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Thursday, July 5, 2012

“दि परफेक्ट मर्डर” “The Perfect Murder”




रविवार शाम :

योगेश ने अमर को फ़ोन किया . “मैं रात ९ बजे तक इंदौर पहुँच जाऊँगा. तुम एअरपोर्ट पर  मिलने आ जाना. हम वही बात करेंगे” . अमर ने कहा “ठीक है बॉस ..!”

रविवार रात :

अहमदाबाद से आने वाली फ्लाईट  ने इंदौर की धरती को छुआ और केबिन में  एयर होस्टेस  की आवाज विमान के भीतर गूंजी .. "आप  सभी का इंदौर के देवी अहिल्याबाई  होलकर एअरपोर्ट पर स्वागत है" .. योगेश ने अपना बैग लिया और विमान से बाहर निकला . मौसम थोडा सा  ठंडा था.. इंदौर में बारिश का आगमन हो चूका था .. योगेश अपने  सामान को लेकर बाहर निकला. कुछ ही पलो में उसके सामने एक कार आकर रुकी . अमर ने उसे अन्दर से विश किया . योगेश कार में बैठ गया और अमर ने कार बाहर की ओर बढ़ा दी.. दोनों चुपचाप थे.. करीब १५ मिनट के बाद अमर ने सड़क के किनारे एक सुनसान जगह पर कार रोक दी .

अमर ने एक लिफाफा  निकाला  और चुपचाप योगेश के हाथो  दे  दिया  . योगेश ने एक सिगरेट सुलगा ली और उस लिफ़ाफ़े को खोल कर देखा . उसमे कुछ फोटो थे . उसकी पत्नी आस्था के और डॉक्टर वीरेंद्र के . दोनों डॉक्टर वीरेंद्र के क्लिनिक के सामने खड़े थे . और भी फोटो में बस क्लिनिक शाट्स ही थे. एक दो शाट्स थे जो कि किसी बगीचे के किनारे के थे जहाँ दोनों खड़े थे . योगेश ने अमर से पुछा "इतना ही और कुछ नहीं ?".. अमर ने कहा .. "इससे ज्यादा कुछ नहीं हो सकता सर. आस्था मैडम डॉक्टर वीरेंद्र के क्लिनिक में जाने के बाद मैं फोटो नहीं खींच सकता हूँ . और हाँ  पिछले दिनों जब आप यहाँ नहीं  थे. मैडम करीब करीब रोज ही डॉक्टर वीरेंद्र से मिलती रही है . दोनों मिलकर एक दो बार किसी बिल्डिंग में भी गए है , जहाँ बहुत से ऑफिस और क्लिनिक है". 

योगेश की आँखों  में खून  उतर  आया .. उसने कुछ कहा नहीं .. अपना पर्श  निकाला और अमर को कुछ रुपये दिए . अमर ने कहा "सर आगे क्या करना है" . योगेश ने कहा , " अब कुछ नहीं .. जो मैंने  जानना था वो मैंने जान लिया है . अब तुम्हारा काम ख़त्म .. “लेकिन एक वादा करो कि तुम ये सब बाते किसी से नहीं कहोंगे." अमर ने मुस्कराकर कहा , "सर मैं प्राइवेट  डिटेक्टीव  हूँ ..ये मेरा प्रोफेशन   है , बस मैं भूल गया समझिये ".

योगेश ने कहा "आगे मृगनयनी के पास रोक देना . और आज से हम नहीं मिलेंगे." अमर ने सर हिलाकर कहा "ठीक है सर . इस लिफ़ाफ़े में फोटो के साथ डाटा कार्ड भी है जिसमे फोटो है " . योगेश ने कहा , " ठीक है , आज से हम दोनों अजनबी  "

मृगनयनी शोरूम  के पास गाडी रोक दी गयी और योगेश उसमे से अपना सामान लेकर उतरा. लिफाफा उसने अपने ब्रीफकेस   में डाल दिया था.

योगेश ने एक और सिगरेट सुलगाई और गहरी सोच में डूब गया .. थोड़ी देर में उसने एक ऑटो को रोका और कहा "साकेत नगर चलो" . ऑटो में बैठकर वो गहरी सोच में डूब गया.. कुछ देर में साकेत नगर पहुंचा, ऑटो वाले को पैसा दिया और अपने घर की ओर चल पड़ा .

 रविवार देर रात :

योगेश का घर साकेत नगर के एक अपार्टमेन्ट में पांचवी मंजिल पर था. उसने देखा कि लिफ्ट खराब है .. वो पैदल ही ऊपर चल पड़ा . पैदल चलने से उसके भीतर
  की कोफ़्त और ज्यादा बढ़ गयी , घर के दरवाजे की घंटी जोर से बजाई . आस्था ने नींद भरी  आँखों से दरवाजा खोला. और कहा . " आ गए तुम , चलो , फ्रेश हो जाओ , मैं खाना लगा देती हूँ” . , योगेश ने कहा, “मैं खाकर आया हूँ. तुम सो जाओ” . आस्था ने कहा , “इतने दिन बाद आये हो . थोडा खा लो.” योगेश ने थोड़े से तेज स्वर में कहा , “नहीं .. बाद में देखता हूँ. तुम सो जाओ” . आस्था ने कहा. “आते ही गुस्सा करने लगे. , वीरेंद्र को देखो , कितना शांत रहता है” .. ये सुनकर योगेश भड़कने ही लगा था , लेकिन , फिर वो शांत हो गया. . उसने मुस्कराकर कहा . “तुम सो जाओ ,. मैं थोड़ी देर में आता हूँ.”

आस्था सोने चली गयी तो योगेश ने फ्रेश होकर घर में ही मौजूद मिनी बार से अपने ड्रिंक्स निकाले और बाहर बालकनी में बैठकर पीने और सोचने लगा . ये बालकनी उसके बेडरूम में ही थी .. इस बालकनी से ठंडी हवा के साथ रौशनी भी आती थी .. वो वह बैठकर पीता रहा और आस्था के बारे में सोचता रहा
.

रविवार और देर रात :

योगेश का दिमाग उसके काबू में नहीं था , उसने खूब पिया , उसके दिल में आग लगी  हुई थी ..जो कि उसे पागल कर रही थी .. बार बार उसके  मन में  ही एक ही बात  आ रही थी कि आस्था उसे धोखा  दे रही  है .. आस्था और धोखा ये दोनों शब्द उसके माथे में हथोड़े की तरह बजने लगे .

नशा उसपर चढ़ने लगा .. अचानक उसे कुछ आवाज सुनाई दी. देखा तो आस्था नींद में कुछ बडबडा रही थी .. वो जाकर  उसके पास लेट गया और सुनने लगा. सुना तो उसका खून उबल गया , आस्था वीरेंद्र का नाम लेकर कह रही थी .... “वीरेंद्र , मुझे इतनी ख़ुशी हो रही है कि  बता नहीं सकती .. योगेश को कुछ भी  नहीं पता चलने देना है”.. ये सुनकर योगेश का मन हुआ कि उसी वक़्त वो आस्था को अपने घर की पांचवी मंजिल से फेंक दे.  बड़ी मुश्किल से उसने अपने आपको रोका और बाहर आकर सोफे पर बैठ गया और उन्माद में उसने और ड्रिंक्स निकाला और पागलो की तरह पिया और फिर इसी पागलपन में , इसी वहशत में , इसी जूनून में  उसने एक फैसला किया . आस्था को मारने का !!!

और पता नहीं कब वो उसी सोफे पर सोचते - सोचते  सो गया .

सोमवार सुबह :

आस्था उसे उठा रही थी
, “अरे ये क्या है तुम्हे क्या हो गया , तुम यहाँ क्यों सो गए .. तुम्हारा माथा इतना गरम क्यों है”.. योगेश ने कहा “कुछ नहीं बस थोड़ी सी हरारत है .. आज ऑफिस से छुट्टी ले लेता हूँ”.. आस्था ने कहा ,. “हां आज छुट्टी ले लो” .. योगेश ने कहा “तुम चली जाओ हॉस्पिटल” . आस्था ने कहा “ठीक है , नाश्ता बना हुआ है .. खाना तुम अगर खाना चाहो तो फ्रिज में रखा हुआ हा , खा लेना . मैं चलती हूँ.”

आस्था गीता भवन हॉस्पिटल में काम करती थी . योगेश ने कहा,  “साथ में नाश्ता कर लो; फिर चली जाना”.

योगेश और आस्था ने नाश्ता किया , आस्था पूछती रही कि  कैसे काम हुआ क्या हुआ , योगेश का मन नहीं था इसलिए हूँ हाँ में जवाब देते रहा. आस्था ने कहा “क्या हुआ .. तुम ठीक तो हो” , योगेश ने कहा “मैं थक गया हूँ . आज आराम करूँगा.”. आस्था ने कहा .. “यदि जरुरत पड़े तो मुझे फ़ोन कर लेना .”

आस्था चली गयी और योगेश उठकर घर का  दरवाजा बंद किया और अपने  ऑफिस में फ़ोन करके कह दिया कि उसकी तबियत ठीक नहीं है . वो आज नहीं आ पायेंगा . और फिर से सो गया.

सोमवार दोपहर :

मोबाइल की बजती घंटी ने योगेश को उठाया .. आस्था फ़ोन पर  थी . पूछ रही थी ,कि अब तबियत कैसी है .. योगेश ने कहा .”अब ठीक है और खाना खाकर थोडा देर और सोऊंगा.”

योगेश उठकर फ्रेश हुआ और  अपने कमरे में सिगरेट जलाकर सोचने लगा .. उसके दिमाग में दो ही बाते थी.. आस्था और उसका मरना .. कैसे करे. क्या करे.   वो शान्ति से सोचने लगा .. उसमे ये एक खूबी थी कि, वो तुरंत उत्तेजित या आतंकित या तेजी से घबरा नहीं जाता था .. वो सोचने लगा , कि कैसे वो आस्था का खात्मा  करे.. जितना वो आस्था और वीरेंद्र के बारे में सोचता था उतना ही उसका खुन खौल जाता था.. उसने एक ड्रिंक बनायी और फिर से सोचने लगा .. फिर उसने खड़े होकर आस्था की अलमारी को खोला .. यूँ ही देखने लगा , इधर उधर हाथ मारने लगा. उसने देखा कि आस्था की दवाईयां रखी हुई है . उसे याद आया कि आस्था को  अर्रहयाथ्मिया [arrhythmia ] है , उसके दिमाग में घंटी बजने लगी . योगेश को पता था कि अर्रहयाथ्मिया  एक तरह की दिल की बिमारी होती है ,जिसमे दिल की धड़कन बहुत धीमी हो जाती थी और कभी कभी एक आध धड़कन चूक जाती थी .. और   अर्रहयाथ्मिया  की वजह से इंसान को  हार्ट अटैक भी  आ सकता था.. वो सोचने लगा कि अगर आस्था को हार्ट अटैक  आ जाए तो कोई उस पर शक नहीं कर सकता है..क्योंकि एक साल पहले भी आस्था को अर्रहयाथ्मिया   के कारण  हार्ट अटैक  आ चूका था. बस योगेश के मन में प्लान बनने लगे . वो एक मेकानिकल इंजिनियर था और उसने मार्केटिंग में MBA किया हुआ था.. ... प्लानिंग में वो बहुत तेज था. उसने दूसरी ड्रिंक बनायी और सोचने लगा .

अब वो बैठ गया एक आराम कुर्सी पर और सोचने लगा .. आस्था को जो अर्रहयाथ्मिया  था वो bradycardia  टाइप का था . इसमें दिल की धड़कन बहुत धीमी और कम हो जाती थी .. और अगर आस्था को  सीने में दर्द या  एकाग्रता की प्रॉब्लम या व्याकुलता या एक भ्रमित मनस्तिथि का तैयार होना  या  चक्कर आये या  थकावट  या घबराहट के कारण उसकी  धड़कने धीमी और कम हो जाये और इन सबके कारण सांस लेने में तकलीफ हो जाये वो Syncope का शिकार बन जायेंगी और  बेहोशी के हाल में पहुँच जायेंगी . और इसके चलते  उसे अर्रहयाथ्मिया  का दौरा पड़ सकता है , और यदि उसे करीब १ घंटे तक प्राथमिक चिकित्सा नहीं मिले ,  तो “she can get a deadly heart attack !” “Yes   yogesh  yes”   उसने खुद से ही कहा.. उसका दिमाग अब और तेजी से चलने लगा .. उसने एक कागज़ पर प्लान लिखा .

योगेश ने अपने MBA की पढाई के दौरान ये सबक सीखा था कि plan your work and than work your plan .. आज उसी सबक को वो अमल में ला रहा था. उसने लिखा कि आस्था की मौत हार्ट अटैक  से होंगी , और ये हार्ट अटैक  उसे अर्रहयाथ्मिया   की वजह से आयेंगा और समय पर करीब एक घंटा उसे प्राथमिक चिकित्सा  न मिलने की वजह से उसकी मौत हो जायेंगी . यहाँ आकर उसने एक गहरी सांस ली और मुस्कराया . अब ठीक है . उसने एक और पैग बनाया और एक और सिगरेट सुलगाया .. आस्था मर जायेंगी इस बात से ही  उसे बड़ा जुनूनी सकून मिल रहा था.. फिर अचानक उसके दिमाग में ये बात आई कि आस्था को अर्रहयाथ्मिया   का दौरा कैसे पड़ेंगा . क्योंकि इसके लिए या तो सीने में दर्द या एकाग्रता की प्रॉब्लम या व्याकुलता या एक भ्रमित मनस्तिथि का तैयार होना  या  चक्कर आये या  थकावट  या घबराहट का होना जरुरी है तब कहीं जाकर वो Syncope (fainting or near-fainting) का शिकार बन जायेंगी . और इसके चलते  उसे अर्रहयाथ्मिया  का दौरा पड़ सकता है , योगेश तेजी से सोचने लगा .. कुछ समझ नहीं आ रहा था.. उसने एक और ड्रिंक बनायी .

योगेश ने फ्रिज में से खाना निकालकर गर्म किया और खाने लगा. फिर यूँ ही टीवी शुरू करके खाना खाने लगा . चैनेल बदलते बदलते वो इंदौर के लोकल चैनल पर रुका . वहां किसी मेले का विज्ञापन  आ रहा था , योगेश थोड़ी देर तक यूँ ही देखता रहा और फिर किचन में जाकर बर्तन रख आया और वही के वाशबेसिन में हाथ दोने लगा . तभी उसके कानो में एक आवाज सुनाई पड़ी .. “देखिये भारत में पहली बार सबसे बड़ा जायिंट व्हील . आज तक आपने देखा न होंगा , रोमांचित कर देने वाला झूला देखिये…. देखिये” .. योगेश ने टीवी की ओर देखा . वहां एक बड़े से झूले का विडियो दिखाया जा रहा था... योगेश पहले तो अनमने भाव से देखने लगा . फिर अचानक ही उसकी आँखे चमक उठी .. वो टीवी के सामने जाकर बैठ गया और पूरे विज्ञापन को गौर से देखने लगा. विज्ञापन ख़त्म हो गया तो उसने टीवी बंद कर दिया और कमरे में चहलकदमी करने लगा .

वो लगातार सोच रहा था .अब वो थक रहा था. उसने थककर आज का अखबार उठा लिया और यूँ ही उसके पेज पलटने लगा . अचानक एक विज्ञापन पर उसकी नज़र पढ़ी... ये उसी मेले का विज्ञापन था , जो उसने अभी टीवी पर देखा था .ये उन दिनों इंदौर के मेघदूत पार्क में लगा हुआ था.. उसमे कुछ चित्र दिए थे . खाने पीने के स्टाल और झूले इत्यादि के .. योगेश ने यूँ ही देखा और पेज पलट दिया , अचानक उसके दिमाग में स्पार्क हुआ .. उसने फिर से उस विज्ञापन को देखा . गौर से . उसमे दिए गए चित्रों में एक झूले का चित्र था. वो एक जायिंट व्हील का चित्र था.. योगेश ने अपनी नज़रे उस पर focus कर ली..

