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Thursday, January 26, 2012

अटेंशन – एक व्यंग्य कथा !!!



कुछ दिन पहले तक मेरी हालत बहुत खराब थी . मुझे कहीं से कोई भी अटेंशन नहीं मिल रही थी . हर कोई मुझे बस टेंशन देकर चला जाता था , जैसे मैं रास्ते का भिखारी हूँ और मुझे कोई भी भीख में टेंशन दे देता था. मैं बहुत दुखी था . कोई रास्ता नहीं सुझायी देता था. मुझे कहीं से कोई भी अटेंशन मिलने के असार नज़र नहीं आ रहे थे .मैंने बहुत कोशिश की , इधर से उधर , किसी तरह से मुझे अटेंशन मिले , लेकिन मुझे कोई फायदा नहीं हुआ. उल्टा टेंशन बढ गयी . ऊपर से बीबी बच्चे और आस पड़ोस के लोग और ताना मारते थे, कि इतनी उम्र हो गयी , मुझे कोई जानता ही नहीं था . रोज अखबार और टीवी ,रेडियो में दूसरों के नाम और उनके किये गए अच्छे बुरे काम देख-पढ़-सुन कर दिल जल जाता था . मुझे लगने लगा था कि मेरा जन्म बेकार हो गया है .

थक हार कर मैंने अपने सबसे अच्छे दोस्त को फोन लगाया और उससे अपना दुखडा  रोया . उसने मुझे बहुत समझाने की कोशिश की ,कि अटेंशन पाने के चक्कर में मेरी टेंशन बढ जायेंगी  . उसने कहा कि , अटेंशन सिर्फ बुरे कामो में ज्यादा मिलती है , अच्छे कामो में कम मिलती है . अब इतने बरसो से मैं अच्छा बनकर रहा हूँ , लेकिन मुझे तो कोई अटेंशन नहीं मिली , सो सोच लिया कि बुरा बनकर ही अटेंशन लूँगा .उसने बहुत समझाया ;लेकिन मैंने एक न सुनी , मैंने उससे कह दिया कि अगर वो मुझे कोई उपाय न बताये तो वो मेरा दोस्त नहीं .

अब बरसो की दोस्ती दांव पर थी , उसने मुझसे पुछा कि अगर मैं ऑफिस में कोई पैसो की गडबड करूँ तो मेरा नाम पुलिस के पास जायेंगा और इस तरह से मुझे अटेंशन  भी मिलेंगी . मैं थोडा सा हिचखिचाया , मैंने कहा यार इतने बरसो में जो नहीं हुआ , वो काम करके , बुढापे में क्यों अपना नाम खराब करू. .फिर उसने कहा कि मैं अपने बॉस को छुरा भोंक दूं , शायद इससे मुझे प्रसद्धि मिल जाए . मुझे उसका ये उपाय पसंद तो बहुत आया , क्योंकि मैं अपने बॉस को सख्त नापसंद करता था. लेकिन छुरा मारने के नाम से दिल धडक गया , क्योंकि आज तक मैंने कोई मार पीठ नहीं की थी . मैंने उससे कहा कि मैं उसके खाने में जहर मिला देता हूँ ..दोस्त ने पुछा लेकिन इससे तेरी तरफ कोई अटेंशन नहीं आयेंगा . किसी को जब पता ही नहीं चलेंगा कि तुने ये किया है तो तेरी तरफ किसी की अटेंशन नहीं आएँगी . उसकी बात में दम था . फिर उसने कहा कि उसके चेहरे पर स्याही फ़ेंक दे . जब वो किसी मीटिंग में होंगा , तब तुझे अटेंशन मिल जायेंगी . उसका ये आईडिया मुझे अच्छा लगा.

