||| एक शहर की मौत |||
पर्दा उठता है
मंच पर अँधेरे के बीच एक स्पॉट लाइट पड़ती है. उस स्पॉट लाइट के केंद्र में सूत्रधार
आता है और दर्शको की ओर देखते हुए सबसे कहता है :
“ दोस्तों, ये नाटक मात्र एक नाटक नहीं है, बल्कि हमारे देश के इतिहास का एक काला पन्ना है, इस
पन्ने पर सिर्फ मौत लिखी है और मौत के बाद की त्रासदी लिखी हुई है. और सबसे बड़ा कलंक
ये है कि सिर्फ और सिर्फ चंद सत्ताधारियो ने और सरकारी अफसरों ने और कानून के रखवालो ने और
कानून को बनाने और चलाने वालो ने और हमारे समाज में मौजूद कुछ लालची लोगो ने इसे एक
ऐसी दर्दनाक कहानी बना दिया है, जिसे कभी भी न्याय नहीं
मिलेंगा !!! “
पर्दा गिरता है
ACT ONE
scene one
पर्दा उठता है
स्टेज पर एक ऑफिस का सीन बना हुआ है. और एक गोल सी मेज है और उसके चारो तरफ
कुछ कुर्सियां है जिस पर कुछ लोग सफ़ेद कोट पहने बैठे हुए है. स्टेज में मेज के
पीछे “ UNION CARBIDE “ का बोर्ड बना हुआ है. मेज पर कुछ विज्ञान के उपकरण रखे हुए
है. और पास में बहुत से पौधे रखे हुए है.
उनमे से तीन जीव विज्ञानी है जो आपस में बाते कर रहे है
पहला : ‘हमें जल्द से जल्द उस कीट नाशक को खोजना होंगा जो इस मानवसमाज के अनाज
के खेतों को बचा सकता है ‘
दूसरा : ‘ अगर ये खोज हो जाए तो सारी दुनिया की बहुत बड़ी परेशानी का हल हो
जायेंगा. ‘
तीसरा : ‘ मुझे लगता है कि हम जल्दी ही कामयाब होने वाले है. ‘
तीनो मिलकर मेज पर रखे हुए उपकरणों से पानी जैसा द्रव्य पौधों पर छिडकते है.
और आपस में बाते करते जाते है और नोट्स लिखते है.
स्टेज पर लाइट बुझती है और फिर जलती है
स्टेज पर वही दृश्य है सभी काम कर रहे
है
अचानक वो एक साथ ख़ुशी से चिल्लाते है : ‘ हमें सफलता मिल गयी ‘
उनमे से एक मेज पर रखे फ़ोन से किसी को फ़ोन करता है और कहता है कि , ‘ हम सफल
हो गए है और हमने दुनिया का सबसे बेहतरीन कीटनाशक खोज लिया है ‘
स्टेज पर कार्बाइड का चीफ म्युनिज़ आता है
उन तीनो में से एक उससे कहता है : ‘ सर
हमने एक शानदार कीट नाशक की खोज कर ली है. इसका नाम हमने सेविन रखा है और ये आज तक,
इस दुनिया में बना हुआ सबसे खतरनाक कीट नाशक है. ‘
म्युनिज़ : ‘ मैं तुम तीनो को बधाई देता हूँ और अब हम ये जानते है कि इस
कीटनाशक के सहारे हमारी कंपनी ढेर सारी दौलत कमाएंगी. ‘
चारो हँसते है और ग्लासेज उठाकर चियर्स कहते है
पर्दा गिरता है
scene two
पर्दा उठता है
स्टेज पर एक फैक्ट्री का सीन. उस पर लिखा है. यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री ,
कनावा घाटी.
वहां पर बाहर की ओर खड़े कार्बाइड के कुछ ऑफिसर्स बात कर रहे है.
पहला : ‘ हमने काम शुरू कर दिया है, और सेविन का उत्पादन हो रहा है ‘
दूसरा : ‘ और इस कीटनाशक के लिए हमने मिथाईल आइसोसायिनेट भी बना लिया है जिसकी
मदद से अब हम सेविन का उत्पादन कर रहे है. ‘
तीसरा : ‘ लेकिन ये मिथाईल आइसोसायिनेट तो बहुत खतरनाक है और इसकी सुरक्षा भी
बहुत महत्वपूर्ण है. ‘
पहला : ‘ तभी तो देखा नहीं, इसकी और इससे भरे टैंक्स की
कितनी ज्यादा सुरक्षा की जाती है. कहीं भी कभी भी कोई लीक होने की संभावना नही है.
‘
तीसरा : ‘ लेकिन इसकी क्या गारंटी है कि ये कभी लीक नहीं होंगी !!! ‘
सभी चुप हो जाते है. और भीतर की ओर चले जाते है
स्टेज पर लाइट बुझती है और फिर जलती है
फैक्ट्री के बाहर की ओर खड़े होकर वहां के लोकल नागरिक चिल्ला रहे है.