आस्था को जायिंट व्हील से बहुत डर लगता था.. एक बार वो उसके साथ शुरुवाती दिनों में बैठी थी , तब वो रोने लगी थी और उसे सदमा पहुंचा था.. इस बात की याद ने योगेश के दिमाग को टॉनिक की तरह मदद की. योगेश अब तन कर बैठ गया थे और उसने वो पेपर निकाला  , जिसमे वो प्लान लिख रहा था. और उसमे लिखने लगा . योगेश ने मुस्करा कर अपने आप से कहा .. “ये बात हुई न ,. अब तू कैसे बचेंगी आस्था”   उसने फिर लिखा. आस्था को झूले से डर लगता है , वो उसे उस मेले में ले जायेंगा और फिर उसे उस झूले में अपनी बातो में फंसाकर बिठायेंगा . और फिर झूले में ही उसे घबराहट के कारण उसे  अर्रहयाथ्मिया   का अटैक आयेंगा और फिर वो उसे हॉस्पिटल ले जाने में देरी करेंगा  , जिसकी वजह से उसे प्राथमिक चिकित्सा नहीं मिलेंगी और उसे एक शक्तिशाली हार्ट अटैक  आयेंगा और वो मर जायेंगी .. योगेश ने अपने प्लान को पढ़कर पागलो की तरह हंसने लगा . योगेश ने अपने आप से कहा “अब ठीक है .This is going to be a perfect murder.” फिर वो रुका और सोचने लगा और अपने आप से कहा , “yogesh ; calm down .... Loop holes को cross check कर” ..  उसने पूरे प्लान को कई बार पढ़ा .. एक सवाल आया कि अगर उसके पास कार है तो वो देरी से हॉस्पिटल क्यों पहुंचेंगा.. उसने उत्तर लिखा .. कि उस दिन वो कार के कारबोरेटर में कचरा डाल देंगा और इस तरह से कार स्टार्ट नहीं होंगी . गुड. नेक्स्ट सवाल .. अगर किसी ने उससे पुछा कि आस्था को  अर्रहयाथ्मिया   था तो उसने उसे झूले में क्यों बिठाया .. कौन पूछेंगा . कौन  कौन ? वीरेंद्र  ओके . उसे कह देंगा कि उसे ख़ुशी के कारण याद नहीं रहा और गलती हो गयी . इंस्पेक्टर आनंद .. उसे भी यही जवाब दे देंगा .. गुड नेक्स्ट सवाल.. और और और .. कुछ नहीं .. सही प्लान है .. उसने कई बार पढ़ा फिर उसने हर बात को याद किया और संतुष्ट होकर उस कागज़ के टुकड़े टुकड़े कर के उसे जला दिया और फेंक दिया .

अब वो पूरी तरह से संतुष्ट था .उसने आईने में जाकर अपने आप को देखा . उसे आईने में खुद की जगह एक राक्षस नज़र आया... उसे एक बारगी तो डर लगा फिर वो हँसते हुए कहने लगा. “पहले आस्था तू  , उसके बाद तेरा वीरेंद्र. उसे  भी मैं ऐसे ही मारूंगा .” शराब फिर उसके सर पर चढ़कर बोल रही थी.. वो बिस्तर पर लेटा और फिर से सो गया ..अबकी बार उसे थोड़ी अच्छी नींद आई .

मंगलवार सुबह :

आस्था ने उसे जगाया . “क्या बात है , कल से सो रहे हो .. मैं देर रात आई थी . तुम गहरी नींद सो रहे थे , मैंने उठाना ठीक नहीं समझा . अगर तबियत ठीक नहीं है , तो एक बार आ जाओ  हॉस्पिटल में , पूरा चेकअप करवा लेते है ..”

योगेश ने कहा , “नहीं  यार कोई बात नहीं है , बहुत लम्बा टूर था , थक गया था. अब ठीक है”..

आस्था ने फिर कहा “आजकल बहुत पीने लगे हो तुम , थोडा कण्ट्रोल करो.”

योगेश ने कहा, “कर लेंगे यार. चलो आज ऑफिस जाना है . रिपोर्टिंग करना है .”

दोनों तैयार होकर चले गए , योगेश ने आस्था को उसके हॉस्पिटल छोड़ा और फिर अपने ऑफिस चला गया .

मंगलवार शाम :

सुबह से ही योगेश बहुत बिजी था . १५ दिन के रिपोर्टिंग और दूसरो के कामकाज सब कुछ समझते समझते उसे शाम हो गयी . जैसे ही वो खाली हुआ , उसके दिमाग में फिर खुरापात होने लगी . वो अपने प्लान पर फिर से सोचने लगा .. कहीं उसे कोई खोट नहीं दिखाई दे रही थी .. सब कुछ ठीक  ही था..  उसने अपने आप से कई सवाल किये और उनके जवाब दिए , कभी लिखता  था कभी खुद ही बोलता था.. इसी तरह सोचते सोचते रात के ९ बज गए.. आस्था का फोन आया . “घर आओ जल्दी ,”  योगेश का घर जाने का मन  नहीं था. उसने कहा “एक मीटिंग  है , रात हो जायेंगी . तुम खा कर सो जाओ .”

योगेश ऑफिस के पास के ही एक बार में चला गया , वहां वो फिर पीने लगा . रात को घर पहुँचा  , उसका घर पांचवे माले पर था. लिफ्ट फिर बंद थी . गुस्से में बडबडाते हुए वो  सीडियां चढ़कर वो अपने घर  पहुंचा .

उसके पास घर के एक चाबी थी , उससे उसने दरवाजा खोला और अन्दर आया . बेडरूम में जाकर देखा  तो आस्था सोयी हुई थी. उसे सोता देखकर उसे मन हुआ कि वही उसका गला दबाकर उसे मार दे. लेकिन वो चुपचाप वापस आया . बाहर सोफे पर पसर कर सो गया . रात को उसे बहुत डरवाने सपने आये. एक बार चिल्लाकर उठा ,.तो आस्था दौड़कर आई. पूछी  , “तुम कब आये ,मुझे उठाया क्यों नहीं . चलो अन्दर सो जाओ .”

वो अन्दर जाकर फिर सो गया और फिर उसे वही डरावने सपने आये ..

बुधवार सुबह :

सुबह उठा तो सर में दर्द था. आस्था ने उसे चाय दी और हँसते हुए कहने लगी , “रात को तुम मुझे मार ही डाल रहे थे. क्या हुआ , अभी से मार दोंगे  तो ज़िन्दगी कैसे चलेंगी तुम्हारी.”. कहकर वो जोर जोर से हंसने लगी ,

योगेश ने डरकर पुछा,  “मैंने शायद नींद में कुछ बडबडाया क्या ?” आस्था ने कहा , “हाँ भई तुम तो मुझे मारने की बात कर रहे थे..” योगेश ने खिसियाकर कहा ,. “पता नहीं क्या सपना देखा.”. कहकर वो बाथरूम चले गया..

योगेश और आस्था नाश्ता कर रहे थे कि आस्था का मोबाइल बजा .. आस्था ने कहा “अरे इतनी सुबह फ़ोन.” योगेश ने पुछा “किसका है ?” . आस्था ने कहा “वीरेंद्र का है .” उसने मोबाइल पर कहा , “हां वीरेन्द्र , गुड मोर्निंग , कैसे हो ,. इतनी सुबह.”. वीरेंद्र ने कुछ कहा. जिसे सुनकर आस्था ने कहा . “अरे कब.?” फिर वीरेंद्र ने कुछ कहा . आस्था ने कहा “ठीक है तुम अपने ख्याल रखना . कब तक आओंगे .” योगेश ने ये बात सुनी तो उसका खून खौल गया . उधर से वीरेंद्र ने कुछ कहा और फिर बाय बोलकर आस्था ने फ़ोन काट दिया . योगेश ने पुछा “क्या हुआ ?” तो आस्था ने कहा कि वीरेंद्र के मामा को हार्ट अटैक आया है   दिल्ली में  , वो जा रहा है.

योगेश ने मन ही मन सोचा अच्छा हुआ. अब सब कुछ प्लान के मुताबिक हो होंगा. नहीं तो आस्था उसे भी मेले में ले जाने की जिद करती थी .

बुधवार दोपहर  :

योगेश लंच करने के बाद ऑफिस के अपने
  कमरे में बैठा हुआ था.. और सोच रहा था .. यूँ ही एक flashback की तरह उसका जीवन उसकी आँखों के सामने से गुजर गया . करीब तीन साल पहले उसकी और आस्था की शादी हुई थी . एक सादे से समोराह में , उनका प्रेम विवाह था. आस्था को वो पांच साल से जानता था , जब से वो MBBS की पढाई  कर रही थी . दोनों में प्यार हुआ . और फिर उन्होंने शादी कर ली थी . MBBS  की पढाई के दौरान ही वीरेन्द्र और आनदं से भी योगेश की दोस्ती हुई . वीरेंद्र आस्था का MBBS का सहपाठी  था और आनंद आस्था का स्कूल का साथी था. आनंद अब इंदौर में ही पुलिस  इंस्पेक्टर था और वीरेंद्र एक सफल  Gynecologist  था. आस्था ने पढाई पूरी करके गीता भवन हॉस्पिटल के साथ जुड़ गयी थी .वो गरीबो की सेवा में ही विश्वास रखती थी . इसलिए  उसने ये सरकारी हॉस्पिटल चुना था  .

कॉलेज के शुरुवाती दिनों में वीरेंद्र आस्था पर बहुत फ़िदा था , आस्था भी उसे चाहती  थी , लेकिन आस्था के जीवन में योगेश एक तूफ़ान की तरह आया और छा गया था . योगेश को वीरेंद्र कभी भी न भाया . उसके मन में वीरेंद्र को लेकर हमेशा ही एक शक बना रहा और अब वो शक उसे हकीक़त के रूप में दिख रहा था. वीरेन्द्र ने शादी भी नहीं की थी और उसका क्लिनिक भी अच्छा ही  चल रहा था. और करीब कर हफ्ते वीरेंद्र उसके यहाँ खाने पर आया करता था. योगेश का मन कभी भी उसे लेकर नहीं  बदला . आस्था और आनंद और वीरेंद्र खूब हंसी मज़ाक करते हर रविवार को और आस्था अक्सर योगेश को वीरेंद्र के नाम से चिडाया करती थी .

लेकिन योगेश अक्सर  चुप ही रहता . और धीरे धीरे ये चुप्पी उसके मन में ज़हर भरती गयी और फिर उसने एक महीने पहले ही अमर नाम के प्राइवेट डिटेक्टिव  की सेवायें ली ताकि उसका शक सही साबित हो और अब वो एक खतरनाक निर्णय पर पहुँच गया था. योगेश ने अपने ब्रीफकेस  से वो फोटो निकाले और उन्हें देखने लगा , उसकी आँखों में फिर खून उतर आया. उसने वो सारे फोटो और डाटा कार्ड जिसमे वो फोटो थे जलाकर राख कर दिया . और अपने प्लान पर सोचने लगा.

बुधवार शाम  :

योगेश ऑफिस से जल्दी निकल गया और मेघदूत पार्क में जाकर देख आया . मेला खुल चूका था और सारे झूले भी लग चुके थे. अच्छा माहौल था. उसने जायिंट व्हील को देखा . वो बहुत ऊंचा था. उसे देखकर योगेश के चेहरे पर  और  मन में एक वहशी मुस्कराहट आई . और वो वापस घर की ओर चल पढ़ा. राह में उसे एक बार दिखाई दिया . वो उसमे जाकर पीने लगा . रात को फिर उसे सीढियां चढ़कर अपने घर जाना पढ़ा , लिफ्ट खराब थी .उसे सीढियां चढ़ना पसंद नहीं  था.  

घर जाकर देखा तो आस्था बैठी हुई थी .. जाग रही थी .

योगेश को देखकर उसने कहा चलो खाना खा लेते है .. योगेश ने कहा , हाँ

खाना खाते हुए योगेश ने देखा कि आस्था का चेहरा उतरा हुआ था .. योगेश ने सोचा , “वीरेंद्र के जाने का दुःख है .. ठीक है और कितने दिन .. जल्दी ही तुझे नरक भेज रहा हूँ .” आस्था ने पुछा “अरे क्या बडबडा रहे हो , खाना तो खाओ . कितना काम करने लगे हो . छुट्टी ले लो .”

योगेश  ने कहा “ठीक है यार, कल छुट्टी ले लेते है . तुम भी ले लो; कल कहीं घूम आते है .” आस्था ने कहा “चलो ये भी ठीक है , तुम ऐसे तो मानते नहीं हो . इसी बहाने कुछ घूम लेते है .. मैं सोने जा रही हूँ.” योगेश ने कहा “मुझे कुछ काम है , अगर कल छुट्टी लेना है तो मैं कल का कुछ काम कर लेता हूँ.”

योगेश देर रात तक काम करने लगा .. फिर करीब बारह बजे वो सोने  गया . बेडरूम में देखा तो आस्था सोयी हुई थी , वो बगल में लेटकर अपने प्लान के बारे में सोचने लगा , उसे नींद नहीं आ रही  थी . वो जाकर एक पैग बनकर बैठ गया . बेडरूम की खिड़की के बाहर देखने लगा....बहुत से बादल चन्द्रमा को बार बार ढक लेते थे.. हलकी बूंदा बंदी हो रही थी .. वो पीते गया और सोचते गया .. फिर आकर वो सो गया.

गुरुवार सुबह :

योगेश की आंख आस्था की आवाज से खुली
, “अरे चाय तो पी लो .”

योगेश का सर दर्द कर रहा था.. जैसे तैसे वो तैयार हुआ. देखा तो आस्था का चेहरा पीला
  नज़र आ रहा था.. योगेश ने पुछा “क्या हुआ.?”. आस्था ने कहा “पता नहीं .. तबियत ठीक नहीं लग रही है .”. योगेश ने कहा  “छुट्टी तो  ले ही रही हो .. आराम कर लो . हम दोपहर के बाद चलते है.”

आस्था ने कहा , “पता नहीं पर जाने क्यों  लगता है कि  आज  अर्रहयाथ्मिया   का attack  ही आयेंगा.. दर्द हो रहा है ..” योगेश ने मन ही मन कहा  , ‘यही तो मैं चाहता हूँ”.. उसने आस्था के हॉस्पिटल में फ़ोन करके उसकी छुट्टी ले ली और अपने ऑफिस में फ़ोन करके अपनी छुट्टी ले ली ..

फिर वो बाहर से नाश्ता ले आया. और इसी बहाने नीचे जाकर अपनी कार के कारबोरेटर में कचरा डाल दिया .. ताकि वो स्टार्ट ही न हो..

फिर आकर देखा तो आस्था सोयी हुई थी . उसका
चेहरा भी बहुत  थका हुआ लग रहा था..

गुरुवार दोपहर :

योगेश ने आस्था को उठाया और चलने को कहा .. आस्था ने थके हुए स्वर में कहा "आज अगर नहीं जाते तो ".. योगेश ने कहा "अब यार चलो घूम आते है थोडा बाहर का मौसम तो देखो .. तुम पर प्यार भी तो आ रहा है ".. "आज तुम मेरी सारी बाते मानोंगी . तो तबियत ठीक हो जायेंगी" . आस्था ने पुछा " क्या बात है आज बहुत रोमांटिक हो रहे हो ". योगेश ने कहा , "कुछ  ख़ास नहीं , बस यूँ ही. अगले हफ्ते हमारी शादी की सालगिरह है न , इसलिए ".

योगेश ने कहा "चलो एक मेला लगा है मेघदूत गार्डेन में ., हम मेला  देखने चलेंगे”. आस्था चिहुंक कर पूछ बैठी , “मेला ?”  फिर  आस्था ने मुस्करा कर कहा , “अरे हम बच्चे है क्या”. योगेश ने  कहा ,”चलो  न  आस्था  . बहुत दिनों से कहीं नहीं गए".. आस्था ने आश्चर्य से योगेश को देखा "अरे  आज तुम्हे हुआ क्या है . बोलो तो इतना प्यार दिखा रहे हो . मैं जरुर चलती लेकिन पता नहीं मेरा दिल क्यों घबरा रहा है. पसीना भी आ रहा है .. और   डर  भी  लग  रहा  है   की कहीं  शायद अर्रहयाथ्मिया  का अटैक  न आ जाए .. मैं ठीक नहीं हूँ  योगेश ".

योगेश ने कहा , "कुछ नहीं होंगा , बस जाकर घूमकर आ जायेंगे , फिर भले ही तुम सो जाना ".

