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Monday, August 17, 2015

अम्मा.

......मैंने पहले बोलना सीखा ...अम्मा... !

फिर लिखना सीखा.... क ख ग a b c 1 2 3 ...
फिर शब्द बुने !
फिर भाव भरे !

.... मैं अब कविता गुनता हूँ  , कहानी गड़ता हूँ ..
जिन्हें दुनिया पढ़ती है ..खो जाती है .. रोती है ... मुस्कराती है ...हंसती है ..चिल्लाती है ...
.....मुझे इनाम ,सम्मान , पुरस्कार से अनुग्रहित करती है ...!

.....और मैं किसी अँधेरे कोने में बैठकर,
....खुदा के सजदे में झुककर ,
धीमे से बोलता हूँ ...अम्मा !!!

विजय

Wednesday, March 25, 2015

प्रेमकथा - मैं तुम और प्रेम .............!!!

कोलाज़




::: प्रेमकथा - मैं, तुम और प्रेम :::

विजय कुमार सप्पत्ति

  
:: Address  : 
VIJAY KUMAR SAPPATTI ,  
FLAT NO.402, FIFTH FLOOR, PRAMILA RESIDENCY;
HOUSE NO. 36-110/402, DEFENCE COLONY,
SAINIKPURI POST,  SECUNDERABAD- 500 094 [TELANGANA]






::: प्रेमकथा - मैं, तुम और प्रेम  :::


खुदा से बड़ा रंगरेज कोई दूसरा नहीं है वो किसे क्या देता है, क्यों देता है, कब देता है, ये उसके सिवा कोई न जाने.ये सब सिर्फ और सिर्फ वो रब ही जाने. मोहब्बत भी एक ऐसी ही नेमत है खुदा की. हमारी मोहब्बत भी उसी नेमत का एक नाम हैऔर हाँ न; एक और नाम है उस नेमत का तुम !!!

:::::::::::: अंत :::::::::::

अक्सर जब मुड़कर देखता हूँ तो पाता हूँ कि तुम नहीं हो...!
कही भी नहीं हो.
....बस तुम्हारा अहसास है......!
लेकिन क्या ये एक अंत है ?
मुझे तो यकीन नहीं है और तुम्हे ?

:::::::::::: मध्य :::::::::::

तुम मुझे देख रही थी.
और मैं तुम्हारे हाथो की उंगलियों को.
जाने क्या बात थी उनमे. मुझे लगता था कि तुम अपने हाथ को मेरे सीने से लगाकर कह दोगी कि तुम्हे मुझसे प्रेम है.

पर तुम कम कहती थी. मैं ज्यादा सुनने की चाह रखता था.
शब्द बहुत थे, लेकिन हम दोनों के लिए कम थे.

पहले मैं बहुत ज्यादा सोचता था और चाहता था कि तुम तक ये शब्द पहुँच जाए किसी तरह.
पर प्रेम और जीवन की राहे शायद अलग अलग होती है. शब्द अक्सर राहे बदल दिया करते थे. और मैं जीवन की प्रतीक्षा में जीवन को ही बहते देखता था.चुपचाप.

मैंने फिर लिख कर तुमसे अपने शब्दों की पहचान करवाई. तुम शब्दों कोमेरे शब्दों को जान जाती थी और समझ जाती थी कि मैं क्या कहना चाहता था. पर फिर भी तुम वो सब कुछ नहीं पढ़ पाती थीजो मैं अपने शब्दों में छुपा कर भेजता था! हमारा लिखना पढना बेकार ही साबित हुआ!

फिर मैंने कहना शुरू किया और तुमने सुनना. अब तुम मेरे शब्दों की कम्पन को पहचान जाती थी. लेकिन तुमने वही सुना जो मैंने कहा. तुम वो न सुन सकी जो मैं कह नहीं पाया!

और अब अंत में मैंने मौन को अपनाया है. तुम जानती तो होगी कि मौन के भी स्वर होते है. तुम सुन रही हो न मुझे मेरे मौन में ?

मैं ये भी चाहता था कि सत्य जानो तुम और शायद मुझे भी जानना ही था सत्य! पर मैं चाहता था कि तुम पहले जानो और समझो कि मैं प्रेम में हूँ. तुम्हारे प्रेम में !

लेकिन तुमने प्रेम को पढ़ा थासुना था और शायद जाना भी था पर समझा था कि नहीं ये मुझे नहीं पता था ; क्योंकि तुम मेरे प्रेम को पाकर असमंजस में थी. मैंने कोशिश की पर तुम जान न सकी.

क्योंकि तुम्हे प्रेम में होना पता न था! तुम सिर्फ प्रेम करना जानती थी. पर प्रेम में होना उसके बहुत आगे की घटना होती है और वही घटना मेरे साथ घट रही थी.

समय की गति और मन की गति के दरमियान प्रेम आ चूका था और अब एक बेवजह की जिद है कि प्रेम ज़िन्दगी को जीत ले.

प्रेम शिखर पर ही होता है
और हम इंसान उसके नीचे!
हमेशा ही!

उम्र के और समय के अपने फासले थे. मेरे और तुम्हारे दरमियान. तुम्हारे और मेरे दरमियान. हम दोनों और दुनिया के दरमियान. हम दोनोंदुनिया और ईश्वर के दरमियान!  सब कुछ कितना ठहरा हुआ था न. अब भी है. उम्र भी रुकी हुई ही है , समय भी ठहरा हुआ है और ज़िन्दगी भी रुकी हुई है !

याद है तुम्हेहम एक बहती नदी के बीच में खड़े थे. पानी की छोटी छोटी लहरे हम दोनों के पैरों के बीच में से निकल जाती थी. तुम पानी को देख रही थी. और मैं सोच रहा था कि काश एक जीवन ही बीत जाता ऐसे ही. और ये भी सही है कि उस ज़िन्दगी का उम्र से क्या रिश्ताजिन लम्हों में तुम मेरे साथ थी उसी में तुम्हे जी लिया. ज़िन्दगी को जी लिया. प्रेम को जी लिया. खुदा को जी लिया. सच में!

मुझे कभी तुम छु लेती. कभी तुम्हारा आसमान छु लेताकभी तुम्हारी धरती मुझे आगोश में ले लेती. कभी तुममे मौजूद नदी मुझे भिगो देती. कभी तुममे मौजूद समंदर ही मुझे डुबो लेता. कभी कभी तो सच में तुम ही मुझे छु लेती. तुम्हारी छुअन को अब तक सहेजे रखा है मैंने अपने मन की परतो में. सच्ची!

