::::::आज
...अभी [कुछ पल पहले]
.......!!!
::::::
कोने में रखे हुए ग्रामोफोन पर आशा भोंसले की आवाज में एक सुन्दर सा बंगाली गीत बज रहा है ...."कोन से आलोर स्वप्नो निये जेनो आमय ......!!!" सारे कमरे में रजनीगंधा के फूलो की खुशबु छाई हुई है , ये फूल कल निशिकांत अनिमा के जन्मदिन पर लाया था.
कोने में रखे हुए ग्रामोफोन पर आशा भोंसले की आवाज में एक सुन्दर सा बंगाली गीत बज रहा है ...."कोन से आलोर स्वप्नो निये जेनो आमय ......!!!" सारे कमरे में रजनीगंधा के फूलो की खुशबु छाई हुई है , ये फूल कल निशिकांत अनिमा के जन्मदिन पर लाया था.
शांतिनिकेतन
के एकांत से भरे इस घर की बात ही कुछ अलग थी ,
अनिमा का मन जब भी अच्छा या खराब; दोनों होता था , तब वो इस घर में आ जाती थी , कोलकत्ता के भीड़ से बचकर कुछ दिन खुद के लिए जीने के लिये .
बाहर में चिडियों की आवाज आ रही है .. अनिमा का मन कुछ
अलग सा था. कल से मन कुछ एक अजीब सी उधेड़बुन में है . अनिमा का अकेलापन अब किसी का साथ मांग रहा था.
संगीत, फूलो की खुशबु,
चिडियों की आवाज और मन का कोलाहल सब कुछ आपस में मिलकर
अनिमा को उद्ग्विन बना रहा है.
अचानक उसकी तन्द्रा
टूटी , निशिकांत ने चाय का कप
नीचे रखा और उससे कहा , मैं चलता हूँ अनिमा , अपना ख्याल रखना . अनिमा उठकर खड़ी हुई. वो एकटक निशिकांत
को देख रही थी , आँखों में कुछ
गीलापन तैरने लगा . निशिकांत ने उसे गले से लगाया और दरवाजे की ओर चल पढ़ा. अनिमा का दिल तेजी से धड़कने लगा. निशिकांत
के दरवाजे की ओर बढ़ते हुए एक एक कदम जैसे अनिमा की ज़िन्दगी से उसकी धड़कन लिये जा रहा हो..
निशिकांत दरवाजे के पास रुका और मुड़कर अनिमा को देखा . एक निश्छल मुस्कराहट और फिर उसने अनिमा की तरफ देखकर विदा के लिये हाथ उठाया .
अनिमा के मुह से रुक- रूककर जैसे एक गहरे कुंए से आवाज़ निकली " आबार एशो !......आबार एशो निशिकांत आबार एशो !"
निशिकांत चौंककर रुका , पलटा और अनिमा को गहरी नज़र से देखा . ......अनिमा के आँखों से आंसू बह रहे थे. उसने जीवन में पहली बार किसी को आबार एशो कहा था.
निशिकांत वापस आया
और अनिमा ने उसकी तरफ अपनी बांहे फैला दी. निशिकांत अनिमा के बांहों में समा गया . अनिमा सुबकते
हुए बोली. “मैं भी तुमसे प्रेम करती हूँ निशिकांत. आमियो तोमाके खूब भालो
बासी , निशिकांत.”
ग्रामोफोन का
रिकॉर्ड खत्म हो गया था, चिडियों
की आवाजे अब नहीं आ रही थी . सिर्फ अनिमा के सुबकने की आवाज , रजनीगंध के फूलो की खुशबु के
साथ कमरे में तैर रही थी . और तैर रहा था दोनों का प्रेम !!
::::::आज
से २२ बरस
पहले :::::::
"
चलो हम भाग जाते है सत्यजीत , अनिमा ने सर उठाकर कहा .
अनिमा रो रही थी . सत्यजीत से वो पिछले पांच
सालो से प्रेम कर रही है .
दोनों ने साथ में उन्होंने सारी पढाई की है . अनिमा ने विश्वभारती विश्वविद्यालय में फाईन आर्ट्स में दाखिला
लिया था , उसने पेंटिंग के कोर्स में डिग्री लिया था और एक बड़े पेंटर का सपना देख रही थी
. सत्यजीत उसके जूनियर कॉलेज में भी उसके साथ था और उसने भी अनिमा के साथ के लिये
इसी विश्वविद्यालय में जर्नालिस्म और मास कम्युनिकेशन में दाखिला लिया था. और अब
वो एक बड़ा जर्नलिस्ट बनना चाह रहा था . दोनों
के अपने अपने अलग सपने थे , लेकिन
दोनों में प्रेम था . सत्यजीत
अनिमा से बहुत
प्रेम करता था. और उसके संग जीने
का सपना भी देख रहा था.लेकिन अब एक बहुत बड़ी मुश्किल आ गयी थी .
सत्यजीत के पिता ने कह दिया कि वो अनिमा से
शादी नहीं करेंगा . नहीं तो वो
मर जायेंगे . ये फैसला भी अचानक ही आया था. अनिमा के पिता की तीन साल पहले मौत हो
गयी थी और अनिमा की माँ ने
इस बरस एक दूसरे लेकिन भले आदमी के साथ ब्याह रचा लिया था. बहुत कम लोग ये जानते
थे कि अनिमा की माँ को कैंसर है और वो कुछ ही दिन की मेहमान है . सिर्फ कुछ पुराने
वादों के लिये और अनिमा के भविष्य के लिये उन्होंने ये ब्याह किया था. अनिमा ने ये
सब सत्यजीत को समझाया था. लेकिन सत्यजीत अपने पिता को नहीं समझा पा रहा था. करीब ५
साल का प्रेम अब घरासायी हो रहा था. और अनिमा लगातार रो रही थी .
अनिमा ने कहा , “ मुझे अब इस जगह रहना भी नहीं है ., मैंने कोलकत्ता के एक स्कूल में आर्ट टीचर की जॉब के लिये अप्लीकेशन किया था. मुझे बुलावा आ गया है , मैं जाती हूँ ,. तुम आ सको तो आ जाना , मुझे तुम्हारा इन्तजार रहेंगा ”.
सत्यजीत की आँखों में आंसू
आ गये , “अनिमा , पिताजी ने
कहा है कि मुझे दूसरी
लड़की से ही ब्याह करना होंगा.
तुमसे मैं कभी भी ब्याह नहीं कर पाऊंगा.”
अनिमा ने कहा “इसलिए तो कह रही हूँ कि भाग चलते है . बोलो क्या कहते हो सत्यजीत ?”
सत्यजीत उदास होकर कहने लगा . “नहीं अनिमा ;मैं नहीं भाग पाऊंगा. जिंदगी भर के लिये एक बदनामी. मेरे परिवार की बदनामी . कुछ दिन रूककर देखते है , सब ठीक हो जायेंगा.”
अनिमा ने कहा “इसलिए तो कह रही हूँ कि भाग चलते है . बोलो क्या कहते हो सत्यजीत ?”
सत्यजीत उदास होकर कहने लगा . “नहीं अनिमा ;मैं नहीं भाग पाऊंगा. जिंदगी भर के लिये एक बदनामी. मेरे परिवार की बदनामी . कुछ दिन रूककर देखते है , सब ठीक हो जायेंगा.”
अनिमा ने कहा , “नहीं
सत्यजीत कुछ ठीक नहीं होंगा. करीब एक साल से यही कह रहे हो , कब ठीक होंगा. बोलो आज फैसला करो .”
सत्यजीत ने कुछ अटकते हुए कहा , “नहीं अनिमा , मैं नहीं आ
पाऊंगा .”
अनिमा के आंसू रुक गये. उसने आंसू पोछा और फिर
सत्यजीत की बांहों में
आकर कहा ,
“देखो सत्यजीत , हमारा प्यार हमारे साथ है , सब ठीक हो जायेंगा, तुम चलो
मेरे साथ.”
सत्यजीत ने सर झुका कर कहा , “नहीं अनिमा , मैं नहीं आ
पाऊंगा.”
अनिमा फिर रोने लगी , थोड़ी देर बाद उसने अपने आंसू पोंछे और खड़ी हो गयी.
अनिमा ने आँख भर कर सत्यजीत को देखा . और कहा , “मैं चलती हूँ सत्यजीत , अब कभी
नहीं मिलना मुझसे.”
सत्यजीत की आँखे भर आई , वो परिस्थितियों के आगे विवश था. वो कुछ बोल न सका.
थोड़े दूर जाने के बाद अनिमा रुकी , पलटी और सत्यजीत को देखा .
सत्यजीत ने कहा , “आबार एशो अनिमा."
अनिमा मुड कर चल दी. हमेशा के लिए सत्यजीत के
ज़िन्दगी से चली गयी ..!
::::::आज से 13 बरस पहले ::::::
“ये मेरा घर है और
जो मैं चाहूँगा, वही होंगा” . देबाशीष गरज कर बोला.
अनिमा ने कहा. “अगर तुम ये सोचते हो की ये सिर्फ तुम अकेले का घर है तो फिर मेरा क्या काम यहाँ ?"
देबाशीष ने गुस्से
में कहा , “तुम मेरी बात क्यों
नहीं सुनना चाहती हो."
अनिमा ने कहा “ इसमें सुनने लायक क्या है . पेंटिंग मेरी
ज़िन्दगी का सबसे बड़ा हिस्सा है , मैं
कैसे बंद कर दूं , सिर्फ
तुम्हारे अंह की शान्ति के लिए मैं अपने जीवन में मौजूद एक ही ख़ुशी है , वो भी खो दूं ."
अब अनिमा रोज रोज के
इन झगड़ो से तंग आ चुकी थी
. तीन साल पहले उसने देबाशीष से शादी की थी . वो भी प्रेम विवाह .