“ बंद करो, ये कारखाना, हमें गैस
की गंध आती है “
“ बंद करो इसे , हमारे जानवर बीमार हो रहे है. “
फैक्ट्री के नए इंजिनियर वारेन वुमार ने आकर उन्हें समझाया कि अब से ध्यान रखा
जायेंगा और ये घटनाएं अब नहीं होंगी. फैक्ट्री पूरी तरह से शानदार है.
वो लोग कुछ देर चिल्लाने के बाद चले जाते है
स्टेज पर लाइट बुझती है और फिर जलती है
स्टेज पर कुछ अधिकारी जो कि कार्बाइड के बोर्ड के अधिकारी है, खड़े है और आपस
में बाते कर रहे है तभी वहां पर म्युनिज़
आता है और कहता है : ‘ भारत से कीटनाशक दवाई मंगाई जा रही है. हम वहां बेचने जा
रहे है. आपका क्या विचार है.’
एक अधिकारी सोचता है और कहता है : ‘
ये तो बहुत अच्छी खबर है, हमें तीसरी दुनिया में एक बेस
मिल जायेंगा. तुम जाओ और पता करो कि क्या वहां पर हम अपनी फैक्ट्री लगा सकते है.
वो एक डेवलपिंग कंट्री है, हमें अपने दूतावास के जरिये आसानी
से एंट्री मिल सकती है. पता करो. उस जगह में क्या हो सकता है. कोई न कोई आदमी तो
मिल ही जायेंगा और वहां की सरकार तो पूरी तरह से हमारी मदद करेंगी. ‘
म्युनिज़ हाँ में सर हिलाता है और कहता है : ‘ वो जरुर ही कुछ कर के लौटेंगा ‘
पर्दा गिरता है
scene three
पर्दा उठता है
स्टेज पर एक ऑफिस का सीन बना हुआ है. और एक गोल सी मेज है और उसके चारो तरफ
कुछ कुर्सियां है जिस पर कुछ लोग बैठे हुए है.उनके साथ म्युनिज़ भी है. स्टेज में
मेज के पीछे “ भारत सरकार “ का बोर्ड बना हुआ है.
सभी आपस में चाय पी रहे है और बाते कर रहे है.
सरकारी ऑफिसर कहता है : ‘ हम आपको भारत में प्लांट बनाने की अनुमति देते है और
इसकी लीज भी देते है. ‘
दूसरा ऑफिसर कहता है : ‘ भोपाल नामक एक जगह है मध्यप्रदेश में,
ये देश के बीचो बीच है यहाँ से आप हर जगह ये कीट नाशक सप्लाई कर सकते है. ‘
वारेन और म्युनिज़ आपस में बाते करते है और म्युनिज़ कहता है : ‘ हमें सारी
सुविधाए चाहिए और सारी permission भी चाहिए. कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए ‘
सरकारी ऑफिसर कहता है : ‘ कोई तकलीफ नहीं होंगी जी. हम आपके साथ ही है. ‘
तभी एक और आदमी वहां आता है और कहता है : ‘ मैं वहां भोपाल में आपके सारे काम
करा दूंगा. और लाइसेंस दिलाने में भी मदद करूँगा और यहाँ की सरकार में हम बहुत लोगो को जानते है सब
ठीक हो जायेंगा . ‘
म्युनिज़ खुश होकर कहता है : ‘ फिर तो ये तय रहा. हम भोपाल में यूनियन कार्बाइड
की कीट नाशक फैक्ट्री को बनायेंगे. ‘
सभी एक साथ खुश होकर तालियाँ बजाते है.
पर्दा गिरता है
scene four
पर्दा उठता है
स्टेज पर फैक्ट्री का दृश्य
फैक्ट्री में बाहर कुछ लोग खड़े है और वहां पर काम मांग रहे है. बहुत से लोग
उनका जवाब दे रहे है. वो कह रहे है कि हम पास में ही रहते है,
हमारे लिए यहाँ काम करना बहुत आसान होंगा. इसी तरह की बाते,
बहुत से लोग और खूब सारा फैक्ट्री के काम का शोर.
कुछ देर बाद वहां से लोग चले जाते है.