दूसरे दिन , जब ऑफिस की बोर्ड मीटिंग थी , तब मैंने भरी मीटिंग में अपने बॉस पर चिल्लाया और उससे कहा कि उसने मेरी जिंदगी खराब कर दी है , और ये कहकर गुस्से से अपने पेन की स्याही उसके ऊपर फ़ेंक दी . वो सावधान था , वो झुक गया , और मेरी द्वारा फेंकी गयी स्याही हमारे कंपनी के मालिक पर गिरी . मेरे कंपनी के मालिक ने दुनिया देखी थी , उसने मेरा गुस्सा सहन कर लिया और समझदारी से काम लिया , उसने मेरे बॉस की और मेरी तनख्वाह २५% कम कर दिया और कहा कि अगली बार ,इस तरह की घटना होने पर ,हम दोनों को नौकरी से हटा देंगा . इस घटना से मुझे कोई अटेंशन नहीं मिली .लेकिन घर आने पर पत्नी ने मेरी तनख्वाह कम होने वाली बात पर ऐसा रौद्र रूप दिखाया कि मेरे तिरपन कांप गए.

मैंने फिर अपने दोस्त को फोन किया , कहा कि मुझे कोई ज्यादा अटेंशन नहीं मिली है और अब लोग इस घटना को भूल भी चुके है . मैं कुछ धमाकेदार कार्य करना चाहता हूँ . कुछ रास्ता बताये. मेरे दुनियादार दोस्त ने कुछ देर सोचा और कहा कि यार तू मोहल्ले की कोई औरत को छेड दे, पुलिस आकर तुझे ले जायेंगी और तुझे इस दुष्ट काम के लिये हर कोई कोसेंगा और तेरी बड़ी बदनामी होंगी . इस काम से तो तुझे १००% अटेंशन मिल जायेंगी . बात में तो दम था, कॉलेज के जमाने में अक्सर ऐसा करने से मोहल्ले में बाते होती थी ..सो मैं उसकी बात मान गया .

मैं शाम को मोहल्ले के नल पर जाकर पानी भरने के लिये बाल्टी हाथ में ली . मेरी पत्नी ने कहा कि , मेरी तबियत तो ठीक है न ? जिस आदमी ने जिंदगी में काम नहीं किया वो अब पानी भरने जा रहा है . मैं कहा कोई खास नहीं , बस यूँ ही तुम्हारी मदद करना चाह रहा हूँ . मोहल्ले में एक ही नल था और शाम को वहां बड़ी भीड़ रहती थी, बहुत सी औरत जिन्हें मैं भाभी कहता था [ और होली के दिन रंग डाल कर छेड़ता था ] वहां पानी भरने आती थी, वो सब वहां पर थी और मुझे देख कर आश्चर्य से हँसने लगी  , सबने पूछा कि , आज होली नहीं  है , फिर आज पानी भरने यहाँ कैसे. मैंने मुस्कराकर कहा , मैं तो आज ही होली खेलने के बहाने तुम सबको छेड़ने आया हुआ हूँ, ये कह कर मैं जल्दी से अपने पड़ोस की भाभी पर पानी डाल दिया . उसे बहुत गुस्सा आया , वो कुछ कहने ही वाली थी , कि पड़ोस की दूसरी भाभी ने उसके कान में कुछ कहा , बस फिर क्या था, थोड़ी ही देर में मैं और दूसरी औरते मिलकर नल पर पानी की होली खेलने लगे. मैं  बड़ी कोशिश कर रहा था कि मैं औरतो को छेड कर भाग जाऊ. लेकिन  ऐसा नहीं हुआ , खूब हो हल्ला होने के बाद , वहाँ की औरतो ने मुझे लाकर मेरी धर्मपत्नी को सौंप दिया और कहा कि मैं वह आकार सारी औरतो को पानी डाल डाल कर छेड रहा था. इतना कहकर वो सब तो चली गयी , लेकिन मेरा क्या हाल हुआ होंगा , उसे मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकता .. हाय , उस बात की याद आते ही तन मन कांपने लगता है .

कुछ दिन बाद मैंने फिर अपने दोस्त को फोन किया , उससे कुछ नया रास्ता बताने को कहा, उसने कहा कि सुन तू किसी शराब के दूकान में जाकर हल्ला कर दे. पुलिस आकर तुझे ले जायेगी .आयडिया अच्छा था. फिर उसने कहा कि शराबी के दो ही ठिकाने , एक तो ठेका और दूसरा थाने !! , मैं मान गया ,  संध्या समय घर से निकल पडा और मोहल्ले के एकमात्र शराब के ठेके पर पहुँच गया . वहां जाकर शराब पी और नशे में मैंने वहां पर मौजूद दूसरे ग्राहकों और शराबियों से लड़ना शुरू किया , ये देखकर ठेके के मालिक ने मुझे झापड मारा और मैं बेहोश हो गया , उसने मुझे घर लाकर छोड़ा और मेरी प्यारी सी धर्मपत्नी को सारी बात  सुनाई . कुछ देर बाद मुझे होश आया , देखा तो सामने यमराज मेरी पत्नी के रूप में बैठा था . उसकी बाद की कथा मत पूछिए .

