता हूँ।” मैं गया टीटी से मिला.
अपनी इसी टिकट को मैंने कोलकता तक एक्सटेंड करवा लिया। मैंने फिर प्रभु को धन्यवाद दिया। आजकल टिकट
जैसे चीज के लिए भी प्रभु की गुहार लगानी पड़ती है। मैं बाथरूम गया फ्रेश हुआ, चेहरे पर बहुत सा पानी
मारा, थोडा अच्छा लगने लगा। वहीँ कोच अटेंडेट से चाय मांगी उसने पैंट्री से चाय
लाकर दी। वहीँ पर खड़े खड़े चाय पिया और बाहर की ओर देखने लगा।
कोई स्टेशन था। मैंने अटेंडेट से पुछा, “कौनसा स्टेशन है” उसने
कहा “भुसावल है सर !” मैं देख ही रहा था कि मेरे पीछे से एक आवाज आई –
“कौनसा स्टेशन है।” मैं मुड़ा और देखा, एक शानदार और खुबसूरत औरत खड़ी थी उसके पीछे एक मोटा सा
आदमी भी था, मैंने कहा – “भुसावल है जी।” गाडी अब धीमे हो रही थी। प्लेटफार्म आ रहा था।
मैंने गौर से औरत और आदमी को देखा। औरत
कुछ दिलफेंक किस्म की लग रही थी। मैंने उसे मुस्कराते हुए देखा। उसने मुझे देखा। वो
मुस्करायी। मैंने मन ही मन कहा, "अब ठीक है कुमार भाई सफ़र सही कटेंगा।" मैंने पुछा – “कहाँ
जा रहे हो आप।” जवाब मुझे उसके साथ के आदमी ने दिया, कोलकता जा रहे है।” मैंने उसे बड़े गौर से देखा
था। अमीरी उसके पूरे व्यक्तित्व में छायी हुई थी। शानदार सूट पहने हुए था। हाथो की
दसो उँगलियों में सोने की हीरे जड़ी अंगूठियाँ थी। चेहरे पर अमीरी का घमंड ! मैंने
अपने आप से कहा – "ए टिपिकल केस ऑफ़ वोमेन मीट्स मनी !!!" मैं मन ही मन मुस्कराया और
मेरे मुह से निकल पड़ा “हूर के साथ लंगूर“, उसे ठीक से सुनाई नहीं दिया वरना वो मुझे पक्का
पीट देता। औरत ने मुझसे पुछा – “आप कहाँ जा
रहे हो।“ मैं कुछ कहता, इसके पहले ही आदमी ने फिर
कहा, “अरे कोलकता ही जा रहे है न।“ मैंने हंस कर कहा- “हाँ जी हां।“
मैं कुछ पूछता इसके पहले ही प्लेटफ़ॉर्म पर गाडी रुक गयी। मैं
नीचे उतर कर बुक्स की दूकान में गया, अखबार लिया और वापस लौटा। देखा तो वो आदमी और औरत प्लेटफ़ॉर्म
पर कुछ खा रहे थे। मैंने मन ही मन कहा -"टिपिकल इंडियन पसेंजेर्स।" मैंने देखा तो
मायकल उस औरत और आदमी की ठीक पीछे ही खड़ा था और उन्हें बड़े गौर से देख रहा था। मैं
उसे आवाज़ देने ही वाला था कि टीटी ने मुझसे कहा, “आज तो गाडी बिलकुल खाली है।“ मैंने कहा- “हां जी, नहीं तो गीतांजलि तो भरी हुई होती है।“ टीटी ने चाय के लिए ऑफर किया, मैंने चाय ले ली, उसने कहा- “बस अगले महीने से दुर्गा पूजा की भीड़ आ जायेंगी
जी।“ मैंने सर हिलाया। हम ऐसे ही बात करते रहे। फिर उससे इजाजत ली और अपने केबिन
में पहुंचा। देखा तो मायकल वहीं पर बैठा हुआ था। मैंने कहा – “यार कुछ चाय लोंगे
या कुछ खाने को ला दू।” उसने कहा- “नहीं जी। आओ बैठो।“
थोड़ी देर में गाडी चल पड़ी। मायकल से मैंने पुछा, “बिजनेस किस चीज का है।“ उसने
बताया कि ड्राई फ्रूट्स का है। वो गोवा और केरला से ड्राई फ्रूट्स लेकर हर जगह
बेचता है। छोटा सा बिजनेस है।
उसे मैंने बताया कि मैं एक इलेक्ट्रिक स्विच बनाने वाली
कंपनी में काम करता हूँ। मार्केटिंग मेनेजर हूँ और लगातार बस घूमते ही रहता हूँ।
उसने अपने बैग से एक डब्बा और निकाला उसमे कुछ ड्राई
फ्रूट्स थे। वो मुझे दिए और मैं बड़े चाव से खाने लगा। मैंने फिर उससे पुछा – “यार
मायकल आपके शौक क्या क्या है।“ उसने कहा – “म्यूजिक, बुक्स और घूमना।“ मैंने ख़ुशी से
कहा, “ऐक्साक्ट्ली ये तो मेरे भी शौक है। यार संगीत जीवन है।“ उसने फिर बैग में
हाथ डाला और एक छोटा सा म्यूजिक सिस्टम निकाला
और उसे केबिन के प्लग बॉक्स में लगा कर शुरू कर दिया। किशोर कुमार की आवाज़
से डब्बा भर गया। मैं तो ख़ुशी से उछल पड़ा और उठाकर मायकल को गले लगा लिया। एक अजीब
सी गंध उसके कपड़ो से आ रही थी, और मायकल का बदन भी बड़ा कठोर सा प्रतीत हुआ। खैर छोडो मुझे
क्या।
हम लोग बहुत देर तक गाने सुनते रहे।
फिर मायकल ने मुझसे कहा – “कुमार, मुझे तुम्हारी लिखी
कहानिया बहुत पसंद है।“
मैं चौंक गया, मैंने कहा – “यार तुम्हे कैसे पता?”
उसने कहा, “कुमार मैं तुम्हारी कहानियाँ पढ़ते रहता हूँ। तुम तो बहुत
अच्छी अच्छी जासूसी कहानियां लिखते हो। मैं तो फैन हूँ।“
मैंने अचरज से पुछा कि उसने मुझे पहचाना कैसे। उसने कहा- “आपकी
फोटो से। आपकी किताब के पीछे आपकी फोटो लगी हुई रहती है। बस इसी से पहचान लिया।“
उसने फिर मुझसे हाथ मिलाया। मुझे अच्छा लग रहा था। पढने
वाले पाठक किसे अच्छे नहीं लगते !
हम लोग फिर बहुत देर तक मेरी कहानियो के प्लॉट्स पर बाते
करने लगे।
||| दोपहर 2:30 |||
मैंने ट्रेन की खिड़की से बाहर देखा, एक स्टेशन आ रहा था, शेगांव, मैंने कहा- “यार मायकल
यहां की कचोरियाँ बहुत अच्छी होती है। मैंने अभी लेकर आता हूँ।“ मैं प्लेटफार्म पर उतरा और कचोरी ली. देखा तो वही औरत और आदमी भी कचोरी ले रहे थे।
मैंने उन दोनों को हाय कहा और अपने कोच में आ गया। कोच में देखा तो मायकल नहीं था।
मैंने सोचा बाथरूम गया होंगा। खिड़की से देखा तो वो उस औरत और आदमी के पीछे ही खड़ा
था। मुझे ये बंदा कुछ अजीब सा लग रहा था। खैर मुझे क्या, सफ़र में तो एक से बढ़कर एक
नमूने मिलते है। मैं बाथरूम गया और वापस आया तो मायकल अपनी सीट पर बैठा हुआ था।
मैंने उसे कचोरी दी, हम दोनों कचोरी खाने लगे।
मायकल ने फिर व्हिस्की की बोतल निकाली और मुझसे कहा, “एक - एक हो जाए।“ मैंने
कहा, “हो जाए जी।“ अब तो कोलकता जाना था इसलिए कोई हिचक नहीं थी. बस खाना पीना और
सोना। हम दोनों फिर पीने लगे।
मैंने कोच अटेंडेट से खाना मंगवाया। मायकल ने खाने से मना कर
दिया। मैंने उसे जबरदस्ती खाने को कहा।
हमने खाना खाया और मैंने अपने बेड पर लेट गया।
मायकल ने कुछ देर की चुप्पी के बाद पुछा – “यार कुमार ये जो
प्लॉट्स तुम सोचते हो कहानी के लिए ये कैसे आते है। मतलब तुम कैसे प्लान करते हो।“
मैंने कहा – “कुछ नहीं जी। पहले एक लूज स्टोरीलाइन बनाता हूँ, फिर उसके कैरेक्टर्स बनाता
हूँ, और फिर स्टोरी और उन कैरेक्टर्स को आपस में बुन लेता हूँ। बस हो गयी कहानी
तैयार !”