स्टेज पर लाइट बुझती है और फिर जलती है
स्टेज पर वारेन वूमर अपने साथियो के
साथ आते है और अपने सारे साथियो से कहते है : ‘ फैक्ट्री की सुरक्षा सबसे ऊपर है,
हम एक जहरीले पदार्थ के साथ यहाँ जी रहे है, और इससे कभी भी
किसी को भी कोई खतरा नहीं होना चाहिए. मेरे पास सुरक्षा के सारे नियम है जिनका कि सख्ती
से पालन होना चाहिए. हमें हर शिफ्ट में सारी पाइप लाइन्स को चेक करते रहना चाहिए, कि कही कोई कोताही तो नहीं है, कही कोई लीक तो नहीं
है. हमें चेक करते रहना चाहिए . टैंक नम्बर 610 और 611 की हमेशा जांच करते रहनी
चाहिए. और जब प्रोडक्शन नहीं हो रहा हो तो इसमें मिथाईल आइसोसायिनेट को नहीं भरना
चाहिए. और अगर भरे भी हो तो इन टैंक्स का तापमान हमेशा +5º C ही रहना चाहिए और अगर
कभी कोई गैस लीक भी हो तो चिमनी हमेशा जलती रहनी चाहिए ताकि लीक हुई गैस जल कर हवा
में विलीन हो जाए. दोनों टैंक्स दोनों तरफ से perfectly सील्ड होने चाहिए. टैंक्स
का प्रेशर कभी भी 1,0 kg/cm² [ 14 psi/g ] से ज्यादा नहीं होना चाहिए. और किसी भी
हालत में पानी को इन दोनों टैंक्स में नहीं जाने देना चाहिए. इन सब बातो का ध्यान
रखा जाए और सख्ती से सुरक्षा नियमो का पालन होना चाहिए ! ‘
ये कहकर वारेन चला जाता है.
स्टेज पर लाइट बुझती है और फिर जलती है
अब स्टेज पर म्युनिज़ है और उसके कुछ साथी है म्युनिज़ चिंतित होकर कहता है : ‘ मुझे
चिंता है कि फैक्ट्री में इतना ज्यादा मिथाईल आइसोसायिनेट नहीं रखने चाहिए. ‘
दूसरा साथी : “ हां ये तो है, ये ठीक एक परमाणु बम पर बैठने
की तरह है. ‘
म्युनिज़ कहता है : “ देखते है,
मैंने अपनी सिफारिश हेड ऑफिस को भेज देता हूँ. वो क्या कहते है.वो ज्यादा जरुरी है, और अब एंडरसन नया चीफ बनकर आ रहे है वो देखेंगे. ‘
सभी चले जाते है
स्टेज पर लाइट बुझती है और फिर जलती है
स्टेज पर वही दृश्य !
थोड़ी देर में वहां पर एक नेता अपने कुछ साथियो के साथ आते है.
कुछ लोग कहते है : ‘ मंत्री जी अगर ये बस्ती यहां से हटवा दे तो ठीक होंगा ये
सुरक्षित नहीं है. ‘
नेता जी कहते है : ‘ अरे कुछ नहीं होंगा इतनी बड़ी फैक्ट्री है,
कुछ नहीं होंगा और वो फैक्ट्री ने हमें चंदा दिया हुआ है. कुछ नहीं होंगा सब ठीक
है. और हाँ तुम ये देखो कि वोट की हमें जरुरत है तुम इन सब गरीबो को अगर यहाँ रहने
के लिए जमीन का पट्टा दे देते है तो, सब ठीक हो जायेंगा.
इनको रहने की जमीन मिल जायेंगी, इन्हें घर मिल जायेंगे और हमे
हमारे वोट ! ‘
उसी वक़्त बस्ती के कुछ लोग वहां आते है, नेता जी उन सभी से कहते है : ‘
देखो, अब हम आप सभी को जमीन का पट्टा दे रहे है. अब आप लोग
यही रह सकते है.बस हमें वोट देते रहिये, देखिये हमने आपकी
कितनी मदद की है. ‘
सभी लोग नेता जी की और सरकारी पार्टी की जय जय कार करते है. नेता और उसके साथी
चले जाते है. थोड़ी देर में बाकी बस्ती के लोग भी आ जाते है और सभी मिलकर उत्सव
मनाते है.
स्टेज पर लाइट बुझती है और फिर जलती है
अचानक स्टेज पर अँधेरा और लाइट आती जाती है और लोगो की जोर से चिल्लाने की
आवाजे आती है कि अरे अशरफ मर गया,उसको गैस लग गयी. बहुत से लोग भागते
हुए नज़र आते है .
स्टेज पर पूरी लाइट आती है तो हम देखते है कि साजिदा बानो अपने पति अशरफ की
लाश के साथ बैठी हुई है और जोर जोर से रो रही है, चारो तरफ
बहुत से लोग खड़े है और कह रहे है कि गैस ने पहले बस्ती के जानवरों को मारा और अब
अशरफ की जान ले ली.
धीरे धीरे स्टेज पर अँधेरा होता है
पर्दा गिरता है.
ACT TWO
scene one
पर्दा उठता है
स्टेज पर फैक्ट्री के वो जगह बनी हुई है, जहाँ पर एक टैंक रखा हुआ है और
कुछ पाइप्स बिछे हुए है. टैंक पर E 610 लिखा हुआ है. उसके सामने कुछ लोग बैठे हुए
है और आपस में बात कर रहे है.
पहला : ‘ अरे आज तारीख क्या है ‘
दूसरा : ‘ आज तो २ दिसम्बर की रात है . बड़ी ठण्ड है भाई ‘
तीसरा : ‘ चल तुझे चाय पिलाते है ‘
एक आदमी दुसरे से कहता है : ‘ तुम कुछ लोगो के साथ जाओ और पानी से टैंक की पाइप्स
की धुलाई कर दो. ध्यान से करना ! ‘
स्टेज पर लाइट बुझती है और फिर जलती है
दूसरा कुछ आदमियों के साथ जाता है :
स्टेज पर पाइप से टैंक और दुसरे पाइप्स की पानी से धुलाई का दृश्य दिखलाया
जाता है.