देबाशीष भी उसकी तरह एक पेंटर था. और पेंटिंग ही उन दोनों को करीब लायी थी . सब ठीक
चल रहा था. फिर आर्ट के फॉर्म में बदलाव आया. अनिमा ने अपने
आप को कंटेम्पररी आर्ट में ढाल दिया , और इस बदलाव ने पेशा और पैसो में बढोत्तरी की. लेकिन
देबाशीष अपने
आप में बदलाव नहीं ला सका , नतीजा
ये हुआ की . देबाशीष की पेंटिंग्स लोग कम खरीदने लगे और
करीब करीब बिकना भी बंद हो गया .
लेकिन अनिमा एक सफल आर्टिस्ट बन गयी . चारो तरफ उसका नाम हुआ. बहुत सी
एक्सिबिशन भी होने लगी , और अच्छे दामो पर उसका आर्टवर्क
बिकने भी लगा. बस देबाशीष
का अंह उसके सर पर सवार हो गया . ये घर भी दोनों ने मिलकर ख़रीदा था. और करीब एक साल से अनिमा ही इस घर का पूरा
खर्चा उठा रही थी . अनिमा को कहीं भी कोई भी तकलीफ नहीं थी , देबाशीष से वो प्रेम करती थी . लेकिन रोज देबाशीष का
पीकर आना और
फिर लड़ना . और आज सुबह से ही देबाशीष पीकर घर में उत्पात मचा रहा था. बात सिर्फ इतनी थी ,
अनिमा को फ्रांस जाना था , और देबाशीष नहीं चाहता था की वो फ्रांस जाए. अनिमा के लिए जो प्रेम उसके मन में
था अब उस प्रेम की जगह ईर्ष्या ने ली थी .
देबाशीष ने चिल्लाकर
कहा , “देखो अनिमा , तुम ये पेंटिंग छोड़ दो , हम प्रिंटिंग का काम करेंगे .”
अनिमा ने आश्चर्य से
कहा , “ये क्या कह रहे हो ,
मैं ऐसा कुछ भी नहीं करुँगी. पेंटिंग
मेरे लिए सब कुछ है . तुम अपनी जिद छोड़ दो.
हम मिलकर एक आर्ट गेलरी खोलते है , और सब कुछ ठीक हो जायेंगा .”
देबाशीष फिर
चिल्लाकर बोला . “नहीं , जो मैं कहूँगा वही तुम करो , मत भूलो की तुम मेरी बीबी हो .”
अनिमा अक्सर शांत ही
रहती थी . लेकिन आज वो भी गुस्से में थी .
उसने भी
चिल्लाकर कहा. “मैं वही करुँगी , जो मेरा मन कहेंगा. मत भूलो , की तुमसे मैंने शादी भी इसलिए की थी ,की मैं तुमसे प्रेम करती हूँ और मेरे मन ने इस की इजाजत दी थी ."
देबाशीष ने कहा ,
“तो तुमने मुझ पर उपकार किया . अब एक
उपकार और करो , या तो वो करो ,
मैं चाहता हूँ या फिर मुझे छोड़कर
चली जाओ."
अचानक कमरे में ही
एक दर्द भरा सन्नाटा छा गया .
बहुत देर की चुप्पी
के बाद अनिमा उठी और घर से बाहर चल पड़ी.
देबाशीष ने चिल्लाकर
कहा , “कहाँ जा रही हो , मैंने गुस्से में कह दिया तो चले ही जाओंगी .”
अनिमा ने बिना मुड़े
कहा , “नहीं देबाशीष , अब नहीं . अब हम साथ नहीं रह सकते . मैं तुम्हे छोड़कर
जा रही हूँ ."
देबाशीष कुछ बोल न
सका .
जैसे ही अनिमा
दरवाजे के पास पहुंची , देबाशीष
ने कातर स्वर में कहा " आबार एशो अनिमा "
अनिमा ने न कोई जवाब
दिया , न पलटकर देखा और न ही
रुकी , वो हमेशा के लिए देबाशीष
के घर से और उसकी ज़िन्दगी से निकल गयी….!
::::::आज से 8 बरस पहले ::::::
शमशान के चौकीदार ने
पुछा ,
“कौन हो तुम?”
अनिमा ने कुछ नहीं
कहा , सिर्फ उसके मुह से निकला "श्रीकांत
”
शमशान में लगभग
रात हो चुकी थी और इस वक़्त वैसे भी कोई नहीं आता, और ऐसे समय
में एक महिला का शमशान में होना . चौकीदार ने गौर से अनिमा को देखा . अनिमा का
चेहरा किसी मुर्दा चेहरे से कम नहीं लग रहा था . आँखे सूखी हुई सी थी.
चौकीदार ने पुछा. “तुम कौन हो. श्रीकांत बाबु के लोग तो आकर चले गए.”
अनिमा ने उसकी ओर
देखा . शमशान के गेट पर लगे हुए पीले बल्ब की रौशनी में चौकीदार ने अनिमा का चेहरा देखा और बहुत कुछ उस नासमझ
को समझ गया . उसने चुपचाप अनिमा को अपने पीछे
आने का इशारा किया .
एक करीब करीब जल
चुकी चिता के पास उसे
ले आया और उस चिता के तरफ इशारा किया . अनिमा चिता देखकर पथरा गयी . बहुत देर से रुके
हुए आंसू अब न रुक
सके . वो जोर जोर से रोने लगी .
चौकीदार चुपचाप खड़ा रहा . दुनिया में सच शायद सिर्फ
शमशान में ही दिखता है .
बहुत देर तक रोने के
बाद वो चुप हो गयी .
श्रीकांत जैसा आदमी ,
अनिमा ने दूसरा नहीं देखा था. और शायद
अब कभी देखेंगी भी नहीं . सब
कुछ जैसे एक लम्हे में उसकी आँखों के सामने लहरा गया.
श्रीकांत को माँ सरस्वती का वरदान था. वो कवि , संगीतकार, गायक, चित्रकार सब कुछ था. लेकिन उसकी ज़िन्दगी में जिससे उसका ब्याह हुआ था . वो भी प्रेम विवाह , वो ब्याह सुखमय नहीं था. स्त्री कर्कशा थी और दिन रात उसका जीवन नरक बनाये हुए थी . श्रीकांत की पत्नी का स्वभाव उससे बिलकुल भी मेल नहीं खाता था . रोज किसी न किसी बात पर झगडा एक बहुत ही कॉमन बात थी . श्रीकांत तंग हो चला था ज़िन्दगी से . नतीजा , रोज़ ही श्रीकांत शराब के नशे में अपने आपको डुबो देता था. ऐसे ही एक शाम को श्रीकांत की मुलाकात अनिमा से हुई . कोलकत्ता में उत्तमकुमार पर आधारित एक शो था. जिसमे श्रीकांत ने बहुत से गीत गाये , और जब अनिमा का प्रवेश वहाँ हुआ , तब वो स्टेज पर एक गाना गा रहा था , " दिल ऐसा किसी ने मेरा तोडा " गाना सुनकर अनिमा रुक गयी थी. उस दिन दोनों का परिचय एक दुसरे से हुआ.
दुसरे दिन श्रीकांत अनिमा के घर पहुँच गया सुबह ही . अनिमा उसे देखकर चौंक गयी थी . श्रीकांत ने उसके ओर कुछ रजनीगंधा के फूल बढाए और कहा . “अनिमा मुझे झूठ बोलना नहीं आता . कल पहली बार ऐसा हुआ की तुमसे मिला और मैंने शराब नहीं पी. और रात को सो भी नहीं पाया . तुम्हारे बारे में ही सोचते रहा . क्या ये प्रेम है ?”
अनिमा सकते
में आ गयी , सो तो वो भी नहीं सकी थी . उसने भी श्रीकांत के बारे में सोचा था. अनिमा ने कुछ नहीं कहा .
श्रीकांत ने फिर
कहा. “मैं शादीशुदा हूँ . और
मुझे अपने शादी पर अफ़सोस तो बहुत बार हुआ है , लेकिन आज बहुत ज्यादा अफ़सोस है .”
अनिमा ने उसे घर के
भीतर बुलाया और कहा , “चाय तो पी लीजिये . कल आप बहुत अच्छा गा रहा थे.
”
श्रीकांत ने कहा ,
“मैं
अब तुम्हारे लिए गाना चाहता हूँ .”
अनिमा ने सकुचा कर पुछा
. “क्या गाना चाहते हो ?"
श्रीकांत ने कहा “तुम्हे उत्तमकुमार बहुत पसंद है . उसी के प्रेम भरे गीत
तुम्हारे लिए मेरे मन के भावो के साथ गाना चाहता हूँ . ”
अनिमा ने ठहरकर कहा ,
“मुझे ज़िन्दगी बहुत पसंद है .”
श्रीकांत बहुत देर
तक उसे देखता
रहा. और फिर धीरे से कहा , “तुम
बहुत बरस पहले मुझसे नहीं मिल सकती थी अनिमा ?”
अनिमा ने कहा ,
“ज़िन्दगी के अपने फैसले होते है
श्रीकांत ."
उस दिन के बाद
श्रीकांत और अनिमा अक्सर मिलते रहे , हर दिन के साथ श्रीकांत के मन का तनाव बढता ही रहा , वो अनिमा के बैगर नहीं रह पा रहा था लेकिन अपनी पत्नी को कैसे
छोड़े , कहाँ जाये , क्या करे. वो अपने आपको भगवान की आँखों में कसूरवार नहीं ठहराना
चाहता था.
इसी कशमकश में एक
साल बीत गया. श्रीकांत ने अनिमा को और अनिमा ने श्रीकांत को इतनी खुशियाँ दी ,
जिन्हें शब्दों ने
नहीं समाया जा सकता था. दोनों
जैसे एक दुसरे के लिए बने हो. लेकिन जैसे ही वो अलग होते थे. दोनों ही दुःख में घिर जाते
थे. अनिमा की पेंटिंग्स में उदासी झलकने लगी . श्रीकांत और बहुत ज्यादा पीने लगा
था.