योगेश ने कभी इतनी बार कहा नहीं था.. आस्था मान गयी . आस्था तैयार हो गयी ..    दोनों घर से बाहर निकले . कार स्टार्ट करने की कोशिश की गयी . कार शुरू नहीं हुई.. फिर उसने कहा , "छोडो यार कार को , हम ऑटो में चलते है. पुराने दिन याद आ जायेंगे." आस्था मुस्कराने लगी .. उसने योगेश का हाथ जोरो से पकड़ कर कहा , "क्या बात है बड़े रोमांटिक हो रहे हो , कहीं जान लेने का इरादा तो नहीं है . " .. योगेश हँसता हुआ बोला. "कुछ नहीं जी .. बस यूँ ही ".. सड़क पर जब वो दोनों ऑटो का इन्तजार कर रहे थे.. तब सामने से इंस्पेक्टर आनंद आ गया. उसे देखकर योगेश का दिल धड़कने लगा .. आनंद भी  इसी कालोनी में रहता था.. उसने कहा , "क्या बात है आज दोनों मियां बीबी ,बनठन कर  कहाँ जा रहे है .". योगेश कुछ बोलता इसके पहले ही आस्था बोल पड़ी , "आज इनको मुझे खुश करने की इच्छा जागृत हुई है , तो हम भी क्यों पीछे रहे .. अगले हफ्ते  हमारी शादी की सालगिरह है , , उसी के लिए योगेश साहब  मस्का मार रहे है .". आनंद बोला , "कार का क्या हुआ ?”.. आस्था बोली , " कार खराब हो गयी है . अब हमें मेघदूत गार्डेन में जाना है ."  आनंद ने कहा ," मैं छोड़ देता हूँ ." योगेश ने कहा "नहीं यार , बस आज ऑटो  को मजे लेते है ".. आनंद हंसने लगा.. "पुराने दिन याद किये जा रहे है. क्यों ? " सब एक साथ हंस पड़े.. आनंद ने अचानक आस्था को गौर से देखा और पुछा "तेरी तबियत ठीक नहीं है क्या ".. आस्था ने कहा " नहीं नहीं .. बस यूँ ही , थोड़ी सी हरारत है ".. आनंद ने नकली गुस्से से कहा .. " योगेश साहेब , “मेरी दोस्त का ख्याल रखना .. नहीं तो... !!! " सब फिर हंस पड़े. इतने में एक ऑटो आ गया , और दोनों ने उसमे बैठकर उसे मेघदूत गार्डेन में चलने को कहा .

मेघदूत गार्डेन में मेला लगा हुआ था.. योगेश और आस्था थोड़ी देर इधर उधर घूमे फिर अचानक ही योगेश ने कहा "चलो झूले में बैठते है ".. आस्था ने कहा "नहीं .. मेरा मन नहीं है और अब तो तबियत भी खराब है" .. “पता नहीं , लेकिन उलटी आये  जैसे हो रहा है , जी मितला रहा है  , चलो घर वापस  चलते है , तुम्हे कुछ बताना है ".. योगेश कुछ भी सुनने के किसी भी मूड में नहीं था. उसने कहा "चलो न यार . बैठते है  .. तुम्हे याद है .. हम फर्स्ट इयर में एक मेले में गए थे और वही झूले में मैंने तुम्हे फर्स्ट किस किया था.."

आस्था के चहरे पर थकावट दिखने  लगी थी और कुछ पसीने की बूंदे भी नज़र आ रही थी . वो बार बार अपने छाती पर हाथ लगा रही थी , और ये देख  कर योगेश की आँखों में एक वहशी  मुस्कान  आ रही थी . उसने आस्था का हाथ पकड़कर  कहा , "चलो , तुम्हे मेरी कसम  .. आज मना न करो " .. आस्था रुक  गयी और बहुत गहरी नजरो से उसे देखने लगी .. और फिर उसने पुछा , " आज बहुत प्यार कर रहे हो मुझे ,  क्या सच में मेरी जान लोंगे क्या . ? "

" तुम्हे क्या लगता है " ... योगेश ने डरी हुई आवाज में पुछा .. आस्था ने मुस्करा कर कहा " अगर इतना प्यार करोंगे तो ऐसी ही  जान दे दोंगी योगेश.. तुम्हे मारने की कोई जरुरत नहीं .". ये सुनकर योगेश का दिल लरज गया.. फिर वो हडबड़ाकर बोला ," चलो , इस पर बैठते है " .. आस्था ने एक बार फिर कहा , " योगेश , सच में मुझे अच्छा नहीं लग रहा है . हम कल या परसों आ जायेंगे." योगेश के सर पर तो पागलपन सवार था.. उसने उसकी सुनी नहीं और आस्था का हाथ पकड़कर उसे भी साथ ले लिया और  उस झूले में जाकर बैठा गया ये एक बड़ा सा जायिंट व्हील था , जिसे देखकर आस्था को डर लगने लगा . उसने एक बार जी भर कर योगेश को देखा और कहा , " मैं कुछ बताना चाहती हूँ तुम्हे ".. योगेश ने कहा "अरे यार अभी बैठो न .. बाद में बताना .." वो दोनों बैठ गए और वो बड़ा सा जायिंट व्हील शुरू हो गया .. थोड़ी देर में ही उसने रफ़्तार पकड़ ली., आस्था घबराने लगी ,, उसके सीने में दर्द आ रहा था और अब वो एकाग्रचित्त भी नहीं हो पा रही थी . सारी चीजे उसे घूमती दिखाई दे रही थी .उसकी व्याकुलता बढ गयी थी  और उसके दिमाग में एक भ्रमित मनस्तिथि तैयार कर रही थी .. उसे चक्कर आ रहे थे और अब उसकी घबराहट बढ़ गयी थी  उसने जोरो से योगेश का हाथ पकड़ा और कहने लगी " इसे रोक दो योगेश ,मैं मर जाउंगी , मुझे अर्रहयाथ्मिया   का दौरा पड़ जायेंगा ."  योगेश ने कहा " बस थोड़ी देर और , तुम एन्जॉय तो करो " . झूले की रफ़्तार और तेज हो गयी .. योगेश ध्यान से उसे देख रहा था. आस्था का मुंह खुल गया था और उसकी आँखे पलटने लगी थी .. पूरा चेहरा पसीने से भर गया था. आस्था उसे इशारे में कुछ बताने लगी . लेकिन योगेश कुछ सुनना ,समझना नहीं चाहता था. आस्था का एक हाथ बार बार उसके छाती और पेट को पकड़ लेता था. थोड़ी देर में वो बेहोशी की हाल में पहुँच गयी . योगेश ने उसे ऐसे पकड़ रहा था कि जैसे आस्था को  डर लग रहा हो और वो आस्था को संभाल रहा हो. आस्था का सर झुक गया था. झूला बहुत तेजी से घूम रहा था. अचानक जोरो से आस्था ने अपनी छाती को पकड़ा और उसका चेहरा लाल हो गया .. वो कुछ कहना चाहती थी , लेकिन कह नहीं पा रही थी .. फिर वो बेहोश हो गयी .. क्रोध, डर और उत्तेजना  के इस माहौल के कारण  योगेश की आँखे भी  लाल हो गयी थी , वो समझ गया था कि आस्था को अर्रहयाथ्मिया   का दौरा पड़ा  है ..

करीब वो झूला पांच मिनट और  चला फिर रुक गया , और जब योगेश और आस्था के बैठने का डब्बा नीचे झूले में से लोगो को उतारने  वालो के पास पहुंचा  तो योगेश ने आस्था को उठाने की एक्टिंग की ", आस्था उठो , अरे उठो . क्या हो गया तुम्हे , उठो.." लोग जमा हो गए थे . योगेश ने आस्था को बांहों में उठाकर बाहर लाया , उसके चेहरे पर पानी डाला.. लेकिन आस्था को कोई होश नहीं था.. योगेश ने उसकी नब्ज़ देखी  .. वो बहुत धीरे से चल रही थी .. आस्था का चेहरा काला पड़ गया था.. ... योगेश ने चिल्लाकर कहा "कोई गाडी है ,हॉस्पिटल ले जाना है .". अब वो इन्ही सारी बातो में देर कर रहा था.. करीब आधा घंटा गुजर गया था .. और आस्था को प्राथमिक चिकित्सा का उपचार अब तक नहीं मिला था . फिर जैसे तैसे एक ऑटो लाया गया और उसमे योगेश ने आस्था को लिटा दिया और वही के पास में मौजूद राजश्री हॉस्पिटल में ले गया .. वहां के OPD  में उसे पता चला कि वहां पर कोई cardiac   डॉक्टर नहीं है . उसने फिर वहां के अम्बुलेंस में आस्था को AB   रोड पर स्थित CHL हॉस्पिटल ले गया .. तक तक आस्था को अर्रहयाथ्मिया   का पूरा अटैक आ चूका था और वो करीब करीब एक MASSIVE हार्ट अटैक  के करीब  पहुँच चुकी थी ..

हॉस्पिटल में जब वो INTENSIVE CARE UNIT   में जा रही थी.. तब भी ,उसने बेहोशी में भी योगेश का हाथ नहीं छोड़ा ...योगेश को पसीने आ चुके थे.. उसने वहां के DOCTORS को यही बताया कि अचानक ही मेले में उसे ये दौरा पड़ा .और वो उसे वहां से यहाँ ले आया .. रास्ते में ट्राफिक   और दूसरी बातो की देरी से वो देरी से यहाँ पहुंचे .... हॉस्पिटल के स्टाफ ने आस्था को ICU में लेकर गये  . उसने वहां पहुँचने के बाद जब आस्था INTENSIVE CARE UNIT में थी .. योगेश  ने सभी दोस्तों को फ़ोन पर बताया .. इंस्पेक्टर आनंद तो चिल्ला बैठा.. जब वो वीरेंद्र को फ़ोन किया और उसे बताया , वीरेंद्र ने कहा कि उसके मामा को भी massive हार्ट अटैक आया हुआ है , और वो भी शायद नहीं बचेंगे.. वो जितना जल्दी हो सके आने की कोशीश करेंगा .. उसने उस हॉस्पिटल के एक सीनियर डॉक्टर का नाम बताया और योगेश को उनसे मिलने को कहा.

थोड़ी देर में आनंद और दुसरे दोस्त वहां पहुंचे . ये हॉस्पिटल HEART की बीमारियों के लिए माना हुआ हॉस्पिटल था. एक SENIOR डॉक्टर ने आकर कहा की आस्था को MASSIVE हार्ट अटैक  आया हुआ है और वो अपनी पूरी कोशिश कर रहे है . ये वही डॉक्टर था ,जिसे वीरेंद्र ने भी फ़ोन करके आस्था को देखने के लिए कहा था .. वो परेशान दिख रहा था.

गुरूवार देर रात :

आस्था को होश नहीं आया था. हॉस्पिटल के सन्नाटे से अब योगेश को डर लग रहा था. उसे महसूस हो रहा था कि उसने कोई गलती कर दी है शायद.. आनंद उसके साथ था.. आनंद उसका बुझा हुआ चेहरा देख कर कहने लगा " योगेश , सब ठीक हो जायेंगा . आस्था बहुत अच्छी लड़की है . ईश्वर सब ठीक करेंगा " योगेश को उसके शब्द सिर्फ तसल्ली से भरे हुए लगे . योगेश का दिमाग हारने लगा था और अब उसका दिल घबरा रहा था. वो अपने आप से ही बाते करने लग जाता था.. आनंद ने उसे जबरदस्ती सुलाने की कोशिश किया , लेकिन योगेश सो नहीं सका .

शुक्रवार सुबह :

थोड़ी देर में ही उसी डॉक्टर ने आकर कहा कि आस्था नहीं रही .. वो बचा नहीं सके . बहुत देर हो चुकी थी और वो बेहोशी में ही चल बसी . योगेश को पहली बार ये बात सुनकर एक झटका सा लगा.. क्या कर दिया उसने ..अचानक वो चिल्लाने लगा , फिर वो जोर जोर से रोने लगा.. तब तक दुसरे दोस्त भी वहां पहुँच चुके थे.  सभी उसे समझाने लगे . लेकिन वो पागल सा बन गया था. कभी चिल्लाता था, कभी रोता था और कभी हँसता था.. फिर वो थक कर चुप हो गया .सबकी आँखे गीली  थी . इंस्पेक्टर आनंद जैसा कठोर पुलिसवाला भी रोने लगा था.. आस्था बहुत ही प्यारी और हंसमुख  लड़की थी .. इंस्पेक्टर आनंद ने वीरेंद्र को भी फ़ोन पर बता दिया . वीरेंद्र ने कहा की उसके मामा भी नहीं  रहे वो जल्दी से दाह संस्कार करके पहुँचेंग . वीरेद्र की आवाज आनंद को एक मरे हुए आदमी की आवाज लगी . ज़ाहिर था कि वो भी इस खबर से टूट गया था.

शुक्रवार शाम :

योगेश , आनंद और दुसरे दोस्त और मोहल्ले के लोगो ने आस्था का अंतिम संस्कार किया . योगेश का चेहरा सफ़ेद हो रहा था. वो सुबह से लगातार शराब पी रहा था. रात को आनद योगेश को अपने घर लेकर गया और उसे जबर्दाश्ती सुलाया . आनंद की बीबी और दुसरे दोस्तों ने कहा , योगेश अब तक मन से पूरा नहीं रो पाया है ,. सदमे में है अगर वो पूरा रो दे तो ठीक हो जायेंगा . रात को योगेश नींद में और शराब के नशे में पता नहीं क्या क्या बडबडाता रहा . आनंद बार बार उठ जाता था.. एक बार उसने सुना  योगेश बडबडा रहा था. “मैं मार दूंगा तुझे” .. आनंद सोच में पड़ गया , फिर उसने यही समझा की योगेश में आस्था के नहीं रहने का सदमा पहुंचा था. 

शनिवार सुबह :

इंस्पेक्टर आनंद और मोहल्ले के कुछ लोग आये ,. सब मिल कर योगेश के साथ शमशान गए .वहां से उन्होंने आस्था की राख जमा  की , और उसे लेकर वापस आ गए योगेश के घर . कुछ देर बाद सब चले गए ...अब वहां कोई नहीं था सिर्फ योगेश और आनंद ही थे . योगेश का चेहरा सफ़ेद बन चूका था . उसे अब लग रहा था कि उसने ठीक नहीं किया . आनंद बहुत चुपचाप था , उसने अपने बचपन के दोस्त को खोया था..

इतने में घर की घंटी बजी . आनंद ने दरवाजा खोला . देखा तो वीरेंद्र था. वो योगेश को देखते ही रोने लगा .. उसे देखकर योगेश को फिर से बहुत गुस्सा आया ,. लेकिन उसने कुछ नहीं कहा .. वीरेंद्र बहुत देर तक रोते रहा .. उसे आनंद  ने चुप करवाया .

थोड़े देर बाद उसने गुस्से में भड़ककर कहा “ योगेश तू ही उसका हत्यारा है . साले तुने उसे झूले पर कैसे बिठाया जबकि तुझे मालुम था की उसे हार्ट  की प्रॉब्लम है ?” आनंद ये सुनकर थोडा चौंका . और कहा , “हां ये बात तो मुझे भी पूछना था. तुने क्यों बिठाया she was a heart patient .” योगेश ने कहा "  बस हम खुश थे इसीलिए मैंने सोचा कि थोडा और खुश हो जाए . कई साल हो गए थे. हमने सोचा की पहली बार जैसे बैठे थे .वैसे ही बैठ जाते है ".

वीरेंद्र ने पुछा , "आस्था एक डॉक्टर थी , उसने मना नहीं किया .." योगेश ने कहा “नहीं..” .. उसके स्वर में हिचकिचाहट तो थी .. जिसे आनंद ने महसूस किया .. फिर वीरेंद्र ने कहा "वो कितनी खुश थी ,, तुझे कितनी खुशियाँ देनी चाहती थी . तुम दोनों की कल शादी की सालगिरह थी, वो तुझे एक बहुत बड़ी खुश खबरी देना चाहती थी ," .

योगेश का वीरेंद्र की बातो पर कोई ध्यान नहीं था.. वो पता नहीं किस दुनिया में खोया हुआ था.. उसे आस्था का मासूम सा चेहरा याद आ रहा था. आनंद ने पुछा ," कौन सी खुशखबरी .. "

वीरेंद्र ने योगेश का कन्धा पकड़ कर पूछ ,  " साले  तुझे मालुम है , वो प्रेग्नेंट थी ?"

योगेश ने चौंककर पुछा, "क्या ? "

वीरेंद्र के आँखों में आंसू आ गए , "हां यार , वो तेरे बच्चे की मां बनने वाली थी . और यही खुशखबरी तुझे वो बताने वाली थी ".

योगेश के सर में जैसे बम फटा .. वो आँखे फाड़े वीरेंद्र को देखते ही रह गया .. ये खबर उस पर गाज बनकर गिरी .. आनंद की आँखों में आंसू आ गए..