मायकल ने पुछा, “जासूसी कहानी में जो मर्डर का प्लान तुम लिखते हो, वो कैसे लिखते हो” मैंने
कहा- “यार बहुत सी किताबे पढ़ी हुई है, फिल्मे देखी हुई है और अपने समाज में भी कुछ न कुछ अपराध तो
होते ही रहता है। बस उसी को बेस बनाकर प्लाट बनाता हूँ।“
मायकल ने कहा – “अच्छा ये बताओ कि क्या कोई फुलप्रूफ मर्डर
का प्लान होता है।“ मैंने कहा, “सारे प्लान ही फुलप्रूफ होते है। बस उस प्लान को
एक्सीक्यूट करते हुए कुछ गलती हो जाती है जो अनएक्सपेक्टेड होती है। इसी के चलते
अपराधी पकड़ा जाता है।“
मायकल चुप हो गया। थोड़ी देर बाद उसने मुझसे कहा – “मुझे जासूसी
कहानियो में बहुत रूचि है. मैं भी एक
कहानी लिखना चाहता हूँ। आप थोड़ी मदद करो।“
मैं उठकर बैठ गया। मुझे भी अब मज़ा आ रहा था। मैंने कहा, “बताओ, क्या प्लाट है?”
मायकल ने कहा, “एक औरत अपने पति से बेवफाई करती है। उसे ज़हर देती है और
मार देती है। और किसी दुसरे अमीर आदमी से जुड़ जाती है, अब उस औरत को उसकी बेवफाई
की सजा देना है।“
मैंने कहा “यार तो बहुत पुराना प्लाट है। कई कहानिया लिखी
जा चुकी है और फिल्मे भी बनी हुई है।“
मायकल ने कहा, “फिर भी बताओ कि उसे कैसे सजा दिया जाए।“
मैंने कहा, “दो सवाल है, पहली बात तो ये कि उसे सजा कौन देंगा। और दूसरी बात कि उसे
सजा क्या देना है।“
मायकल बहुत देर तक चुप रहा। फिर मुझसे पुछा – “क्या उसे मौत
की सजा दी जाए।“ मैंने कहा- “सजा देना बड़ी बात नहीं है. कहानी में हम डाल देंगे कि
उसका मर्डर कर दिया गया, लेकिन सजा कौन देंगा.”
मायका बहुत देर तक चुप रहा, फिर उसने कहा, “यार तुम लेखक हो तुम ही कुछ सुझाव दो।“
मैं सोचने लगा। बहुत देर तक सोचा। सोचते ही रहा। मैंने फिर कहा – “एक बात हो सकती है। उस मरे हुए आदमी का कोई दोस्त उसे
सजा दे.”
मायकल ने कहा, “हां
ये हो सकता है लेकिन अगर उस आदमी का कोई दोस्त न हो तो।“ मैंने कहा, “ऐसे कैसे हो
सकता है, हर आदमी का दोस्त होता है। हाँ ये हो सकता है कि उस आदमी के दोस्त को कुछ पता
ही न हो।“
मायकल सोचने लगा। मैंने कहा, “मैं आता हूँ यार दरवाजे से थोड़ी ताज़ी हवा लेकर।“
मैं कोच के दरवाजे पर पंहुचा, वहां वो औरत खड़ी थी और साथ में उसका आदमी भी।
मैं भी वहीं पंहुचा। ताज़ी हवा अच्छी लग रही थी। मैंने कहा, “मुझे ऐसे दरवाज़े पर
खड़े होकर ताज़ी हवा के झोंके अच्छे लगते है।“ सुनकर उस औरत ने भी कहा, “मुझे भी !” आदमी ने मुझे
घूरकर देखा और कहा, “सभी को अच्छी लगती है ताज़ी हवा !”
मैंने देखा तो मेरे पीछे मायकल भी खड़ा था ! मायकल उस औरत को
देख रहा था ! मैं मुस्करा उठा ! कुछ देर बाद मैं वापस लौट पड़ा।
अपने केबिन में घुसने के पहले मैंने पलटकर देखा। औरत मुझे
ही देख रही थी. मैं मुस्कराया। और भीतर घुसा। मायकल अपनी सेट पर बैठा था। मैंने
कहा, “अरे अभी तो तुम वहां बाहर थे अभी इतनी जल्दी कैसे आ गए।“ मायकल ने कहा – “कुछ नहीं, जब तुम उस औरत को देख रहे
थे, तो मैं वापस लौट पड़ा !”
||| शाम 6:30 |||
शाम गहरी हो रही थी।
मायकल ने कहा, “अच्छा एक बात बताओ अगर तुम उस आदमी के दोस्त होते तो उस
औरत को कैसे मारते।“ मैंने हँसते हुए कहा, “यार मैं कोई क्रिमिनल नहीं हूँ। एक
राइटर हूँ “, मायकल ने कहा, “यार मेरा ये मतलब नहीं था, उस कहानी पर हम डिसकस कर रहे थे न, मैंने उसी सिलसिले में
पुछा है।“
मैं लेट गया और सोचने लगा. मैंने कहा, “बहुत से तरीके है जिनसे उस औरत को मारा जा
सकता है। ये डिपेंड करता है कि उसे कहाँ
मारना है घर में, बाहर में, कार में, बाज़ार में, हर जगह के लिए अलग अलग
तरीको से मर्डर किया जाता है। सारी दुनिया में कई कहानियाँ भरी पड़ी हुई है। दोस्त
कोई भी राह चुन लेता।“
मायकल सोचने लगा। थोड़ी देर बाद उसने कहा, “चलो ठीक है लेकिन
अगर दोस्त को मर्डर करके बचकर निकलना है तो क्या करे।“ मैंने कहा, “ये
फिर डिपेंड करता है कि उसने मर्डर कहाँ करना है। उस लोकेशन के बेस पर वो प्लान
करेंगा ताकि वो बचकर निकल ले, जैसे घर पर हो तो ज़हर दे दे खाने में या फिर कोई और तरीका। या अगर बाहर में हो तो एक
एक्सीडेंट क्रिएट किया जाए। इस तरह से उस दोस्त पर कोई आंच नहीं आएँगी।“
मायकल चुप हो गया। कोच अटेंडेट आया, रात के खाने के बारे में
आर्डर लेने के लिए। साथ में पैंट्रीकार का बंदा भी था। मैंने अपने लिए रोटी सब्जी मंगा
ली। मैंने पुछा –“खाना कब आयेंगा।“ पैंट्री वाले ने कहा, “अभी कुछ देर में नागपुर
आयेंगा उसके बाद खाना मिल जायेंगा !” मैं बेड पर लेट सा गया।
मैंने देखा मायकल चुपचाप था। मैंने कहा, “भाई हुआ क्या। कहानी में
खो गए क्या।“ मायकल ने कहा, “हां कुमार, मुझे तुम कोई सुझाव दो।“ मैंने कहा, “करते है यार बाते। अभी तो
रात बाकी है। दारु निकालो।“ मायकल ने बोतल
और काजू निकाल कर मुझे दे दिया। मैंने दो घूँट लगाया। मायकल वैसे ही पी गया। मैंने
देखा कि काजू वाले डब्बे पर “लव यू मार्था” लिखा हुआ था। मैंने मायकल से पुछा. “ये
मार्था ?” मायकल ने कहा, “मेरी बीबी है” फिर रूककर कहा, “मतलब थी” मैंने गौर से