परसों श्रीकांत ने कहा की वो अनिमा से
मिलना चाहता है , अनिमा ने उसे
घर बुलाया , लेकिन श्रीकांत ने कहा की वो
उससे किसी नदी के किनारे मिलना चाहता है . कोलकत्ता के बाहर गंगा के घाट पर दोनों मिले . ढलती हुई
शाम और आकाश में छायी हुई लालिमा और गंगा का बहता हुआ पानी जैसे दोनों से बहुत
कुछ कहने की कोशिश कर रहा था.
श्रीकांत ने उसे एक
गीत सुनाया . “तुझे देखा , तुझे चाहा ,तुझे पूजा मैंने."
उस रात श्रीकांत ने
बहुत सी बाते की. लेकिन वो कुछ विचलित था.
अनिमा ने पुछा भी ,
“क्या बात है श्रीकांत ?” लेकिन श्रीकांत कुछ नहीं
बोला.
कल जब शाम को वो
विदा हुआ , तो श्रीकांत ने उसे
बहुत देर तक गले लगाया रखा और फिर धीरे से कहा, “अगले जन्म मुझे जल्दी मिलना अनिमा !” अनिमा की आँखों में आंसू तैर गये !
आज सुबह अनिमा को
पता चला कि श्रीकांत ने खुदखुशी कर ली.
अनिमा पागल सी हो गयी और अब वो शमशान में
उसकी चिता के पास बैठकर रो रही है . अनिमा को लग रहा था कि खुद उसकी ज़िन्दगी राख
है !
चौकीदार ने धीरे से
कहा , “बहुरानी , रात ज्यादा हो चली है अब आप जाओ."
अनिमा चौंक कर उठी.
फिर वो धीरे धीरे बाहर की ओर चली , बार
बार वो मुड़कर पीछे देखती थी की राख के ढेर से श्रीकांत उठ
कर खड़ा होंगा और कहेंगा , “आबार एशो अनिमा !!!”
अनिमा इन शब्दों को
लिए इस बार बैचेन थी , वो रुक
जाती अगर श्रीकांत उसे पुकारता. लेकिन राख के ढेर में सिर्फ उनके प्रेम की
चिंगारियां ही बची हुई है. अनिमा अपने आप में नहीं रही. उस
दिन से वो खामोश हो गयी .
::::::आज से दो महीने पहले ::::::
अनिमा अब ज्यादातर
चुप ही रहती थी , उसने अपने एकाकी जीवन में सिर्फ पेंटिंग्स को ही जगह दे दी थी . उसकी पेंटिंग्स अब और
भी ज्यादा मुखर हो चली थी . दर्द के कई शेड्स थे अनिमा के पास जो उन्हें
वो कैनवास पर उतार
देती थी .
ऐसे ही एक प्रदर्शनी में उसकी मुलाकात
निशिकांत से हुई. आकार-प्रकार गेलरी में उसकी
पेंटिंग्स का शो चल रहा था. और करीब लंच का समय था , जब वो बाहर जाने के लिए निकल रही थी , तब उसने देखा की एक लम्बा सा आदमी उसकी एक पेंटिंग के सामने खड़ा
होकर कुछ लिख रहा था .
वो उसके पास गयी और
पुछा , “ कैन आई हेल्प यू सर ?”
उस आदमी ने पलट कर अनिमा को देखा . वो एक करीब ४० साल का आदमी था .जो की एक कुरता पहना हुआ था और
हाथ में एक डायरी में कुछ लिख रहा था. वो निशिकांत था . उसने अनिमा से पुछा. “आप ?” अनिमा ने कहा “ ये पेंटिंग मैंने बनायी हुई है ,” निशिकांत
ने मुस्करा कर अनिमा से कहा ,” यू
हैव आलरेडी हेल्प्ड मी बाय मेकिंग सच ए वंडरफुल पेंटिंग !” .
अनिमा ने मुस्कराकर कहा ,
“थैंक्स . आप क्या पेंटिंग खरीदना चाहते
है , कुछ लिख रहे है ?”. निशिकांत ने कहा “नहीं नहीं , मैं तो इस पेंटिंग को
देखकर एक कविता लिख रहा हूँ .” अनिमा ने
आश्चर्य से पुछा , “अच्छा ,
क्या लिखा है बताये तो सही .”
पहले हम आपस में
परिचित हो जाए . “मेरा नाम
निशिकांत है .” निशिकांत ने कहा.
”और मेरा अनिमा" अनिमा ने मुस्कराते हुए कहा .
”और मेरा अनिमा" अनिमा ने मुस्कराते हुए कहा .
निशिकांत ने कहा “अनिमा नाम तो बहुत अच्छा है , पर वैसे इसका मतलब क्या है ."
अनिमा ने कहा “शायद आत्मा या फिर आन्सर माय प्रेयर , मैंने कहीं पढ़ा था."
निशिकांत ने हाथ जोड़कर कहा , हे देवी , तब तो आन्सर माय प्रेयर इन अडवांस.”
अनिमा मुस्करा उठी !
निशिकांत ने कहा “
देखिये , ये जो आपकी पेंटिंग है आपने इसका शीर्षक " क्षितिज " दिया
हुआ है अब आपके पेंटिंग
में आपने दूर में एक हलकी सी लाइन ड्रा किया हुआ है और वहां पर आपने दो इंसान बनाए हुए है
जो की प्रेमी प्रेमिका है . करेक्ट ? “
अनिमा ने कहा ,
“हाँ , ये तो सही है और ये पेंटिंग भी मुझे बहुत पसंद है . पर आपने लिखा
क्या है ये तो बताये .”
निशिकांत ने पढ़कर
सुनाया
""क्षितिज""
तुमने कहीं वो क्षितिज देखा है ,
जहाँ , हम मिल सकें !
एक हो सके !!
मैंने तो बहुत ढूँढा ;
पर मिल नही पाया ,
कहीं मैंने तुम्हे देखा ;
अपनी ही बनाई हुई जंजीरों में कैद ,
अपनी एकाकी ज़िन्दगी को ढोते हुए ,
कहीं मैंने अपने आपको देखा ;
अकेला न होकर भी अकेला चलते हुए ,
अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए ,
अपने प्यार को तलाशते हुए ;
कहीं मैंने हम दोनों को देखा ,
क्षितिज को ढूंढते हुए
पर हमें कभी क्षितिज नही मिला !
भला ,
अपने ही बन्धनों के साथ ,
क्षितिज को कभी पाया जा सकता है ,
शायद नहीं ;
पर ,मुझे तो अब भी उस क्षितिज की तलाश है !
जहाँ मैं तुमसे मिल सकूँ ,
तुम्हारा हो सकूँ ,
तुम्हे पा सकूँ .
और , कह सकूँ ;
कि ;
आकाश कितना अनंत है
और हम अपने क्षितिज पर खड़े है
काश ,
ऐसा हो पाता;
पर क्षितिज को आज तक किस ने पाया है
किसी ने भी तो नही ,
न तुमने , न मैंने
क्षितिज कभी नही मिल पाता है
पर ;
हम ; अपने ह्रदय के प्रेम क्षितिज पर
अवश्य मिल रहें है !
यही अपना क्षितिज है !!
हाँ ; यही अपना क्षितिज है !!!
कविता सुनाने के बाद
निशिकांत ने अनिमा की ओर देखा . अनिमा उसकी ओर ही देख रही थी . पता नहीं उसके दिल में कैसे हलचल मचल रही थी . कभी वो अपनी पेंटिंग को
और कभी वो निशिकांत को देखती .
निशिकांत ने आश्चर्य से पुछा , “क्या हुआ. ठीक नहीं है क्या .”
अनिमा ने कुछ नहीं
कहा, उस पेंटिंग को उतारकर
निशिकांत को दे दिया और कहने लगी , “मुझे वो कविता दे दो. “
निशिकांत कुछ न कह
सका . फिर कुछ
देर बाद कहा . “ठीक
है . कविता भी ले लो . और अपनी पेंटिंग भी रख लो. मैं खरीद नहीं पाऊंगा .”
अनिमा ने कहा “पैसो की कोई बात ही नहीं है . तुम इसे ले जाओ “
निशिकांत ने कहा ,
“एक काम करते है , इसे तुम अपने पास रख लो, मैं तुम्हारे घर आकर देख लिया करूँगा.” इसी बहाने तुमसे मिलना भी हो जाया करेंगा.
दोनों हंसने लगे.
कुछ इस तरह से हुआ दोनों का परिचय , दोनों मिलने लगे करीब करीब हर दुसरे दिन. अनिमा को निशिकांत अच्छा लगने लगा था. उसमे वो ठहराव था जो की उसकी भावनाओ को रोक पाने में सक्षम था. और निशिकांत को अनिमा अच्छी लगने लगी थी . अनिमा में जो शान्ति थी , वो बहुत ही सुखद थी . निशिकांत के मन को तृप्ति हो जाती थी , जब भी वो अनिमा के साथ समय बिताता था.
दोनों की बहुत सी
मुलाकाते हुई इन दिनों और दोनों ने अपनी बीती ज़िन्दगी को एक दुसरे के साथ शेयर किया . निशिकांत का
प्रेम किसी से हुआ था , जिसने बाद में निशिकांत को
छोड़कर किसी और व्यक्ति से शादी कर ली थी, तब से निशिकांत बंजारों सा जीवन ही जी रहा था, एक कवि था , और यूँ ही कुछ यहाँ वहां लिखकर जी रहा था. अनिमा से मिलकर उसे बहुत अच्छा
लगा , अनिमा की ज़िन्दगी को जानकार
बहुत दुःख हुआ.