और तुम्हारी इसी छुअन की वजह से मुझे अब मेरे जिंदा होने का अहसास होता है.

इंतज़ार बहुत लम्बा है. समय की सीमा से परे. तुम्हारे पुकार की तमन्ना रहती है. एक अधूरी आस. तुम पुकार लेती तो मन कह लेता न कि हाँ नमैं हूँ. तुम हो और है हमारा प्रेम!

तुम्हे किसी से तो अपनी मन की कहनी थी भले वो तुम्हारी बेचैनी हो या फिर मन का तलाशपर कहनी तो थी मुझसे कह लीमुझे मेरा सकून तलाशना था बस इस तलाश की तलाश में कई और बाते भी जुड़ गयी और मैं तुम तक पहुँच गया. एक सफ़र यहाँ ख़त्म हो रहा था. या हो गया था और दूसरा शुरू होने वाला था या हो गया था. कौन जाने. खुदा जाने या तो तुम जानो. मैं भला क्या जानू.

खोज शुरू थी एक अनंत काल से. मैंने हर मुनसिब जगह ढूँढा तुम्हे. जहाँ देवता पूजे जाते थे वहां भी और वहां भी जहाँ धरती आकाश से मिलती थी. और वहां भी जहाँ अँधेरा उजाले से मिलता था. पता नहीं और भी कहाँ कहाँ! पता नहीं किस जन्म का नाता था तुमसे. तुम्हे सपनो में देखता था पहलेफिर अपनी नज्मो में. फिर मन में और फिर एक बहती नीली नदी के किनारे! तुम ही तो थी! सच !

जहाँ सब ख़त्म हो जाता हैवहां कुछ नए के शुरू होने की उम्मीद होती है. बस जहाँ रीते हुए जीवन की अंतिम बूँद बनीवही पर आकर तुम मिली. और एक कथा शुरू हुई. नयी. मेरी और तुम्हारी. हाँ!

मुझे लिखना अच्छा लगता है. और ख़ास कर तुम्हे लिखना. और जब मैं तुम्हे लिखता हूँ तो बस सिर्फ तुम ही तो होती हो. और दूसरा कोई हो भी नहीं सकता न. मैं तुममे मौजूद स्त्री के प्रेम में हूँ और जब मैं उस स्त्री के प्रेम मे होता हूँ जो कि तुम हो तो मेरी कोई और दुनिया नहीं होती है. और सच कहूँ तो हो भी नहीं सकती! और जब तुम, तुममे मौजूद स्त्री और उस स्त्री में मौजूद प्रेम जो कि शायद मेरे लिए ही मौजूद होते है तब मैं लिखता हूँ अक्षर, प्रेम, कविता , कथा और ज़िन्दगी!

प्रेम कठिन नहीं होताये तो सबसे सरल भाव है जिसे हमने अहोभाव के साथ स्वीकार करना चाहिए. पर हाँ जब हम उसे समाज के साथ जोड़ देते है तो फिर प्रेम कठिन हो जाता है तब वो प्रेम आत्मिक न होकर सामाजिक हो जाता है और फिर भला समाज ने कब प्रेम का साथ दिया है! हैं न. तो आओ सिर्फ प्रेम करे. कुछ और न सोचे और न ही जाने! बस प्रेम करे!

मुझे तुमसे तब प्रेम नहीं हुआजब मैंने तुम्हे देखा था. और तब भी नहीं,जब मैंने तुम्हे पहली बार छुआ था और तब तो बिलकुल भी नहीं जब मैं तुम्हारे साथ कुछ कदम साथ चला था. हाँ जब उस बहती नदी ने कहा कि तुम मेरी soul mate हो और जब वहां मौजूद पर्वतो ने कहा कि तुम मेरी soul mate हो और उस बहती नाव ने कहा था कि तुम मेरी soul mate हो और उन मेघो से भरे आकाश ने कहा कि तुम मेरी soul mate हो तब हाँ शायद तब मुझे प्रेम हुआ तुमसे. और फिर उसके बाद मुझे तुमसे प्रेम तब हुआजब तुमने मुझे देखा था. हाँ मुझे तुमसे प्रेम तब हुआ जब तुमने मुझे छुआ था और हाँ मुझे तुमसे प्रेम तब भी हुआ जब तुम कुछ कदम मेरे साथ चली थी. हाँ मुझे तुमसे प्रेम है.

नदी में तुम, रास्तो पर तुम, मंदिर में तुम ; धरती, जल और आकाश. हर जगह बस तुम. तुम से ही तो है न ये कायनात. प्रेम में जब इंसान होता है तो कुछ ऐसा ही तो लगता है. मुझे भी लगा. हाँ. मैं प्रेम में हूँ तुम्हारे प्रेम में................ सच्ची!

याद है तुम्हे वो सर्दियों के दिन थे और एक रात हमने भी जी साथ साथ. वो भी सर्द थी. हाँ तब एक बार ये चाह उठी कि तुम से वो तीन शब्द कहता जो कि सदियों से दोहराए जा रहे थे. और आश्चर्य कि वो अब भी उतने ही ताज़े महसूस होते है. प्रेम होता ही कुछ ऐसा है. उस सर्द रात में ऐसे कई लम्हे थेजब तुम मेरे मन तक पहुंची और मैंने उन्हें संजोकर रख दिया इस जन्म के लिए. उसी रात को पता नही ऐसा क्या बो दिया था तुमने मेरी आँखों में कि सपने उग आये है मेरे मन में. सच्ची. खैर वो तीन शब्द अब तक नहीं कहे जा चुके है. पता नहीं मेरी रूह की बारी कब आएँगी.

मैं चाहता था कि तुम्हे कुछ फूल दूंपर जिन रास्तो पर हम चलेउन पर फूल नहीं थे. उनपर ज़िन्दगी थी. ज़िन्दगीफूल और प्रेम ये तीनो ही अलग अलग दास्तानों की वजह है. ज़िन्दगी की अपनी राह होती है और प्रेम की अपनी. फूल ज़िन्दगी के लिए भी काम आते है और प्रेम के लिए. प्रेम में फूल अभिव्यक्ति बन जाते है - ज़िन्दगी के लिए. सो मैं जीना चाहता था / हूँ ; प्रेम के संग तुम्हारे साथ. भले ही वो कुछ लम्हे हो. पर देवताओ की साज़िश कुछ अलग होती है. उनकी बाते तो वही जाने. मैं अपनी कहता हूँ. तुम सुन सकती हो मुझे ? कहो तो!