स्टेज पर कुछ लोग है जो बाते कर रहे है.
एक : ‘ यार टैंक के पाइप्स की धुलाई के वक़्त प्रेशर मीटर और तापमान नहीं देखा
गया और न ही ठीक से स्टोपाज पाइप के दोनों ओर लगाए गए. ‘
दूसरा : ‘ टैंक्स में करीब ६२ टन
ऍम.आई.सी. भरी हुई है. कही कोई गड़बड़ न हो जाए !’
तीसरा : ‘ कुछ नहीं होंगा, सब ठीक है, फैक्ट्री बंद है. बंद फैक्ट्री में कभी कोई दुर्घटना होती है क्या ? ’
बाकी दोनों हँसते है !
स्टेज पर लाइट बुझती है और फिर जलती है
कुछ देर बाद सब चले जाते है और अब वहां पर बहुत से लोग बैठे हुए है और आपस में
बाते कर रहे है
एक आदमी : ‘ यार फैक्ट्री तो अब बंद हो चुकी है, आगे क्या
होंगा ‘
दूसरा : ‘ कुछ नहीं, हम सब की नौकरी चली जायेंगी और
अब कंपनी के मालिक इस फैक्ट्री पर कोई खर्चा नहीं करना चाहते है और इसीलिए तो सुरक्षा
का अब कोई उपाय नहीं है. ‘
तीसरा : ‘ यार आज सर्दी कुछ ज्यादा नहीं है . कंटीन जाकर चाय पीते है ‘
इतने में एक आदमी भागकर आता है. और उनसे कहता है : ‘ भागो , भागो टैंक से गैस रिस रही है ‘
स्टेज पर लाइट बुझती है और फिर जलती है
चारो ओर से भागने की आवाजे और चिल्लाने की आवाजे आ रही है,
अब स्टेज पर टैंक के आसपास धुंआ दिखाई दे रहा है,
लोग भाग रहे है और गिर रहे है. पूरा स्टेज लोगो से भर गया है, बच्चे और औरते और आदमी चीख रहे है, खांस रहे है, चिल्ला रहे है, मुंह से खून की उलटी कर रहे है.
स्टेज पर लाइट बुझती है और फिर जलती है
अब स्टेज के पीछे एक बस्ती का चित्र बना हुआ है, जिस पर
बहुत सी झोपड़ियां बनी हुई है, उस पर लिखा हुआ है काली बस्ती
/ जयप्रकाश नगर. वहां भी लोग भाग रहे है और चिल्ला रहे है. बच्चे और औरते और आदमी
चीख रहे है, खांस रहे है, चिल्ला रहे
है, मुंह से खून की उलटी कर रहे है.
स्टेज पर लाइट बुझती है और फिर जलती है
अब स्टेज के पीछे एक रेलवे स्टेशन का चित्र बना हुआ है,
जिस पर लिखा हुआ है भोपाल रेलवे स्टेशन, लोग वहां भी गिर रहे
है, वहां भी लोग भाग रहे है और चिल्ला रहे है. बच्चे और औरते
और आदमी चीख रहे है, खांस रहे है,
चिल्ला रहे है, मुंह से खून की उलटी कर रहे है.
इतने में साजिदा बानो अपने दोनों बच्चो के साथ आती है और उसका बड़ा लड़का भी वहां
गिर जाता है.
स्टेज पर लाइट बुझती है और फिर जलती है
पीछे में अब स्टेज का चित्र बदल गया है, अब वो एक हॉस्पिटल का चित्र है, जिस पर हमीदिया हॉस्पिटल लिखा
हुआ है वहां भी यही हाल है. बहुत से लोगो की लाशें गिरी हुई है, लोग चिल्ला रहे है. लाशो का ढेर लगा हुआ है. चारो तरफ डॉक्टर्स और नर्सेस
और लोग बस भाग रहे है और गिर रहे है. बच्चे और औरते और आदमी चीख रहे है, खांस रहे है, चिल्ला रहे है, मुंह से खून की उलटी
कर रहे है.
स्टेज पर लाइट बुझती है और फिर जलती है
पीछे में अब स्टेज का चित्र बदल गया है, अब स्टेज के दो हिस्से बने हुए
है, एक हिस्से में लाशो को मुस्लिम तरीके से दफनाया जा रहा
है और दूसरी तरफ उन्हें चिता पर लिटाया जा रहा है [ लाइटिंग इफ़ेक्ट से उन चिताओं पर
आग को दिखाया जाता है ]
चारो तरफ लोगो की रोने की आवाजे आ रही है.