और उसने एक दिन कहा
भी अनिमा से , “कब तक तुम परछाईयो के साथ जीना चाहती हो . जस्ट लुक फारवर्ड . मुझे ऐसा लगता है कि , हमें आगे की ओर बढना चाहिए . जीवन अपने आप में
एक रहस्य है और उसने अपने भीतर बहुत
कुछ छुपा रखा है . जैसे कि
हमारी दोस्ती . हम दोनों ही कोलकत्ता में रहते है और अब मिले है !! “
अनिमा ने मुस्करा दिया और सोचने लगी की सच ही तो कह रहा है . इन दो महीनो में दोनों एक दुसरे के बारे में बहुत कुछ जान गए थे और एक दुसरे को चाहने भी लगे थे.
समय पंख लगाकर उड़ने
लगा , समय की अपनी गति होती है .
::::::परसो ::::::
कोलकत्ता के आकृति आर्ट गेलेरी में अनिमा के
पेंटिंग्स की प्रदर्शनी का आज आखरी दिन था. पिछले १० दिनों में काफी अच्छा
प्रतिसाद मिला था और वैसे भी अनिमा भट्टाचार्य , पेंटिंग और कंटेम्पररी आर्ट की दुनिया में एक सिग्नेचर नाम था. उसकी काफी
पेंटिंग्स बिक चुकी थी . लेकिन अनिमा का मन ठीक नहीं था. पिछले कई दिनों से
निशिकांत उसके मन में अपना घर बनाते जा रहा था. वो कई बार खुद से ये सवाल पूछती ,
कि क्या उसके जीवन में अब कोई परमानेंट
पढाव आने वाला है ? वो व्यथित थी
. भविष्य में क्या है , कोई नहीं
जानता था. लेकिन अनिमा को लग रहा था कि निशिकांत ही उसका भविष्य है .
वो अपने ही विचारों में खोयी हुई थी कि अचानक
ही उसके पीछे से किसी ने धीमे से उसके कानो में कहा , “सपने देख रही हो अनिमा..और वो भी खुली हुई आँखों से
.. !”
अनिमा ने मुस्कराते हुए कहा , ' हाँ , निशिकांत , तुम्हारा
सपना देख रही हूँ .”
निशिकांत ने सामने आकर कहा , “अनिमा , मैं तो तुम्हारे सामने ही हूँ, सपने में देखने की क्या बात है .”
दोनों खिलखिलाकर हंसने लगे.
निशिकांत ने कहा, “ मैंने तुम्हारी एक पेंटिंग , जिसमे तुमने एक लम्बा रास्ता दिखाया है और रास्ते के
अंत में एक स्त्री को पेंट किया है . उगते हुए सूरज के साथ , उस पर एक कविता लिखी है."
अनिमा ने कहा , “पता है निशिकांत , पहले जब मैं पेंट करती थी , तो बस अपने लिए ही करती थी , लेकिन अब जब से तुम मिले हो , तुम्हारे लिए पेंट करती हूँ . और मुझे ये अच्छा भी
लगता है , हाँ तो बताओ क्या लिखा
है . मैंने तो उस पेंटिंग का कोई नाम भी नहीं दिया है ."
निशिकांत ने कहा , “अनिमा , मैंने तो नाम भी दे दिया है और कविता भी लिखी है , तुम्हे जरुर पसंद आएँगी .”
अनिमा ने हँसते हुए कहा , “तुम लिखो और मुझे पसंद नहीं आये , ऐसा कभी हुआ है निशिकांत ? ”
निशिकांत ने अपनी डायरी निकाली और अनिमा की
आँखों में झांकते हुए कहा , “तो
सुनो देवी जी . अर्ज किया है ”
अनिमा ने हँसते हुए कहा , “अरे आगे तो बढ़ो “
निशिकांत ने कहा . “अनिमा , तुम्हारी पेंटिंग और मेरी कविता का नाम मैंने रखा है " आबार एशो
" !!!”
अनिमा चौंक गयी , “क्या ?”
निशिकांत ने उसका हाथ पकड़ कर उसकी पेंटिंग के
पास ले गया .और उससे कहा , “अब तुम ध्यान से इस
पेंटिंग को देखो ,तुम्हे लगता
नहीं है कि कोई इस औरत से कह रहा है कि आबार एशो . इस रास्ते में मौजूद हर पेड़ ,
हर बादल , हर किसी से कह रहा है कि आबार एशो . बोलो !”
अनिमा ने कुछ नहीं कहा . बस पेंटिंग की ओर
देखती रही . फिर निशिकांत को देख कर कहा . “निशिकांत ,मैंने अपने जीवन में कभी भी किसी को आबार एशो नहीं कहा.. कोई ऐसा मन को भाया ही नहीं कि
उसे फिर से बुला सकूँ ...अपने जीवन में . अपने जीवन की यात्रा में ..”
निशिकांत ने गंभीर होकर कहा , “तुम्हे कभी तो किसी को आबार एशो कहना ही
पड़ेंगा अनिमा . ज़िन्दगी में कभी तो रुकना ही पड़ता है.”
अनिमा ने गीली होती हुई आँखों को छुपा कर कहा ,
“अच्छा अपनी कविता तो सुनाओ.”
निशिकांत ने उसे गहरी नज़र से देखते हुए
कहा ....
”सुनो ...शायद इसे सुन
कर तुम किसी को कह सको ,आबार एशो
!”
निशिकांत ने कहना शुरू किया ....और उसकी धीर -गंभीर आवाज ,अनिमा के मन मे उतरनी लगी ....!
आबार एशो [ फिर आना ]
सुबह का सूरज आज जब मुझे जगाने आया
तो मैंने देखा वो उदास था
मैंने पुछा तो बुझा बुझा सा वो कहने लगा ..
मुझसे मेरी रौशनी छीन ले गयी है ;
कोई तुम्हारी चाहने वाली ,
जिसके सदके मेरी किरणे
तुम पर नज़र करती थी !!!
रात को चाँद एक उदास बदली में जाकर छुप गया ;
तो मैंने तड़प कर उससे कहा ,
यार तेरी चांदनी तो दे दे मुझे ...
चाँद ने अपने आंसुओ को पोछते हुए कहा
मुझसे मेरी चांदनी छीन ले गयी है
कोई तुम्हारी चाहने वाली ,
जिसके सदके मेरी चांदनी
तुम पर छिटका करती थी ;
रातरानी के फूल चुपचाप सर झुकाए खड़े थे
मैंने उनसे कहा ,
दोस्तों मुझे तुम्हारी खुशबू चाहिए ,
उन्होंने गहरी सांस लेते हुए कहा
हमसे हमारी खुशबू छीन ले गयी है
कोई तुम्हारी चाहने वाली ,
जिसके सदके हमारी खुशबू
तुम पर बिखरा करती थी ;
घर भर में तुम्हे ढूंढता फिरता हूँ
कही तुम्हारा साया है ,
कही तुम्हारी मुस्कराहट
कहीं तुम्हारी हंसी है
कही तुम्हारी उदासी
और कहीं तुम्हारे खामोश आंसू
तुम क्या चली गयी
मेरी रूह मुझसे अलग हो गयी
यहाँ अब सिर्फ तुम्हारी यादे है
जिनके सहारे मेरी साँसे चल रही है ....
आ जाओ प्रिये
बस एक बार फिर आ जाओ
आबार एशो प्रिये
आबार एशो !!!!!
सुबह का सूरज आज जब मुझे जगाने आया
तो मैंने देखा वो उदास था
मैंने पुछा तो बुझा बुझा सा वो कहने लगा ..
मुझसे मेरी रौशनी छीन ले गयी है ;
कोई तुम्हारी चाहने वाली ,
जिसके सदके मेरी किरणे
तुम पर नज़र करती थी !!!
रात को चाँद एक उदास बदली में जाकर छुप गया ;
तो मैंने तड़प कर उससे कहा ,
यार तेरी चांदनी तो दे दे मुझे ...
चाँद ने अपने आंसुओ को पोछते हुए कहा
मुझसे मेरी चांदनी छीन ले गयी है
कोई तुम्हारी चाहने वाली ,
जिसके सदके मेरी चांदनी
तुम पर छिटका करती थी ;
रातरानी के फूल चुपचाप सर झुकाए खड़े थे
मैंने उनसे कहा ,
दोस्तों मुझे तुम्हारी खुशबू चाहिए ,
उन्होंने गहरी सांस लेते हुए कहा
हमसे हमारी खुशबू छीन ले गयी है
कोई तुम्हारी चाहने वाली ,
जिसके सदके हमारी खुशबू
तुम पर बिखरा करती थी ;
घर भर में तुम्हे ढूंढता फिरता हूँ
कही तुम्हारा साया है ,
कही तुम्हारी मुस्कराहट
कहीं तुम्हारी हंसी है
कही तुम्हारी उदासी
और कहीं तुम्हारे खामोश आंसू
तुम क्या चली गयी
मेरी रूह मुझसे अलग हो गयी
यहाँ अब सिर्फ तुम्हारी यादे है
जिनके सहारे मेरी साँसे चल रही है ....
आ जाओ प्रिये
बस एक बार फिर आ जाओ
आबार एशो प्रिये
आबार एशो !!!!!
कविता सुनाकर निशिकांत ने अनिमा को देखा .
अनिमा के जीवन का सारा दर्द जैसे आंसुओ के रूप में बह रहा था. उसका अकेलापन, उसकी तकलीफे सब कुछ जैसे उसे अपराधी ठहरा रहे थे कि उसने कभी भी किसी को आबार एशो नहीं बोला . और न ही किसी के आबार एशो कहने पर रुकी या फिर वापस आई ; अचानक श्रीकांत जैसे राख से निकल कर सामने खड़ा हो गया
निशिकांत उसे देखते रहा , फिर आगे बढकर उसे अपनी बांहों में लेकर उसके सर को हलके थपथपाने लगा. अनिमा थोड़ी देर में संयत हो गयी.
उसने निशिकांत से
कहा . “कल मैं शान्ति निकेतन जा
रही हूँ, कल मेरा जन्मदिन है ,
कल घर पर आ जाना. ”
निशिकांत
ने मुस्कराकर कहा , “ मैं जानता हूँ . मैं आ जाऊँगा .”