समस्या वक़्त की है. मैं वक़्त के इन्तजार में हूँ. और एक दुआ भी साथ साथ करते रहता हूँ कि या तो वक़्त आ जाए या फिर तु ही आ जाए. वक़्त ही पहले आया. तुमने भी आना चाहा होंगा. पर वक़्त के आगे किसकी चली है और फिर जिन राहो पर चलकर तुम आना चाहती थी. वो शायद मुझ तक नहीं पहुँचती होंगी. या फिर जिस राह पर मैं चल था तुम तक पहुँचने के लिए शायद वो ही गलत थी. या फिर तुम मुझ तक पहुंचना ही नहीं चाहती...पर जो भी हो; कुछ ठहर गया है. हमेशा के लिए!

दिन पानी की तरह गुजर जाते है जैसे कोई बहती हुई नदी हो और रात यूँ बेअसर सी निकल जाती है जैसे ज़िन्दगी में एक ही रात आई होजो मैंने तुम्हारे संग जिया है. जीवन तो रेत की तरह फिसला है हाथो की लकीरों से. पर मैंने तुम्हारे प्रेम को अपनी ओक में लेकर अमृत की तरह पिया है इसलिए तो जीवित हूँ एक शब्द की गूँज की तरह! क्या जब तुम अकेली होती हो तो मेरे शब्दों की गूँज सुनाई देती है तुम्हे?

क्या किसी ने तुमसे पहले कहा है कि जब तुम खामोश रहती हो तो तब भी तुम कुछ कहती ही रहती हो. तुम्हारे अनकहे शब्द कुछ ज्यादा ही मुझ तक पहुँचते है. तुम जानती हो न कि मैं तुम्हारी ख़ामोशी को भी सुन लेता हूँ पर सवाल तुम्हारा है कि क्या तुमने मुझे पूरी तरह सुना ?

खैर मैंने यात्रा शुरू की है. ये यात्रा है मुझसे तुम तक और तुमसे मुझ तक और अंत में हम दोनों की प्रेम तक और प्रेम से अध्यात्म के अस्तित्व तक. देखते है क्या ये यात्रा हो भी पाती है या नहीं.क्योंकि जो चारवाह हमारी यात्रा करवा रहा है उसकी खुदाई हर बन्दे के लिए अलग ही होती है.

यात्रा पर हमारे साथ होंगे चन्द्रमातारे, बादल, सूरजनदीधरतीमेरा मैं और तुम्हारा तुम! इस यात्रा के साथ हमारे मन की भी यात्रा होंगी बाहर से भीतर की ओर और भीतर से बाहर की ओर.

दूसरी सारी यात्राये ख़त्म हो जायेंगी , बस हमारी ये यात्राये चलती रहेंगी. मैं तुमसे वादा करता हूँ कि मैं तुम्हारा इन्तजार करूँगा इस उम्र भर के लिए और उस यात्रा के लिए भी. हो सकता है कि हम रुक जाए पर मन चलते रहेंगे. और फिर एक दिन मन भी रुक जायेंगे.यात्रा अनंत है किसी मन की तरह .....और मन अशांत होता है. प्रेम शांत है. पर कहीं कुछ चुभता है. जीवन की फांस! हाँ!

शायर बशर नवाज़ साहब ने लिखा था करोंगे याद तो हर बात याद आएँगी. तुम्हे क्या क्या याद है. बताओ तो. मुझे तो सब कुछ याद हैतुम्हारा मुझे थामनामेरे लिए चिंतित होना और हाँशायद मन के किसी कोने में मेरे अहसास को घर देना. ये सब बस हुआ है. हो गया है. ठीक उसी तरह से जैसे दुनिया के सबसे बड़े डायरेक्टर ने कहा होंगा. अब तुम ये करो और हम कर बैठे. ऐसे देखो और हमने देखाऐसे छुओ और हमने छुआ. और उसने ये भी कहा था कि प्रेम करो. मैंने तो सुन लिया था. और तुमने ?

जो होता है सब पहली बार ही होता है. इस पहली बार में भले ही शब्द पुराने होपर धड़कन नयी होती है. उन शब्दों की ज़िन्दगी नयी होती है. उनकी उम्र भी नयी होती है. उनकी तासीर नयी होती है. उनके जज़्बात नए होते है. पता नहीं तुमने ये सब कुछ महसूस किया या नहीं. पर मैंने तो इन्हें जी लियाउन चंद शब्दों में जो तुमने मुझसे कहे.

तुम्हारा हँसना वो दूसरी बात थी जिसने मुझे तुरंत ही तुमसे जोड़ा. तुम्हारी हंसी में पता नही कितनी मुक्तता भरी हुई है. जीवन की मुक्तताउड़ने की मुक्तता. पता नहीं कितने आकाश चाहिए होंगे तुम्हे खुद को पंख देने के लिए. या यूँ भी समझ लोपता नहीं कितने पंख चाहिए होंगे तुम्हे इन आकाशो में उड़ने के लिए. तुम्हारे सपनो की उड़ानों में एक परवाज शायद मैं भी बन सकू. कौन जानता है. किसी की उड़ान को ! हाँ, कौन उड़ सकता है ये मुझे पता है. मैं और तुम.

प्रेम की संभावनाए अनंत है. जब हम किसी और लोक में होते है जो दुनियादारी से जुडी हुई होती है तो प्रेम की खुशबु मंद हो जाती है. हम इस कठोर और पागल समाज में अपने प्रेम को कैसे ढूंढें और कैसे बचाए रखे. पर जैसे कि मैंने कहा कि प्रेम की संभावनाए अनंत है. मैंने तो मेरा प्रेम तुममे ढूंढ लिया और संभव हो कि तुम्हारा प्रेम  भी मुझमे ही कहीं मौजूद हो. सवाल ढूँढने का है. तो ढूंढो! मैं अब भी तुम्हारी उस तलाश की प्रतीक्षा में हूँ जिसके द्वारा तुम मुझ तक पहुँचो.

मुझे लगता है कि तुम मौन में मुझसे कितना कुछ लेती हो. हाँये एक सवाल जरुर है कि मैं उस अनकहे  को किस तरह से decode करता हूँ. पर अगर हम प्रेम के एक वेवलेंथ पर है तो फिर सुनना क्यासमझना क्या और जानना क्या. पर बताओ तो भलाक्या तुम मुझे decode कर सकी हो.