अब मैं बहुत दुखी हो चूका था. कोई भी मुझे किसी भी  प्रकार की अटेंशन नहीं दे रहा था . बल्कि जिंदगी में बहुत से टेंशन पैदा होते जा रहे थे. बहुत दुखी होकर मैंने फिर अपने दोस्त को फोन लगाया . उसे कहा कि ये मेरा आखरी फोन है उसे , अगर वो कुछ न कर पाया मेरे लिये तो मैं आत्महत्या कर लूँगा . मेरी ये बात सुनकर दोस्त ने घबरा कर कहा कि , मैं तुझे आखरी रामबाण उपाय बता रहा हूँ , इसकी सफलता की पूरी गारंटी है . उसने फुसफुसाकर मुझे एक घांसू उपाय बताया , उपाय सुनते ही मैं कह उठा WHAT AN IDEA SIR जी !!! अब रास्ता साफ़ था , मुझे अटेंशन मिलने ही वाली थी .

दूसरे दिन , शहर में उस राजनीतिक पार्टी की महासभा हुई और एक महान भ्रष्ट नेता भी आया . और एक अच्छा आदमी होने के नाते मुझे भी बुलाया गया . उस नेता का भाषण चल ही रहा था कि , मैं उठकर सामने गया और अपना जूता उसे दे मारा . बस फिर क्या था , हंगामा खड़ा हो गया , पुलिस ने मुझे पकड़ लिया , लेकिन फिर अचानक मेरी देखादेखी करीब ५ बंदे और खड़े हो गए और उन्होंने भी अपने जूते उस नेता की तरफ उछाल दिए .चारों तरफ जोरदार हंगामा शुरू हो गया , पुलिस ने हम सबको थाने लेकर गयी . और हमें हवालात में ठूंस दिया गया . शहर में बहुत धूम हो गयी थी , लोग सडको पर आ गए थे . टीवी , रेडियो और प्रेस में मेरी चर्चा हो रही थी . कुछ समय बाद , हमें एक वार्निग देकर छोड़ दिया गया . लोगो ने हमारी रिहायी पर उत्सव मनाया. मेरे गले में फूलो की माला थी और मुझे गाजे बाजे के साथ घर लाकर छोड़ा गया .

मुझे लगने लगा कि अब मुझे अटेंशन मिल रही है . मुझे मेरी अटेंशन एक पाव-किलो  नज़र आ रही थी . घर पर मेरी बीबी ने मुझे मुस्कराकर देखा और कहा , तुम तो बड़े बहादुर निकले जी , और मुझे एक झप्पी दी , मुझे अब अटेंशन आधा किलो लगने लगी . थोड़ी देर बाद बेटे ने आकर पाँव छुए और कहा , Dad, I am proud of you .  मुझे अब अटेंशन एक किलो नज़र आने लगी , मुझे बड़ी खुशी हो रही थी . पास पड़ोस के लोग आये और कहने लगे , कि मैं उनके मोहल्ले में हूँ , इस बात पर उन्हें गर्व है . मेरी अटेंशन अब ५ किलो हो गयी थी . शहर के लोग मेरा आदर सत्कार कर रहे थे, हर कोई मुझे अपने सभा और कार्यक्रम का अध्यक्ष बना रहा था . मेरा अटेंशन अब १० किलो हो गया था . हर अखबार , टीवी, रेडियो में मेरे ही चर्चे थे, पान ठेले से लेकर सब्जी मार्केट तक और सिनेमा हाल से लेकर लोकसभा तक , हर जगह बस मैं ही छाया हुआ था , अब मेरा अटेंशन ५० किलो का हो गया था . मैं बड़ा खुश था .