निशिकांत चला गया ,
कल आने के लिए . और अनिमा गहरे सोच में
डूब गयी .. पता नहीं क्या क्या उसके मन में कितने तूफान आ जा रहे थे .
:::::: कल ::::::
शाम के करीब ५ बजे
थे . दरवाजे के घंटी बजी तो अनिमा ने दरवाजा खोला, सामने निशिकांत था. अपने हाथो को पीछे में छुपाये हुए.
जैसे ही अनिमा नज़र आई , निशिकांत
ने रजनीगंधा के फूलो का एक छोटा सा गुलदस्ता उसे दिया .और बहुत ही अच्छे से ,
थोडा झुककर , थोड़े से नाटकीय ढंग से कहा , “जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाये “.
अनिमा ने मुस्करा कर कहा. “थैंक्स.
और इतना फार्मल होने की कोई जरुरत नहीं
है.”
निशिकांत ने घर के
भीतर आकर कहा , “ और कोई नहीं है
, क्या सिर्फ
मैं ही इनवाईटेड हूँ. ?”
अनिमा ने कहा “
हां सिर्फ तुम . अब कहीं कोई और नहीं
है."
निशिकांत चौंककर
अनिमा को गहरी नज़र से देखने लगा. अनिमा ने एक सफ़ेद रंग की तात की साड़ी पहनी हुई
थी , जिसके किनारे पर लाल और हरे
रंग की बोर्डर बनी हुई थी . और उस बोर्डर पर छोटी छोटी चिड़ियाएँ बनी हुई थी .
जिनका रंग थोडा सा आसमानी नीला था.
निशिकांत ने कहा.
आज तो
बड़ी अच्छी लग रही हो
. अनीमा शायद अभी अभी नहाई
हुई थी . उसके गीले बालो से पानी की बूंदे टपक रही थी . निशिकांत
धीरे धीरे पास आया और कहा मैंने तुम्हारे लिए तीन गिफ्ट लाया हूँ . एक तो ये रजनीगंधा के फूल है , जो कि , अनिमा
ने बात काटकर कहा ,
“मुझे बहुत पसंद है.” निशिकांत मुस्करा कर बोला “और दुसरे ये एक सीडी है जो की किशोर कुमार के गानों की
है.” अनिमा ने उस सीडी को लेते हुए कहा , “अहो , ये भी मुझे पसंद है.” निशिकांत
ने मुस्कराते हुए कहा, “और तीसरी ये एक
किताब है : ज़ाहिर - पाउलो कोहेलो की. ये भी पसंद आएँगी तुम्हे.”
अनिमा ने मुस्कराकर
कहा , “और एक गिफ्ट है और वो तुम
हो . मैंने तुम्हारे लिए बहुत
सारा बंगाली खाना बनाया है , जैसे
आलू पोश्तो,”
निशिकांत ने बात काटकर कहा , “ये तो मुझे बहुत पसंद है ,” अनिमा ने मुस्कराकर कहा “और
मूंग की दाल , और बैंगन भाजा
फ्राय.” निशिकांत ने कहा , “यार पहले खाना खिला
दो. बर्थडे तो बाद में मना लेंगे.”
दोनों खिलखिलाकर हंसने लगे. निशिकांत ने देखा
की , आज अनिमा बहुत खुश नज़र आ रही है . और ये ख़ुशी
उसके सारे पर्सनालिटी पर छाई हुई
है .
अनिमा के घर निशिकांत पहली बार आया था. अनिमा का घर एक कलाकार का ही घर था. बहुत करीने से बहुत सी
चीजो से सजा हुआ था. एक कोने में ग्रामोफोन रखा था, उसे देखकर निशिकांत ने आश्चर्य से पुछा ये चलता है ? अनिमा ने कहा , हां भई
चलता है , आओ तुम्हे कुछ पुराने
गाने सुनाऊं . दोनों ने बैठकर बहुत से गाने सुने.
फिर अनिमा ने कुछ पुरानी
पेंटिंग्स दिखाई निशिकांत को . निशिकांत ने कुछ
नयी कविता सुनाई अनिमा को .
रात को दोनों ने जमीन पर बैठकर मोमबत्तियो की रोशनी में भोजन
का इंतजाम किया . सुरीला संगीत और हलकी हलकी खुशबु रजनीगंधा के फूलो की .. और
फिर खिडाखियों
से छन कर आती हुई चांदनी .
एक परफेक्ट रोमांटिक माहौल था.
खाने के बाद , जमीन पर ही बीचे हुए गद्दों पर बैठकर दोनों ने बाते
कहनी चाही......
पर अनिमा ने मुंह पर उंगली रख कर मना कर दिया. बस उसने कहा, “रात की इस खामोशी को कहने दो और जीवन को बहने दो. कुछ
न कहो .. बस मौन में रहो.”
निशिकांत ने मुस्करा कर कहा , “अच्छा जी , अब तुम भी कविता करने लगी.”
फिर बहुत देर तक वो दोनों चुपचाप बैठे रहे. निशिकांत धीरे से उठकर अनिमा के पास बैठ गया . अनिमा
ने उसकी ओर मुंदी हुई आँखों से देखा .
निशिकांत ने कहा, “अनिमा , मैं कुछ
कहना चाहता हूँ.” अनिमा ने कुछ न कहा , बस एक प्रश्न आँखों में लेकर देखा. निशिकांत ने देखा की उसके
होंठो पर बहुत प्यारी से मुस्कान उभर आई है . निशिकांत ने उसके सर पर हलके से अपना हाथ रखा .और धीरे से कहा...
“आमी तोमको भालो बासी अनिमा ....
सच में .. बस अब एक ठहराव चाहिए जीवन में. और मैं तुम्हारे आँचल तले ठहरना चाहता हूँ
.......अनिमा.”
अनिमा ने उसकी ओर देखा , कुछ न कहा. और आँखे बंद कर ली.
निशिकांत बहुत देर तक अनिमा की तरफ देखता रहा ,
सोचा की ,वो कुछ कहेंगी जवाब में , लेकिन अनिमा ने कुछ न कहा.. रात बहुत गहरी होती जा रही थी .... निशिकांत उसी गद्दे पर
लेट गया .. पता नहीं उसे कब नींद आ गयी , सफ़र की थकान थी..
पर अनीमा की आँखों में नींद नहीं थी. उसके
जेहन में निशिकांत के शब्द ठकरा रहे थे.. बस अब एक ठहराव चाहिए जीवन में. और मैं
तुम्हारे आँचल तले ठहरना चाहता हूँ , अनिमा …..!
बाहर ,रातरानी के फूलो ने और आसमान पर छाए हुए तारो ने और गहरी होती हुई रात ने इनके प्रेम को एक निशब्द सा मौन ओड़ा दिया था.
:::::: आज ::::::
बाहर ,रातरानी के फूलो ने और आसमान पर छाए हुए तारो ने और गहरी होती हुई रात ने इनके प्रेम को एक निशब्द सा मौन ओड़ा दिया था.
:::::: आज ::::::
सुबह चिडियों की तेज आवाजो से निशिकांत की
नींद खुली . निशिकांत उठा
तो देखा , अनिमा उसके साथ ही सो
गयी थी , और सुबह की गहरी नींद
में उसे देखना बहुत सुखद लग रहा था. निशिकांत बहुत देर तक उसे देखता रहा और फिर
उठकर फ्रेश होकर चाय बनायी . उसने अनिमा को उठाया और उसे चाय पीने को कहा, अनिमा स्नान कर आई . श्रीकृष्ण ठाकुरजी की पूजा
की गयी. फिर दोनों ने चाय पी... चाय पीने के दौरान कोई कुछ
नहीं बोला, अनिमा को निशिकांत की
कही , कल रात की बात की गूँज
सुनाई देने लगी . अनिमा ने गहरी नज़र से निशिकांत को देखा. निशिकांत चुपचाप चाय पी
रहा था.
अचानक निशिकांत उसकी तरफ मुड़ा और कहा,
“तुम्हारे घर में ये फूलो के पौधे और उन
पौधों पर बसती हुई ये चिड़ियाँ नहीं होती तो , ये घर तुम्हारी identity नहीं बन पाती.”
अनिमा ने स्निग्ध मुस्कान के साथ कहा , “हाँ निशिकांत , तुम सच
कह रहे हो” फिर अनिमा ने कहा ,
“चलो , तुम्हे कोई गीत सुनकर विदा करते है.”
अनिमा ने ग्रामोफोन पर आशा भोंसले का एक बंगाली गाने का रिकॉर्ड लगाकर शुरू कर दिया. कमरे में कोने में रखे हुए ग्रामोफोन पर आशा भोंसले की आवाज में एक सुन्दर सा बंगाली गीत बजने लगा ...."कोन से आलोर स्वप्नो निये जेनो आमय ......!!!" सारे कमरे में रजनीगंधा के फूलो की खुशबु छाई हुई थी , अनिमा ने आँखे बंद कर ली, और निशिकांत ख़ामोशी से उसे देखते रहा........!
::::::.....अभी
.......!!! ::::::
ग्रामोफोन का
रिकॉर्ड बंद हो गया था, चिडियों
की आवाजे अब नहीं आ रही थी . सिर्फ
अनिमा के सुबकने की आवाज , रजनीगंधा के फूलो की खुशबु के साथ कमरे में तैर रही थी . और तैर रहा था दोनों का प्रेम !!
बहुत देर तक एक
ख़ामोशी , जिसमे पता नहीं कितने
संवाद भरे हुए थे; छायी रही .
अचानक ही एक कोयल
ने कुक लगायी . अनिमा ने धीरे से अपना चेहरा उठाया .
निशिकांत ने उसके
चेहरे को अपने हाथो से थाम कर कहा . " आमी तोमाके भालो बासी अनिमा "
अनिमा ने उसकी छाती
में अपने चहरे को छुपा कर कहा . “आमियो
तोमाके खूब भालो बासी, निशिकांत.”