तुमने कहा था कि तुम मुझे पुकारोगी. मैं इन्तजार करता रहा. एक एक पल में मैंने जैसे सदियों का सफ़र तय किया हो. दिन ढलते ढलते रात में तब्दील हो गया और रात गुजरते गुजरते फिर दुसरे दिन में बदल गयी  न तुमने पुकारा और न ही मैंने उम्मीद छोड़ी. मैं भूल सा जाता था कि तुम्हारे अपने भी बंधन होगेअपनी दुनिया होंगीजिसमे मेरी तो यकीनन कोई जगह नहीं होंगी. लेकिन मेरी प्रार्थना तुम्हारे दिल में पनाह पाने की थीन कि दुनिया में ;तुम्हारी दुनिया में. मेरी पनाह की ख्वाईश बहुत बड़ी न थीलेकिन उसके लिए दिल का बड़ा होना जरुरी था. सो तुम्हारे एक पुकार की चाह में मेरी पनाह की ख्वाईश छुपी हुई है . न तुमने पुकारा और न ही मैंने अब तक उम्मीद छोड़ी है. मुझे तुम्हारे साथ लम्हों में जो जीना है. प्रेम लम्हों में ही तो होता है.

मुझसे शुरू होते दिनो को मैं भेज देता था तुम्हे छूकर वापस आने के लिएपर किसी भी दिन ने मुझसे ये नहीं कहा कि वो तुम्हे छु पाया है. मैं इन्तजार करते रहतादिन आतेतुम तक मैं उन्हें भेजताऔर वो कभी भी वापस नहीं आते. हाँ राते आती जरुर एक मायूसी के साथ. मैं तुम्हारा नाम लिखते रहता हवाओं पर. और मैं पूछता था अपने खुदा से तुम इस वक़्त क्या कर रही होंगी. क्या तुमने कभी मेरी छुअन को महसूस किया या फिर हवाओं से पुकारती हुई मेरी आवाज़ को सुना. वैसे जब तुम ये पढ़ रही हो क्या तुम्हे पता है कि मैं तुम्हे देख रहा हूँ अपने शब्दों से झांककर!

मुझे बड़ा गुमान था कि सारी सड़के या तो तुझ तक पहुंचती है या फिर मेरे खुदा तक. मैं चलता रहा [ अब भी चल ही रहा हूँ एक झूठी उम्मीद के सहारे ]. जिस राह पर मेरे कदम पड़े थे वो राह निश्चित ही तुम तक कभी भी नहीं पहुंचेंगी,क्योंकि ये रास्ते विधाता ने बनाये है. मुझे विधाता के विधान से कोई एक शिकायत थोड़ी ही है.बहुत सी हैपर तुम तक न पहुँच पाना यकीनन मुझे सबसे ज्यादा तकलीफ देता है. मैंने ईश्वर से कुछ ज्यादा थोड़े माँगा है. लेकिन देवता कब किसी की बाते सुनते है.

मैं अपनी प्रार्थना के साथ अकेला बैठा हूँ. और रात बीत रही है. देवता भी सो चुके है.लेकिन मैं तुम्हारे सपने के साथ जग रहा हूँ.कम से कम सपनो में तो मिलने आ जाओ.एक बार! तुमसे मिल लूंफिर मैं अपने खुदा से मिल लूँगा.

मैं तुमसे पूछना चाह रहा था कि क्या तुम्हारी हाथो की लकीरों में मेरा नाम है. या तुम्हारी किस्मत में मेरी परछाई है. मुझे यकीन है. पर तुम्हारा मुझे पता नहीं. किसी नजूमी से पूछ तो लो कि तुम्हारी ज़िन्दगी में क्या मैं हूँ ? किस्मत के फैसले भी तो अजीब होते है.

मेरे पास कई सवाल हैतुम्हारे पास शायद कुछ सवालों का जवाब होपर खुदा के पास तो हर सवाल का जवाब होता है. वो क्यों मूक बना रहता है. देवताओ को हमने पत्थर का क्या बनाया, वो बस पत्थर के ही हो गए. मेरे हर सवाल के तीन जवाब हैएक मेराएक तेरा और एक उस खुदा का. खुदा के जवाब मुझे नहीं सुनना है. हाँ तुम कहो न. झूठ ही कह दो. मैं सच मान लूँगा.

हमारा बहुत कुछ जानना ही प्रेम को न जानने में हमारी मदद करता हैहां नहम सारी दुनिया की बात जानते है और समझते है पर बस प्रेम को न जान पाते है और न ही समझ पाते हैदुनिया की दुनियादारी जो साथ साथ चलती है. क्या करे. पर मैं तुमसे कहू. मुझे तो तुमसे प्रेम है और तुम्हे ?

मैंने कुछ तस्वीरे ली थी तुम्हारी. और हर तस्वीर में थे धरती, आसमान, नदी, तुम और हाँ खुदा भी तो था! मैंने तुम्हे आसमान के साथ चाहा! मैंने तुम्हे नदी के बहते पानी के साथ चाहा! हाँ तुम्हे धरती के साथ भी माना. और जब खुदा की बारी आई तो मैंने पुछा कि इतनी देर से क्यों ? खुदा की मुस्कराहट कुछ अजीब सी थी. मैंने फिर एक ज़िन्दगी की मांग कीतेरे संग ! खुदा फिर मुस्कराया! मैं उसकी मुस्कराहट को न समझ सकाक्योंकि मैं तुम्हारी मुस्कराहट देख रहा था! और हाँ , हर तस्वीर में शायद मेरे प्रेम की आभा भी थी.

मुझे लगता है कि तुम तक पहुंचना बहुत आसान है मेरे लिए! पर इस राह में तीन दरवाजे है जो मुझे पार करने होते है. एक मेरा दरवाजा. एक दुनिया का दरवाज़ा और एक तुम्हारा दरवाज़ा. फिर तुम होती हो वहां अपनी मुस्कान के साथ और अपने स्पर्श के साथ! दरवाजे पार करने की कवायद में कहीं ये उम्र न बीत जाए,बस कुछ इसी बात का डर है मुझे! हाँ इन दरवाजो को पार करते हुए मैं तुम्हे देखते रहता हूँ कि कहीं तुम खो न जाओ,जब मैं अंतिम दरवाजे तक पहुंचू तो तुम मिलो वहां मुझेभले ही हमेशा के लिए न सहीपर मिलो तोकुछ लम्हों के लिए ही भला. मेरे लिए तो वो लम्हे ही अमूल्य होंगे!

जब मैंने तुम्हे उस दिन विदा किया तो बहुत देर तक वहां खड़ा रहा. तुम चली गयी और मैं सोचते रहा कि एक बार भी अगर तुम से मैंने कहा होता कि रुक जाओ तो क्या तुम रुक जाती. कहो तो ? नहीं न. पर मैंने मन ही मन कहाक्या तुमने सुना ? नहीं न. और अगर तुम सुन लेती तो क्या लौट आतीनहीं न. मैं अब भी कह रहा हूँरुक जाओआ जाओ. तुम सुन रही हो क्या ?