वीरेंद्र ने आगे कहा . "हां योगेश , हां ! तुझे याद है , कई साल से तुम दोनों माँ बाप बनने को तरस रहे थे.. करीब १० दिन पहले उसने मुझसे टेस्ट करवाया तो ये बात पता चली . तुम टूर पर थे.. हम ने कई और टेस्ट करवाए .. क्योंकि आस्था को दो बार miscarriage हो चूका था. इस बार वो पूरी सावधानी बरत रही थी . और हमने सोचा कि इस बार कल के दिन तुम्हे ये बात बताकर मीठा सा surprise दे..लेकिन तुने उसकी और अपनी खुशियों को आग लगा दी .. "

योगेश को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था…..उसका तेज दिमाग कुंद हो चूका था . वो सोच रहा था कि उसने बेकार में ही शक किया .. ये दोनों तो उसके अपने बच्चे के लिए ही मिला करते थे.. तो आस्था उस दिन सपने में जो बडबडा रही थी , उसका मतलब यही था कि वो वीरेन्द्र से योगेश को surprise देने की बात थी. और जो अमर ने उसे बताया था , वो दोनों इसी सिलसिले में एक दुसरे से मिला करते थे और जिस बिल्डिंग के बारे में अमर ने कहा था कि बहुत से क्लिनिक है वह ये उसके बच्चे के  टेस्ट के लिए जाते थे....ओह भगवान , मैंने क्या कर दिया ..मन ही मन वो पागलो के तरह बडबडाया . और उसने बेकार में ही इन पर शक किया  और  अपनी देवी जैसी पत्नी की जान ले ली.. ….

वीरेंद्र कह रहा था " अगर तू आस्था का पति और मेरा दोस्त नहीं होता तो तुझ पर मैं क़त्ल का इल्जाम लगा देता.  "

आनंद ने कहा "और मैं तुझे फांसी पर चढ़ा  देता "

आनंद ने उसे एक थप्पड़  मारा . योगेश की आँखों में आंसू आ गए .

वीरेंद्र ने आनंद को रोका .. आनंद गुस्से की वजह से कांप रहा था. उसने योगेश से बहुत गुस्से में कहा  "साले. तुझे अक्ल नहीं , बेवजह में आस्था के साथ अपने बच्चे की भी जान ले ली ."

योगेश को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था.. वो बडबडाने लगा . "हाँ  , मैंने ही आस्था को मारा है , मैं गुनाहगार हूँ.."

वीरेंद्र अन्दर किचन  में गया और पानी ले आया .. योगेश को पानी पिलाया . योगेश उठा .. और कोने में रखे आस्था के पार्थिव शरीर की राख के कलश को हाथो में लेकर रोने लगा .. ..वीरेंद्र और आनंद दोनों ही उसे समझाने लगे .. लेकिन योगेश पर एक बेहोशी सी छाई हुई थी .. वो बडबडा ही रहा था.. "मैं ने ही मारा है आस्था को और अपने बच्चे को ".. आनंद को फिर गुस्सा आ गया .. उसने दांत पीसकर कहां  , "अगर मेरे बस में होता तो मैं तुझे खींचकर ले जाता और फांसी चढ़ा  देता ".. ..वीरेंद्र ने आनंद को चुप रहने को कहा .. और फिर योगेश को थोड़ी देर  समझाया .

उसने कहा " मैं एअरपोर्ट से सीधे यहाँ आया हूँ , घर जाकर और फ्रेश होकर आता हूँ . फिर हम तीनो उज्जैन जाकर क्षिप्रा नदी में इसे अर्पित कर देंगे .. वो महाकाल को बहुत पूजती थी .. उसकी यही गति है ." “और उसकी यही अंतिम इच्छा मानकर पूरी करते है..” ये कहते कहते वीरेंद्र की आँखों में आंसू आ गए . आनंद भी रोने  लगा.

वीरेंद्र चुप हुआ और आनंद से कहा " आनंद , चल , मुझे छोड़ दे. हम १ घंटे में निकलते है "

दोनों घर से निकल गए . योगेश अजीब सी ख़ामोशी के साथ  बैठा ही हुआ था.. वीरेंद्र की आवाज आई , " लिफ्ट   बंद है आनंद ; हम पैदल  ही नीचे चलते है.  " वो दोनों पैदल ही नीचे की ओर चल पड़े.

योगेश धीरे धीरे उठा. उसके दीवार पर आस्था के एक फोटो थी .. उसने उसे देखा और कहा " मुझे माफ़ कर दो आस्था.. मैं तेरे लायक नहीं और तेरे बिना मैं रह भी नहीं सकता. " उसने अपनी ड्रिंक की बोतल उठायी , और पीने लगा .. फिर उसने आस्था का कलश उठाया और उसे बेतहाशा चूमने लगा . बहुत जोर जोर से रोने लगा फिर वो चुप हो गया . उसने कुछ सोचा. और अपनी बालकनी की खिड़की खोली . उसने नीचे देखा . वीरेंद्र और आनंद ;  दोनों आनन्द की जीप की तरफ बढ़ रहे थे.. उसने आवाज लगायी . "वीरेंद्र . आनंद ."

दोनों ने ऊपर देखा .. वीरेंद्र ने कहा ,, "तू यहाँ क्या कर रहा है .. अन्दर जा." "नहीं तो गिर जायेंगा "

 योगेश ने कलश को अपनी छाती से लगाया और कहा .. " आनंद तू मुझे ले जाना चाहता था. मैं आ रहा हूँ ". कहकर वो नीचे खुद गया  !

पांचवी   मंजिल से योगेश का शरीर  सर के बल  दोनों के पैरो के पास गिरा. दोनों जब तक उसे संभालते . वो अपनी आस्था के पास पहुच चूका था. आस्था के राख का कलश टूट चूका था और योगेश  के सर से बहता हुआ खून आस्था की राख को भिगो रहा था………………..!


Monday, May 28, 2012

टिटलागढ़ की एक रात

                                   [ Image courtesy : Google Images ]

बात कई साल पुरानी है .जब मेरी नयी नयी नौकरी नागपुर में लगी थी .मैं एक सेल्समेन था और मुझे बहुत टूर करना पड़ता था. मार्च महीने के दिन थे . दोपहर का वक़्त था और तेज गर्मी से मेरा बुरा हाल था . बुरा हो इन इलेक्ट्रिसिटी डिपार्टमेंट वालो का  , कम्बक्तो ने उस दिन बिजली काट रखी  थी .मेरा दिमाग बहुत ख़राब था .

अचानक मेरे फ़ोन की  घंटी बजी , मेरा खराब मन और चिडचिडा हो गया . एक तो उमस भरी  गर्म हवाये खिड़की  से आकर हाल खराब किये जा रही थी  और  ऊपर से  ढेर सारा काम , मार्च का महिना , टारगेट चेसिंग  , एक सेल्समेन  की  ज़िन्दगी कितनी बेकार हो सकती है , ये तो कोई मुझसे आकर पूछे. फ़ोन की  घंटी लगातार बज रही थी . मुझे पक्का विश्वास था की ये जरुर मेरे बॉस का होंगा , मुझे कोई न कोई काम दे रहा होंगा.

खैर बड़े ही अनमने मन से फ़ोन उठाया और कहा, "हेलो ! दिस इज  राजेश  फ्रॉम सेफ्टी प्रोडक्टस  प्राईवेट  लिमिटेड .

उधर से बॉस की खरखराती हुई आवाज आई , " राजेश  , तुम आज के आज ही टिटलागढ़ में जाकर वहां के स्टील प्लांट में परचेस ऑफिसर से मिलो . मैं फैक्स  भेज रहा हूँ सारी डिटेल्स उसी में है  . "
मैंने मिमियाते हुए कहा , " सर बहुत काम है , अगले हफ्ते चले जाऊं ? "

बॉस ने बहुत प्यार से कहा , "  नो डिअर , अगले हफ्ते कोई और काम दूंगा , गो गेट इट डन एंड रिपोर्ट मी सून ! "

फ़ोन कट गया और मेरा दिमाग और ख़राब हो गया !

कुछ दोस्तों को फ़ोन किया तो पता चला कि टिटलागढ़ जाने का एक ही रास्ता है और वो है ट्रेन से .. मुझे रायपुर के पास दुर्ग जाना होंगा और वहां से  दुर्ग से विशाखापट्नम तक एक पसेंजर ट्रेन जाती है , जो रात को टिटलागढ़ पहुंचाती है . 

मैं सोच ही रहा था  कि फैक्स आ गया . उसमे उस स्टील कंपनी  की डिटेल्स थी और उस परचेस ऑफिसर की डिटेल्स दी गयी थी और उस कंपनी की जरुरत की इंस्ट्रुमेंट्स की डिटेल्स दी गयी थी . पढ़कर लगा कि ये तो १००% सेल्स है , मेरा टारगेट कुछ और पूरा हो जाता . ख़ुशी की बात थी .

मैंने जाने का फैसला कर लिया . और समय देखा तो दोपहर के १२ बज रहे थे. रेलवे स्टेशन में फ़ोन करके ट्रेन्स की बाबत पता किया तो एक ट्रेन थोड़ी ही देर बाद थी , जो कि मुझे दुर्ग शाम ५ बजे तक पहुंचा दे सकती थी . फिर वहां से शाम को 7 बजे दूसरी गाडी.   मतलब मुझे अभी ही निकलना होंगा, यही सोचकर सारी पैकिंग  कर लिया [ वैसे भी एक सेल्समन का बैग हमेशा पैक ही रहता है  ] , मैं स्टेशन  निकल पड़ा .

स्टेशन जाकर देखा तो इतनी भीड़ थी कि बस पूछो मत. लगता था कि सभी को बस कहीं कहीं न हमेशा जाना ही होता है . स्टेशन में ही आकर पता चलता है कि हमारी जनसँख्या बढती ही जा रही है .मेरी ट्रेन जो बॉम्बे से हावड़ा जा रही थी वो प्लेटफोर्म पर आ चुकी थी , टिकट   लेकर बैठ गया. थोड़ी देर बाद टिकट  कलेक्टर बाबू आये तो उन्हें खुशामद करके एक रिजर्वेसन की बर्थ ले ली और उस पर पसर कर सो गया ये सोच कर कि क्या पता रात को नींद मिले या नहीं . थोड़ी देर बाद ही किसी ने उठाया कि बाबु जी , आपका स्टेशन आ गया . बाहर देखा तो दुर्ग स्टेशन का बोर्ड लगा हुआ था . 

खैर , बाहर आया , थोड़ी पूछताछ की तो पता चला कि दुर्ग -विशाकापटनम पैसंजर गाडी शाम ७ बजे निकलेंगी . मैंने घडी देखा , करीब डेढ़ घंटे का समय था. मैं ने ये सोचा कि पता नहीं रात को वहां टिटलागढ़ में मुझे कुछ खाने को मिलेंगा या नहीं . अभी ही कुछ खा पी लेता हूँ . स्टेशन के बाहर एक ढाबा था , उसी में बैठकर दाल रोटी खा ली और एक ग्लास  लस्सी पी ली , पेट भर गया . और रात के लिए एक टिफिन बंधवा लिया . और एक थम्प्स अप कोला की बोतल लेकर , उसे आधा पी लिया और फिर उसमे रम मिला दिया [ कोला में सोमरस मिलकर सफ़र करना हर एक योग्य सेल्समन की निशानी है ]...ये कोकटेल सेल्समेन  के पास हमेशा ही रहती है .अब मैं अगली यात्रा के लिए तैयार था .

टिटलागढ़ की टिकट लेकर प्लेटफोर्म पर जाकर बैठा . ट्रेन को आने में समय था , सोचा एक किताब खरीद लूं. वहां बुक स्टाल में देखा तो नयी वाली मनोहर कहानिया थी और ब्रोम स्टोकर की ड्रैकुला  थी , दोनों ले लिया , उस वक़्त में ये दोनो ही किताबे बड़ी चलती थी . ड्रैकुला मैंने पढ़ा नहीं था , यारो ने बड़ी तारीफ़ की थी , इस लिए इसे खरीद लिया . और हम सेल्समेन के लिए मनोहर कहानिया , बहुत बड़ा टाइम पास हुआ करता था उन दिनों .

खैर थोड़ी देर में हर स्टेशन की तरह इस स्टेशन पर भी लोगो का सैलाब आ गया , चारो तरफ खाने पीने के ठेले और लोगो की भीड़ , फिर धीमे धीमे चलती हुई ये पसेंजर ट्रेन आई , ट्रेन के आते ही लोग टूट पड़े , जिसको जहाँ जगह मिली , वहां सवार हो गया , मैं भी एक डिब्बे में घुस  पड़ा और एक खिड़की की सीट हथिया ली. , पूरी ट्रेन लोगो, मुर्गियां और बकरियां  , खाने पीने की चीजो और अलग अलग आवाजो से भर गयी . भारत की रेलगाड़ियाँ और उनका सफ़र कुछ ऐसा ही होता है .

खैर ,ट्रेन शुरू हुई और हर जगह रूकती हुई अपने मुकाम पर चल पड़ी , मैंने अपनी थम्प्स अप की बोतल से धीरे धीरे कोला +सोमरस  की चुस्कियां लेनी शुरू की और मनोहर कहानियां को पढने के लिए निकाला . ये भूत-प्रेत कथा विशेषांक था. मुझे इस तरह की कहानिया और फिल्मे बड़ी पसंद आती थी . कुछ कहानिया पढ़ने के बाद देखा तो रात हो चली थी . ट्रेन पता नहीं कहाँ रुकी थी , बहुत से मुसाफिर ऊँघ रहे थे , कुछ सो ही गए थे , कुछ बातो में मशगुल थे. मैंने घडी देखी, रात के करीब १० बज रहे थे., मैंने बैग में से अपना टिफिन निकाला  और खाना शुरू किया , ये टिफिन मैंने दुर्ग में ढाबा से बंधवा लिया था. खाने के बाद, फिर धीरे धीरे चुस्की लेते हुए मैंने अब ड्रैकुला किताब पढनी शुरू की . ये एक जबर्दश्त नॉवेल था. बहुत देर तक पढने के बाद मैंने देखा घडी रात के १:३०  बजा रही थी . मेरा स्टेशन अब आने ही वाला था. आस पास के मुसाफिरों से पुछा तो पता चला की ट्रेन थोड़ी लेट है और करीब २ बजे तक पहुंचेंगी . मैंने अब अपना बैग बंद किया और इन्तजार करने लगा उस स्टेशन का , जहाँ मैं  पहली बार जा रहा था और नाम से ही ये कुछ अजीब सा अहसास दे रहा था. टिटलागढ़ , भला ये भी  कोई नाम हुआ. खैर , अपने देश में तो ऐसे ही नाम मिलेंगे गाँवों  के और शहरो के.

करीब २:१५ पर मेरा स्टेशन आया . मैं उतरा और चारो तरफ देखा , एक अजीब सा सन्नाटा था. कुछ लोग मेरे साथ उतरे और बाहर की ओर चल दिए. मैंने सोचा अब किसी होटल में जाकर  रात काट लेता हूँ और सुबह स्टील प्लांट में जाकर काम पूरा कर लूँगा. स्टेशन में एक टीटी दिखा उससे पुछा कि यहाँ कोई होटल है आस पास, उसने हँसते हुआ कहा , " साहेब , ये छोटी सी जगह है यहाँ  कौनसा होटल मिलेंगा , आप तो यही वेटिंग रूम में रात गुजार लो और कल जहाँ जाना हो , वह चले जाना ."

मैंने सोचा वेटिंग रूम में रात गुजारने से बेहतर है कि मैं एक कोशिश कर ही लूं होटल ढूँढने की . रात भर नींद आ जाए तो दुसरे दिन का काम कुछ बेहतर होता है . मैं स्टेशन के बाहर पहुंचा , देखा तो मरघट जैसा सन्नाटा था , दिन का गर्मी का मौसम अब कुछ सर्द लग रहा था , कुछ तेज हवा भी रह रह कर बह जाती थी . कहीं कोई नहीं दिख रहा था . उस नीम अँधेरे में एक छोटा सा लाइट था लैम्प पोस्ट का , जो एक बीमार सी पीली रौशनी बिखेर रहा था. मैंने कुछ दूर देखने की कोशिश की. थोड़ी दूर पर मुझे अचानक एक तांगा वाला नज़र आया ,. मैं दौड़कर उसके पास पहुंचा , वो एक बहुत पुराना तांगा था , एक मरियल सा घोडा बंधा हुआ था उसके साथ जो कि हिल भी नहीं रहा था. और तांगेवाला , पूरी तरह से एक कम्बल में बंद होकर मूर्ती की तरह बैठा हुआ था. मुझे इस पूरे माहौल में काउंट ड्रैकुला की याद आई , उसने भी कहानी की नायिका को लेने के लिए कुछ ऐसा ही तांगा भेजा था . एक सिहरन सी दौड़ गयी मेरे रीड की हड्डी में. 