अचानक बादल गरज उठे
. निशिकांत ने कहा “ये बेमौसम की
बरसात .this is climatic change !!"
अनिमा ने शर्मा कर
कहा , “हाँ न , climatic
change ही तो है . नहीं ?”
निशिकांत भी
मुस्करा कर कहा , “ हाँ .”
अनिमा ने कहा ,
चलो , आज एक गाना सुनते है . उसने
गाईड फिल्म का गाना लगा दिया " आज फिर जीने की तमन्ना है . आज फिर मरने का
इरादा है "
गाने के बोल और
सुरीला संगीत , घर में गूंजने
लगे और अनिमा और निशिकांत दोनों के चेहरे खिल गए ! दोनों का प्रेम रजनीगंधा के फूलो के साथ
शान्तिनिकेतन के इस कमरे
में महकने लगा.
दोस्तों
ReplyDeleteनमस्कार
ये पहली बार हो रहा है की मैं अपनी ही किसी कविता या कहानी पर कमेन्ट दे रहा हूँ . बस यूँ ही आप सब से कुछ बाते share करने का मन हुआ है . इसलिए लिख रहा हूँ.
1. आबार एशो की कथा का concept 5 मिनट में बन गया ,लेकिन लिखने में करीब 7 दिन लग गए वो भी मेरे आलस के कारण , मुझे लिखने में आलस आता है , ऐसी कई कविताएं और कहानिया है , जो की सिर्फ जेहन में है लेकिन लिखने के आलस की वजह से जीवंत नहीं हो सके . खैर कभी तो जरुर ही लिखेंगे .
2. कहानी थोड़ी ज्यादा लम्बी हो गयी , क्योंकि 4 अलग अलग कहानियो को इसमें डालना था. और निशिकांत और अनिमा के बीच के scenes की detailing भी ज्यादा हो गयी .
3. कहानी में श्रीकांत मेरा मनपसंद चरित्र है . कभी समय ने मौका दिया तो श्रीकांत और अनिमा के रिश्ते वाले हिस्से पर एक और कहानी लिखूंगा .
4. अनिमा नाम मेरे मन में अचानक ही आया. निशिकांत नाम मेरी बेटी ने दिया है. श्रीकांत नाम , शरतचंद्र की कथाओ का नायक है . सत्यजीत नाम सत्यजीत राय से लिया है . देबाशीष नाम एक परिचित का नाम है . कोलकत्ता और शान्तिनिकेतन मेरे पसंदीदा जगहों में से एक है . बंगाली theme मुझे पसंद आया इसलिए इसे background में लिया है .
5. कहानी को मैंने बहुत प्रेम से लिखा है . अनिमा का जीवन किसी का भी हो सकता है. मैंने पूरी कहानी को एक cinematic visualization के साथ लिखा है , कहानी भी frame by frame चलती है . आपको अच्छी लगेंगी.
6. मुझे flashback element बहुत पसंद है , और ये मेरी हर कहानी में होता है. और इस कहानी में इसे बहुत ज्यादा डाला है
6. जो गाने इस कहानी में use किये है , वो सभी मेरे मनपसंद गानों में से है .[ http://youtu.be/9pId6sxtdT0 ]
7. अंत में मुझे लगता है की कहानी आपको पसंद आएँगी , कोई गलती हो तो उसे भी बताये . मात्राओ की और वर्तनी की गलती हो सकती है . हमेशा की तरह जल्दबाजी जो रही है . सारी गलतियों के लिए माफ़ी .
आपके भावपूर्ण कमेंट्स के इंतजार में…….!
प्रणाम
विजय
विजय जी ,कहानी बांधे रखती है अंत तक ,मैंने तो इतने मन से पढ़ी है की पूछिए मत ,इस पंक्ति में "अनिमा ने मुस्कराते हुए कहा , ' हाँ , निशिकांत , तुम्हारा सपना देख रहा हूँ .” रही की जगह रहा प्रिंट हो गया है वो भी नजर से नहीं बचा ,...........यक़ीनन तारीफ़ की हक़दार है कहानी भी और कविता भी .बंधाई स्वीकारें
Deleteशुक्रिया निर्झर जी . आपने जो गलती बाताई , उसे मैंने ठीक कर लिया है . धन्यवाद मित्र. आभार आपका .
Deletebahut sundar
Deletevijay ji,congrats...bahut bahut hi sundar or sateek,sadhi hui kahaani hai....ek ek shabd kahaani ko saarthak bana raha hai....badhaai...
Deleteशुक्रिया शिवानी जी . आपने कथा का आनंद लिया . धन्यवाद और आभार आपका .
Deleteशुक्रिया कौशल जी . धन्यवाद और आभार आपका .
Deleteमुझे कविता और कहानी दोनों पसंद आई.... जहाँ तक बात है नायिका और उसके प्रेम की ये जब कुछ जाना पहचाना सा लगा उसकें मुझे कुछ भी नयापन नहीं दिखा हाँ कहने के ढंग में जरुर कुछ नयापन है....
ReplyDeleteक्षितिज ..कविता इसमें पूरा नयापन है...
वैसे नयापन क्या होता है प्रेम में नहीं पता.. शायद होता हो नयापन जब प्यार पहली पहली बार होता हो.... शायद ये प्रेम करने वाले की भाषा में ही लिखा जाये तो महसूस होता हो... कहते हैं हर प्रेम उस प्रेमी जोड़े के साथ ही लुत्प हो जाता है... शायद ही दूसरा उसे महसूस कर पता है..और उसकी भाषा को... इसलिए ज्यादतर प्रेम कहानिया..एक दुसरे की अगली पिछड़ी कड़ियाँ ही बन के रह जाती हैं..
वैसे सारी कहानियां....लगभग एक ही कहानी बाया करती हैं...
'एक था आदम, एक थी हव्वा'
शुक्रिया श्याम जी .
Deleteआपने सही कहा , सारी कहानिया बस एक दूसरे का हिस्सा ही रहती है .
धन्यवाद. आभार आपका .
comment by email :
ReplyDeleteBhai shri Vijayji,
Namaskar,
Yehi jeevan hai.kafi mehnat ki hai aapne bhavon ko yakt karne main,
han, sundar kahani ban padi hai.ek insan ke jeevan ke utar chadhav ki kahani, bechain man ki udan ki kahani, aur jeevan main thahrav ki
aasha ki kahani.....badhai. Insani man bada ajeeb hota hai...koi ganeet, koi samikaran koi logic ese bandh nahi sakta....
.Best of luck...
Regards,
Shilpa
comment by FB comment :
ReplyDeletePankaj Pathak commented on your link.
Pankaj wrote: "kuch samay ke liye jaise viraag ko grahan lag gaya tha na , vaise hi maine bhi padhna likhna chod diya tha........... parantu aapki is kahani ko padhane ke bad , phir se padhane ki tamanna hone lagi hai........................"
comment by FB comment :
ReplyDeleteBrij Rattan Sharma
good one Vijay ji.....reminded me of "Rajnigandha phool tumhare"
आपने बहुत खूबसूरती से अनिमा और निशिकांत के प्रेम संबंधों को कहानी में ढाला है!...यह एक सुन्दर प्रेम कहानी है!...लंबी है...लेकिन मैंने पुरी कहानी तन्मयतासे पढ़ी...बहुत अच्छा महसूस किया...कविता सुन्दर है!....धन्यवाद!
ReplyDeleteशुक्रिया अरुणा जी . आपके कमेन्ट की ताजगी भा गयी .
Deleteधन्यवाद. आभार आपका .
कहानी अच्छी है। पाठक को खुशी देती है। लेकिन कहानी जैसी चीज को प्रस्तुत करने की इतनी जल्दी क्यों होती है? पहले उस पर फाइनल पॉलिश होना जरूरी है। लेखक को कुछ धीरज और रखना चाहिए।
ReplyDeleteशुक्रिया दिनेश जी . आप ने सही पकड़ा :) जल्दबाजी तो हुई है . पर अगली बार कुछ धीरज जरुर रखूँगा .धन्यवाद. आभार आपका .
Deleteक्षितिज को कभी पाया जा सकता है .... ??
ReplyDeleteशायद नहीं .... :(
शायद हाँ .... :):)
*1* इस कहानी में सबसे अच्छी बात यह हुई नायिका के जीवन में कई बार "प्यार" की *विलुप्ति* हुई परन्तु उसकी "कला" की उन्नति होती रही .... !!
*2* बहुतों को अपने सवाल (एक बार प्रेमी से विछुड़ने पर जीवन विलुप्त हो जाता है) का जबाब मिल गया होगा .... !!
*3* जितने भी कहानियाँ है .... *लैला-मजनू* = *हीर-राँझा* के जीवन अंत तक
दुखद रहा ..... इस कहानी के नायिका के जीवन में कई नायक आये - गए ,अंत में नायिका के जीवन में खुशियाँ आई .... !!
अंत भालो तो शबे भालो .... !!
आबार एशो .... :):)
शुक्रिया विभा जी , आपने बहुत अच्छे से बात को रखा है और एक उम्मीद भी जताई है .प्रेम की दुनिया में. धन्यवाद. आभार आपका .
Deleteज़िंदगी के कुछ अनिर्णय या गलत निर्णय ज़िंदगी का रुख बदल देते है. कहानी लंबी होते हुए भी सुन्दर प्रस्तुतीकरण और रोचकता के कारण अंत तक बांधे रखती है. कवितायेँ भी बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteशुक्रिया कैलाश जी . आपका कमेन्ट सर आँखों पर. धन्यवाद. आभार आपका .
Deleteविजय, कहानी का प्लाट पुराना है गुलशन नंदा टाइप... पर आप की लेखन शैली, आप के अन्दर के सुरुचिपूर्ण कवि ने रचना को उत्कृष्ट बनाया है...अनुभव तो बहुत किया पर मेरी स्वयं की लेखन क्षमता सीमित है इस लिए व्यक्त करना कठिन है....सुन्दर रचना कर्म के लिए बधाई.. रजनी गंधा के फूलों जैसी कहानी..भालो लिखे छो...आरो लिखो..