स्टेज पर धीरे धीरे अँधेरा छा जाता है
स्टेज पर लाइट बुझती है और फिर जलती है
स्टेज पर उजाला आता है तो कुछ लोग ऑफिस खड़े है और स्टेज के पीछे का चित्र अब
एक ऑफिस जैसा है. एक गोरा सा आदमी एक ब्रीफ़केस के साथ खड़ा है,
कुछ पुलिस वाले है , कुछ मंत्री खड़े है, कुछ और ऑफिसर्स है.
एक नेता : ‘ हमें एंडरसन को छोड़ना होंगा. इसे यहाँ रखा तो बवाल हो जायेंगा ‘
दूसरा नेता : ‘ केंद्र से भी हमें कहा गया है कि छोड़ दिया जाए ‘
मंत्री [ पुलिस वाले से और एक और ऑफिसर से ] : ‘ आप कलेक्टर और एस पी हो. आप
दोनों, एंडरसन को जिम्मेदारी से छोड़ आईये, ये सरकारी हवाई जहाज से दिल्ली जायेंगे और फिर वहां से ये सही सलामत
अमेरिका चले जाए ! ‘
एंडरसन जाते हुए कहता है : ‘ नो हाउस अरेस्ट, नो बेल,आई एम् फ्री टू गो होम !!! ‘
स्टेज पर अँधेरा छा जाता है, बैकग्राउंड में लोगो की कराहने
और रोने की आवाजे आती रहती है, जो धीरे धीरे कम होती जाती है
पर्दा गिरता है
scene TWO
पर्दा उठता है
स्टेज पर एक बैनर लगा हुआ है : १९८४ से आज तक !!!
स्टेज पर हॉस्पिटल का चित्र बना हुआ है, जहाँ लोग कराह रहे है और इलाज
के लिए चिल्ला रहे है, कुछ लोग आपस में बाते कर रहे है !
एक : ‘ यार मेरी तो आँखे चली गयी ‘
दूसरा : ‘ मेरे तो फेफड़े खराब हो गए ‘
तीसरा : ‘ मेरी बीबी को अब बच्चा नही हो सकता है ‘
चौथा : ‘ मुझे कैंसर हो गया है और जल्दी ही दुसरे लोगो की तरह मर जाऊँगा ‘
सभी : ‘ हमारा इलाज ठीक से नहीं हो रहा है और न ही ठीक से हमें मुवाअजा मिल
रहा है. ‘
पहला : ‘ इतने साल हो गए,
वही धांधली अब भी शुरू है. ‘
दूसरा : ‘ जो मर गए, उनको पूछने वाला कोई नहीं और
दुसरे लोग झूठ बोलकर पैसे ले रहे है, लोगो में ईमानदारी नहीं
रही ! ‘
तीसरा : ‘ और तो और, अब उस फैक्ट्री में इतना केमिकल
कचरा पड़ा हुआ है, जिसके वजह से हमें अच्छा पानी पीने को नहीं
मिल पा रहा है. कोई देखने वाला नहीं, ‘
सभी : ‘ कही कोई सुनवाई नहीं है जी ‘
सभी : ‘ और अब जब फैसला भी आया है तो सब के सब जमानत देकर
छूट गए ! ‘
सभी : ‘ गरीबो का कोई नहीं जी ! ‘
सभी : ‘ एक अच्छे खुबसूरत शहर को मुर्दाघर बना दिया है ! ‘
स्टेज पर अब धीरे धीरे अँधेरा छा जाता है. लोगो की चिल्लाने
और कराहने की आवाजे आती है
पर्दा गिरता है
ACT THREE
पर्दा उठता है
स्टेज पर अँधेरा छाया हुआ है धीरे धीरे रौशनी आती है. स्टेज पर एक तरफ पांच ताबूत
रखे है और दूसरी तरफ दो ताबूत रखे है. उन दो ताबूत में से दो बच्चे निकलते है वो
दोनों कफ़न पहने हुए है और आपस में बात करते है.
पहला बच्चा : ‘ कैसे हो मियाँ. ‘
दूसरा बच्चा : ‘ अब क्या ठीक होंगे यार, जब ठीक होना था तब तो ठीक नहीं रहे.
तुम तो गैस वाली रात को ही खुदा को प्यारे हो गए और मैं कुछ साल बाद उसके साइड
इफेक्ट्स के कारण भगवान को प्यारा हो गया. ‘
पहला बच्चा : ‘ ओह्ह ! अरे ये तो बताओ कि कितने लोगो की जान गयी और क्या हाल
हुआ मेरे जाने के बाद ? ‘
दूसरा बच्चा : ‘ पूछो न यार, अब तक करीब २०००० से ज्यादा लोग
मर चुके है और ६ लाख लोगो से ज्यादा अपाहिज हुए थे. कई मर गए बीतते समय के साथ और
कई नरक की ज़िन्दगी गुजार रहे है. जो मर गए तुरंत, वो तो मरे
ही; लेकिन जो रह गए, उन्हें आँख की फेफड़ो की छाती की और ढेर
सारी दूसरी बीमारियों ने घेर लिया और धीरे धीरे घुट घुट कर वो मरते रहे. और तो और
अब तीसरी पीढी के बच्चे भी विकलांग पैदा हो रहे है. पहली और दूसरी पीढी के कई
बच्चे विकलांग पैदा हुए और दूसरी बहुत सी बीमारियों के साथ पैदा हुए, जो की abnormality के दायरे में आते है. कुल मिलाकर इस गैस त्रासदी ने इस
शहर की ज़िन्दगी को नरक बना दिया है. ‘
दोनों बच्चे बैठ कर रोने लगते है. फिर वो चुप हो जाते है. वो देखते है कि
सामने पांच ताबूत खड़े हुए है. वो उन ताबूतो के पास जाते है और उन्हें एक एक करके
खोलते है.