मैंने जोर लगाकर उस तांगेवाले से पुछा , भैय्या , अगर आसपास कोई होटल हो तो मुझे पहुंचा दोंगे क्या ? तांगेवाले ने अपने चेहरे से कम्बल हटाया , वो एक अजीब सा चेहरा था,. या चेहरा सफ़ेद सा था, या उसकी दाढ़ी थी , पता नहीं , पर मैं असहज हो उठा ,उसे देखकर ! मुझे एक अजीब से गंध आने लगी  . मुझे समझ नहीं आ रहा था कि वो गंध कहाँ की है , पर वो कुछ जानी सी गंध थी .  उसने एक धीमी सी आवाज में कहा , यहाँ कोई होटल अभी नहीं मिलेंगा ,बाबू जी , आज तो आप वेटिंग रूम में ही आराम कर लो , कल आप यही तैयार हो जाना , मैं आपको स्टील प्लांट छोड़ दूंगा . मैं एकदम चकित होकर पुछा , तुम्हे कैसे मालुम कि मैं प्लांट जाऊँगा, उसने अजीब सी हंसी हँसते हुए कहा , यहाँ सब प्लांट जाने के लिए ही आते है बाबू जी ,. उसकी हंसी मुझे , रात के उस वक़्त , उस बियाबान जगह में बहुत भयानक सी लगी , मैं कहा, ठीक है , मैं यही रुकता हूँ , मेरी बात सुनकर उस की आँखों में एक चमक सी उभरी , मेरे दिमाग में फिर काउंट ड्रैकुला फ्लैश  कर गया. मैं पलट कर स्टेशन की तरफ चल पड़ा , मैंने अपने डरते हुए मन को समझाया , यार राजेश , ये सब यहाँ का माहौल और तेरी किताबो का असर है . शांत रह !!  मैं कई बरसो से सेल्समन की हैसियत से सफ़र करता आ रहा हूँ , लेकिन उस रात का असर कुछ अलग ही था ,. मैं स्टेशन के भीतर घुसते हुए पीछे पलट कर देखा, वो तांगावाला अब नहीं था. कमाल है , मुझे उसके जाने की कोई आवाज़ सुनाई नहीं दी , न ही घोड़े की टाप , न ही  कोई और आवाज . पता नहीं, मैंने सोचा कि , लगता है , कोला और सोमरस की चुस्की कुछ ज्यादा ही हो गयी है शायद.

मैंने धीरे धीरे पूरे स्टेशन पर गौर किया , पूरा का पूरा स्टेशन ही सुनसान था. प्लेटफोर्म  के अंतिम छोर पर एक छोटे से कमरे के आगे लिखा था वेटिंग रूम . मैं उसी में घुस पड़ा . देखा तो एक छोटा सा गन्दा सा कमरा था. एक पीला बल्ब जल रहा था. एक बेंच थी . उस पर एक बुढा बैठा था, उसके सामने नीचे में एक बूढी बैठी थी और साथ में दो जवान बच्चे थे . मुझे आया देखकर सबने मेरे तरफ देखा .फिर नीचे बैठे बूढी और दोनों बच्चो ने उस बूढ़े की ओर देखा . उस बूढ़े ने उनसे धीमी आवाज़ में कुछ कहा और फिर मुझे पुकारा , " आओ बाबूजी , आईये , यहाँ बैठिये. " मैं बहुत अच्छा सा महसूस नहीं कर रहा था . कुछ अजीब जी बात थी .. जो मुझे उस वक़्त डिस्टर्ब कर रही थी .. लेकिन क्या ये समझ नहीं आ रहा था. मैंने सोचा "बस राजेश यार ; कुछ घंटो की बात है , यहाँ इस वेटिंग रूम में गुजार कर कल अपना काम ख़त्म करके वापस चलते है" . मैं उस बूढ़े की ओर बढ़ा और बेंच पर बैठ गया . मुझे फिर से वही अजीब से गंध आने लगी . मैंने याद करने की कोशिश की , कि वो गंध कहाँ की है , पर कुछ याद नहीं आया. मैंने उन चारो की ओर देखा. चारो कम्बल से अपने आप को ओडे हुए थे. किसी का भी चेहरा उस कम रौशनी में दिख  नहीं रहा था. माहौल में अचानक ठण्ड आ गयी थी , मैं सोच भी रहा था , मार्च महीने में ठण्ड ? मैंने उस बूढ़े से पुछा , "यहाँ का मौसम कुछ अजीब है , मार्च में ठण्ड लग रही है ?" बूढ़े ने खरखराती हुई आवाज में कहा , "बाबु जी , ये जगह चारो तरफ से पहाडियों से घिरी  हुई है . इसीलिए ये ठण्ड महसूस होती है . आप कहाँ से आ रहे हो , मैंने कहा , मैं नागपुर से आ रहा हूँ ", बुढा चुप हो गया . बूढ़े ने थोड़ी देर बाद पुछा , "स्टील प्लांट के लिए आये हो ?", मैं चौंक गया , उसकी तरफ देखा तो , पहली बार उसका चेहरा देखा , एक बुढा आदमी , बहुत सी झुरीयाँ एक अजीब सा सफेदी का रंग चेहरे पर. मैंने थोड़ी सावधानी से कहा , "आपको कैसे मालुम , कि मैं यहाँ किसलिए आया हूँ ." बूढ़े ने हंसकर कहा , यहाँ सब उसी के लिए आते है .. 

मुझे फिर से बहुत तेजी से वो गंध आई .. मुझे लगा मैं बेहोश हो जाऊँगा . मैं ने फिर उनसे कहा कि आप लोग कौन है , और कहाँ जायेंगे. , ये सुनकर चारो ने एक साथ मुझे देखा , उन चारो की आँखों में एक चमक आई , मैं सकपका बैठा ,. यही चमक मुझे उस तांगेवाले की आँखों में भी दिखी थी .बूढ़े ने कहा , "हम तो यही के है बेटा , हम  कहाँ जायेंगे ". मैं असहज हो रहा था. मैंने अपने बैग से बचा हुआ कोला पी लिया , सिगरेट का एक पैकट निकाल कर बाहर आने की कोशिश की , लगा , नींद आ रही है , फिर मैंने उस बूढ़े से पुछा. "आपके पास माचिस है?" , ये सुनकर चारो एक दम से डर से गए , बूढ़े ने तुरंत कहा , " नहीं , नहीं , हम माचिस नहीं रखते." मैं वेटिंग रूम के बाहर आ गया ,. अब कोई गंध नहीं आ रही थी . मैं ने एक फैसला किया कि मैं बाहर ही रुकुंगा,. मैंने घडी देखी , करीब ३:३० बज रहे थे. मैं ने अपने आपको समझाया कि बस यार कुछ देर और. मैंने बैग में टटोला तो एक पुरानी माचिस मिल गयी , मैंने सिगरेट सुलगाया और पीछे मुड़कर देखा . देखा तो ठगा सा खड़ा रह गया , चारो मेरे पीछे ही खड़े थे. और मुझे देख रहे थे. मैं सकपकाया . और फिर से सिगरेट पीने लगा , फिर मैंने मुड़कर देखा तो वो चारो वेटिंग रूम के दरवाजे पर खड़े होकर मुझे देख रहे थे. मेरी सिगरेट ख़त्म हो चली थी , मैं धीरे धीरे चलने लगा फिर मैंने दूसरी सिगरेट सुलगाई और फिर देखा तो उन चारो के आँखों में एक अजीब सी चमक आ गयी थी . मुझे कुछ समझ नहीं  आ रहा था , नींद के भी झोंके भी आ रहे थे. मेरी आँखे भी रह रह कर मुंद जाती थी . 

अचानक किसी ने मेरी बांह पकड़कर खींचा और चिल्लाया मरना है क्या , मैंने देखा तो एक ट्रेन आ रही थी और मैं प्लेटफोर्म के किनारे में था. अचानक ही ऐसा लगा कि बुढा मेरे पास खड़ा है और मुझे धक्का देना चाहता है . मैं घबरा कर देखा तो स्टेशन मास्टर था. उसने कहा कि बेंच पर जाकर सो जाओ . मैंने वही फैसला किया , स्टेशन पर एक बेंच थी , उस पर जाकर लेटा और सोने की कोशिश करने लगा , अब मुझे डर भी लग रहा था. अचानक करवट बदली तो देखा वही बुढा पास में खड़ा था , मैं उठकर बैठ गया , मैंने कहा , "क्या बात है , क्या चाहते हो ?"  मुझे लगने लगा कि वो चोरो  की टोली है , जो मेरे बैग छीनना चाहते है .

उस बूढ़े ने कहा , "यहाँ मत सोओ बेटा , वहां वेटिंग रूम में सो जाओ " .मैंने कहा कि  , "मैं यही सो जाऊँगा और अगर तुम यहाँ से नहीं गए तो मैं स्टेशन मास्टर के पास तुम्हारी शिकायत करूँगा." ये सुनकर वो मुस्कराया , उसकी मुस्कराहट ने मेरी रीड की हड्डी में कंपकंपी पहुंचा दी. वो एक सर्द मुस्कराहट थी. मुझे वो गंध फिर आने लगी . वो चला गया .

उसके जाते ही मैं गहरी नींद में चला गया . कुछ देर बाद किसी गाडी  की आवाज ने मुझे उठा दिया . देखा तो सुबह हो चुकी थी , रात के बारे में सोचा तो हंसी आ गयी .मैंने अपने आप से कहा , कि मैं खामख्वाह डर रहा था. मुझपर लगता था कि किताबो का असर ही हो गया था. मैंने समय देखा , सुबह के ७ बज रहे थे. सोचा कि यही वेटिंग रूम में तैयार हो जाता हूँ , और फिर स्टील प्लांट जाकर शाम की गाडी से वापस चले जाऊँगा . एक दिन के होटल के पैसे भी बच जायेंगे और इस भुतहा जगह से पीछा छूट जायेंगा. 

वापस वेटिंग रूम में गया , देखा तो बहुत से लोगो से भरी हुई थी . कुछ अच्छा लगा पहली बार इतनी भीड़ को देखकर. उस बूढ़े को ढूँढने /देखने की इच्छा हुई , लेकिन वो वहां नहीं था . मैं  तैयार हुआ , बाहर निकला , सोचा चाय और नाश्ता करके सीधा प्लांट चला जाऊँगा . चाय की दूकान पर जाकर चाय वाले से चाय के लिए कहा , इतने में पीछे से आवाज आई ,"हमें चाय नहीं पिलाओंगे बाबू जी ? आवाज सुनकर जेहन को झटका लगा , मुड़कर देखा तो वही बुढा ,बूढी और दोनों बच्चे थे . 

दिन की रौशनी में भी मुझे एक अजीब सा डर लगने लगा. अचानक वही तेज गंध फिर से आने लगी , गौर से उन सबको देखा , सबके चेहरे थोड़े सफ़ेद से नज़र आये , सबकी आँखों में वही चमक , जो तांगेवाले के आँख में थी , उस तांगेवाले के याद आई.. स्टेशन के उस पार देखा तो उसी लैम्प पोस्ट  के पास वो खड़ा था और मेरी ओर ही देख रहा था .

मैंने फिर गौर से बूढ़े की ओर देखा , मुझे लगा बेचारा बहुत ही गरीब है , कुछ मदद कर देनी ही चाहिए . मैंने पुछा. "कुछ पैसे चाहिए बाबा ?" 

बूढ़े ने कहा , "नहीं , सिर्फ चाय पिला दो . तुम मेरे बेटे की उम्र के हो ..इसलिए तुमसे ही मांग रहा हूँ"  . ये सुनकर मुझे दया आ गयी . मैं स्वभाव से ही बड़ा  दयालु था .

मैं ने चाय वाले से कहा , " भाई इन चारो को भी चाय पिला दो ". चाय वाले ने मुझे गौर से देखा और पुछा , "किन चारो को बाबू जी ?", मैंने पलटकर देखा तो वो चारो फिर गायब थे. मेरा दिमाग फिरने लगा .पहली बार मुझे डर लगा .मैंने चारो तरफ देखा .. मुझे पसीना आ रहा था. पता नहीं लेकिन बहुत डर लग रहा था पहली बार . 

अचानक देखा तो स्टेशन के गेट से मेरा एक पुराना दोस्त बाहर निकल रहा था , मैंने उसे आवाज़ दी , "उमेश , यहाँ इधर आ , मैं राजेश हूँ नागपुर से " उसने मुझे देखा और पास आया और पुछा, "यहाँ कैसे बे ?" मैंने कहा "यार स्टील प्लांट में परचेस में मिलने आया हूँ ". वो बोला कि "मैं भी वही जा रहा हूँ , चल साथ मेरे ." मुझे बड़ी राहत मिली , मैंने चारो ओर देखा , कोई नहीं था , न बुध और न ही बूढ़े का परिवार और न ही वो तांगेवाला .

उमेश से बस बिज़नस की दोस्ती थी और अक्सर हम एक ही कस्टमर के पास मिलते थे और अपने अपने बिज़नस के लिए लड़ते थे , पर आज बहुत अच्छा लग रहा था. हम दोनों प्लांट गए और अपना अपना काम किया . मुझे आर्डर मिल गया और उमेश को भी. हमने सोचा कि रात की गाडी से वापस चले जाते है . उसे रायपुर जाना था . मैं भी वही से गाडी बदलकर नागपुर चले जाऊँगाऐसा मैंने सोचा . हम दोनों को ही अपने आर्डर मिल गए थे इसलिए हमने सोचा कि मार्च के आखरी बिज़नस को सेलिब्रेट कर ले. हम एक छोटे से ढाबे पर जाकर खाने पीने  में लग गये.. रात के करीब १२ बजे वो ट्रेन थी . हम ११ बजे पहुंचे स्टेशन पर और  अपनी टिकिट लेकर इन्तजार करने लगे प्लेटफोर्म पर . 

अचानक ही थोड़ी देर बाद मुझे वही अजीब सी गंध आने लगी .मैंने पलटकर देखा तो वही बुढा अपने परिवार और उस तांगेवाले के साथ मेरे पीछे खड़ा था. मैंने चिंहुक कर अपने बगल में देखा तो मेरा दोस्त बैठे बैठे ही सो रहा था. मैंने बूढ़े को देखा ,. वो अजीब सी हंसी हंसा और मुझसे कहने लगा कि "जा रहे हो बाबू जी . हमारे साथ थोड़ी देर और समय बिता जाते ."  मैंने कहा देखो , "तुम्हे अगर कुछ पैसे चाहिए तो बोलो , मैं दे देता हूँ , पर मेरा पीछा छोडो ." बूढ़े ने कहा, " हमें पैसे नहीं आप चाहिए बाबू जी . आप बड़े अच्छे लगने लगे हो हमें.. तुम तो हमारे बेटे की उम्र के हो .". कहकर बुढा रोने लगा .. मुझे बड़ा अजीब सा महसूस हो रहा था . मैंने बूढ़े को अपने साथ बैठने को कहा उसी बेंच पर जहाँ मेरा दोस्त बैठा था. एक तो उस छोटे से स्टेशन पर ठीक से रौशनी भी नहीं थी . मुझे अच्छा नहीं लगा रहा था , लेकिन देखा की अब चारो और वो तांगेवाला सभी रोने लगे थे. बूढ़े ने मेरा हाथ थामा . बाप रे .. कितना ठंडा हाथ था उसका . मुझे एक सिहरन सी दौड़ गयी , एक तो वो अजीब सी गंध , दूसरा ये ठंडा हाथ और फिर उन सबका रोना. मेरा दिमाग में एक अजीब सी तारी छाने लगी . मेरी आँखे मुंदियाने लगी . 

अचानक ही गाडी के आने की आवाज आई , मेरा दोस्त हडबडाकर उठा और मुझे बोला , "अबे चल;  ट्रेन आ गयी है ". मैं भी हडबडा कर उठा. ट्रेन को देखने के चक्कर में इन सब को भूल ही गया . ट्रेन आई , हम दोनों  जाने लगे ,मेरा दोस्त चढ़ गया ट्रेन में , मैंने चढ़ने लगा तो बूढ़े ने आवाज दी, " बेटा जा रहे हमें छोड़कर" , मुझे अजीब सा लगा , मैंने सोचा कुछ और फिर जबर्दश्ती बूढ़े के हाथ में कुछ रुपये रखा और झुककर बूढ़े के पैर छूना चाहा . उन दिनों मैं हर उम्रदराज व्यक्ति के पैर छु  लिया करता था.

देखा तो बुढा मुड गया था , उसके पैर उलटी दिशा में थे , मैंने सर उठाकर कहने लगा , बाबा पैर तो छूने दो , देखा तो उनका चेहरा मेरी ही तरफ था . फिर नीचे देखा तो पैर उलटी तरफ थे ..........मुझे एक गहरा झटका लगा , मैं जोर से चिल्लाया , और बेहोश हो गया . ......

थोड़ी देर बाद किसी ने मेरे चेहरे पर पानी डाला . आँखे खुली देखा तो मेरा दोस्त उमेश था. मैं गाडी में लेटा  था और गाडी चल रही थी ..उमेश बोला "साले, ज्यादा पीता क्यों है , जब संभलती नहीं है ".. मैं अटक अटक कर बोला , "भूत .". वो हंसने लगा , " भूत!  अबे इस दुनिया में भूत कहाँ होते है .  ये सब बेकार की बाते है , तू सो जा" .... मैं फिर सो गया या बेहोश हो गया था ..