मायकल को देखा। उसने कहा – “यार हम अलग हो चुके है। मतलब वो अलग हो चुकी है।“ फिर
वो चुप हो गया।
ट्रेन बहुत तेजी से भाग
रही थी। मैंने मायकल के चेहरे को गौर से देखा। एक अजीब सा दुःख और उदासी
छायी हुई थी। मैंने एक गहरी सांस ली। और आँखे बंद करके सोचने लगा, "या खुदा दुनिया में क्या
कोई ऐसा है, जिसे कोई दुःख नहीं है ?" मैंने फिर मायकल से कहा, “आय ऍम सॉरी मायकल भाई।“
मैं केबिन से बाहर आ गया। मुझे अच्छा नहीं लग रहा था, मैंने गहरी सांस ली और कोच
अटेंडेट से कहा, “यार सिगरेट मिलेंगी?” उसने कहा “साब
ट्रेन में सिगरेट पीना मना है,” मैंने कहा “यार मुझे सब पता है। मेरे सर में दर्द हो रहा
है। तेरे पास है तो दे दे, मैं टॉयलेट में पी लूँगा।“ उसने एक सिगरेट दे दी, मैंने माचिस भी ली और बाथरूम
में घुस गया। सिगरेट पीने के बाद बाहर आया। वो अटेंडेट वही खड़ा था। उसे माचिस दी
और कुछ रूपये टिप में दे दिया, मुंह धोया और दरवाज़ा खोलकर ताज़ी हवा में साँसे लेने लगा।
मायकल के बारे सोचने लगा। कितना भला आदमी था। लेकिन उसकी किस्मत।
मैं कुछ इसी सोच में था कि पीछे से आवाज़ आई- “हमें भी चाहिए
ताज़ी हवा।“ मैंने मुड़ कर देखा। वही औरत थी। इस बार उसका आदमी साथ नहीं था। मैंने
कहा, “हां हां आ जाईये, कुदरत ने सब के लिए फ्री में ये नेमते दे रखी है।“ उसने
कुछ उलझन से मेरी ओर देखा और कहा – “आपने क्या कहा, मुझे तो समझ ही नहीं आया।“ मैं हंस पड़ा, मैंने कहा- “जी, ये उर्दू के अलफ़ाज़ है। मैं ये कह रहा था कि
नेचर ने ये सब कुछ फ्री में ही रखा है। हवा पानी।“ उसने मुस्कराते हुए कहा, “हां ये तो सही है।“ फिर
वो दरवाजे पर खड़ी हो गयी। इतने में उसका आदमी आया पीछे से. मुझे घूर कर देखा और कहा- “यहाँ क्या कर रहे हो?” मैंने कहा, “हवा खा रहा हूँ। आईये आप भी लीजिये।“
उसकी औरत ने पीछे मुड़कर देखा और उस आदमी से कहा, “अरे आओ न कितनी अच्छी और ताज़ी हवा आ रही है।
वो खड़ा हो गया उस औरत के पीछे।“
मैं थोड़ी दूर खड़ा होकर मायकल के बारे में सोचने लगा। गाडी
धीमे होने लगी थी। मैं मुड़ा, देखा तो पीछे मायकल खड़ा था। उस औरत को प्यार से देखते हुए। उसे
देखकर मेरे मन में यही बात आई कि उसकी बीबी ने जो उसे छोड़ दिया था, उसी का मलाल होंगा उसे।
इसलिए औरो की बीबीयो को देखता था ! खैर मुझे अब उससे सहानुभूति थी। मैंने कहा, “चलो
यार केबिन में चलते है।“ वो चुपचाप मेरे साथ चलने लगा और केबिन में आ गया। उसने फिर
शराब की बोतल निकाली और पीने लगा। मैं उसे देख रहा था। मैंने कहा, ”यार मुझे भी दो।“
मुझे भी किसी को भुलाना था। कोई अचानक ही याद आ रहा था। मैंने उससे बोतल लेकर मुंह
में लगा दी। मुंह से लेकर कलेजे तक और कलेजे से लेकर पेट तक एक आग सी लग गयी। शराब
भी क्या चीज है यारो। सारे दुखो की एक ही दवा, दारु का पानी और दारु की ही हवा !!! मैंने जोर
से हंस पड़ा ! मायकल ने पुछा क्या हुआ ?
मैंने शराब की बोतल उठाकर कहा- “मायकल की दारु झटका देती है, मायकल की दारु फटका देती
है।“ वो भी हंसने लगा. उसकी हंसी भयानक सी लगी। ट्रेन रुक गयी। नागपुर स्टेशन आ गया था।
मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। नागपुर से वैसे भी मेरी बहुत सी
दुखद यादे जुडी हुई थी। मुझे इस स्टेशन पर आना ही अच्छा नहीं लगता था। बस नौकरी के
चलते आना होता था, नहीं तो मैं कभी भी नहीं आऊ. मैंने मुस्कराते हुए खुद से कहा, ‘या खुदा। ज़िन्दगी
के दुःख भी कैसे कैसे होते है।‘
मायकल ने मुझसे पुछा, “क्या हुआ? क्या कह रहे हो यार?”
मैंने कहा, “कुछ नहीं दोस्त, बस जैसी तुम्हारी कहानी है, वैसे ही मेरी भी एक कहानी
है। दरअसल दुनिया में कोई ऐसा नहीं जिसकी कोई कहानी न हो !”
मायकल ने एक गहरी सांस ली और कहा, “हाँ सही कह रहे हो दोस्त !”
||| रात 9:00 |||
खाना आ गया था और हम दोनों चुपचाप खा रहे थे। मैं खाना के
बाद बाहर निकल पर दरवाजे पर खड़ा हो गया। ताज़ी हवा अच्छी लग रही थी। ट्रेन की
रफ़्तार कभी कभी अच्छी लगती है। मैं थोड़ी देर बाद मुड़ा तो देखा वो औरत खड़ी थी और
मुझे देख रही थी। मैं उसे देखकर मुस्कराया। वो मुझे देखकर हंसी। मैंने कहा, “मेरा नाम कुमार है।“ उसने
कहा, “मैं आपको जानती हूँ। आप राइटर है न। मेरे हसबैंड आपको बहुत पढ़ते थे।“ मैंने
सर झुका कर कहा, “शुक्रिया जी !”
मैं कुछ कहने जा रहा था कि उसका आदमी प्रकट हुआ। हम दोनों
को बाते करते देखकर उसके चेहरे का रंग बदला। फिर उसने औरत से कहा, “यहाँ क्या कर
रही हो। कितनी बार यहाँ दरवाज़े पर खड़ी हो जाती हो। गिर गयी तो।“ औरत ने हँसते हुए कहा, “अरे मैं नहीं गिरने वाली।
मुझे बचपन से गाडी के दरवाजे पर खड़ी होकर सफ़र करना अच्छा लगता है और फिर गिरी तो
तुम हो न मुझे बचाने के लिए !” आदमी खुश होकर बोला, “हां न मैं हूँ न। संभाल लूँगा।“ मैंने मुस्कराते
हुए खुद से मन ही मन कहा – “अबे पहले खुद को तो संभाल ले मोटे, फिर इस हसीना को
संभाल लेना !”