ReplyDeleteशुक्रिया वन्दना जी . धन्यवाद आपके फूल जैसे कमेन्ट के लिए . आभार आपका .
Deleteविजय जी लगता है इनदिनों आप पुरानी हिंदी फ़िल्में देख रहे हैं...कहानी में उनका प्रभाव स्पष्ट दिखाई दे रहा है...आजकल कहानी कहने के अंदाज़ में आमूलचूल परिवर्तन हो चुका है...आज के दौर में लिजलिजे रोमांस की कोई जगह नहीं है...ये जद्दोजेहद और कुछ कर गुजरने का दौर है...आपसे निवेदन है के आप श्री पंकज सुबीर और उनके सम कालीन कहानीकारों की कहानियां पढ़ कर देखें, शायद मेरी बात पर आपको यकीन आ जाय...अगर मेरी बात बुरी लगी हो तो मैं दिल से क्षमा प्रार्थी हूँ...
ReplyDeleteनीरज
आदरणीय नीरज जी . आप क्षमा न मांगे . आप बड़े है ,मैंने आपको गुरु बोला है . आपकी हर बात सर आँखों पर. बस सिर्फ रोमांस को लिजलिजा न कहे . ये तो हर युग में बस रोमांस ही होता है , चाहे वो आपका हो या मेरा या फिर आने वाली पीढ़ी का , बस कहानी अलग अलग हो सकती है . बर्ताव अलग अलग हो सकता है . लेकिन प्यार तो बस ऐसा ही है , हाँ ये जरुर है की मैंने थोडा पुराना ढंग इस्तेमाल किया है इस कथा में . धन्यवाद. आभार आपका .
Deleteविजय जी मुझे ख़ुशी है के आपने मेरे कमेन्ट को सकारात्मक ढंग से लिया है...अच्छा और सच्चा लेखक आलोचनाओं से घबराता नहीं बल्कि उनसे अपना लेखन सुधारने का प्रयास करता है...पाठक को ये अधिकार होता है के वो आपकी रचना को पसंद करे न करे आप पाठक पर अपनी रचना थोप नहीं सकते...मैं आपको शिखर पर देखना चाहता हूँ और शिखर पर पहुँचने के लिए सिर्फ प्रशंशा की सीढियां ही काम नहीं आती...लिजलिजे रोमांस का शायद आप अर्थ समझने में शायद आप चूक गए...कभी मिलेंगे तो इस पर विस्तार से चर्चा होगी...खुश रहें और लिखते रहें...
Deleteनीरज
आपने बहुत कठिन काम किया है विजय जी. सात दिन में कहानी लिखी है आपने. लोगों को एक फ़िल्मी कहानी लिखने में सालों-साल लगते हैं. इसके लिए आप बधाई के पात्र हैं.
ReplyDeleteशक्ति सामंत की कई फिल्में याद आ गई. सचिन भौमिक की लेखनशैली का दर्शन मिला इस कहानी में. आशा है कि आप जल्द ही फिल्मों के लिए लिखना शुरू करेंगे.
बधाई.
आदरणीय शिव भैय्या , आपका आशीर्वाद रहा तो जरुर ही कुछ ऐसा होंगा . और अगर ऐसा हुआ तो मैं मिठाई खिलाने आपके पास जरुर आऊंगा .धन्यवाद. आभार आपका .
Deleteविजय जी आज आधी कहानी ही पढ पाई हूं. उम्मीद है रात तक पूरा पढ लूंगी तब कमेंट करूंगी :)
ReplyDeleteशुक्रिया वंदना जी . मुझे उम्मीद है की पूरी कहानी पढकर आपको मेरा ये प्रयास पसंद आयेंगा . धन्यवाद. आभार आपका .
Deletevijay ji kahani ant tak bandhe rakhti hai..kahani ke sath kavitaon ka samnjasy badiya hai...
ReplyDeleteशुक्रिया कविता जी : कहानी आपको अच्छी लगी . मुझे इस बात से बहुत ख़ुशी हुई . धन्यवाद , आभार आपका जी .
Deletejindagi jindagi bhar chalti hai kisi ke aane se ya jaane se nahi rukti ..magar ant me tahrav sabko chahiye ....apki kahani nadiya si bah gayi..bahut kuch bahte bahte kah gayi...kisi ko jaisi bhi lagi mujhe to kavita doino aur bibm jo apen khinche hai jagha jagha kahani me wo sab bahut khubsurti se gadhe huye lage.
ReplyDeleteshurkiya itni sunder kahani padhane ke liye...vaise apki kavita ho ya kahani mujhe lagti hai pahchani..bahut sunder
शुक्रिया सखी जी : कहानी के प्रवाह मेरे लिए बहुत मुख्य बात थी. और आपको अच्छी लगी . मुझे इस बात से बहुत ख़ुशी हुई .आपको मेरी कविताएं हमेशा से ही पसंद है . मुझे इस बात की बहुत ख़ुशी है , आपके कमेन्ट हौसला देते है की कुछ और बेहतर लिखू. धन्यवाद , आभार आपका जी .
Deletecomment by FB comment :
ReplyDeleteAshok Verma :
Good story...heart-touching...life is to be lived...not to lament only...keep on moving forward...a new view to life...very nice story!
कहानी अच्छी है मगर अनिमा के जीवन मे इतने पुरुषों का आना और जीवन मे इतनी उथल पुथल का होना कुछ अजीब सा लगा ……जैसे आजकल के सीरियल मे एक के ही ना जाने कितने अफ़ेयर या शादियाँ करवा दीजाती हैं कुछ कुछ वैसा सा लगा ………बुरा लगे तो माफ़ी चाहती हूँ मगर मुझे ऐसा ही लगा ।
ReplyDeleteवंदना जी , कमेन्ट के लिये शुक्रिया. कहानिया हमारे आसपास के समाज से ही बुनी जाती है . कुछ के जीवन में बहुत उथल-पुथल होती है , कुछ के जीवन में कम. कहानी में एक positive note है कि जिंदगी चलनी ही चाहिए . बस मैं यही कहना चाह रहा था. और माफ़ी की कोई बात ही नहीं . मैं कोई बात का बुरा मानता ही नहीं . मगर ये सीरियल जैसे तो हरगिज नहीं है . इसकी अपनी depth है. धन्यवाद , आभार आपका जी .
Deleteवंदना जी, जीवन गतिमान है. रुकता नहीं. रूकना प्रकृति भी नहीं सिखाती. अगर अनिमा के जीवन से कोई पुरुष गया तो क्यों उसे एकल जीवन व्यतीत करने पर विवश होना पड़े? क्या इसलिए कि वह एक स्त्री है? यदि उसे कोई ऐसा साथी मिलता है जिसके साथ वह आगे का जीवन बिताने के सपने देख सकती है तो क्यूँ न बिताये? क्या इसलिए न बिताये कि समाज उस स्त्री को तिरछी निगाह से देखता है जिसके जीवन में एक से अधिक पुरुष आते हैं? आख़िर समाज है क्या? हम ही तो समाज हैं. और हम दुसरे की सुख-शांति से इतना क्यूँ जलने लगते हैं कि उसे गलत साबित कर के, खोखले नियम क़ानून समझा कर, गलत साबित कर, उसकी ख़ुशी पर ग्रहण लगाना चाहते हैं. उथल पुथल हम सभी के जीवन में है, क्यूंकि वहां गति है. फर्क बस इतना है कि हम में से कुछ अपने मन की बात सुनते हैं और इतनी हिम्मत दिखाते हैं कि जो सही लगे वो कर सकें. और बाकी लोग अपने अन्दर की असुरक्षा की भावना और डर को समाज के नियम-कायदों का सडा- गला लबादा पहना कर परिस्थितियों से समझौता कर लेने के दब्बूपन को अपनी महानता समझ कर झूठी आत्मसंतुष्टि कर लेने का नाटक करते हैं. और अपने समझौतों को सैक्रीफाइस कह के महिमामंडित करते हैं.
Deleteव्यक्तिगत न लें. मुझे जो लगा, शेयर किया.
कहानी लम्बी है, पर अच्छी है...। इस पर इतने कमेण्ट्स आए हैं, सो शायद मेरे कहने के लिए कुछ नहीं बचा...। पर कुल मिला कर कहानी का ट्रीटमेण्ट मुझे पसन्द आया...। बधाई...।
ReplyDeleteप्रियंका
शुक्रिया प्रियंका . आपको कहानी का ट्रीटमेंट पसंद आया . मैंने इस पर ही बहुत मेहनत की थी . दिल से आभार आपका जी . धन्यवाद.
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ReplyDeletekavita gupta
vijayji badhai ek sundar prem kahani ke liye.
ईमेल के द्वारा कमेन्ट :
ReplyDeleteliaqat jafri
insha allah...............
wese kahani bohot taveel hai...hafta bhar dain mujhay...ke aaj kal zabardast masroof houn...thanks
priya Vijay jee bahut samay ke baad ek achchhi prem kahai padne ko milii,poore samay bandhey rakhti hai,badhai.
ReplyDeleteशुक्रिया अशोक जी . आपको कथा पसंद आई , मुझे बहुत खुशी हुई,
Deleteधन्यवाद.
विजय जी, अनिमा की कहानी "आबार एशो" ने विह्वल कर दिया...कहानी कहीं ना कहीं यथार्थ की सत्यता की परिणिति ही दिखती है... जीवन के कई रंगों का समावेश और उनके बीच जीवन की दुरूहता को एक कथानक में बांध दें इतना आसान नहीं होता, लेकिन आपका ये प्रयास जिसमें आप सफल दिखें हैं... इस कहानी की तुलना वन्दना जी ने आजकल के सीरियलों से की है... यहाँ में उनसे थोड़ा असहमत हूँ... कहानी का शब्द प्रेक्षण किसी भी प्रकार से अति नाटकीय नहीं है. एक और पाठक आदरणीय नीरज जी का भी पक्ष इस कहानी को लेकर पढ़ा... वैसे यह अपना दृष्टिकोण है... उनके ख्याल से ये कहानी लिजलिजे रोमांस पर आधारित है... असल में रोमांस तो इस कहानी में कथ्य को आगे ले चलने का आलंबन है... कहानी का विशिष्ट पक्ष उसकी यथार्थता ही है.