तुमसे मिलते ही शायद ये तय हो गया था कि छूटना है साथ! पता नहींलेकिन मैं देवताओ पर बहुत विश्वास करता था / हूँ. तुम चली गयी पर शायद नहीं गयी. हो न मेरे साथ मेरी यादो में. पीछे तो बहुत कुछ छूट गया है. मेरा खाली मन भी उन सामानों में से एक है. हाँ और जो रह गया हैउसमे तुम्हारी छुअनतुम्हारी साँसे, तुम्हारी बाते और तुम्हारी गहरी आँखे भी है. पता नहीं तुम क्या क्या साथ लेकर गयी हो. अगर मेरा कुछ है तो मुझे भी तो बताओ न !

मुझे तो लगता है कि हर बात आधी है. हमने जो जिया वो भी आधा और जो जियेंगे वो भी आधा. और जो न जी पायेंगे वो भी आधा ही होंगा. हम कुछ कदम चले वो भी हमने आधी दूरी ही तय की.हमने आधा आसमान देखाहमने आधी नदी देखीहमने आधे पर्वत देखेयहाँ तक कि जब भी देखते थे तो नाव भी आधी ही दिखती थी. कैसा कंट्रास्ट है लाइफ का. भला आधा कहीं होता है नहीं न पर हमारे मामले में ये आधा ही था. शब्द भी आधेसफ़र भी आधाज़िन्दगी भी आधी,उम्र भी आधीआह क्या मुझे पूरा कुछ मिल पायेंगाहाँप्रेम है नतुम्हारा प्रेम !

मिलना बिछड़नाफिर मिलना और फिर बिछड़नाक्या यही नियति है हमारी या यही नियति होंगी हमारी. मैं नहीं जानता. मैं जानना भी नहीं चाहता. मुझे डर लगता है,ज़िन्दगी से, किस्मत से और तुम से भी. भय है मुझे कि कहीं मैं तुम्हे खो न दूं. खोने का डर मुझे हमेशा ही रहा है. मैं तुम्हे खो कर रोना नहीं चाहता.

लेकिन क्या ये वाकई मेरे या तुम्हारे या हम दोनों के द्वारा संभव है,कहो तो. क्या हम भाग्य को जीत सकते हैकहो तोक्या हम भाग्य बदल सकते है, कहो तोक्या हम खुदा के निजाम को चुनोती दे सकते है. कहो तो.... पता नहीं.सच कहूँ तो मैं ये सब जानना ही नहीं चाहता. ये सब दुनियादारी की बाते है और मैं इन बातो में पड़ना नहीं चाहता. हाँ मैं ये जानता हूँ कि मैं तुम्हे चाहता हूँ और यही एक बात बहुत सी हज़ार बातो पर भारी है. हैं न!

मैं बहुत चुप रहता हूँ. मैं अपनी ज़िन्दगी में बहुत कम बात करता हूँहाँजब दुसरो के साथ होता हूँ तो बहुत हंसता हूँ बाते करता हूँपर मेरे निजी एकांत में सिर्फ मौन ही मेरा साथी होता है. मेरी प्रार्थनाये भी चुप ही होती है. मैंमेरे देवता और हम दोनों के मध्य का मौन और इसी मौन के अहोभाव में बसी हुई मेरी प्रार्थनायेइस प्रथ्वी के लिएइस संसार के मनुष्यों के लिएबच्चोस्त्रीयों, बुढो, वृक्ष, खेत और पशुओ के लिए. और उस दिन भी जब नदी के तट पर मैं अपने भीतर से जुड़ा तो उसी मौन में मैंने तुम्हे पाया. मेरे लिए तुम ईश्वर के किसी आशीर्वाद से कम नहीं हो.

और फिर मानना क्या हैजानना क्या है. जो तुम कहो, वही मान लूँगा और वही जान लूँगा. मेरे लिए तो मेरा और मेरे प्रेम का CIRCLE तुम पर आकर ही पूर्ण होता है. तुम मानो या न मानो. तुम जानो या न जानो. पर मेरा सच तो यही है. और मेरा प्रेम भी यही है!

हाँ ये भी हो सकता है कि बदलते वक़्त के साथ तुम्हारे आसमान अलग हो जाए या तुम्हारे आकाश की विस्तृता बड़ी हो जाए. असीम हो जाए. कौन जाने. हमारी आकांक्षाये बढती जाती है. कभी कभी ये इच्छाए और आकांक्षाये एक हथेली में नहीं समाती है इनके लिए एक आसमान भी कम पड़ता है. पर मेरी हथेली में मैं सिर्फ तुम्हारे नाम की लकीरों को चाहता हूँ. मैं ये भी चाहता हूँ कि मेरा जो भी आसमान हो वो बहुत बड़ा न हो. बस छोटा सा हो. बहुत छोटा सा. जिसमे मैं तुम्हारे साथ सांस ले सकूँतुम्हारे नाम की सांस ले सकूतुम्हे छु सकूँ, तुम्हे पा सकूँ और कह सकूँ कि हाँ तुम मेरी हो.

मैं ये भी नहीं चाहता हूँ कि हम बने-बनाए संबंधो में अपने आपको ढाल ले. मैं किसी और रूप में खुद को या तुम को और हम दोनों को नहीं देखना चाहता हूँ. जो कुछ भी हो बस हमारा ही होनयाठीक उस रात की यात्रा की तरहठीक उस नदी के बहते पानी की तरह या मेरे निर्वाण की तरह.. मोक्ष या तो मैं तुम्हारी आगोश में पाऊंगा या फिर बुद्ध के चरणों में! सच्ची!

हो सकता है कि एक दिन ऐसा आये कि सिर्फ शिकायते ही बची रहे हमारी हथेलियों में. हम भी तो मनुष्य ही है. हो सकता हैया होगा भी. कौन जाने. पर मेरा विश्वास करनामेरा प्रेम कम न होंगा. मान्यताये बदले, जरूरते बदले, जीवन बदले, सोच भी बदल जाएपर तुम्हारी कसममेरा प्रेम न बदलेंगा तुम्हारे लिएइस बात का वादा तो कर ही सकता हूँ. प्रेम पर धुल न चढ़े इस बात का ख्याल रहेंगा मुझे, हाँ वक़्त पर धुल बैठ जाये. हमें क्या. नहीं ?