मैं मुस्कराते हुए अपने केबिन की ओर बढ़ा। देखा तो मायकल खड़ा
था ! मैंने उससे कहा, “चलो यार अन्दर चलो। कहानी पर डिसकस करते है” वो लगातार उस
औरत को देखे जा रहा था और औरत मुझे देख रही थी। मैं मुस्कराया।
मैंने केबिन में मायकल से कहा, “हां यार बताओ तो कहानी पर
हम कहाँ थे?” मायकल ने मुझे कहा “यार तुम तो उस औरत को बड़े घूर रहे थे।“ मैंने
हँसते हुए कहा- “यार मायकल, मुझे औरतो में कोई दिलचस्पी नहीं रही। मुझे अब किसी से
कोई मोहब्बत नहीं होने वाली। ये तो पक्की बात है। बस सफ़र में हंसी मज़ाक की बाते
होती रहनी चाहिए इसलिए मैं उनसे बकबक कर रहा था, लेकिन मायकल वो जोड़ी है बड़ी अजीब। मुझे तो
पक्का लगता है कि उस औरत ने उस मोटे से सिर्फ पैसे के लिए ही शादी की है। बाकी कोई
मतलब नहीं और मुझे तो कम से कम ऐसे औरतो में कोई दिलचस्पी नहीं !”
मायकल ने उठाकर मुझसे हाथ मिलाया। और गले लगाया। मैं उससे
गर्मजोशी से गले मिला, आखिर हम दोनों का मसला एक था। दोनों के दुःख एक थे और दोनों ने एक ही शराब की बोतल से पिया था इसलिए अब हम शराबी भाई भी थे। पर यार
उसके कपड़ो से ये गंध.......उफ्फ्। और मुझे उसका शरीर इतना अकड़ा हुआ सा क्यों लगता
था , जरुर पीठ में रॉड डाले होंगे , स्पाइन ऑपरेशन हुआ होंगा . खैर जी मुझे क्या
...!
||| रात 10:30 |||
ट्रेन रुकी हुई थी, शायद कोई क्रासिंग थी। बहुत देर से रुकी हुई थी
!
कुछ देर से केबिन में ख़ामोशी थी।
फिर मायकल ने पुछा, “कुमार अगर तुम उस आदमी के दोस्त होते तो कैसे
बदला लेते।“
मैंने कहा, “मैं उस आदमी के लिए जो कि मेरा दोस्त होता, जरुर बदला लेता ! मैं उस
औरत को मार डालता।“
मायकल ने जोश में पुछा, “कैसे मार डालते। बताओ, मुझे भी बताओ !”
मैंने कहा – “अगर उसे घर में मारना होता तो मैं उसे ऐसे
मारता जिससे कि वो आत्महत्या का केस लगे चाहे उसे ज़हर देता, या गैस से मारता या फिर
फंदा लगाकर मार डालता या किसी और तरीके से, लेकिन वो लगता आत्महत्या का केस ही !”
मायकल ने गहरी सांस ली और कहा, “और अगर वो बाहर हो तो।“
मैंने थोड़ी देर सोचा और फिर कहा, “बाहर में तो मैं उसे ऐसे
मारता, जिससे वो एक एक्सीडेंट ही लगे। चाहे कार से या किसी और तरीके से, लेकिन वो एक एक्सीडेंट सीन
ही होता। मैंने कई नावल पढ़े है कई फिल्मे देखी है। ऐसा ही होता है।“
मायकल ने मुस्कराकर कहा, “यार तुम तो बड़े जीनियस हो। मैं
तुम्हे एक शानदार चीज पिलाता हूँ।“ उसने बैग में से एक बोतल निकाली। उसमे सफ़ेद सा पानी भरा हुआ था। मैंने
उससे पुछा, “ये क्या है?’ उसने कहा, “ये गोवा की फेनी है। जिसे तुम कच्ची शराब भी
कह सकते हो। इसका टेस्ट भी अलग है, लो इसे पीकर देखो।“ मैंने उसका एक घूँट लिया। बहुत ही कड़वा
था, पर एक अजीब सी गंध थी मैंने दो घूँट और लिया। इसका भी एक अलग सा नशा था !
मैंने थोडा और पिया और काजू खाने लगा। रात गहरी हो रही थी।
मायकल ने पुछा, “कुमार तुमने कहा है कि अगर वो औरत बाहर रहे
तो कार का एक्सीडेंट बता सकते हो। इसी तरह अगर वो औरत ट्रेन में रहे ; तो उसे कैसे
मारते तुम।“
मुझ पर हल्का सा नशा तारी था। मैंने कहा, “यार, उसके खाने में ज़हर मिला
देते या फिर ट्रेन से धक्का दे देते।“
मायकल ने कहा, “खाने में ज़हर मिलाना तो मुश्किल होता पर ट्रेन से धक्का, हां ये हो सकता है।”
मैंने कहा, “यार नशा ज्यादा हो गया है मैं बाथरूम जाकर आता हूँ !”
मैं बाथरूम में जाकर खूब सारे ठन्डे पानी से चेहरा धोया। सर
गीला किया। और ट्रेन का दरवाज़ा खोलकर खड़ा हो गया। गाडी अभी भी खड़ी थी। ठंडी हवाओं
के थपेड़े चेहरे पर लगने लगे। कुछ ही देर में अच्छा लगने लगा।
मैंने घडी देखी, रात के बारह बजने वाले थे। दूर से रोशनी दिख रही थी, शायद
कोई स्टेशन आने वाला था। मैंने पूरे कोच में यूँ ही घूमना शुरू किया। अच्छा लग रहा
था। गाड़ी की पहियों की भीषण खड़खड़ाहट का शोर नहीं था और पूरे कोच में शान्ति थी।
दोनों कोच अटेंडट सोये हुए थे। हर केबिन का दरवाज़ा बंद था और बत्तियां बुझी हुई थी।
मैं फिर गाड़ी के दरवाजे पर खड़ा हो गया।
“अच्छा लग रहा है न।” एक आवाज़ आई, बिना पीछे मुड़े मैं जान
गया, वही महिला थी। मैंने कहा, “हाँ। मुझे ये सब बहुत अच्छा लगता है।“ उसने कहा, “मुझे भी।“
मैंने कहा, “आईये आप देखो ये, मैं तो बहुत देर से देख रहा हूँ।“ वो खड़ी हो गयी दरवाजे पर।
मैंने कहा, “संभल कर। रात का समय है। नींद का झोंका आ सकता है। आप सो ही जाए तो
अच्छा।“ उसने कहा, “नहीं। अभी एक बड़ी सी नदी आने वाली है। वो क्रॉस हो जाए
फिर मैं सो जाती हूँ। मुझे रेलवे के ब्रिजेस को पार करना अच्छा लगता है , उसी के
लिए जगी हुई हूँ।“ मैंने कहा, “और साहेब
कहाँ है ?” उसने कहा, “वो भी जगे हुए है।
वो देखो। आ गए।“ आदमी ने मुझे फिर घूरकर देखा और कहा, “यार तुम हमेशा यही रहते हो
क्या दरवाज़े पर?” मैंने कुछ तल्खी से कहा, “नहीं यार मेरा अपना केबिन
है। ये बस इतेफाक है कि जब मैं यहाँ खड़ा होता हूँ आप आ जाते हो। आईये, स्वागत है आपका। मैं चलता
हूँ।“
मैं केबिन की ओर मुड़ा तो देखा मायकल खड़ा था, मैंने उससे कहा, “यार तुम
सो जाओ, मुझे नींद नहीं आ रही है।“ मायकल ने भीतर आते हुए कहा “मुझे भी नींद नहीं आती, बल्कि मैं तो कई रातो से
नहीं सोया हुआ हूँ।“
मैंने सहानुभूति से कहा, “हाँ होता है दोस्त। मुझे भी कम ही
नींद आती है।“ मैंने केबिन में प्रवेश किया और बत्तियां कम कर दी। ट्रेन अब भी रुकी
हुई थी।
मायकल ने कहा, “थोड़ी और पिओंगे ?” मैंने कहा, “ नहीं यार अब
नहीं। अब ठीक है।“
मैंने कुछ देर बाद पुछा, “मायकल तुम्हारी वाइफ मार्था ने आखिर तुम जैसे
अच्छे आदमी को क्यों छोड़ दिया?”