मेरे बॉस ने मुझे तरक्की दे दी थी , मेरे सहकर्मी रोज मुझे अपना डब्बा खिलाने लगे , ऑफिस की कुछ औरते मुझे देखकर मुस्कराने लगी ,यार लोग मेरे साथ अब घूमने आने के लिये तडपते थे. मेरी अटेंशन अब १०० किलो से ज्यादा हो गयी थी , मुझे परम खुशी हो रही थी . चारों तरफ मेरा नाम था , टीवी, रेडियो और अखबार मेरे नाम के बिना सांस नहीं  ले पाते थे.

फिर अभी कल की ही बात है , जिस राजनैतिक पार्टी के नेता को मैंने जूता मारा था , उसी पार्टी ने मुझे अब मेरे शहर का उम्मीदवार बनाया है और मुझे चुनाव का टिकिट दिया है . अब मेरे चारों तरफ अटेंशन ही अटेंशन है , कहीं कोई टेंशन नहीं है . बस खुशी ही खुशी है . इतना अटेंशन तो मैंने कभी सोचा भी नहीं था . मैं अब अटेंशन के नीचे दब दब जाता था. मैंने अपने दोस्त को फोन करके कहा , यार तेरी युक्ति तो काम कर गयी , अब चारों तरफ अटेंशन ही अटेंशन है . . वो हँसने लगा .

अब कोई टेंशन नही है . आह जिंदगी कितनी खूबसूरत है ...वाह मज़ा आ गया !!!! हर तरफ सिर्फ मेरे लिये ही अटेंशन है .

अटेंशन जिंदाबाद !!! राजनीति जिंदाबाद !! जनता जिंदाबाद !! अटेंशन जिंदाबाद !!


Monday, January 9, 2012

मुसाफ़िर.....!!


इंजिन की तेज सीटी ने  मुझे नींद से उठा दिया ... मैंने उस इंजिन को कोसा ; क्योकि मैं एक सपना देख रहा था.. उसका सपना !!!

ट्रेन , पता नहीं किस स्टेशन से गुजर रही थी, मैंने अपने थके हुए बुढे शरीर को खिड़की वाली सीट पर संभाला ; मुझे ट्रेन कि खिड़की से बाहर देखना अच्छा लगता था !

बड़े ध्यान से मैंने अपनी गठरी को टटोला ,वक़्त ने उस पर धुल के रंगों को ओढा दिया था .उसमे ज्यादातर जगह ;मेरे अपने दुःख और तन्हाई ने घेर रखी थी और कुछ अपनी - परायी यादे भी थी ; और हाँ एक फटी सी तस्वीर भी तो थी ; जो उसकि तस्वीर थी !!!

बड़ी देर से मैं इस ट्रेन में बैठा था, सफ़र था कि कट ही नहीं रहा था, ज़िन्दगी कि बीती बातो ने  कुछ इस कदर उदास कर दिया था की, समझ ही नहीं पा रहा था कि मैं अब कहाँ जाऊं. सामने बैठा एक आदमी ने पुछा, “बाबा , कहाँ जाना है ?” बेख्याली में मेरे होंठो ने कहा ; “होशियारपुर !!!”  

कुछ शहर ज़िन्दगी भर के लिए; मन पर छप जाते है , अपने हो जाते है ..!  होशियारपुर भी कुछ ऐसा ही शहर था ये मेरा शहर नहीं था , ये उसका शहर था; क्योंकि, यही पहली बार मिला था मैं उससे !
 
आदमी हंस कर बोला , “बाबा , आप तो मेरे शहर को हो ...मैं भी होशियारपुर का बन्दा हूँ !”  “बाबा, वहां कौन है आपका ?” उस आदमी के इस सवाल ने मुझे फिर इसी ट्रेन में ला दिया; जिसके सफ़र ने मुझे बहुत थका दिया था   मैंने कहा कोई है अपना  ....जिससे मिले बरसो बीत गए ...”  , उसी से मिलने जा रहा हूँ .. बहुत बरस पहले अलग हुआ था उससे,
तब उसने कहा था कि कुछ बन के दिखा  तो तेरे संग ब्याह करूँतेरे घर का चूल्हा जलाऊं !!   “ मैंने कुछ बनने के लिए शहर छोड़ दिया  पर अब तक ……. कुछ बन नहीं पाया  बस; सांस छुटने के पहले.. एक आखरी बार उससे मिलना चाहता हूँ !!!