बहुत बरसो का खालीपन था मेरे भीतर! तुमने भर दिया या मैंने ही उसे तुमसे भर दिया. दोनों एक ही बात नहीं है पर मेरे लिए एक ही है. ऐसे ही बावरा रहना चाहता हूँ. इसी में मेरी ख़ुशी हैयही मेरी जन्नत है. अगर ये झूठ है तो यही सही. लेकिन इसकी ख़ामोशी में बहुत से शब्द हैजो मेरे होकर भी मेरे नहीं है. तुम जानती होतुमने क्या क्या भरा मुझमे उस रात और उस दिन ? नहीं...मैं जानता हूँ. एक उम्र भरी है जिसमे एक मोहब्बत का अफसाना है.

तुम शायद पूछना चाहोंगीतो मैं बता दूंकि उस रात मैंने तुम्हे छूना चाहा था. मैं चाहता था छूना तुम्हारे गालो को और तुम्हारे होंठो को भी. मैं चाहता था छूना तुम्हारी साँसों को.और चाहता था छूना तुम्हारे दिल को जिसे मेरे दिल ने पहले छुआ था! मुझसे भी पहले छुआ था. और तुम जब संग बैठी थी तो एक आंच दिल में लगा गयी होवो आंच अब एक अलख बन कर जग रही है. तुम्हारी यादो के साथ!

तुमने उस रात मेरा हाथ थामा थामेरी हथेली की रेखाओ को पढने की कोशिश कर रही थी. तुम्हे कैसे बताऊँ कि रेखाए किस्मत नहीं होती है. रेखाए बस दूरियों को बताती है कि तुम कितनी दूर हो मुझसेया तुम्हे मुझसे मिलने में कितने जन्म लग गए या फिर शायद हमारी राहे अलग अलग है. पर मैंने कभी रेखाओं को नहीं माना है. हाँ खुदा को माना है,उसकी खुदाई को माना हैऔर हाँ न, तुम्हे भी तो माना है. सच में !

अक्सर लौट जाता हूँ उन सपनो से जो मैं तुम्हारे लिए देखता हूँ, क्योंकि तुम नहीं हो उन सपनो में. राहे जानी होती है लेकिन मुझे अनजानी लगती है. मैं देवताओ से प्रार्थना करता हूँ कि वो तुम्हे मेरी ज़िन्दगी में भेज दे. लेकिन देवता जवाब नहीं देते है. वो मुझे देखते है और मैं तुम्हे. कहाँ से शुरू करूँ और कहाँ ख़त्म!

तय करना होता है बहुत सी बातो को. जीना भी होता है बहुत सी बातो को. जीने में और तय करके जीने में बहुत सा फर्क होता है. बस दोनों के मध्य तुम होती हो. जबकि मैं चाहता हूँ कि तुम या तो शुरुवात में रहो या फिर अंत में. और मैं बता दूं तुम्हे मैं अंत नहीं चाहता हूँ कभी भी!

सब कुछ कभी भी ख़त्म नहीं होता है. और न ही होंगा. ठहर जाने से तो कभी खत्म नहीं होता है. शायद इसे शुरुवात ही कह लो. मैं रुक जाऊं या तुम रुक जाओकुछ भी कभी भी ख़त्म नहीं होंगा!

मैंने तुम्हे ओक में जिया था उन लम्हों में. और ओक है कि खाली ही नहीं होतीअच्छा है न. कभी भी खाली न हो. मेरी साँसे भले खाली हो जाएलेकिन ओक खाली न हो. तुमसे भरी रहेतुम्हारी यादो से भरी रहे.जीवन से भरी रहे.प्रेम से भरी रहे.और हाँ खुदा की खुदाई से भी भरी रहे! तुम बस वादा करो कि कभी भी ये ओक जो तुमसे भरी हुई है खाली नहीं होंगी! तुम उसे खाली नहीं होने दोंगी!

मैं इस जन्म में फिर से तुम्हे समेटना चाहता हूँ उन्ही पत्थरो की बीच मेंउसी बहती नदी के बीच में. वैसे ही किसी नाव में. उन्ही हवाओ में !  इसी जन्म में. सच्ची! मिलोंगी न ?

कितनी बाते करनी होती है तुमसे........ लगता है ज़िन्दगी ख़त्म हो जायेंगीलेकिन बाते ख़त्म न होंगी. सच्ची! कितना कुछ कहना है तुमसेकुछ इस जन्म की बाते तो कुछ उस जन्म की बाते. कभी तो बहुत बाते और कभी तो कुछ भी नहीं. सिर्फ मौन. तुम और मैं. हम. सिर्फ हम. और हाँ प्रेम भी रहे. ताकि हम बचे रहे जीवित किसी और जन्म के लिए!

थोडा यकीन करना मेरा. थोडा यकीन करना खुदा का और थोडा कुछ तुम्हारी किस्मत का और थोडा कुछ मेरी किस्मत का! बस जीवन कट जायेंगा! लेकिन मैं तो लम्हों में जीना चाहता हूँ. जियोंगी मेरे साथ अपनी किस्मत के डोर लेकर ? कहो न!

तुम जानती होमैं कितना कुछ लिखना चाहता हूँऔर कौन जाने तुम इसे पढ़ भी पाती हो या नहीं. लेकिन क्या तुम उसे भी पढ़ लेती होजो मैंने नहीं लिखा! जानती हो उन अक्षरो कोउस भाषा को जिसे सिर्फ प्रेम की आँखे पढ़ पाती है. हाँ, उसके लिए प्रेम में होना जरुरी होता है. मैं हूँ. तुम्हारे प्रेम में. क्या तुम भी हो. एक बार तो कह दो!

जिन कदमो के निशान हमने छोड़े थे; वो क्या वही रहंगे उन राहो पर ,जिन पर हमने कुछ कदम साथ चले थे. वो फिजा जिसमे हमने साँसे ली थीवो सारी जगह जहाँ जहाँ मैंने तुम्हे देखाऔर हर बार पहली बार जैसे ही देखा. क्या वो सब कुछ हमेशा के लिए फ्रोजेन नहीं हो गया होंगा. सोचो तो. मुझे लगता है की हाँ वो फ्रोजेन है एक टाइम फ्रेम में हमेशा के लिए. तुम्हारे लिएमेरे लिएहमारे लिए.खुदा के लिए और प्रेम के लिए भी !

हर आने वाला कल बीता हुआ कल बन जाता है. और तुम कहती रहती हो कि कल !!! कल तो आकर भी चला जाता है पर तुम नहीं आती हो. आ जाओ या बुला लो. दोनों सूरतो में मैं तुम्हारा ही होना चाहता हूँ.