मायकल बहुत देर तक खामोश रहा और फिर उसने कहा, “बात उन दिनों की है जब
मैं स्ट्रगल कर रहा था। मार्था बहुत खुबसूरत थी। मैं उसे बहुत चाहता था लेकिन उसे धन दौलत से ज्यादा प्रेम था, उसे दुनिया की बहुत सारी खुशियाँ
चाहिए थी जो मैं नहीं दे सकता था।हम दोनों में अक्सर इस बात को लेकर झगडे हो जाते
थे। मेरा ध्यान अपने छोटे से बिज़नस की तरफ ज्यादा था, मैं काम के सिलसिले में
बाहर भी रहने लगा। मुझे धीरे धीरे इस बात का अहसास हो रहा था कि उसकी रूचि मुझमें कम
होती जा रही थी। हम गोवा में रहते थे और मापुसा बीच के पास मेरा घर था, जो कि गिरवी पड़ा हुआ था।
आखिर मैं क़र्ज़ न चूका सका और वो घर भी बिक गया, हम लोग वही पर एक छोटे से किराए के घर में रहने
लगे। मैं कुछ दिनों के लिए केरला गया, वही से वापस आने पर मैंने मार्था के रंग ढंग में परिवर्तन
देखा। मैंने ये भी जाना कि हमारे ही घर के पड़ोस के होटल में एक बड़ा बिजनेसमैन रहने
आया हुआ है। वो गोवा में होटल खोलने का इच्छुक था और कुछ दिनों के लिए मार्किट की
स्टडी के लिए उसी होटल में रुका था। उसका नाम राणा था और वो कोलकता से था, जब मैं वापस पहुंचा तो
मार्था ने मुझे उससे मिलवाया और कहा कि ये तुम्हारे बिज़नस में मदद कर देंगे। खैर
कुमार साहेब मुझे राणा से मदद तो मिली लेकिन एक कीमत पर, उसने मेरी बीबी को अपने
पैसो और प्रेम के जाल में फंसा लिया। मेरे पीठ पीछे मेरी बीबी मुझे धोखा दे रही थी।
उसको राणा से प्यार हो गया था या फिर यूँ कहिये कि राणा के पैसो से प्रेम हो गया
था। खैर मुझे भी कुछ समय में भनक तो लग गयी थी। मेरा राणा से बहुत बड़ा झगडा भी हुआ, लेकिन उस बात का उसपर कोई
असर नहीं हुआ और वो बाज न आया। उसने वो होटल खरीद लिया था जिसमे वो रह रहा था और मेरी बीबी उसी होटल की मेनेजर भी
बन गयी थी। मार्था ने मुझसे तलाक माँगा, लेकिन मैंने इनकार कर दिया। मैं भला आदमी था, लेकिन दुनिया में सब भले
नहीं होते। उसने और राणा ने मिलकर साजिश रची और मुझे अपने रास्ते से हटा दिया !”
मुझे मायकल की कहानी से दुःख हो रहा था। मैंने फिर भी पुछा,
“क्या किया उन्होंने?”
मायकल ने कुछ नहीं कहा, एक गहरी सांस ली और रोने लगा। मुझे
अच्छा नहीं लग रहा था। मैंने उठाकर उसके कंधे थपथपाये, उसे चुप कराया. मैंने कहा, “चलो
छोडो ये सब. दारु निकालो, थोडा पीते है।“
हम दोनों पीने लगे। ट्रेन अभी भी रुकी हुई थी। मैं सोच रहा
था कि दुनिया में क्या पैसा ही सबकुछ होता है। इंसानियत नाम की कुछ बात होती है या
नहीं !
मायकल अब चुप हो गया था।
थोड़ी देर बाद उसने मुझसे कहा, “यदि तुम मेरे दोस्त होते तो क्या
उससे बदला लेते ?” मैं कहा, “बिलकुल लेता। मैं तो मार डालता।“ मुझ पर नशा चढ़ गया था।
मायकल ने मेरा हाथ पकड़ा और कहा, “थैंक्स यार!”
ट्रेन चलने लगी। और मेरी आँखे नशे में मुंदने लगी। मैंने
घडी देखी, रात के एक बज रहे थे, पता नहीं कितनी देर से गाडी खड़ी थी। मैंने उसे कहा, “यार
मैं थोड़ी हवा लेकर आता हूँ। अच्छा नहीं लग रहा है।“
उसने कहा, “मैं भी आता हूँ।“
मैंने देखा ट्रेन के दरवाजे पर वो औरत खड़ी हुई थी, उसके खुले बाल बाहर की हवा
में लहरा रहे थे। मैं चुपचाप उसे देखते हुए उसके पीछे जाकर खड़ा हो गया। मैंने
मुड़कर देखा, मायकल ठीक मेरे पीछे ही खड़ा था। मैंने मायकल को देखकर उस औरत की तरफ देखकर
आँख मारी। मायकल के चेहरे पर कोई भाव नहीं था !
मैं चुपचाप उस औरत के बालो को अपने चेहरे पर आते हुए और
जाते हुए देखता रहा। मुझे कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था। मैंने धीरे से कहा, “आप तो
बहुत खुबसूरत हो।“ वो चौंक कर मुड़ी और लडखडा गयी मैंने उसे थामा। उसने मुझे बहुत
देर तक देखा और मुस्करा दी।
ट्रेन धीमी हो रही थी। मैंने स्टेशन का नाम पढ़ा – दुर्ग
जंक्शन। स्टेशन पर चहलकदमी थी। भारत में न स्टेशन सोते है। और न ही ट्रेन की
पटरियां। ज़िन्दगी बस चलती ही रहती है। कुछ मिनट रूककर ट्रेन चल पड़ी। धीरे धीरे
ट्रेन ने स्पीड पकड़ी।
दौड़ती हुई ट्रेन। पीछे छूटता हुआ शहर और शहर की जलती- बुझती
बत्तियां, मुझे कविता लिखने का मन हुआ। जीवन भी अजीब ही है। क्षणभंगुर सा !
ट्रेन की गति बढ़ रही थी।
वो मुड़ी, मैंने देखा वो बहुत खुबसूरत थी, वो मुझे देखकर मुस्करायी।
मैं भी मुस्कराया। मैंने कहा, “अब रात हो गयी है, जाकर सो जाईये।“ उसने कहा, “बस थोड़ी देर, एक ब्रिज आने वाला है। वो
देख कर चली जाती हूँ।“ मैंने कहा, “हां शायद शिवनाथ ब्रिज है।“ ट्रेन की गति बढ़ गयी थी। वो
मुझे देख कर मुस्करा रही थी। मैं उसके करीब हो गया था। ब्रिज आ रहा था। ट्रेन की
पटरियों के तेज शोर के बीच में मैंने उससे पुछा –“तुम्हारा नाम क्या है?”
ब्रिज में गाडी दाखिल हुई। शोर बढ़ गया था। उसने मुझसे कुछ
कहा मुझे सुनाई नहीं दिया। मैं अपने कान
उसके मुंह के पास लेकर गया। मैंने जानकार थोडा उसके करीब भी हो गया।
उसने कहा, “मेरा नाम मार्था है!”
मुझे एक झटका सा लगा, मैंने उसे पकड़ सा लिया और मुड़कर देखा। मायकल
मेरे पीछे ही खड़ा था, उसने मुझसे कहा, “इसे धक्का देकर मार दो, यही वो धोखेबाज औरत है। तुम
मेरे दोस्त हो। तुमने मुझसे कहा था कि तुम इस मारोंगे !”