बहुत जोर जोर की आवाजे आ रही थी .. बड़ी मुश्किल से मैंने अपनी आँखे खोला .. देखा तो कोई स्टेशन था. उमेश पहले ही उठ गया था ,.मुझे देख कर कहा .. "उठ जा राजेश... सुबह हो गयी" , मैंने पुछा ,"यार ,कौन सा स्टेशन है " . उसने कहा, " रायपुर है .. मैं उतर रहा हूँ.. तू यही  से दूसरी गाडी ले ले  नागपुर के लिए .. चल तुझे बिठा देता हूँ.". हम दुसरे प्लेटफोर्म पर पहुंचे .वहां एक गाडी थी  जो नागपुर जा रही थी . उमेश जाकर टिकिट , अखबार और चाय ले आया . 

मेरी हालत कुछ ठीक नहीं थी .. कल का ही असर था. उमेश ने टीटी से बात करके एक जगह दिलवा दी .. मैं अपनी सीट पर बैठ गया ..उमेश चला गया .. मैंने चाय पी. और अखबार खोला .. तीसरे पेज पर एक खबर पर मेरी निगाह रुक गयी .. मेरी सांस अटक कर रह गयी .. उस खबर में उस बूढ़े का परिवार का फोटो  उस तांगेवाले के साथ था. जल्दी जल्दी खबर पढ़ी तो सन्न रहा गया , वो पूरा परिवार उस तांगेवाले के साथ टिटलागढ़ के पास एक एक्सिडेंट में दो दिन पहले ही मारे जा चुके थे. सबकी लाशें मिल गयी थी लेकिन उसके तीसरे बेटे के लाश अब तक नहीं मिली थी ...तस्वीर गौर से देखा तो उसके बेटे का भी एक फोटो दिया हुआ था जिसकी लाश अब तक नहीं मिली थी ...उसका चेहरा मुझसे मिलता था ......मैं सिहर कर रह गया ....... !!

मैं पत्थर सा बन कर रह गया ..तो क्या मैंने शापित आत्माओ के साथ टिटलागढ़ की रात काटी थी ..मुझे अब सब कुछ समझ में आ रहा था., वो तेज गंध शमशान  में जल रही लाशो की होती है , जो उस वक्त कल मुझे आ रही थी .....वो सफ़ेद चेहरे लाशो के होते है .... वो चमकीली आँखे भूतो की होती है ... और भारत में ये कहा जाता है कि भूतो के पैर उलटी तरफ होते है ..अब सब कुछ समझ आ रहा था और मैं तेजी से डर के मारे कांप रहा था ... 

ट्रेन तेजी से भाग रही थी और मैं कांप रहा था....मेरी हालत देख कर किसी ने पानी पिलाया ...मेरी दिमागी हालत खराब हो गयी थी ..थोड़ी देर बाद एक भिखारी भीख मांगने आया अपने साथियो के साथ . मैंने यूँ ही नज़र डाली तो देखा वही बुढा अपने परिवार और तांगेवाले के साथ था .. मुझे देख कर उसकी आँखे चमक रही थी ... मैं फिर बेहोश हो गया . 

                                    [ Image courtesy : Google Images ]

Monday, April 23, 2012

आबार एशो [ फिर आना ]

   
::::::आज ...अभी [कुछ पल पहले] .......!!! ::::::

कोने में रखे हुए ग्रामोफोन पर आशा भोंसले की आवाज में एक सुन्दर सा बंगाली गीत बज रहा है ...."कोन
  से  आलोर  स्वप्नो  निये  जेनो  आमय ......!!!"  सारे कमरे में रजनीगंधा के फूलो की खुशबु छाई हुई है ,  ये फूल कल निशिकांत अनिमा के जन्मदिन पर लाया था.

शांतिनिकेतन  के एकांत से भरे इस घर की बात ही कुछ अलग थी , अनिमा का मन जब भी अच्छा या खराब; दोनों होता था , तब वो इस घर में आ जाती थी , कोलकत्ता के भीड़ से बचकर कुछ दिन खुद के लिए जीने के लिये .

बाहर  में चिडियों की आवाज आ रही है .. अनिमा का मन कुछ अलग सा था. कल से मन कुछ एक अजीब सी उधेड़बुन में है . अनिमा का अकेलापन अब किसी का साथ मांग रहा था. संगीत, फूलो की  खुशबु, चिडियों की आवाज और मन का कोलाहल सब कुछ आपस में मिलकर अनिमा को उद्ग्विन बना रहा है.

अचानक उसकी तन्द्रा टूटी , निशिकांत ने चाय का कप नीचे रखा और उससे कहा , मैं चलता हूँ अनिमा , अपना ख्याल रखना . अनिमा उठकर खड़ी हुई. वो एकटक निशिकांत को देख रही थी , आँखों में कुछ गीलापन तैरने लगा . निशिकांत ने उसे गले से लगाया और दरवाजे की ओर चल पढ़ा. अनिमा का दिल तेजी से धड़कने लगा. निशिकांत के दरवाजे की ओर बढ़ते हुए एक एक कदम जैसे अनिमा की ज़िन्दगी से उसकी धड़कन लिये जा रहा हो..

निशिकांत
  दरवाजे के पास  रुका  और मुड़कर  अनिमा को देखा  . एक निश्छल मुस्कराहट  और फिर  उसने  अनिमा की तरफ  देखकर  विदा  के लिये हाथ  उठाया .

अनिमा के मुह से रुक- रूककर
  जैसे  एक गहरे कुंए से आवाज़ निकली " आबार  एशो !......आबार  एशो निशिकांत आबार  एशो !"

निशिकांत चौंककर रुका
, पलटा और अनिमा को गहरी नज़र से देखा . ......अनिमा के आँखों से आंसू बह रहे थे. उसने जीवन में पहली बार किसी को आबार एशो कहा था.

निशिकांत वापस आया और अनिमा ने उसकी तरफ अपनी बांहे फैला दी. निशिकांत अनिमा के बांहों में समा गया . अनिमा सुबकते हुए बोली. “मैं भी तुमसे प्रेम  करती हूँ निशिकांत. आमियो तोमाके खूब भालो बासी , निशिकांत.”

ग्रामोफोन का रिकॉर्ड खत्म हो गया था, चिडियों की आवाजे अब नहीं आ रही थी . सिर्फ अनिमा के सुबकने की आवाज , रजनीगंध के फूलो की खुशबु  के साथ कमरे में तैर रही थी . और तैर रहा था दोनों का प्रेम !!


::::::आज से २२ बरस पहले ::::::: 

" चलो  हम भाग जाते है सत्यजीत , अनिमा ने सर उठाकर कहा .

अनिमा रो रही थी . सत्यजीत से वो पिछले पांच सालो से प्रेम कर रही है . दोनों ने साथ में उन्होंने सारी पढाई की है . अनिमा ने विश्वभारती विश्वविद्यालय में फाईन आर्ट्स में दाखिला लिया  था ,  उसने पेंटिंग के कोर्स में डिग्री  लिया था और एक बड़े पेंटर का सपना देख रही थी . सत्यजीत उसके जूनियर कॉलेज में भी उसके साथ था और उसने भी अनिमा के साथ के लिये इसी विश्वविद्यालय में जर्नालिस्म और मास कम्युनिकेशन में दाखिला लिया था. और अब वो एक बड़ा जर्नलिस्ट बनना चाह रहा था  . दोनों के अपने अपने  अलग सपने थे , लेकिन  दोनों में प्रेम था . सत्यजीत अनिमा से बहुत  प्रेम करता  था. और उसके संग  जीने का सपना भी देख रहा था.लेकिन अब एक बहुत बड़ी मुश्किल आ गयी थी . 

सत्यजीत के पिता ने कह दिया कि वो अनिमा से शादी नहीं करेंगा . नहीं तो वो मर जायेंगे . ये फैसला भी अचानक ही आया था. अनिमा के पिता की तीन साल पहले मौत हो गयी थी और अनिमा की माँ  ने इस बरस एक दूसरे लेकिन भले आदमी के साथ ब्याह रचा लिया था. बहुत कम लोग ये जानते थे कि अनिमा की माँ को कैंसर है और वो कुछ ही दिन की मेहमान है . सिर्फ कुछ पुराने वादों के लिये और अनिमा के भविष्य के लिये उन्होंने ये ब्याह किया था. अनिमा ने ये सब सत्यजीत को समझाया था. लेकिन सत्यजीत अपने पिता को नहीं समझा पा रहा था. करीब ५ साल का प्रेम अब घरासायी हो रहा था. और अनिमा लगातार रो रही थी .

अनिमा ने कहा , “ मुझे अब इस जगह रहना भी नहीं  है ., मैंने कोलकत्ता के एक स्कूल में आर्ट टीचर की जॉब के लिये अप्लीकेशन किया था. मुझे बुलावा आ गया है , मैं जाती हूँ ,. तुम आ सको तो आ जाना , मुझे तुम्हारा इन्तजार रहेंगा ”.

सत्यजीत की आँखों में  आंसू आ गये , “अनिमा , पिताजी ने कहा है कि मुझे दूसरी लड़की से ही ब्याह करना होंगा. तुमसे मैं कभी भी ब्याह नहीं कर पाऊंगा.”

अनिमा ने कहा “इसलिए तो कह रही हूँ कि भाग चलते है . बोलो क्या कहते हो सत्यजीत ?”

सत्यजीत उदास होकर कहने लगा . “नहीं अनिमा ;मैं नहीं भाग पाऊंगा. जिंदगी भर के लिये एक बदनामी. मेरे परिवार की बदनामी . कुछ दिन रूककर देखते है , सब ठीक  हो जायेंगा.”

अनिमा ने कहा , “नहीं सत्यजीत कुछ ठीक नहीं होंगा. करीब एक साल से यही कह रहे हो , कब ठीक होंगा.  बोलो आज फैसला करो .”

सत्यजीत ने कुछ अटकते हुए कहा , “नहीं अनिमा , मैं नहीं आ पाऊंगा .”

अनिमा के आंसू रुक गये. उसने आंसू पोछा और फिर सत्यजीत की बांहों में  आकर कहा , “देखो सत्यजीत , हमारा प्यार हमारे साथ है , सब ठीक हो जायेंगा, तुम चलो मेरे साथ.”

सत्यजीत ने सर झुका कर कहा , “नहीं अनिमा , मैं नहीं आ पाऊंगा.”

अनिमा फिर रोने लगी , थोड़ी देर बाद उसने अपने आंसू पोंछे और खड़ी  हो गयी.

अनिमा ने आँख भर कर सत्यजीत को देखा . और कहा , “मैं चलती हूँ सत्यजीत , अब कभी नहीं मिलना मुझसे.”

सत्यजीत की आँखे भर आई , वो परिस्थितियों के आगे विवश था. वो कुछ बोल न सका.

थोड़े दूर जाने के बाद अनिमा रुकी , पलटी और सत्यजीत को देखा .

सत्यजीत ने कहा , “आबार एशो अनिमा."

अनिमा मुड कर चल दी. हमेशा के लिए सत्यजीत के ज़िन्दगी से चली गयी ..!

::::::आज से 13 बरस पहले ::::::

“ये मेरा घर है और जो मैं चाहूँगा, वही होंगा” . देबाशीष गरज कर बोला.

अनिमा ने कहा.
“अगर तुम ये सोचते हो की ये सिर्फ तुम अकेले का घर है तो फिर मेरा क्या काम यहाँ ?"

 
देबाशीष ने गुस्से में कहा , “तुम मेरी बात क्यों नहीं सुनना चाहती हो."
 
अनिमा ने कहा “ इसमें सुनने लायक क्या है . पेंटिंग मेरी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा हिस्सा है , मैं कैसे बंद कर दूं , सिर्फ तुम्हारे अंह की शान्ति के लिए मैं अपने जीवन  में मौजूद एक ही ख़ुशी है , वो भी खो दूं ."
 
अब अनिमा रोज रोज के इन झगड़ो से तंग आ  चुकी थी . तीन  साल पहले उसने देबाशीष से शादी की थी . वो भी प्रेम विवाह . देबाशीष भी उसकी तरह एक पेंटर था. और पेंटिंग ही उन दोनों को करीब लायी थी . सब ठीक  चल रहा था. फिर आर्ट के फॉर्म में बदलाव आया. अनिमा ने अपने आप को कंटेम्पररी  आर्ट  में ढाल दिया , और इस बदलाव ने पेशा और पैसो में बढोत्तरी की.  लेकिन देबाशीष अपने आप में बदलाव नहीं ला सका , नतीजा  ये हुआ की . देबाशीष की पेंटिंग्स लोग कम खरीदने लगे और करीब करीब बिकना  भी बंद हो गया .

लेकिन अनिमा एक सफल आर्टिस्ट बन गयी . चारो तरफ उसका नाम हुआ. बहुत सी एक्सिबिशन भी होने लगी , और अच्छे दामो पर उसका आर्टवर्क बिकने भी लगा.  बस देबाशीष का अंह उसके सर पर सवार हो गया . ये घर भी दोनों ने मिलकर ख़रीदा था. और करीब एक साल से अनिमा ही इस घर का पूरा खर्चा उठा रही थी . अनिमा को कहीं भी कोई भी तकलीफ नहीं थी ,  देबाशीष से वो प्रेम करती थी . लेकिन रोज देबाशीष का पीकर आना और फिर लड़ना . और आज सुबह से ही देबाशीष पीकर घर में उत्पात मचा रहा था. बात सिर्फ इतनी थी , अनिमा को फ्रांस जाना  था , और देबाशीष नहीं चाहता था की वो फ्रांस जाए. अनिमा के लिए जो प्रेम उसके मन में था अब उस प्रेम की जगह ईर्ष्या ने ली थी . 
 
देबाशीष ने चिल्लाकर कहा , “देखो अनिमा , तुम ये पेंटिंग छोड़ दो , हम प्रिंटिंग का काम करेंगे .”

अनिमा ने आश्चर्य से कहा , “ये क्या कह रहे हो , मैं ऐसा कुछ भी नहीं करुँगी. पेंटिंग मेरे लिए सब कुछ है . तुम अपनी जिद छोड़ दो.  हम मिलकर एक आर्ट गेलरी खोलते है , और सब कुछ ठीक हो जायेंगा .”
 
देबाशीष फिर चिल्लाकर बोला . “नहीं , जो मैं कहूँगा वही तुम करो , मत भूलो की तुम मेरी बीबी  हो .”
 
अनिमा अक्सर शांत ही रहती थी . लेकिन आज वो भी गुस्से में थी . 
 
उसने भी  चिल्लाकर कहा. “मैं वही करुँगी , जो मेरा मन कहेंगा. मत भूलो , की तुमसे मैंने शादी भी इसलिए की थी ,की मैं तुमसे प्रेम करती हूँ और मेरे मन ने इस की इजाजत दी थी ." 
 
देबाशीष ने कहा , “तो तुमने मुझ पर उपकार किया . अब एक उपकार और करो , या तो वो करो , मैं चाहता हूँ या फिर मुझे छोड़कर  चली जाओ."

अचानक कमरे में  ही एक दर्द भरा सन्नाटा छा गया .

बहुत देर की चुप्पी के बाद अनिमा उठी और घर से बाहर चल पड़ी.

देबाशीष ने चिल्लाकर  कहा , “कहाँ जा रही हो , मैंने गुस्से में कह दिया तो चले ही जाओंगी .”

अनिमा ने बिना मुड़े  कहा , “नहीं देबाशीष , अब नहीं . अब हम साथ नहीं रह सकते . मैं तुम्हे छोड़कर  जा रही हूँ ."

देबाशीष कुछ बोल न सका .

जैसे ही अनिमा दरवाजे के पास पहुंची , देबाशीष ने कातर स्वर में कहा " आबार एशो अनिमा "
 
अनिमा ने न कोई जवाब दिया , न पलटकर देखा और न ही रुकी , वो हमेशा के लिए देबाशीष  के घर से  और उसकी ज़िन्दगी से निकल गयी….!

::::::आज से 8 बरस पहले ::::::

शमशान के चौकीदार ने पुछा  , “कौन हो तुम?”

अनिमा ने कुछ नहीं कहा , सिर्फ उसके मुह से निकला "श्रीकांत ”

शमशान में  लगभग रात हो चुकी थी और इस वक़्त वैसे भी कोई नहीं आता, और ऐसे समय में एक महिला का शमशान में होना . चौकीदार ने गौर से अनिमा को देखा . अनिमा का चेहरा किसी मुर्दा चेहरे से कम नहीं लग रहा था . आँखे सूखी हुई सी थी.