पहले ताबूत से एक मुर्दा निकलता है उसके सफ़ेद कपड़ो पर लिखा हुआ है : यूनियन
कार्बाइड
दुसरे ताबूत से एक मुर्दा निकलता है उसके सफ़ेद कपड़ो पर लिखा हुआ है : सरकार
तीसरे ताबूत से एक मुर्दा निकलता है उसके सफ़ेद कपड़ो पर लिखा हुआ है : नौकरशाही
चौथे ताबूत से एक मुर्दा निकलता है उसके सफ़ेद कपड़ो पर लिखा हुआ है : मीडिया
पहले ताबूत से एक मुर्दा निकलता है उसके सफ़ेद कपड़ो पर लिखा हुआ है : जनता
दोनों बच्चे पहले मुर्दे के पास जाते है और पूछते है : तुमने क्या किया
पहला मुर्दा कहता है :
‘ हमने फैक्ट्री की सेफ्टी पर ध्यान
नहीं दिया, हमें इस बारे में बहुत बार बताया जा चूका था, लेकिन चूँकि फैक्ट्री बंद हो चुकी थी और किसी भी तरह के खर्चे हम नहीं
करना चाहते थे. अगर समय रहते हम अगर सुरक्षा को अपनाते और उसके साधनों में कटोती
नहीं करते तो ये दुर्घटना है होती. हम उन दोनों टैंक्स में मिथाईल आइसोसायिनेट नहीं
जमा कर के रखना था, हमने चिमनी भी बुझा रखी थी, हमने दोनों टैंक्स के क्लोजिंग वाल्व नहीं बदले थे,
हमने टैंक्स के प्रेशर को न ही मॉनिटर किया और न ही उस वक़्त वो चालु थे, न ही तापमान कम रखा गया था. रेफ्रिजरेशन प्लांट भी बंद किया गया था, जिसे फिर से हमने कभी भी चालु नहीं करवाया. Flare Tower बंद पड़ा था. दोनों Vent Gas Scrubber उतने बड़े
गैस के रिसाव के लिए बहुत कम थे. Water Curtain काम
नहीं कर रहा था. Pressure Valve लीक कर रहा था और खराब
था.टैंक्स लीक हो रहे थे और हम ने कुछ नहीं किया. कुल मिलाकर सुरक्षा कारणों की
पूरी तरह उपेक्षा हुई,जिसके कारण ये इतना बड़ा हादसा हुआ. भले
ही दुनिया के लिए जिंदा हो पर आप के लिए हम मुर्दा ही है ! ‘
दोनों बच्चे पूछते है : ‘ तुम
हो कौन ? ‘
वो मुर्दा कहता है : ‘ हम यूनियन कार्बाइड कंपनी है,
मैं वारेन एंडरसन हूँ , मैं मुकुंद हूँ , मैं चक्रवर्ती हूँ, रायचौधरी हूँ, शेट्टी हूँ, कुरैशी हूँ और मैं पूरी की पूरी कंपनी हूँ और मैं उस वक़्त भी मुर्दा ही
था ! ‘
दोनों बच्चे दुसरे मुर्दे के पास आते है और पूछते है : तुमने क्या किया ?
दूसरा मुर्दा कहता है :
‘ मैं सरकार हूँ, उस वक़्त की राज्य सरकार और केंद्र सरकार
हूँ. मैं नेता हूँ, मैं मंत्री हूँ,
मैं देश का हर वो मंत्रालय हूँ, जो उस वक़्त कार्यशील था.
हमने फैक्ट्री को लाइसेंस देते वक़्त कई बातो को नज़रअंदाज़ किया. हमने वहां पर अपने
वोट की खातिर गरीबो को बस्तियां बनाकर रहने दिया.हमने कभी भी उस पर निगाह नहीं रखी
कि वहां क्या हो रहा है, या वहां पर सुरक्षा संसाधनों का
उपयोग किया जा रहा है या नहीं. हमने फैक्ट्री के बंद होने के बाद भी उसमे रखे हुए
मिथाईल आइसोसायिनेट पर जानकारी नहीं ली. हमने गैस त्रासदी के बाद एक जिम्मेदार
सरकार जैसा कोई काम नहीं किया, हमने वारेन एंडरसन को इस देश
से भागने में पूरी मदद की. हमने गैस से मर रहे लोगो के लिए कोई पुख्ता इंतजाम नहीं
किये. हम यहाँ तक नीचे गिर गए कि इस गैस के प्रभाव से बचने के लिए जो antidot दिया
जा रहा था, उसे भी बंद करवा दिया. हमने गरीबो को मरने दिया.