ट्रेन का शोर, पटरियों का शोर, ब्रिज का शोर। मार्था ने अपने हाथ छोड़कर
मेरे गले में डाल दिए थे। पीछे से मायकल ने कहा – “मारो धक्का !” और उसने मुझे
धक्का दिया, हडबडाहट में मैंने मार्था को धक्का दे दिया, वो जोर से चीखती हुई ब्रिज और पटरियों के बीच
में गिरी, पता नहीं वो कितने टुकडो में कट गयी और नदी में गिरी या पटरियों पर ही पड़ी
रही। ट्रेन की भयानक आवाज़ में उसकी पतली आवाज़ किसी को नहीं सुनाई दी.
मैं काँप रहा था, मायकल मुझे अपने केबिन में लेकर आया और अन्दर से दरवाज़ा बंद कर दिया। मैं रोने लगा, मेरा नशा हिरन हो गया था, ये मैंने क्या कर दिया था –एक
मर्डर। मैं एक पढ़ा-लिखा नौकरीपेशा आदमी, ये मैंने क्या कर दिया।
मायकल ने मुझे अपने गले से लगाने की कोशिश की। मैंने उसे
हटा दिया। मैंने चिल्लाते हुए कहा, “तुम सब जानते थे। तुम शुरू से जानते थे की वो मार्था है, तुम्हे उसे मारना था। तो
तुम मारते, मुझसे क्यों करवाया?”
मायकल ने मुझे शराब दी और पीने को कहा, पता नहीं उसके बात में
क्या था कि मैंने फिर पीना शुरू किया। मायकल ने कहा, “शांत हो जाओ दोस्त, तुमने एक बुरे इंसान को
मारा है और ये पाप नहीं है !”
मैं चुप हो गया। इतने में केबिन का दरवाज़ा किसी ने खटखटाया, मैंने उठकर दरवाजा खोला, दरवाजे पर वही मोटा आदमी
था, जो उस औरत के साथ था। उसने मुझे देखा और कहा “यार मार्था नहीं दिखाई दे रही
है। ज़रा उसे तलाश करने में मेरी मदद करो।“ मैं क्या कहता, मैंने कहा “आप जाकर बैठो
मैं आपके केबिन में आता हूँ।“ उसके जाने के बाद मैंने मायकल से कहा, “अब मैं इसे क्या जवाब
दूं और क्या ये आदमी राणा है !” मायकल ने
हां में जवाब दिया। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मैंने मायकल से कहा, “मैं ये
किस झमेले में फंस गया यार!” मायकल ने कहा, “जाकर उसे बता दो। सब ठीक हो जायेंगा।“
||| रात 2:00 |||
मैं राणा के केबिन में घुसा, वो परेशान था और ड्रिंक्स ले रहा था। मुझे
देखकर उसने कहा, “यार मैं परेशान हूँ क्या करूँ, टीटी को बोलूं या क्या करूँ।“ मैंने कहा, “आप बैठिये, मैं आपसे कुछ बताना चाहता
हूँ।“ मैंने कहा, “पहले एक ड्रिंक दो यार।“ हम दोनों ने जल्दी से अपने ड्रिंक लिए !
मैंने उससे कहा “देखो एक एक्सीडेंट हो गया है। मार्था ट्रेन
से गिर गयी है! “ ये सुनकर उसकी आँखे फटी की फटी रह गयी, वो चिल्लाने लगा मैंने उसे
चुप कराया। मैंने कहा, “शांत हो जाओ। यदि
विश्वास नहीं हो तो मेरे साथी मायकल से पूछ लो, वो भी मेरे साथ सफ़र कर रहा है।“
मायकल का नाम सुनकर वो बुरी तरह चौंका। वो बोला, “कौन मायकल?” मैंने कहा, “मार्था का पहला पति मायकल।“
वो खड़ा हो गया और पागलो की तरह मुझे झकझोरते हुए कहा, “क्या कह रहे हो! मायकल
तुम्हारे साथ कैसे हो सकता है। उसे तो मरे हुए एक साल हो गया है !!!”
अब मैं जैसे फ्रीज़ हो गया। मैंने कहा, “क्या कह रहे हो यार, आओ मेरे केबिन में, वो शुरू से मेरे साथ है, हमने साथ में खाना पीना
किया है।“ हम दोनों भागते हुए मेरे केबिन में पहुंचे। मैंने दरवाज़ा खोलकर देखा तो, वहां कोई नहीं था। मैंने
सीट के नीचे झांककर देखा। वहां कुछ भी नहीं था
न उसका बैग और न ही कोई बोतल। मेरा दिमाग चकरा गया, मैं सर पकड़ कर बैठ गया।
राणा मेरे पास खड़ा था वो थर थर काँप रहा था,
मैंने उससे पुछा, “बताओ क्या बात है। क्या हुआ है।“
उसने कहा, “एक साल पहले मैंने और मार्था ने मिलकर मायकल को
ज़हर देकर मार डाला था और उसे खुद ही दफनाया था। वो जिंदा कैसे हो सकता था।“
अब मुझे कुछ कुछ समझ आ रहा था। मायकल की आत्मा शुरू से मेरे
साथ थी, वो किसी का इन्तजार कर रही थी, ताकि वो मार्था को सजा दे सके। और मैं उसे मिल गया। वो
उसके कपड़ो से गंध, वो चुपचाप रहना, उसके वजह से केबिन में बढ़ी हुई ठण्ड ! वो
उसका कॉफिन का लास्ट ड्रेस, उसका मुर्दे की तरह कठोर बदन और उसका किसी ओर को दिखाई
नहीं देना। मुझे अब सब कुछ समझ में आ रहा था। वो एक शापित आत्मा थी !
हम दोनों डर से कांप रहे थे !
मैं डर तो रहा था पर मैंने शांत होते हुए कहा, “ इसी को
सर्किल ऑफ़ लाइफ कहते है राणा। जैसा हम दुसरो के साथ करते है, वैसा ही हमारे साथ होता है।
अब मायकल वापस आया हुआ है। उसने ही मार्था को मारा है और मार्था ने अपने किये की
सजा पा ली और अब शायद तुम्हारी बारी है।“
ये सुनकर राणा काँपने लगा। उसने कहा, “नहीं नहीं मैं मरना नहीं
चाहता, मैं अगले स्टेशन पर ही उतर जाऊँगा, मैं आज के बदले कल ही कोलकत्ता जाऊँगा और अब
दोबारा कभी गोवा नहीं जाऊँगा।“
मैंने कुछ नहीं कहा। वो दौड़कर अपने केबिन से बैग को लेकर
आया और ट्रेन के दरवाजे के पास खड़ा हो गया। मैंने देखा कोई शहर आ रहा था। वो
दरवाजे से सर बाहर निकालकर देखने लगा, इतने में पीछे से मायकल नज़र आया। उसने मुझे देखा और राणा
को धक्का दे दिया। राणा भी चीखते हुए गिरा और कट गया। ट्रेन के दोनों अटेंडेट उसकी
चीख से उठे। गाडी रोक दी गयी। हल्ला मच गया।
कुछ देर बाद ट्रेन का अटेंडेट आकर मुझसे बोला, “साहेब, वो जो बाजू के केबिन में
आदमी था वो अपनी बीबी के साथ गिरकर मर गया है, कैसे कैसे लोग है, बीबी का भी मर्डर किया और खुद
को भी मार दिया।“
मैं कांपने लगा. मैंने उसे केबिन से बाहर भेजा और दरवाज़ा
बंद कर दिया। मैं डर के मारे दरवाजे से सर टिकाकर अपने आपको शांत करने की कोशिश की।
थोडा शांत हुआ तो अपने बेड पर बैठने के लिए मुड़ा। देखा तो मायकल खड़ा था, वो मुस्कराया और फिर उसने मुझसे
हाथ मिलाया। मैं डर के मारे कांप रहा था. मायकल ने मेरे सर पर हाथ फेरा और मुझे सोने के
लिए कहा।
मैं बेड पर गिरा और पता नहीं कब सो गया या बेहोश हो गया !