आदमी एक दर्द को अपने चेहरे पर लेकर चुप हो गया . मैंने खिड़की से बाहर झाँका ...पेड़, पर्वत, पानी से भरे गड्डे, नदी, नाले, तालाब ; झोपडियां , आदमी , औरत , बच्चेसब के सब पीछे छूटे जा रहे थेभागती हुई दुनिया ......भागती हुई ज़िन्दगी और भागती हुई ट्रेन के साथ मेरी यादे...

किस कदर एक एक स्टेशन छुटे जा रहे थे , जैसे उम्र के पड़ाव पीछे छुट गए थे, कितने दोस्त और रिश्तेदार मिले , जो कुछ देर साथ चले और फिर बिछड गए लेकिन वो कभी भी मुझसे अलग नहीं हुई.. अपनी यादो के साथ वो मेरे संग थी, क्योंकि, उसने कहा था ; “तेरा इन्तजार करुँगी करतारे,  जल्दी ही आना” .

आदमी बोला , “फगवारा गया है अभी जल्दी ही जालंधर आयेगा , फिर आपका होशियारपुर !!!

मेरा होशियारपुर ..!!! मैंने एक आह भरी , हाँ , मेरा हो सकता था ये शहर .. लेकिन क्या शहर कभी किसी के हो सकते है, नहीं , पर बन्दे जरुर शहर के हो सकते है. जैसे वो थी ,इस शहर की ,मैंने अपने आप से मुस्कराते हुए कहा, “अगर वो न होती तो मेरे लिए ये शहर ही नहीं होता !”  

आदमी को जवाब देने के लिए; जो ,मैंने कहीं पढ़ा था ; कह दिया कि.. दुनिया एक मुसाफ़िरखाना है , अपनी अपनी बोलियों बोलकर सब उड़ जायेंगे !!!” 

जालन्धर पर गाडी बड़ी देर रुकी रही , आदमी ने मेरे लिए पानी और चाय लाया. रिश्ते कब , कहाँ और कैसे बन जाते है , मैं आज तक नहीं समझ पाया.

जैसे ही ट्रेन चल पढ़ी , अब मेरी आँखों में चमक आ गयी थी मेरा स्टेशन जो आने वाला था.  आदमी ने धीरे से , मुझसे पुछा बहुत प्यार करते थे उससे ?

मैंने कहीं बहुत दूर ……बहुत बरस पहले डूबते हुए सूरज के साथ , झिलमिल तारो के साथ , छिटकती चांदनी के साथ , गिद्धा की थाप के साथसरसों के लहलहाते खेतो में झाँककर कहा ; हाँ .. मैं उससे बहुत प्यार करता था.. वो बहुत खूबसूरत थी ….. सरसों के खेतो में उड़ती हुई उसकी चुनरी और उसका खिलखिलाकर हँसना ... बैशाखी की रात में उसने वादा किया था  कि वो मेरा इन्तजार करेंगी  मुझे यकीन है कि ; वो मेरा इन्तजार कर रही होंगी अब तक ; बड़े अकेले जीवन काटा है मैंने ; अब उसके साथ ही जीना है और उसके साथ ही मरना है .मेरी सांस उखड रही थी , ज्यादा और तेज तेज बोलने की वजह से . ख़ुशी संभाल नहीं पा रहा था .

नसराला स्टेशन पीछे छुटा  तो , मैंने एक गहरी सांस ली और मैंने अपनी गठरी संभाली, एक बार उसकी तस्वीर को देखा ; अचानक आदमी ने झुककर ; तस्वीर को बड़े गौर से देखा ;फिर मेरी तरफ देखा  और फिर मुझसे धीरे से कहा , “इसका नाम संतो था क्या ?
मैंने ख़ुशी से उससे पुछा तुम जानते हो उसे” , आदमी ने तस्वीर देख कर कहा; ये ……............; ये तो कई बरस पहले ही पागल होकर मर गयी ,किसी करतारे के प्यार में पागल थी.. हमारे मोहल्ले में ही रहती थी .................