चौकीदार ने पुछा. “तुम कौन हो. श्रीकांत बाबु के लोग तो आकर चले गए.”

अनिमा ने उसकी ओर देखा . शमशान के गेट पर लगे हुए पीले बल्ब की रौशनी में चौकीदार ने अनिमा का चेहरा देखा और बहुत कुछ उस नासमझ को समझ गया . उसने चुपचाप अनिमा को अपने पीछे आने का इशारा किया .

एक करीब करीब जल चुकी चिता के पास उसे  ले आया और उस चिता के तरफ इशारा किया . अनिमा चिता देखकर पथरा गयी . बहुत देर से रुके हुए आंसू अब न रुक सके . वो जोर जोर से रोने लगी . चौकीदार चुपचाप खड़ा रहा . दुनिया में सच शायद सिर्फ शमशान में ही दिखता है .

बहुत देर तक रोने के बाद वो चुप हो गयी .
 
श्रीकांत जैसा आदमी , अनिमा ने दूसरा नहीं देखा था. और शायद अब कभी देखेंगी भी नहीं .  सब कुछ जैसे एक लम्हे में उसकी आँखों के सामने लहरा गया.

श्रीकांत को माँ सरस्वती का वरदान था. वो कवि
, संगीतकार, गायक, चित्रकार सब कुछ था. लेकिन उसकी ज़िन्दगी में जिससे उसका ब्याह हुआ था . वो भी प्रेम विवाह , वो
ब्याह सुखमय नहीं था. स्त्री कर्कशा थी और दिन रात उसका जीवन नरक बनाये हुए थी . श्रीकांत की पत्नी का स्वभाव उससे बिलकुल भी मेल नहीं खाता था . रोज किसी न किसी बात पर झगडा एक बहुत ही कॉमन बात थी . श्रीकांत तंग हो चला था ज़िन्दगी से . नतीजा , रोज़ ही श्रीकांत शराब के नशे में अपने आपको डुबो देता था. ऐसे ही एक शाम को श्रीकांत की मुलाकात अनिमा से हुई . कोलकत्ता में उत्तमकुमार  पर आधारित एक शो था. जिसमे श्रीकांत ने बहुत से गीत गाये , और जब अनिमा का प्रवेश वहाँ हुआ , तब वो स्टेज पर एक गाना गा रहा था , " दिल ऐसा किसी ने मेरा तोडा " गाना सुनकर अनिमा रुक गयी थी.  उस दिन दोनों का परिचय एक दुसरे से हुआ.

दुसरे दिन श्रीकांत अनिमा के घर पहुँच गया सुबह ही . अनिमा उसे देखकर चौंक
गयी थी . श्रीकांत ने उसके ओर कुछ रजनीगंधा के फूल बढाए और कहा . “अनिमा मुझे झूठ  बोलना  नहीं आता . कल पहली बार ऐसा हुआ की तुमसे मिला और मैंने शराब नहीं पी. और रात को सो भी नहीं पाया . तुम्हारे बारे में ही सोचते रहा . क्या ये प्रेम है ?”

 
अनिमा सकते  में आ गयी , सो  तो वो भी नहीं सकी थी . उसने भी श्रीकांत के बारे में सोचा था.  अनिमा ने कुछ नहीं कहा . 
 
श्रीकांत ने फिर कहा. “मैं शादीशुदा हूँ . और मुझे अपने शादी पर अफ़सोस तो बहुत बार हुआ है , लेकिन आज बहुत ज्यादा अफ़सोस है .”
 
अनिमा ने उसे घर के भीतर बुलाया और कहा , “चाय तो पी लीजिये . कल आप बहुत अच्छा गा रहा थे. ” 
 
श्रीकांत ने कहा ,  “मैं अब तुम्हारे लिए गाना चाहता हूँ .”
 
अनिमा ने सकुचा कर पुछा . “क्या गाना चाहते हो ?"
 
श्रीकांत ने कहा “तुम्हे उत्तमकुमार बहुत पसंद है . उसी के प्रेम भरे गीत तुम्हारे लिए मेरे मन के भावो के साथ गाना चाहता हूँ . ”

अनिमा ने ठहरकर  कहा , “मुझे ज़िन्दगी बहुत पसंद है .”

श्रीकांत बहुत देर तक उसे देखता रहा. और फिर धीरे से कहा , “तुम बहुत बरस पहले मुझसे नहीं मिल सकती थी अनिमा ?”

अनिमा ने कहा , “ज़िन्दगी के अपने फैसले होते है  श्रीकांत ."
 
उस दिन के बाद श्रीकांत और अनिमा अक्सर मिलते रहे , हर दिन के साथ श्रीकांत के मन का तनाव बढता ही रहा , वो अनिमा के बैगर नहीं रह पा रहा था लेकिन अपनी पत्नी को कैसे छोड़े , कहाँ जाये , क्या करे. वो अपने आपको भगवान की आँखों में कसूरवार नहीं ठहराना चाहता था.

इसी कशमकश में एक साल बीत गया. श्रीकांत ने अनिमा को और अनिमा ने श्रीकांत को इतनी खुशियाँ दी , जिन्हें शब्दों ने नहीं समाया जा सकता था. दोनों जैसे एक दुसरे के लिए बने हो. लेकिन जैसे ही वो अलग होते थे. दोनों ही दुःख में घिर जाते थे. अनिमा की पेंटिंग्स में उदासी झलकने लगी . श्रीकांत और बहुत ज्यादा पीने लगा था.

परसों श्रीकांत ने कहा की वो अनिमा से मिलना चाहता है , अनिमा ने उसे घर बुलाया , लेकिन श्रीकांत ने कहा की वो उससे किसी नदी के किनारे मिलना चाहता है . कोलकत्ता के बाहर गंगा के घाट पर दोनों मिले . ढलती हुई शाम और आकाश में छायी हुई लालिमा  और गंगा का बहता हुआ पानी जैसे दोनों से बहुत कुछ कहने की कोशिश कर रहा था.

श्रीकांत ने उसे एक गीत सुनाया . “तुझे देखा , तुझे चाहा ,तुझे पूजा मैंने."

उस रात श्रीकांत ने बहुत सी बाते की. लेकिन वो कुछ  विचलित था.

अनिमा ने पुछा भी , “क्या बात है श्रीकांत ?” लेकिन श्रीकांत कुछ नहीं बोला.

कल जब शाम को वो विदा हुआ , तो श्रीकांत ने उसे बहुत देर तक गले लगाया रखा और फिर धीरे से कहा, “अगले जन्म मुझे जल्दी मिलना अनिमा !” अनिमा की आँखों में आंसू तैर गये !
 
आज सुबह अनिमा को पता चला कि श्रीकांत ने खुदखुशी कर ली.

अनिमा पागल सी हो गयी और अब वो शमशान में उसकी चिता के पास बैठकर रो रही है . अनिमा को लग रहा था कि खुद उसकी ज़िन्दगी राख है !

चौकीदार ने धीरे से कहा , “बहुरानी , रात ज्यादा हो चली है अब आप जाओ."
 
अनिमा चौंक कर उठी. फिर वो धीरे धीरे बाहर की ओर चली , बार  बार वो मुड़कर पीछे देखती थी की राख के ढेर से श्रीकांत उठ कर खड़ा होंगा और कहेंगा , “आबार एशो अनिमा !!!”
 
अनिमा इन शब्दों को लिए इस बार बैचेन थी , वो रुक जाती अगर श्रीकांत उसे पुकारता. लेकिन राख के ढेर में सिर्फ उनके प्रेम की चिंगारियां ही बची हुई है. अनिमा अपने आप में नहीं रही.  उस दिन से वो खामोश हो गयी .

::::::
आज से दो महीने पहले ::::::

अनिमा अब ज्यादातर चुप ही रहती थी , उसने अपने एकाकी जीवन में सिर्फ पेंटिंग्स को ही जगह दे दी थी . उसकी पेंटिंग्स अब और भी ज्यादा  मुखर हो चली थी . दर्द के कई शेड्स थे अनिमा के पास जो उन्हें वो कैनवास पर उतार देती थी .

ऐसे ही एक प्रदर्शनी में उसकी मुलाकात निशिकांत से हुई. आकार-प्रकार गेलरी में उसकी पेंटिंग्स का शो चल रहा था. और करीब लंच का समय था , जब वो बाहर जाने के लिए निकल रही थी , तब उसने देखा की एक लम्बा सा आदमी उसकी एक पेंटिंग के सामने खड़ा होकर कुछ लिख रहा था .

वो उसके पास गयी और पुछा , “ कैन आई हेल्प  यू  सर ?” उस आदमी ने पलट कर अनिमा को देखा . वो एक करीब ४० साल का आदमी था .जो की एक कुरता पहना हुआ था और हाथ में एक डायरी में कुछ लिख रहा था. वो निशिकांत था  . उसने अनिमा से पुछा. “आप ?”  अनिमा ने कहा “ ये पेंटिंग मैंने बनायी हुई है ,”  निशिकांत ने मुस्करा कर अनिमा से कहा ,” यू हैव आलरेडी हेल्प्ड मी बाय मेकिंग सच ए वंडरफुल पेंटिंग !” .

अनिमा ने मुस्कराकर कहा , “थैंक्स . आप क्या पेंटिंग खरीदना चाहते है , कुछ लिख रहे है ?”. निशिकांत ने कहा “नहीं नहीं , मैं तो इस पेंटिंग  को देखकर एक कविता लिख रहा हूँ .” अनिमा ने आश्चर्य से पुछा , “अच्छा , क्या लिखा है बताये तो सही .”

पहले हम आपस में परिचित हो जाए . “मेरा नाम निशिकांत है .” निशिकांत ने कहा.
”और मेरा अनिमा" अनिमा ने मुस्कराते हुए  कहा .

निशिकांत ने कहा
“अनिमा नाम तो बहुत अच्छा है , पर वैसे इसका मतलब क्या है ."
अनिमा ने कहा
“शायद आत्मा या फिर आन्सर माय प्रेयर , मैंने कहीं पढ़ा था."
निशिकांत ने हाथ जोड़कर कहा
, हे देवी , तब तो आन्सर माय प्रेयर  इन अडवांस.”

अनिमा मुस्करा उठी !

निशिकांत ने कहा “ देखिये , ये जो आपकी पेंटिंग है आपने इसका शीर्षक " क्षितिज " दिया हुआ है  अब आपके पेंटिंग में आपने दूर में एक हलकी सी लाइन ड्रा किया हुआ है और वहां पर आपने दो इंसान बनाए हुए है  जो की प्रेमी प्रेमिका है . करेक्ट ? “

अनिमा ने कहा , “हाँ , ये तो सही है और ये पेंटिंग भी मुझे बहुत पसंद है . पर आपने लिखा क्या है ये तो बताये .”

निशिकांत ने पढ़कर सुनाया
""क्षितिज""

तुमने कहीं वो क्षितिज देखा है ,
जहाँ , हम मिल सकें !
एक हो सके !!
मैंने तो बहुत ढूँढा ;
पर मिल नही पाया ,
कहीं मैंने तुम्हे देखा ;
अपनी ही बनाई हुई जंजीरों में कैद ,
अपनी एकाकी ज़िन्दगी को ढोते हुए ,
कहीं मैंने अपने आपको देखा ;
अकेला न होकर भी अकेला चलते हुए ,
अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए ,
अपने प्यार को तलाशते हुए ;
कहीं मैंने हम दोनों को देखा ,
क्षितिज को ढूंढते हुए
पर हमें कभी क्षितिज नही मिला !
भला ,
अपने ही बन्धनों के साथ ,
क्षितिज को कभी पाया जा सकता है ,
शायद नहीं ;
पर ,मुझे तो अब भी उस क्षितिज की तलाश है !
जहाँ मैं तुमसे मिल सकूँ ,
तुम्हारा हो सकूँ ,
तुम्हे पा सकूँ .
और , कह सकूँ ;
कि ;
आकाश कितना अनंत है
और हम अपने क्षितिज पर खड़े है
काश ,
ऐसा हो पाता;
पर क्षितिज को आज तक किस ने पाया है
किसी ने भी तो नही ,
न तुमने , न मैंने
क्षितिज कभी नही मिल पाता है
पर ;
हम ; अपने ह्रदय के प्रेम क्षितिज पर
अवश्य मिल रहें है !
यही अपना क्षितिज है !!
हाँ ; यही अपना क्षितिज है !!!


कविता सुनाने के बाद निशिकांत ने अनिमा की ओर देखा . अनिमा उसकी  ओर ही देख रही थी . पता नहीं उसके दिल में कैसे हलचल मचल रही थी . कभी वो अपनी पेंटिंग को और कभी वो निशिकांत को देखती .

निशिकांत ने आश्चर्य से पुछा
, “क्या हुआ. ठीक नहीं है क्या .”
अनिमा ने कुछ नहीं कहा, उस पेंटिंग को उतारकर निशिकांत को दे दिया और कहने लगी , “मुझे वो कविता दे दो.
निशिकांत कुछ न कह सका . फिर कुछ देर बाद  कहा . “ठीक है . कविता भी ले लो . और अपनी पेंटिंग भी रख लो. मैं खरीद नहीं पाऊंगा .”

अनिमा ने कहा “पैसो की कोई बात ही नहीं है . तुम इसे ले जाओ
निशिकांत ने कहा , “एक काम करते है , इसे तुम अपने पास रख लो,  मैं  तुम्हारे घर आकर देख लिया करूँगा.” इसी बहाने तुमसे मिलना भी हो जाया करेंगा.

दोनों हंसने लगे.

कुछ इस तरह से हुआ दोनों का परिचय
, दोनों मिलने लगे करीब करीब हर दुसरे दिन. अनिमा को निशिकांत अच्छा  लगने लगा था. उसमे वो ठहराव था जो की उसकी भावनाओ को रोक पाने में सक्षम था. और निशिकांत को अनिमा अच्छी लगने लगी थी . अनिमा में जो शान्ति थी , वो बहुत ही सुखद थी . निशिकांत के मन को तृप्ति  हो जाती थी , जब भी वो अनिमा के साथ समय बिताता था.

दोनों की बहुत सी मुलाकाते हुई इन दिनों और दोनों ने अपनी बीती ज़िन्दगी को एक दुसरे के साथ शेयर किया . निशिकांत का प्रेम किसी से हुआ था , जिसने बाद में निशिकांत को छोड़कर किसी और व्यक्ति से शादी कर ली थी, तब से निशिकांत बंजारों सा जीवन ही जी रहा था, एक कवि था , और यूँ ही कुछ यहाँ वहां लिखकर जी रहा था. अनिमा से मिलकर उसे बहुत अच्छा लगा , अनिमा की ज़िन्दगी को जानकार बहुत दुःख हुआ.

और उसने एक दिन कहा भी अनिमा से , “कब तक तुम  परछाईयो के साथ जीना चाहती हो . जस्ट लुक फारवर्ड .  मुझे ऐसा लगता है कि , हमें आगे की ओर बढना चाहिए . जीवन अपने आप में एक रहस्य है और उसने अपने भीतर  बहुत कुछ छुपा रखा है .  जैसे कि हमारी दोस्ती . हम दोनों ही कोलकत्ता में रहते है और अब मिले है !!

अनिमा ने मुस्करा दिया और सोचने लगी की सच ही तो कह रहा है . इन दो महीनो
में दोनों एक दुसरे के बारे में बहुत कुछ जान गए थे और एक दुसरे को चाहने भी  लगे थे.

समय पंख लगाकर उड़ने लगा , समय की अपनी गति होती है .

::::::परसो ::::::

कोलकत्ता के आकृति आर्ट गेलेरी में अनिमा के पेंटिंग्स की प्रदर्शनी का आज आखरी दिन था. पिछले १० दिनों में काफी अच्छा प्रतिसाद मिला था और वैसे भी अनिमा भट्टाचार्य , पेंटिंग और कंटेम्पररी  आर्ट की दुनिया में एक सिग्नेचर नाम था. उसकी काफी पेंटिंग्स बिक चुकी थी . लेकिन अनिमा का मन ठीक नहीं था. पिछले कई दिनों से निशिकांत उसके मन में अपना घर बनाते जा रहा था. वो कई बार खुद से ये सवाल पूछती , कि क्या उसके जीवन में अब कोई परमानेंट पढाव आने वाला है ? वो व्यथित थी . भविष्य में क्या है , कोई नहीं जानता था. लेकिन अनिमा को लग रहा था कि निशिकांत ही उसका भविष्य है . 

वो अपने ही विचारों में खोयी हुई थी कि अचानक ही उसके पीछे से किसी ने धीमे से उसके कानो में कहा , “सपने देख रही हो अनिमा..और वो भी खुली हुई आँखों से  .. !”