||| सुबह/दोपहर :12:30 |||
कोच अटेंडेट ने मुझे उठाया और कहा, “साहेब, हावड़ा आ रहा है। उठ जाईये।“
मैं उठा, मुंह धोया और दरवाजे पर खड़ा होकर पीछे छूटती दुनिया देखने
लगा।
गीतांजलि एक्सप्रेस धीमे धीमे रुक गयी। मेरा स्टेशन आ गया
था। मेरे जेहन में मार्था और राणा आ गए। मायकल की आत्मा ने उन्हें भी उनके स्टेशन पहुंचा
दिया था। वो स्टेशन जो कि इस फानी दुनिया का सबसे आखरी स्टेशन होता है और जहाँ हर
किसी को देर सबेर पहुंचना ही होता है।
जीवन में इसलिए शायद कभी भी किसी के साथ बुरा नहीं करना
चाहिए। ज़िन्दगी अपना रास्ता ढूंढ ही लेती है और सबका हिसाब किताब तो बस यहीं पर
होता है। इस फानी दुनिया में इतना समय नहीं
है कि हम अपने जीवन के अच्छे कर्मो को छोड़कर बुरे कर्म करे ! इसलिए कभी भी
किसी का बुरा नहीं करना चाहिए।......यही सब सोचते सोचते मैं स्टेशन के बाहर निकला।
मैं स्टेशन के बाहर निकला और आसमान की ओर देखा. मैंने एक गहरी
सांस ली और घर की ओर चल पड़ा !
उस रोज सांध्य दैनिक न्यूज़पेपर के मुखपृष्ठ पर ही एक खबर थी- मर्डर इन गीतांजलि एक्सप्रेस !!!
© विजय कुमार
उस रोज सांध्य दैनिक न्यूज़पेपर के मुखपृष्ठ पर ही एक खबर थी- मर्डर इन गीतांजलि एक्सप्रेस !!!
© विजय कुमार
ReplyDeleteआदरणीय गुरुजनों और मित्रो ;
नमस्कार ;
मेरी नयी कहानी “मर्डर इन गीतांजलि एक्सप्रेस” आप सभी को सौप रहा हूँ.
ये एक थ्रिलर / मर्डर मिस्ट्री /हॉरर genre की कथा है जो कि जीवन में मौजूद बिखरते पारिवारिक संवेदनाओ पर आधारित है. और यही सन्देश देती है कि हमें जीवन में कभी भी किसी के साथ बुरा कर्म नहीं करना चाहिए।
मैं साल में एक कहानी इस genre में लिखता हूँ . मुझे उम्मीद है कि मेरी ये छोटी सी कोशिश आप सभी को जरुर पसंद आएँगी.
दोस्तों ; ये कहानी कैसे बन पढ़ी है, पढ़कर बताईये, कृपया अपने भावपूर्ण कमेंट से इस कहानी के बारे में लिखिए और मेरा हौसला बढाए । कृपया अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा. आपकी राय मुझे हमेशा कुछ नया लिखने की प्रेरणा देती है और आपकी राय निश्चिंत ही मेरे लिए अमूल्य निधि है.
कहानी का plot / thought हमेशा की तरह 5 मिनट में ही बन गया । कहानी लिखने में करीब 30-50 दिन लगे | कहानी के thought से लेकर execution तक का समय करीब 2 महीने था ।
आपके कमेंट्स का इन्तजार रहेंगा
आपका बहुत आभार और धन्यवाद.
आपका अपना
विजय कुमार
Email : vksappatti@gmail.com
Mobile : +91 9849746500
facebook comment :
ReplyDeleteChhavi Nigam वाकई बहुत अच्छी कहानी लिखी आपने। बधाई!
Sach me bhut hi achhi khani hai
ReplyDeletePublish Free story,poem, Ebooks with us
रोमांचक और प्रेरणादायक रोचक कहानी जिसमें आरम्भ से अंत तक जिज्ञासा समाप्त नहीं होती | बुराई का अंत अक्सर बुराई से होता है इसलिए लोभ में न कर विपरीत स्थिति में भी सदैव रिश्तों का सम्मान करना चाहिए तभी जीवन सुखी रह सकता है |
ReplyDeletefacebook comment :
ReplyDeleteराजीव रोशन Vijay Sappatti jee.. Bahut hi sundar kahani hai.. Padh ke maja aaya... Rana ke rahasya udghatan ne to jhakjhor kar rakh Diya.... Likhte rahiye sir...
facebook comment :
ReplyDeleteSaroj Aggarwal बहुत ही अच्छी कहानी
जिज्ञासा से भरपूर, बधाई
whatsapp comment :
ReplyDeleteआदरणीय विजय कुमार जी आपकी कहानी बहुत अच्छी लगी, सुन्दर कल्पना अंत तक बांधे रखी, ईश्वर ऎसे हीआपको निर्बाध गति से लिखने की क्षमता प्रदान करता रहे।
अनन्त शुभ कामनाएं -
प्रिंस राणा (संपादक)
www.smiletoday.in दिल्ली
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत सुंदर ! अप्रतिम ! अतुलनीय !
ReplyDeleteemail comment :
ReplyDelete"यह कहानी 'मर्डर इन गीतांजलि एक्सप्रेस' बहुत रोचक और रोमांचक है. हालांकि बहुत से लोग, जिनमें मैं भी शामिल हूँ, भूत-प्रेतों का अस्तित्व नहीं मानते, लेकिन जिस प्रकार इस कहानी में मायकल का चरित्र रचा गया है और उसे मर्डर मिस्ट्री में पिरोया गया है, वह प्रशंसा के योग्य है. लेखक को साधुवाद."
विजय कुमार सिंघल
प्रबंध संपादक
facebook comment :
ReplyDeleteAmrit Bhushan Soni प्रयास सार्थक है। कथानक शुरू से अंत तक पाठक को बाँधने में कामयाब रहा। माइकल के पात्र को एक मृतात्मा के रूप में पेश किया। अब प्रेतात्मा तो जब मर्ज़ी और जहां मर्ज़ी आसानी से मार्था को मार सकती थी। खैर...आपने लेखक को मर्डर मिस्ट्री में involve करके उसे परामर्शदाता से प्लाट का executor बनाकर पाठक की उत्तेजना व् जिज्ञासा ज़रूर बड़ा दी। बधाई के पात्र हैं आप। आशा है और भी कथानक निकट भविष्य में पढ़ने को मिलेंगे। मैं भी एक नावल पर काम कर रहा हूँ पता नहीं कब इतिश्री कर पाउँगा।
facebook comment
ReplyDeleteJayalakshmi
" मर्डर इन गीताजंलि एक्सप्रेस"
आपकी लिखि इस सस्पेन्स से भरी कहानी के लिये दिल से शुभकामनाएं ओर बधाई विजय भाई.
पूरी कहानी एक साथ पढे बिना रहा नहीं गया..बहुत ही रोचक और सस्पेन्स से भरी कहानी की तारिफ के लिये मेरे पास हमेशा की तरह शब्दों की कमी तो रहती है।पूरी कहानी में लगा की विजय भाई ओर मयकल को जैसे सचमुच देखा है सामने बैठ के, किस खूबसूरती ओर मेहनत से आप कहानी लिखते हैं...पढने पर पता चलता है।
कहानी में आप एक जगह लिखते हैं की ( पढने वाला पाठक किसे अच्छा नहीं लगता) पर मैं यही कहूगीं की हमारे विजय भाई जैसे अच्छी कहानियों को लिखने वाले रचनाकार हो तो कोन नहीं पढते ?