मैंने कभी नहीं सोचा था कि तुम मिल जाओंगी. पर मिली. भले ही कुछ समय के लिएपर मिली. भले ही खो जाने के लिए शायदपर मिली. अगर कभी न कुछ न मिला तो वो होंगा ज़िन्दगी का एक टुकड़ा जो मैं तुम्हारे साथ जीना चाहूँगा!

प्रेम अलग हैजीवन अलग हैसमाज अलग है,  प्रेम इन सब बातो से परे हैप्रेम समाज से परे होकर जीता है और वो उसका अपना ही समाज होता है. प्रेम की असफलता के कई कारण हो सकते है पर प्रेम के होने का सिर्फ और सिर्फ एक ही कारण हो सकता है और वो प्रेम ही है.

प्रेम हमेशा ही अधुरा होता है. जिसे हम पूर्णता समझते हैवो कभी भी प्रेम नहीं हो सकताप्रेम का कैनवास इतना बड़ा होता है कि एक ज़िन्दगी उसमे समाई नहीं जा सकती है. जब आप प्रेम में होते है तो आपको पता चलता है कि आप एक ज़िन्दगी भी जी रहे है.....और ज़िन्दगी परत दर परत ज़िन्दगी के रहस्य खोलती है. जिसे आप सिर्फ प्रेम ही समझते है और प्रेम में ही जीते है.... और ऐसा जादू सिर्फ और सिर्फ प्रेम में ही होता है...! जैसे कि अब हो रहा है मेरे साथ !

मोड़ कई ऐसे आयेंगेजब तुम मुझसे अलग होंगी या मैं तुमसे अलग होंगापर वो अलग होना हम दोनों को अलग नहीं कर सकता! At-least not me from you and I mean it !

और हांमुझे जब तुम प्रेम में हो जाओंगी , प्रेम को समझोंगी , तब ही मुझे प्रेम करना.जब मैं तुम्हारा हिस्सा बन जाऊं तब ही तुम मुझे प्रेम करना.जब तुम्हे लगे कि तुम मेरे भीतर के मासूम बच्चे से जुड़ जाओ तब ही मुझे प्रेम करना.जब तुम्हे लगे कि मैं हूँ तुम्हारी साँसों मेंतुम्हारी हथेली मेंतुम्हारे माथे पर और तुम्हारे ह्रदय के भीतर तब ही मुझे प्रेम करना. और जब लगे कि मैं आजन्म तुम्हारे साए का एक हिस्सा बन चूका हूँ तब ही मुझसे प्रेम करना.

ये भी हो सकता है कि तुम कभी भी मुझसे प्रेम न करो.हम सब एक mind-set के साथ ही जीना चाहते है जो कि comfort zone हो. और प्रेम तो निश्चिंत ही comfort zone  नहीं है. फैसला तुम पर ही छोड़ता हूँ.मेरा फैसला तो मैंने कर लिया है ! तुम जानती हो मेरे फैसले को. अब बारी तुम्हारी ही है. हो सकता है कि तुम न चाहो मुझे..... [ वैसे मैंने देवताओ से तुम्हे माँगा है पर देवता तो पत्थर के ही होते है न ]

तुम मेरी हमउम्र होती हो जब बात ख्यालो की होती हैबात अहसासों की होती हैबात ज़िन्दगी की होती है, बात प्रेम की होती है या फिर बात खुदा की होती है. सच्ची. हाँ जब बात खुदा की हो रही है तो कह दूं तुमसेकि शायद तुमसे पहले ही जाऊं इस फानी दुनिया से. लेकिन तुम गम न करना. बस ये सोचना कि कोई था जो कुछ दूर चला तुम्हारे साथ. कुछ शब्द तुम्हारी झोली में डाल गया. कुछ देर तुम्हे देखता रहा. कुछ वक़्त जिसमे हमने एक उम्र गुजारी.....बस ऐसी ही कई बेमतलब की बाते जो मेरे जाने के बाद भी शायद तुम्हे याद रहेंगी...क्या तुम उन लम्हों को याद करके अपने कुछ आंसू मेरे नाम करोंगी? वही तो मेरी सच्ची जायदाद रहेंगी! सच्ची!

::::::: प्रारम्भ :::::::::

कहानी अब शुरू होती है प्रिये. कहानी तो बहुत बार कही जा चुकी होगीबहुत बार सुनी जा चुकी होगीऔर कई बार दोहराई गयी होगी. पर मेरे लिए ये कथा नहीं हैक्योंकि इसमें तुम हो. हाँ अब आगे की कथा मैं तुम्हे सौंपता हूँ. तुम्हारी किस्मत को सौंपता हूँ

.......तुम्हारा मेल दोस्ती की हद को छु गया
दोस्ती मोहब्बत की हद तक गई!
मोहब्बत इश्क की हद तक!
और इश्क जूनून की हद तक!
.......अमृता प्रीतम
  
हाँप्रियेमुझे तुमसे प्रेम है.

दरअसल : असली प्रेम तो प्रेम में होना ही होता हैप्रेम में पढ़नाप्रेम में गिरनाप्रेम करना इत्यादि सिर्फ उपरी सतह के प्रेम होते है. असली प्रेम तो बस प्रेम में होनाप्रेम ही हो जाना होता है.प्रेम बस प्रेम ही ! और कुछ नहीं !

हाँ,प्रियेमुझे तुमसे प्रेम है.

अब इन्तजार है बची हुई सारी उम्र के लिए.
तुम्हारा और तुम्हारे प्रेम का !
मैंने अपने दिल के दरवाजे खोल रखे है.

स्वागत है प्रियेआ जाओ !!! 