फिर मुझे कुछ सुनाई नहीं पड़ा,  ट्रेन धीमे हो रही थी …. कोई स्टेशन आ रहा था शायद.. मुझे कुछ दिखाई भी नहीं दे रहा था  शायद बहते हुए आंसू इसके कारण थे ,गला रुंध गया था और सांस अटकने लगी थी ; धीरे धीरे सिसकते हुए ट्रेन रुक गयी.

एक दर्द सा दिल में आया , फिर मेरी आँख बंद हो गयी  ; जब आँख खुली तो देखा ; डिब्बे के दरवाजे पर संतो खड़ी थी,  मुस्कराते हुए मुझसे कहा " चल करतारे , चल , वाहे गुरु के घर चलते है !!"   मैं उठ कर संतो का हाथ पकड़ कर वाहे गुरु के घर की ओर चल पड़ा.

पीछे मुड़कर देखा तो मैं गिर पड़ा था  और वो आदमी मुझे उठा रहा था मेरी गठरी खुल गयी थी  और मेरा हाथ  संतो की तस्वीर पर था.

डिब्बे के बाहर देखा तो स्टेशन का नाम था ….. ……..होशियारपुर !!!

मेरा स्टेशन आ गया था !!!


Monday, January 2, 2012

मेन इन यूनिफ़ॉर्म // MEN IN UNIFORM



मेन इन यूनिफ़ॉर्म // MEN IN UNIFORM 


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भाग एक  
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धाँय ....धाँय ....धाँय .....

तीन गोलियां मुझे लगी ,ठीक पेट के ऊपर और मैं एक झटके से गिरा....गोली के झटके ने और जमीन की ऊंची -नीची जगह के घेरो ने मुझे तेजी से वहां पहुचाया जिसे NO MAN'S LAND कहते है ... मैं दर्द के मारे कराह उठा.. पेट पर हाथ रखा तो देखा भल  भल  करके खून आ रहा था .. अपना ही खून देखना ... मेरी आँखे मुंदने लगी ... कोई चिल्लाया मेजर , WE ARE TAKING YOU TO HOSPITAL.....देखा तो मेरा दोस्त था ...मेरे पास आकर बोला " चल साले यहाँ क्यों मर रहा है हॉस्पिटल में मर "... मैंने हंसने की कोशिश की ,उसकी आँखों से आंसू गिरने लगे मेरे चहरे पर....

मेरी आँखे बंद हो गयी तो कई चित्र  मेरे जेहन में आने लगे मैं मुस्करा उठाकही पढ़ा था की मरने के ठीक १५ मिनट पहले सारी ज़िन्दगी याद आ जाती है ... मैंने अम्बुलेंस  की खिड़की से बाहर  देखा, NO MAN'S LAND पीछे छूट रहा था .. ...ये भी अजीब जगह है यार मैंने मन ही मन कहा ... दुनिया में सारी लड़ाई सिर्फ और सिर्फ जगह के लिए है और यहाँ देखो तो कहते है NO MAN'S LAND......

कोई और चित्र सामने आ रहा था देखा तो माँ की था  एक हाथ में मेरा चेहरा थामकर दुसरे हाथ से मुझे खिला रही थी और बार बार कह रही थी की मेरा राजा बेटा सिपाही बनेंगा ....मुझे जोरो से दर्द होने लगा .......अगला चित्र  मेरे स्कूल की था  जहाँ १५ अगस्त को मैं गा रहा था नन्हा मुन्हा राही हूँ ,देश का सिपाही हूँ’ .......स्कूल का हेडमास्टर  ने मेरे सर पर हाथ फेरा ...मैंने माँ को देखा वो अपने आंसू पोंछ रही थी .....मेरे पिताजी भी फौज में थे .....ज़िन्दगी का विडियो बहुत ज्यादा फ़ास्ट फॉरवर्ड  हुआ अगले चित्र  में सिर्फ WAR MOVIES थी जिन्होंने मेरे खून में और ज्यादा जलजला पैदा किया ....

अगले चित्र में एक लड़की थी जिसके बारे में मैं अक्सर सोचता था...वो मुझे इंजिनियर के रूप में देखना चाहती थी , मैं आर्मी ऑफिसर बनना चाहता था .. एक उलटी सी आई जिसने बहुत सा खून मेरे जिस्म से निकाला मेरा दोस्त ने मेरा हाथ थपथपाया .."कुछ नहीं होंगा साले "....अगली चित्र  में उसकी चिट्टियां और कुछ फूल जो सूख गए थे ,किताबो में रखे रखे ..उसे वापस करते हुए मैंने NDA की ओर चल पड़ा ...