सभी पढना चाहेंगे। मैं तो जारूर पढूगीं।
बस हमेशा की तरह मेरी दुवायें आपके लिये ओर सेन्हभरा आशीर्वाद अपने विजय भाई के लिये एक बार फिर बधाई के साथ
ढेरों शुभकामनाएं
बहुत ही लाजवाब विजय भाई। माइकल और मार्था। अजीब बात है ये दूरी हर बार बेवफ़ाई क्यों कहलाती है और इसी क़िस्म के अंजाम तक क्यों पहुँचती है ? समझ पाना मुश्किल है। बेहतरीन प्रस्तुति संग्रहणीय।
ReplyDeletefacebook comment :
ReplyDeletePran Sharma -
Vijay Babu , Kahani Ka a Taanaa - Baanaa Aapne Khoob Buna Hai . Badhaaee
facebook comment :
ReplyDeleteJyotsna Singh- Interesting till end,mystery without horror and shivers.Nice story line.
facebook comment :
ReplyDeleteIndra Awasthi - Great story with good plot - Badhai aapko ahindi Bhashi hokar bhi hindi mein likhne ke liye
facebook comment :
ReplyDeleteVikas Gotiya -nice story sir apne bahut acchi story likhi hai
रोचक प्रस्तुति !
ReplyDeleteemail comment :
ReplyDeleteबहोत बढीया कहानी हे आपकी ….
एकदम रोमांचकारी हे …
आगे भी आपकी कहानी आयेगी उसका इंतजार रहेगा हमे ….
आपका बहुत आभार और धन्यवाद. …
--
With Warm Regards,
Sadanand D. Borkar
फेसबुक कमेंट :
ReplyDeleteAmrit Bhushan Soni रेल के डिब्बे में दो दो मर्डर। जिसमें बेवफा पत्नी का मर्डर उसके पूर्व पति की प्रेतात्मा के द्वारा एक अन्य व्यक्ति अर्थात मर्डर मिस्ट्री के प्लान को सुझाने वाले सूत्रदार लेखक को ही माध्यम बना कर। दूसरा मर्डर थोड़ी देर के बाद बेवफा पत्नी के दूसरे पति का स्वयं प्रेतात्मा के द्वारा उसी रेल के डिब्बे से बाहर धक्का देकर। इस तरह के मिलते जुलते कथानक पहले भी आये हैं। लेकिन इस प्लाट का sequence भी पाठक को शुरू से अंत तक बांधे रखता है। यही किसी प्लाट की खूबसूरती होती है। Vijay Sappatti ji आगे भी आपके ऐसे ही दिलचस्प कथानक पढ़ने को मिलते रहेंगे, ऐसी आशा करते हैं। मैं भी एक नावल पर काम कर रहा हूँ। देखें कब इतिश्री होती है।
बहुत सुन्दर कहानीं।खूब मजा आया पढ़कर।
ReplyDeletefacebook comment :
ReplyDeleteNishant Sharma विजय जी, कहानी शानदार है । रोमांच और रहस्य अंत तक बना रहा ।ऐसा ही हमेशा लिखते रहे ।बहुत बहुत शुभकामनाएं ।
Email comment :
ReplyDeleteMudita _ आपकी कहानी बड़ी रोचक लगी ।अंत कहानी विधा के रुप में उपदेशात्मक लगा ।
साधुवाद।।
ReplyDeleteपढ़ी मैंने...तारतम्य बड़ा अच्छा है...कभी कोई कहानी कहानी लिखने के तरीके पर भी लिखें..मज़ा आएगा... :)
ReplyDeletefacebook /pratilipi comments :
ReplyDeleteVijay Sappatti आप सभी मित्रो का दिल से आभार और धन्यवाद . अपना प्रेम और स्नेह और आशीर्वाद यूँ ही बनाए रखे
Like · Reply · Just now
Milan Semwal what a story amazing
Unlike · Reply · 2 · February 26 at 1:58am
Neelesh Neel Yadav Best story
Unlike · Reply · 2 · February 25 at 3:08pm
Alhamd Husain bahut achha story hai maza aa gaya
Unlike · Reply · 1 · February 26 at 7:05am
Samit Mathur nice plot
Unlike · Reply · 1 · February 25 at 8:26pm
Mohsin Memon ye story padho bhai very nice story..
Unlike · Reply · 2 · February 27 at 9:48am
Mohsin Memon Awesome story Yaar....
Unlike · Reply · 1 · February 27 at 9:46am
Devraj Panchal nice story
Unlike · Reply · 1 · February 25 at 4:23pm
Chunnu Tiwari दुर्घटना घट गई।
Unlike · Reply · 1 · February 26 at 11:05am
Babutanwar Tanwar Slow & Study wins the Race
Unlike · Reply · 1 · February 26 at 4:02pm
Vishnu Kumar Jaiswal Which never forget .....
Unlike · Reply · 1 · February 26 at 2:23pm
Vishnu Kumar Jaiswal An accident. ........
Unlike · Reply · 1 · February 26 at 2:22pm
Vijay Sappatti आप सभी मित्रो का दिल से आभार और धन्यवाद . अपना प्रेम और स्नेह और आशीर्वाद यूँ ही बनाए रखे
Like · Reply · February 27 at 10:57am
Vijay Sappatti thank you friends
Unlike · Reply · 1 · February 25 at 3:06pm
Siddharth Upadhyay great story yrr
Unlike · Reply · 1 · 8 hrs
Sidharth Singh Chauhan It ws okk..... can be improvd
Unlike · Reply · 1 · 22 hrs
Bishambar Kotwal Mst story h. Read it.
Unlike · Reply · 1 · 8 hrs
Lucky Nair ek no.
Unlike · Reply · 1 · February 27 at 10:27pm
Gaurav Kumawat wonderfull story... itna acha kahi nhi milta... kya gajab ka words ka talmel baithato ho sir. so nice
Unlike · Reply · 1 · 13 hrs
Sagar Saini Bittu Best story
Unlike · Reply · 1 · February 27 at 10:43pm
Aakash Tanwar amazing story
Unlike · Reply · 1 · February 27 at 11:08am
शानदार कहानी..यह तो फिल्म होनी चाहिए..साधुवाद
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी और शानदार कहानी। मुझे बहुत अच्छी लगी।
ReplyDeleteबहुत रोचक कहानी. कहानी का ताना बाना जिस तरह से बुना है वह अंत तक पाठक को बांधे रखता है और यही इस कहानी की प्रमुख विशेषता है.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteAchchhi kahani........
ReplyDeleteEk baat khatki..... Murder/Durghatna raat ke 1.30-2.00 ke beech ghati aur subah tak Newspaper me aa gayi. Yah ek takniki bhul hai.
Kahani bandhe rakhi..badhai...
- Pramod Sharma
pramodsharma108@gmail.com
pramod ji , thanks , maine correction kar diya hai . shukriya aapka ji
DeleteA humble comment from Shri Surender Mohan Pathak on my Story " मर्डर इन गीतांजलि एक्सप्रेस " : गुरु का आशीर्वाद मिले तो और क्या चाहिए !
ReplyDeletefrom: Surender Mohan Pathak
to: Vijay Kumar Sappatti
date: Mon, Mar 16, 2015 at 12:48 PM
subject: Re: नमस्कार सर। और मेरी नयी कहानी आपकी गुरुदाक्षिणा
GOOD STORY
VERY INTERESTING
VERY GRIPPING
MY CONGRATS
---- sm pathak
आपकी लेखन शैली बहुत अच्छी है, ऐसे ही लिखते रहिए। कहानी उम्दा बन पड़ी है, एक ही बार मे पठनीय। शुरू मे सस्पेंस का कुछ अंदाजा लगने के बावजूद भी, शब्दो ने बांधे रक्खा और अंत तक पढ़ते गए। शायद दोनों को एक साथ धक्का देना अधिक झटकेदार होता, क्योकि जब सस्पेंस खुल गया तो पहले ही समझ मे आ गया था की अब दूसरे का भी वही हाल होने वाला है। या फिर शायद दूसरे को किसी अन्य तरीके से मारना चाहिए था। कुछ ऐसे की यह सच मे हत्या और आत्महत्या का मामला लगे।
ReplyDeletebhut hi acci lgi
ReplyDeleteVijay ji Kahani Sachmuch Bahut hi Achchi lagi. Badhaiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiii
ReplyDeletehearttouching
ReplyDelete