हमने गरीबो के इलाज के लिए कोई बेहतर इंतजाम नहीं किये. हमने इन ३० सालो में न ही
दोषियों को सजा दिलवाया और न ही पीडितो के लिए कोई अच्छा कार्य किया. और अब इतना
ज्यादा toxic waste उस फैक्ट्री में पड़ा हुआ है,हम अब भी कोई
ख़ास कदम उसके लिए नहीं उठा रहे है. हम उस वक़्त भी मरे हुए मुर्दा ही थे ! ‘
दोनों बच्चे पूछते है : ‘ तुम हो कौन ? ‘
वो मुर्दा कहता है : ‘ हमारे कई नाम है. पर नाम में क्या रखा है,
हम सरकार है बस यही हमारा नाम है, मैं प्रधानमंत्री हूँ , मैं मुख्यमंत्री हूँ ,
मैं गृहमंत्री हूँ , मैं विदेशमंत्री हूँ
मैं सरकार हूँ !!! किसी भी देश की सरकार हमारे जैसी नहीं होंगी, हम एक मुर्दा सरकार है ! ‘
दोनों बच्चे तीसरे मुर्दे के पास आते है और पूछते है : ‘ तुमने क्या किया ? ‘
तीसरा मुर्दा कहता है :
‘ हम नौकरशाह है, इस देश को चलाते है . नेताओं के बाद अगर इस
देश में कोई ताकतवर है तो वो हम ही है, हम देश को बनाते है
और बिगाड़ते भी है. जैसे हमने इस त्रासदी में किया. हमने कभी ध्यान नहीं दिया कि इस
तरह की फैक्ट्री में की तरह का रख रखाव होना चाहिए, हम बस
ऊपर आते हुए ऑर्डर्स को आँख बंद कर के निभाते चले गए, हमने
कभी नहीं सोचा कि हमारा अपना भी जमीर हो सकता है. न ही गैस त्रासदी के पहले हमने
कोई बेहतर कण्ट्रोल किया और न ही उस गैस की त्रासदी के बाद कोई ठोस कदम उठाये.
हमने एंडरसन को भागने में मदद की, हमने कानून की धाराओं को
बदला ताकि दोषियों को कम से कम सजा हो सके, हमने पदों और
पैसो के लालच में वो सब कार्य किये जो कि घृणित से भी घृणित हो सकता है. हमने
भोपाल जैसे एक खुबसूरत शहर को मरने में पूरी मदद की, हम उस
वक़्त भी मरे हुए ही थे ! ‘
दोनों बच्चे पूछते है : ‘ तुम हो कौन ? ‘
मुर्दा कहता है : ‘ मैं उस वक़्त का कलेक्टर हूँ , मैं उस वक़्त का पुलिस
अधीक्षक हूँ , मैं उस वक़्त का गृह सचिव
हूँ , मैं उस वक़्त का विदेश सचिव हूँ ,
मैं उस वक़्त का न्यायाधीश हूँ , मैं उस वक़्त का हर वो नौकरशाह हूँ जो कि इस हादसे
को बचा सकता था और इस हादसे के बाद लोगो की ज़िन्दगी बेहतर बना सकता था,
मैं वो हूँ, जिसने गलतियां की और अपनी नौकरी ठीक से नहीं
निभायी और कई ज़िन्दगीयों को मरने के लिए छोड़ दिया. और हम मुर्दा ही है ! ‘
दोनों बच्चे चौथे मुर्दे के पास आते है और पूछते है : ‘ तुमने क्या किया ? ‘
चौथा मुर्दा सर झुका कर कहता है :
‘ मैं मीडिया हूँ, उस वक़्त में समाचार पत्र के रूप
में था और उस हादसे के बाद के सालो में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भी बना, टीवी का माध्यम भी बना, पर हमने अपना काम उतनी
इमानदारी और जागरूकता से नहीं किया, जिसके लिए हम लोकतंत्र के खम्बो में से एक
जाने जाते है. हम अगर चाहते तो उस वक़्त की और उसके बाद की तस्वीर बदल सकते थे. लेकिन
सिर्फ एक पत्रकार साथी ने गैस के बारे में
उस वक़्त लिखा अगर उसी की बात पर गौर कर लेते तो इतना बड़ा हादसा नहीं होना था. और इतने
सालो के बाद भी भोपाल में हम हर महीने लोगो को मरते हुए देखते है , लोगो को सिसकते हुए और घिसटते हुए मरने की ओर बढ़ते हुए देखते है. हम ने
उन ६ लाख लोगो के लिए ऐसा कुछ नहीं किया, जिसके लिए
पत्रकारिता जानी पहचानी जाती है और मानी जाती है . हमने अपनी अपनी रोटियाँ राजनीति
के तवे पर सेंका ! हम मुर्दा ही है ! ‘
दोनों बच्चे पूछते है : ‘ तुम हो कौन ? ‘
वो मुर्दा सर झुका कर कहता है : ‘ मैं अखबार हूँ,
रेडियो हूँ, दूरदर्शन हूँ, मैं एक
मुर्दा हूँ ! ‘
दोनों बच्चे पांचवे मुर्दे के पास आते है और पूछते है : ‘ तुमने क्या किया ? ‘
वो मुर्दा कहता है :
‘ मैं जनता हूँ. ‘
‘ मैं वो जनता हूँ, जो इस त्रासदी में इस घटना को
घटित होने तक फैक्ट्री के नौकर बन कर रहे.’