अनिमा ने मुस्कराते हुए कहा , ' हाँ , निशिकांत , तुम्हारा सपना देख रही हूँ .”

निशिकांत ने सामने आकर कहा , “अनिमा , मैं तो तुम्हारे सामने ही हूँ, सपने में देखने की क्या बात है .”

दोनों खिलखिलाकर हंसने लगे. 

निशिकांत ने कहा, “ मैंने तुम्हारी एक पेंटिंग , जिसमे तुमने एक लम्बा रास्ता दिखाया है और रास्ते के अंत में एक स्त्री को पेंट किया है . उगते हुए सूरज के साथ , उस पर एक कविता लिखी है." 

अनिमा ने कहा , “पता है निशिकांत , पहले जब मैं पेंट करती थी , तो बस अपने लिए ही करती थी , लेकिन अब जब से तुम मिले हो , तुम्हारे लिए पेंट करती हूँ . और मुझे ये अच्छा भी लगता है , हाँ तो बताओ क्या लिखा है . मैंने तो उस पेंटिंग का कोई नाम भी नहीं दिया है ."

निशिकांत ने कहा , “अनिमा , मैंने तो नाम भी दे दिया है और कविता भी लिखी है , तुम्हे जरुर पसंद आएँगी .”

अनिमा ने हँसते हुए कहा , “तुम लिखो और मुझे पसंद नहीं आये , ऐसा कभी हुआ है निशिकांत ? ”
निशिकांत ने अपनी डायरी निकाली और अनिमा की आँखों में झांकते हुए कहा , “तो सुनो देवी जी . अर्ज किया है ”

अनिमा ने हँसते हुए कहा , “अरे आगे तो बढ़ो
निशिकांत ने कहा . “अनिमा ,  तुम्हारी पेंटिंग और मेरी कविता का नाम मैंने रखा है " आबार एशो " !!!”

अनिमा चौंक गयी , “क्या ?”

निशिकांत ने उसका हाथ पकड़ कर उसकी पेंटिंग के पास ले गया .और उससे कहा , “अब तुम ध्यान से इस पेंटिंग को देखो ,तुम्हे लगता नहीं है कि कोई इस औरत से कह रहा है कि आबार एशो . इस रास्ते में मौजूद हर पेड़ , हर बादल , हर किसी से कह रहा है कि आबार एशो . बोलो !”

अनिमा ने कुछ नहीं कहा . बस पेंटिंग की ओर देखती रही . फिर निशिकांत को देख कर कहा . “निशिकांत ,मैंने अपने जीवन में कभी भी किसी को आबार एशो नहीं कहा.. कोई ऐसा मन को भाया ही नहीं कि उसे फिर से बुला सकूँ ...अपने जीवन में . अपने जीवन की यात्रा में ..”

निशिकांत ने गंभीर होकर कहा , “तुम्हे कभी तो किसी को आबार एशो कहना ही पड़ेंगा अनिमा . ज़िन्दगी में कभी तो रुकना ही पड़ता है.”

अनिमा ने गीली होती हुई आँखों को छुपा कर कहा , “अच्छा अपनी कविता तो सुनाओ.”
 
निशिकांत ने उसे गहरी नज़र से देखते हुए कहा .... ”सुनो ...शायद इसे सुन कर तुम किसी को कह सको ,आबार एशो !”

निशिकांत ने कहना शुरू किया ....और उसकी धीर
-गंभीर आवाज ,अनिमा के मन मे उतरनी लगी ....!

आबार एशो  [ फिर आना ]

सुबह का सूरज आज जब मुझे जगाने आया 

तो मैंने देखा वो उदास था 
मैंने पुछा तो बुझा बुझा सा वो कहने लगा .. 
मुझसे मेरी रौशनी छीन ले गयी है ; 
कोई तुम्हारी चाहने वाली , 
जिसके सदके मेरी किरणे 
तुम पर नज़र करती थी !!!

रात को चाँद एक उदास बदली में जाकर छुप गया ; 

तो मैंने तड़प कर उससे कहा , 
यार तेरी चांदनी तो दे दे मुझे ... 
चाँद ने अपने आंसुओ को पोछते हुए कहा 
मुझसे मेरी चांदनी छीन ले गयी है 
कोई तुम्हारी चाहने वाली , 
जिसके सदके मेरी चांदनी 
तुम पर छिटका करती थी ;

रातरानी के फूल चुपचाप सर झुकाए खड़े थे 

मैंने उनसे कहा ,  
दोस्तों  मुझे तुम्हारी खुशबू चाहिए , 
उन्होंने गहरी सांस लेते हुए कहा 
हमसे हमारी खुशबू छीन ले गयी है
 कोई तुम्हारी चाहने वाली ,
 जिसके सदके हमारी खुशबू 
तुम पर बिखरा करती थी ;

घर भर में तुम्हे ढूंढता फिरता हूँ

 कही तुम्हारा साया है , 
कही तुम्हारी मुस्कराहट 
कहीं तुम्हारी हंसी है 
कही तुम्हारी उदासी 
और कहीं तुम्हारे खामोश आंसू
तुम क्या चली गयी 
मेरी रूह मुझसे अलग हो गयी

यहाँ अब सिर्फ तुम्हारी यादे है 

जिनके सहारे मेरी साँसे चल रही है ....
आ जाओ प्रिये 
बस एक बार फिर आ जाओ 
आबार एशो प्रिये 
आबार एशो !!!!!


कविता सुनाकर  निशिकांत ने अनिमा को देखा .

अनिमा के जीवन का सारा दर्द जैसे आंसुओ के रूप में बह रहा था. उसका
अकेलापन, उसकी तकलीफे सब कुछ जैसे उसे अपराधी ठहरा रहे थे कि उसने कभी भी किसी को आबार एशो नहीं बोला .  और  न  ही  किसी  के  आबार  एशो  कहने  पर  रुकी  या  फिर  वापस आई  ; अचानक श्रीकांत जैसे राख से निकल कर सामने खड़ा हो गया

निशिकांत उसे देखते रहा
, फिर आगे बढकर उसे अपनी बांहों में लेकर उसके सर को हलके थपथपाने लगा. अनिमा थोड़ी देर में संयत हो गयी.

 
उसने निशिकांत से कहा . “कल मैं शान्ति निकेतन जा रही हूँ, कल मेरा जन्मदिन है , कल घर पर आ जाना. ”
 
निशिकांत  ने मुस्कराकर  कहा , “  मैं जानता हूँ . मैं आ जाऊँगा .”
 
निशिकांत चला गया , कल आने के लिए . और अनिमा गहरे सोच में डूब गयी .. पता नहीं क्या क्या उसके मन में कितने तूफान आ जा रहे थे .

::::::
कल ::::::

शाम के करीब ५ बजे थे . दरवाजे के घंटी बजी तो अनिमा ने दरवाजा खोला, सामने निशिकांत था. अपने हाथो को पीछे में छुपाये हुए. जैसे ही अनिमा नज़र आई , निशिकांत ने रजनीगंधा के फूलो का एक छोटा सा गुलदस्ता उसे दिया .और बहुत ही अच्छे से , थोडा  झुककर , थोड़े से नाटकीय ढंग से कहा , “जन्मदिन की ढेर सारी  शुभकामनाये  “. अनिमा ने मुस्करा कर कहा. “थैंक्स. और इतना फार्मल होने की कोई जरुरत नहीं है.”

निशिकांत ने घर के भीतर आकर कहा , “ और कोई नहीं है  , क्या  सिर्फ मैं ही इनवाईटेड हूँ. ?”
अनिमा ने कहा “ हां सिर्फ तुम . अब कहीं कोई और नहीं है."

निशिकांत चौंककर अनिमा को गहरी नज़र से देखने लगा. अनिमा ने एक सफ़ेद रंग की तात की साड़ी पहनी हुई थी , जिसके किनारे पर लाल और हरे रंग की बोर्डर बनी हुई थी . और उस बोर्डर पर छोटी छोटी चिड़ियाएँ बनी हुई थी . जिनका रंग थोडा सा आसमानी नीला था. 

निशिकांत ने कहा. आज   तो  बड़ी  अच्छी  लग  रही हो  . अनीमा  शायद  अभी  अभी नहाई  हुई थी . उसके  गीले बालो से पानी की बूंदे टपक रही थी . निशिकांत धीरे धीरे पास आया और कहा मैंने तुम्हारे लिए तीन गिफ्ट लाया हूँ . एक तो ये रजनीगंधा के फूल है , जो  कि , अनिमा ने बात  काटकर कहा , “मुझे बहुत पसंद है.”  निशिकांत मुस्करा कर बोला “और दुसरे ये एक सीडी है जो की किशोर कुमार के गानों की है.”  अनिमा ने उस सीडी को लेते हुए कहा , “अहो , ये भी मुझे पसंद है.” निशिकांत ने मुस्कराते हुए कहा, “और तीसरी ये एक  किताब है  : ज़ाहिर - पाउलो कोहेलो की. ये भी पसंद आएँगी तुम्हे.”

अनिमा ने मुस्कराकर कहा , “और एक गिफ्ट है और वो तुम हो . मैंने तुम्हारे लिए बहुत सारा बंगाली खाना बनाया है , जैसे आलू पोश्तो,” निशिकांत ने बात काटकर कहा , “ये तो मुझे बहुत पसंद है ,” अनिमा ने मुस्कराकर कहा  “और मूंग की दाल , और बैंगन भाजा फ्राय.” निशिकांत  ने कहा , “यार पहले खाना खिला  दो. बर्थडे तो बाद में मना लेंगे.”

दोनों खिलखिलाकर हंसने लगे. निशिकांत ने देखा की , आज अनिमा बहुत खुश नज़र आ रही है . और ये ख़ुशी उसके सारे पर्सनालिटी पर छाई  हुई है .

अनिमा के घर निशिकांत  पहली  बार आया था. अनिमा का घर एक कलाकार का ही घर था. बहुत करीने से बहुत  सी चीजो से सजा हुआ था. एक कोने में ग्रामोफोन रखा था, उसे देखकर निशिकांत ने आश्चर्य से पुछा ये  चलता है ? अनिमा ने कहा , हां भई चलता है , आओ तुम्हे कुछ पुराने गाने सुनाऊं . दोनों ने बैठकर बहुत से गाने सुने.

फिर अनिमा ने कुछ पुरानी  पेंटिंग्स दिखाई निशिकांत को . निशिकांत ने कुछ नयी कविता सुनाई अनिमा को .
 
रात को  दोनों ने जमीन पर बैठकर मोमबत्तियो की रोशनी में भोजन का इंतजाम किया . सुरीला संगीत  और हलकी हलकी खुशबु रजनीगंधा के फूलो की .. और फिर खिडाखियों  से छन कर आती हुई चांदनी .  एक परफेक्ट रोमांटिक माहौल था.
 
खाने के बाद , जमीन पर ही बीचे हुए गद्दों पर बैठकर दोनों ने बाते कहनी चाही...... पर अनिमा ने मुंह पर उंगली रख कर मना कर दिया. बस उसने कहा, “रात की इस खामोशी को कहने दो और जीवन को बहने दो. कुछ  न कहो .. बस मौन में रहो.”

निशिकांत ने मुस्करा कर कहा , “अच्छा जी , अब तुम भी कविता करने लगी.”

फिर बहुत देर तक  वो दोनों  चुपचाप बैठे रहे. निशिकांत धीरे से उठकर अनिमा के पास बैठ गया . अनिमा ने उसकी ओर मुंदी हुई आँखों से देखा .

निशिकांत ने कहा, “अनिमा , मैं कुछ  कहना चाहता हूँ.” अनिमा ने कुछ न कहा , बस एक प्रश्न आँखों में लेकर देखा. निशिकांत ने देखा की उसके होंठो पर बहुत प्यारी से मुस्कान उभर आई है . निशिकांत ने उसके सर पर हलके से अपना हाथ रखा .और धीरे से कहा... “आमी तोमको भालो बासी अनिमा .... सच में .. बस अब एक ठहराव चाहिए जीवन में. और मैं तुम्हारे आँचल तले ठहरना चाहता हूँ .......अनिमा.”

अनिमा ने उसकी ओर देखा , कुछ न कहा. और आँखे बंद कर ली.
 
निशिकांत बहुत देर तक अनिमा की तरफ देखता रहा , सोचा की ,वो कुछ कहेंगी जवाब में , लेकिन अनिमा ने कुछ न कहा.. रात  बहुत गहरी होती जा रही थी .... निशिकांत उसी गद्दे पर लेट गया .. पता नहीं उसे कब नींद आ गयी , सफ़र की थकान थी..
 
पर अनीमा की आँखों में नींद नहीं थी. उसके जेहन में निशिकांत के शब्द ठकरा रहे थे.. बस अब एक ठहराव चाहिए जीवन में. और मैं तुम्हारे आँचल तले ठहरना चाहता हूँ , अनिमा …..!

बाहर
,रातरानी के फूलो ने और आसमान पर छाए हुए तारो ने और गहरी होती हुई रात ने इनके प्रेम को एक निशब्द सा मौन ओड़ा दिया था.  


:::::: आज ::::::

सुबह चिडियों की तेज आवाजो से निशिकांत की नींद खुली .  निशिकांत उठा तो देखा , अनिमा उसके साथ ही सो गयी थी , और सुबह की गहरी नींद में उसे देखना बहुत सुखद लग रहा था. निशिकांत बहुत देर तक उसे देखता रहा और फिर उठकर फ्रेश होकर चाय बनायी . उसने अनिमा को उठाया और उसे चाय पीने को कहा, अनिमा स्नान कर आई . श्रीकृष्ण ठाकुरजी की पूजा की गयी.  फिर  दोनों ने चाय पी... चाय पीने के दौरान कोई कुछ नहीं बोला, अनिमा को निशिकांत की कही , कल रात की बात की गूँज सुनाई देने लगी . अनिमा ने गहरी नज़र से निशिकांत को देखा. निशिकांत चुपचाप चाय पी रहा था. 

अचानक निशिकांत उसकी तरफ मुड़ा और कहा, “तुम्हारे घर में ये फूलो के पौधे और उन पौधों पर बसती हुई ये चिड़ियाँ नहीं होती तो , ये घर तुम्हारी identity नहीं बन पाती.”

अनिमा ने   स्निग्ध   मुस्कान   के  साथ  कहा  , “हाँ निशिकांत , तुम सच कह रहे हो” फिर अनिमा ने कहा , “चलो , तुम्हे कोई गीत सुनकर विदा करते है.”

अनिमा ने ग्रामोफोन पर आशा भोंसले का एक बंगाली गाने का रिकॉर्ड लगाकर शुरू कर दिया.
  कमरे में कोने में रखे हुए ग्रामोफोन पर आशा भोंसले की आवाज में एक सुन्दर सा बंगाली गीत बजने लगा ...."कोन  से  आलोर  स्वप्नो  निये  जेनो  आमय ......!!!"  सारे कमरे में रजनीगंधा के फूलो की खुशबु छाई हुई थी , अनिमा ने आँखे बंद कर ली, और निशिकांत ख़ामोशी से उसे देखते रहा........!

::::::.....अभी .......!!! ::::::

ग्रामोफोन का रिकॉर्ड बंद हो गया था, चिडियों की आवाजे अब नहीं आ रही थी . सिर्फ अनिमा के सुबकने की आवाज , रजनीगंधा  के फूलो की खुशबु  के साथ कमरे में तैर रही थी . और तैर रहा था दोनों का प्रेम !! 

बहुत देर तक एक ख़ामोशी , जिसमे पता नहीं कितने संवाद भरे हुए थे; छायी रही .

अचानक ही एक कोयल ने कुक लगायी . अनिमा ने धीरे से अपना चेहरा उठाया .

निशिकांत ने उसके चेहरे को अपने हाथो से थाम कर कहा . " आमी तोमाके भालो बासी अनिमा "
अनिमा ने उसकी छाती में अपने चहरे को छुपा कर कहा . “आमियो तोमाके खूब भालो बासी, निशिकांत.”

अचानक बादल गरज उठे . निशिकांत ने कहा “ये बेमौसम की बरसात .this  is climatic change  !!"

अनिमा ने शर्मा कर कहा , “हाँ न , climatic change  ही तो है . नहीं ?”
निशिकांत भी मुस्करा कर कहा , “ हाँ .” 

अनिमा ने कहा , चलो , आज एक गाना सुनते है .  उसने गाईड फिल्म का गाना लगा दिया " आज फिर जीने की तमन्ना है . आज फिर मरने का इरादा है "

गाने के बोल और सुरीला संगीत , घर में गूंजने लगे और अनिमा और निशिकांत दोनों के चेहरे खिल गए ! दोनों का प्रेम रजनीगंधा के फूलो के साथ शान्तिनिकेतन  के इस कमरे में महकने लगा.