अगले चित्र में हम सारे दोस्त ENEMY AT THE GATES की कल्पना अपने देश की सरहद पर कर रहे थे ....क्या जज्बा था यारो मेंहमारे लिए देश ही पहला गोल था देश ही आखरी गोल था......और , मैं आपको बताऊँ   , WE ALL WERE WAITING FOR OUR ENEMIES AT THE GATE .........

अगली चित्र में मेरे माँ के आँखों में आंसू थे गर्व के तीन साल के बाद की PASSING PARADE में वो मेरे साथ थी और मैं उसके साथ था  . हमने एक साथ आसमान को देखकर कहा ....हमने आपका सपना साकार किया ........अगला चित्र एक तार का आना था जिसमे मेरी माँ के गुजरने की खबर थी .....मेरी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा और मुख्य स्तम्भ  गिर गया था ... मुझे फिर उलटी आई .....मेरा दोस्त के आंसू सूख गए थे मुझे पकड़कर कहा, "साले तेरे पीछे मैं भी आ रहा हूँ .....तू साले नरक में अकेले मजे लेंगा..ऐसा मैं होने नहीं दूंगा" ......मैंने मुस्कराने की कोशिश की ...

सबसे प्यारा चित्र मेरे सामने आया .....मेरी बेटी ख़ुशी की ......उसे मेरी फौज की बाते बहुत अच्छी लगती थी....मेरी छुट्टियों   का उसे और मुझे बेताबी से इन्तजार रहता था ... मेरी पत्नी का चित्र भी था वो हमेशा सूखी आँखों से मुझे विदा करने की थी .......उसे डर लगता था की मैं .....मुझे कुछ हो जायेंगा .... इस बार उसका डर सच हो गया था ... मेरी बेटी की बाते ...कितनी सारी बाते ....मेरी आँखों में पहली बार आंसू आये ... मुझे रोना आया ..मैंने आँखे खोलकर दोस्त से कहा ..यार ख़ुशी .......,इतनी देर से वो भी चुप बैठा था ,वो भी रोने लगा .......

अब कोई चित्र सामने नहीं आ रहा था  ...एक गाना याद आ रहा था ....कर चले वतन तुम्हारे हवाले साथियो..... मैंने दोस्त से कहा यार ,ये सिविलियन  कब हमारी तरह बनेगे .. हम देश को बचाते है ..ये फिर वहीँ ले आते है जिसके लिए हम अपनी जान......एक जोर से हिचकी आई मैंने दोस्त का हाथ जोर से दबाया .....और फिर एक घना अँधेरा...........

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भाग दो
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दूसरी सुबह कोई बहुत ज्यादा बदलाव  नज़र नहीं आया मुझे इस देश में जिसके लिए मैंने जान दे दी..... ENEMIES WERE STILL AT THE GATE ... अखबार  में कहीं एक छोटी सी खबर थी मेरे बारे में .....राजनेता बेमतलब के बयान दे रहे थे  ......किसी क्रिकेट में क्षेत्ररक्षण की तारीफ़ की खबर थी .....कोई ये भी तो जाने की एक एक इंच जमीन का क्षेत्ररक्षण करते हुए हम जान दे देते है .....कोई मीडिया का राज उजागर  हुआ था .... कोई सलेब्रटी की मौत हुई थी जिसे मीडिया लगातार कवरेज  में दे रहा था ... कोई रिअलिटी शो में किसी लड़की के अफेयर की बात थी ... मतलब की सारा देश ठीक-ठाक ही थी ......मुझे समझ नहीं आ रहा था की मैंने जान क्यों दी .......मेरी पत्नी चुप हो गयी थी ..अब उसके आंसू नहीं आ रहे थे ...मेरा दोस्त बार बार रो देता था ....और ख़ुशी.....वो सबसे पूछ रही थी ,पापा को क्या हुआ ,कब उठेंगे हमें खेलना है न.......................................


विजय