‘ मै वो जनता भी हूँ, जो भोपाल के साहित्यकार
और कलाकार कहे जाते है और हमसे बड़ा मुर्दा तो तुमने कहीं देखा ही न होंगा. न हमने
उस वक़्त पुरजोर आवाज़ में कुछ कहा और न ही उस घटना के ३० सालो के दौरान कुछ शोर
मचाया. हम एक बंधे हुए नियम की तरह हर साल भोपाल गैस त्रासदी की बरसी पर एकत्र
होकर कुछ नारे लगाते है और फिर शाम को भूल जाते है. अगर हम समय पर एक होकर चाहते तो इस अन्याय के
खिलाफ लड़ते और गरीबो को न्याय दिला पाते. हम चाहते तो दोषियों के खिलाफ खूब लिखते, खूब नारे लगाते और हमारे
शहर के दोषियों को सजा दिलाते ! लेकिन हमने ऐसा कुछ नहीं किया. हम स्वार्थी है, हम खुद के लिए जीनेवाले खुदगर्ज
है. हम मुर्दा थे और मुर्दा है."
‘ और हाँ, हम वो जनता भी है,
जिन्होंने इस त्रासदी से मिलने वाले रूपये के लिए अपना नाम पीडितो के नाम वाली
लिस्ट में लिखा लिया, हमने मुर्दों के कफ़न को चुराकर खाने
वाला काम किया है, हम मुर्दों से भी बदतर है. ‘
‘ हम वो जनता भी है जिन्होंने सरकार के साथ मिलकर अपने ही भाई बहनों को धोखा
दिया. ‘
दोनों बच्चे सर पकड़ कर बैठ जाते है और रोने लगते है.
सारे मुर्दे वापस अपने ताबूत में चले जाते है. स्टेज पर एक स्पॉट लाइट आती है
जो बच्चो पर केन्द्रित है और वो आपस में बात कर रहे है – ‘ ये क्या कर दिया
इंसानों ने. हम सब को मार दिया ! ’
इतने में एक फ़रिश्ता आता है और दोनों बच्चो के सर पर हाथ रख कर उन्हें प्यार
करता है.
दोनों बच्चे उससे पूछते है : ‘ तुम कौन हो और तुमने क्या किया ? ‘
वो फ़रिश्ता मुस्कराकर कहता है :
‘ मैं वो हूँ, जिसने उस तबाही की रात और उस रात के बाद आप
सभी की कई तरह से और कई रूप में मदद की. हम वो डॉक्टर्स है जिन्होंने आपको जिंदा
रखने की कोशिश की, हम वो स्वंयसेवक है जिन्होंने आपकी मदद की, हमें वो है जिन्होंने आपको कब्रस्थान और शमशान में एक इज्जत की मौत दी.
हम वो है जिन्होंने आपकी लड़ाई सरकार से लड़ी, हम वो संस्थाए
है जिन्होंने आपके लिए काम किया, हम वो है जिन्होंने विकलांग
बच्चो को और बीमार औरतो को संभाला, हम वो कुछ अच्छे सरकारी
ऑफिसर्स है जिन्होंने सरकार में रहकर आपके लिए राहत दी, हम
वो गैर सरकारी एजेंसीज है जिन्होंने आपकी बेहतरी की कोशिश की. ‘
दोनों बच्चे उस फ़रिश्ते से लिपटकर पूछते है : ‘ तुम हो कौन ? ‘
वो फ़रिश्ता कहता है : ‘ मैं इंसानियत हूँ ! ‘
फिर वो फ़रिश्ता दोनों बच्चो के साथ दर्शको की ओर देखते हुए कहता है :
‘ हमारे कर्म ही हमें इंसान और बेहतर इंसान और बुरा इंसान बनाते है. एक भोपाल
गैस त्रासदी ने हमें बहुत बड़ा सबक दिया है. आईये हम सब कोशिश करे कि ऐसी घटना
दुबारा नहीं हो. और कहीं भी कोई भी इंसान इस तरह की अनदेखी और दुर्घटना का शिकार न
हो. अमीन ‘
धीरे धीरे लाइट कम होती है और पर्दा गिरता है
समाप्त
नाटक © विजयकुमार