ReplyDeleteआशुतोष जी
Deleteआपको कथा पसंद आई . मुझे बहुत ही खुशी हुई , ज्यदा खुशी इस बात से हुई कि आपने कथा को वैसे ही पढ़ा , जैसा मैं अपने पाठकों से चाहता था.
धन्यवाद , आभार आपका जी .
बहुत ही भावप्रवण अभिव्यक्ति है विजय जी । एक अनोखी फ़्लैशबैक तकनीक का इस्तेमाल कहानी को नये आयाम दे रहा है । साधुवाद । इस तरह फ़्लैशबैक का इस्तेमाल नया है मेरे लिए पर साथ ही रोचक भी ।
ReplyDeleteशुक्रिया मुनीश जी .
Deleteफ़्लैशबैक मेरा मनपसंद element है . मेरी हर कहानी में ये रहता है . मैं कहानी को visualise करता हूँ . जिससे ये और भी रोचक बन जाता है . इस कहानी में ये बहुत जरुरी फ़्लैशबैक है. ... धन्यवाद , आभार आपका जी .
ईमेल के द्वारा कमेन्ट :
ReplyDeletekavita gupta
vijayji badhai ek sundar prem kahani ke liye.
अनिमा के जीवन का हर मोड खुद से जोड़कर रखता है.... जितनी प्रशंसा करूँ , कम होगी . वैसे कहते हैं , जब तक जियो नहीं सत्य उभरता नहीं - सुनकर जियो देखकर जियो या खुद में जियो , पर जीकर ही कहा जा सकता है . फ्रेम का अलग अलग मोड अनिमा की ज़िन्दगी से जोड़े रखता है और हर पात्रों को समझा जा सकता है
ReplyDeleteदीदी , आपको कहानी पसंद आई , मुझे बहुत खुशी हुई , मैंने बहुत मेहनत की है इस पर. धन्यवाद आपके कमेन्ट का दीदी .
Deletebahut hi achhi kahani hai, all the characters were appropriate, and i too like srikant, ofcorse anima too.. bengali background always comes with some kind of mystrey which i like a lot... congrates
ReplyDeleteNidhi .
DeleteThanks a lot for your visit and your valuable comment . Thanks again for appreciating my selection of Bengali background.
Srikant is close to my heart.
Thanks once again ji .
संवेदनाओं की गहराई और भाषा की सौम्यता ने कहानी में चार चाँद लगा दिए हैं .... वाकई बेहतरीन और मन को छूने वाली कहानी !
ReplyDeleteप्रेम जी .
Deleteआपके सुन्दर कमेन्ट के लिए आभारी हूँ. आपने कथा के मर्म को समझा , इसके लिए दिल से धन्यवाद देता हूँ.
बेहतरीन कहानी है सर!
ReplyDeleteसादर
शुक्रिया यशवंत जी
Deleteधन्यवाद और आभार आपका .
शिवानी has left a new comment on your post "आबार एशो [ फिर आना ]":
ReplyDeletevijay ji,congrats...bahut bahut hi sundar or sateek,sadhi hui kahaani hai....ek ek shabd kahaani ko saarthak bana raha hai....badhaai...
कौशल तिवारी 'मयूख' has left a new comment on your post "आबार एशो [ फिर आना ]":
ReplyDeletebahut sundar
(Hindi me n likh pane ke karan mafi chahungi)
ReplyDeletekahani lambi jaroor thi lekin padhate hue pichhe ke ghatana kram me jana kahani ko puri padhne par majaboor karta hai ...nari patra ke jeevan me kai purush charitra aaye magar jisne uske man ko samajha tabhi wo kah pai- aabaar esho!!!
अर्चना जी , आपको कहानी अच्छी लगी और कहानी की गति ने आपको बांधे रखा . ये जानकार खुशी हुई . धन्यवाद , आभार आपका जी .
Deleteन उम्र की सीमा हो , न जन्म का हो बंधन
ReplyDeleteगर प्यार करे कोई . तो देखे केवल मन ...
विजय जी कहानी किसी ब्लॉग में पढ़ कर अच्छा लगा .....आप ने मेरी हिम्मत बढ़ा दी लिखने का आलस भी दूर कर दिया
कहानी केवल पढने योग्य ही नहीं , बल्कि चिंतन करने योग्य भी होना चाहिए ....आप इस में सफल हुए --बधाई
वाह निरुपमा जी , आपने जगजीत की इस गज़ल को यहाँ कमेन्ट में देकर के इस कथा की खूबसूरती को बढ़ा दिया . आपको कहानी ने प्रेरित किया. मुझे इस बात से खुशी हुई,. धन्यवाद , आभार आपका जी .
DeleteVijay ji aapne yakinan bahut pyari kahani likhi hai, iss ko padh ker lga maro jiwan ko alag se himmat aur disha mil rhi hai, asha kerti hu ki aap agee bhi aapni iss tarah ki kahani ke zariyeh humko preprit karte raheinge .
ReplyDeleteVijay ji aapne yakinan bahut pyari kahani likhi hai, iss ko padh ker lga maro jiwan ko alag se himmat aur disha mil rhi hai, asha kerti hu ki aap agee bhi aapni iss tarah ki kahani ke zariyeh humko preprit karte raheinge .
ReplyDeleteरूचि जी , धन्यवाद , आपके कमेन्ट के लिये . कहानी आपको अच्छी लगी . मुझे बहुत खुशी हुई,. यक़ीनन , कहानी . जीने के लिये प्रेरित करती है . धन्यवाद , आभार आपका जी .
Deletecomment on FB
ReplyDeleteSmriti Sharma " nisandeh behtrin rachna hai,pathk ko prvah me bha leti hai aur hm khud ko patron ke sath khada pate hai ...... !!!!"
comment on FB :
ReplyDeleteRama G Vidhu -- " Nishikant (you know, Vijay, why I am so addressing you), it's a lovable story. However, it needs a little polishing, particularly Hindi grammar aspect. All the best."
PRIY VIJAY JI , MUJHE AAPKEE KAHANI KA TAANAA - BAANAA BAHUT
ReplyDeleteACHCHHAA LAGAA HAI . AAPNE KAHANI MEIN BHAVNAAON KO BAHUT
KHOOBSOORTEE SE UKERA HAI . KRIPYA BHAVISHYA MEIN AAP MUJHE
IS prans69@gmail.com par raabta kaayam kijiyega .
शुक्रिया प्राण सर . आपका आशीर्वाद यूँ ही बना रहे.
Deleteधन्यवाद , आभार आपका जी .
ईमेल के द्वारा कमेन्ट :
ReplyDeleteनमश्कार विजय जी बहुत लंबे अरसे बाद कोई कहानी पड़ी ...सच विजय जी बहुत अच्छी कहानी है ...विजय जी एक इतने सुन्दर तरह से लिखा गया है इस कहानी को के कहानी पड़ते हुए लगता था हम उन पत्रों के साथ जी रहे है अनिमा ...श्रीकांत ..को पड़ कर आंखे छलक पड़ी ...विजय जी में चाय लेकर बैठी थी ये कहानी पड़ने ......पर कहानी में इतना खो गयी के चाय वाही पड़ी रही ..पूरी कहानी के बाद चाय का ध्यान आया ...शुक्रिया विजय जी उमिद्द है आप आगे भी जब कभी नज़्म या कहानी वगैरा लिखेगे तो मुझे जरुर शेयर करेगे धन्यवाद बहुत बहुत ...........
आपका बहुत धन्यवाद आभा जी .
Deleteसत्यजीत, निशिकांत और अनिमा की कहानी पढ़ी. शांतिनिकेतन मेरा सबसे प्रिय जगह है जहाँ मैंने कुछ महीने बिताए हैं. आपकी कहानी पढते हुए मैं उसके पात्रों में खो गई. लगा कि अनिमा मेरे आस पास ही कहीं रह रही होगी जिसे मैंने आपकी कहानी के द्वारा पहचाना. शेष कहानी बाद में पढूंगी. धन्यवाद और शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteजिन्दगी जाने किन किन राहों से गुजरती है. एक श्रीकान्त है जिसके लिए अनिमा ही सब कुछ है पर सदा के लिए उसका साथ असंभव है और वो प्रेम की खातिर खुद को खत्म कर लेता है. वहीं देवाशीष है जिसे उस स्त्री का सम्मान सहन नहीं होता जिसे अपनी जिन्दगी में शामिल किया और उस स्त्री का शोहरत ही अलगाव का कारण बना. एक ही अनिमा की जिन्दगी का अलग अलग रूप. शांतिनिकेतन की अनिमा को निशिकांत मिल गया, कहानी का सुखद अंत पढकर जैसे रहत सी मिली. बहुत अच्छी कहानी. शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteजेन्नी जी , आपको कथा पसंद आई , मुझे बहुत खुशी हुई इस बात से . जिंदगी भी कुछ कुछ अनिमा की तरह ही है .. आपका बहुत धन्यवाद और आभार .
Deleteसच कहा था आपने. माहिर हैं आप प्रेम पर कहानियां लिखने में. अनिमा बहुत जानी पहचानी सी लगी. श्रीकांत और निशिकांत तो अपने आस पास बमुश्किल ही नज़र आते हैं पर देबाशीष और सत्यजित जैसों की कमी नहीं. अच्छा लगा कि अनिमा को आख़िरकार कोई मिल ही गया जिसे वो फिर बुला सके. शुभकामनायें.
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