© कथा और चित्र विजय कुमार 


Wednesday, February 25, 2015

।।। मर्डर इन गीतांजलि एक्सप्रेस।।।




||| सुबह 8:30 |||

मैंने टैक्सी ड्राईवर से पुछा- और कितनी देर लगेंगी। उसने कहा – साहब बस 30 मिनट में पहुंचा देता हूँ। मैंने घडी देखी  8:40 हो रहे थे। मैंने कहा – “यार 9 बजे की गाडी है। थोडा जल्दी करो यार। उसने स्पीड बढ़ा दी. मैं नासिक की सडको को देखने लगा।

मैं अपनी कंपनी के काम से आया हुआ था. कल ही काम खतम हो गया था पर मेरी तबियत कुछ ठीक न होने की वजह से मैं रात को यही रुक गया था. और आज की गीतांजलि एक्सप्रेस से टिकेट करवा लिया था और अब ट्रेन 9:25 को आनेवाली थी नासिक रोड स्टेशन पर और मैं नागपुर जा रहा था और वहां से अपना काम खत्म करके कोलकता जाना था।

अचानक एक तेज आवाज के साथ गाडी लहराई और रुक गयी। मेरे मुंह से चीख निकल गयी। गाडी से उतरा तो पाया कि पंक्चर हो गया था. ड्राईवर बोला – सर आप ऑटो से निकल जाईये। मैंने उसे रूपये दिए और एक ऑटो को रोका और स्टेशन के लिए चलने के लिए कहा। वो कितना भी तेज चलाये,लेट हो ही गया था, बस जैसे तैसे स्टेशन पहुंचा और उसे रुपये देकर भीतर की ओर दौड़ा !

||| सुबह 9:30 |||

मैं दौड़ते दौड़ते स्टेशन के भीतर पहुंचा और प्लेटफ़ॉर्म से निकलती ट्रेन में किसी तरह से एक बोगी को पकड़ कर भीतर घुसा। ट्रेन के अन्दर ही अन्दर चलते हुए मैं एसी कोच के अपने फर्स्ट क्लास केबिन में पहुंचा और जाकर अपनी सीट पर बैठ गया। कुछ देर तो आँखे बंद करके बैठा रहा। और भगवान का शुक्रिया अदा किया कि ट्रेन मिल गयी,वरना नागपुर में कल की मीटिंग्स नहीं हो पाती।

मेरी गहरी और तेज साँसे चल ही रही थी कि टीटी की आवाज़ सुनाई दी। टिकट प्लीज। मैंने आँखे खोली और टीटी को टिकट दिखाया। वो चेक करके चला गया तो मैंने चारो तरफ नज़र दौड़ायी एसी के फर्स्ट क्लास के इस डब्बे में मैं था और मेरे सामने एक आदमी था। मैंने उसे गौर से देखा. वो एक फ्रेंच-कट दाढ़ी के साथ सूट बूट पहने हुए करीब ४० साल का बंदा था. मैंने उसकी ओर हाथ बढ़ाया और मुस्कराते हुए कहा – हेल्लो,आय ऍम कुमार। आप कहाँ जा रहे है, मैं तो नागपुर जा रहा हूँ।

वो कुछ देर हिचकचाया फिर उसने भी अपने हाथ बढाए और मुझसे हाथ मिलाकर कहा, आय ऍम  मायकल,मैं कोलकता जा रहा हूँ। मैंने गौर किया कि उसके हाथ पर सफ़ेद दस्ताने थे और उसकी आँखे बड़ी सर्द थी। उसकी कोट पर एक सफ़ेद गुलाब का फूल लगा हुआ था। मुझे थोडा अजीब लगा, पर मुझे क्या, ये दुनिया एक से बढ़कर एक नमूनों से भरी हुई है।

मैंने अपना ताम-झाम सीट के नीचे रखा और अपने बेड पर पसर कर बैठ गया।

कुछ देर बाद मैंने उससे पुछा आप क्या करते हो। उसने कहा – कुछ नहीं बस, गोवा में छोटा सा बिजनेस है। मैंने कहा- मैं एक कंपनी में मार्केटिंग करता हूँ। मैं कोलकता में रहता हूँ। यहाँ नासिक में काम के सिलसिले में आया था।

फिर हम दोनों चुप से हो गए। कुछ देर में चाय वाला आया, अब मुझे ठण्ड भी लग रही थी। मैंने उससे दो चाय ली और मायकल को एक कप दिया। उसने कहा – “मैं चाय नहीं पीता हूँ। मैंने दोनों कप की चाय खुद ही पी ली.  

कुछ देर मैं आँखे बंद करके बैठा रहा, पर ठण्ड फिर भी लग रही थी। मैंने कोच अटेंडेट को बुलाया और उसे एसी कम करने को कहा, उसने कहा – “साब ये तो 24 डिग्री  पर है। कम ही है। आपको बुखार तो नहीं, जो आपको इतनी ठण्ड लग रही है। मैंने उससे एक बेडरोल और मंगा लिया और कम्बल ओढ़कर बैठ गया।

मैंने मायकल को देखा वो चुपचाप बैठा था।उसने मुझसे कहा – आप कोई स्वेटर पहन लो। नहीं है  तो मैं अपना कोट देता हूँ। मैंने  कहा – थैंक्स मायकल। देखता हूँ थोड़ी देर में ठण्ड शायद चली जाए. आपको ठण्ड नहीं लग रही है ?

उसने कहा – नहीं। मुझे ठण्ड नहीं लगती है। जहाँ मैं रहता हूँ वहां काफी ठण्ड रहती है। इसलिए  मैंने अपने साथ वहां की कुछ ठण्ड को लेकर चलता हूँ।........हा….हा….हा  !”

मुझे ये बात बड़ी अजीब सी लगी। पर मैं भी हंसने लगा !  

फिर थोड़ी देर रुक कर उसने कहा – “एक काम करो, मेरे पास थोड़ी सी व्हिस्की है अगर आप एक घूँट ले लो तो शायद ठण्ड न लगे !”

मैंने कहा – “हां यार ये ठीक रहेंगा।” उसने ये सुनकर अपने सीट के नीचे से एक पुराने से बैग से एक ब्लेंडर्स प्राइड की बोतल  निकाली। मैंने देखकर कहा – “अरे ये तो मेरा ब्रांड है, पर गिलास का क्या।” मायकल ने कहा – “अरे ऐसे ही लगा लो कोई वान्दा नहीं है। पर तुम्हे गिलास चाहिए तो मेरे पास उसका भी इंतजाम है।” उसने बैग से दो अच्छे से वाइन ग्लासेज निकाला। ये देखकर मैंने कहा – “अरे यार तुम तो बड़े छुपे रुस्तम हो। सारा इंतजाम करके निकलते हो.” हम दोनों ने उन्ही ग्लासेज में व्हिस्की के साथ थोडा पानी मिलाकर लम्बे घूँट लिए। मेरा कलेजा जल गया, पर कुछ मिनट में राहत लगने लगी।

मायकल ने फिर बैग से एक छोटा सा चांदी का डब्बा निकाला, उसमे काजू थे, उसने मुझे खाने को कहा। मुझे तो मज़ा ही आ गया। मुझे अब थोडा सा सुरूर आ रहा था।  

ड्रिंक्स हो गए, अब मैं बेड पर लेट गया था। मायकल ने कहा बत्तियां बंद कर दो। मुझे रोशनी ज्यादा पसंद नहीं है। मैंने केबिन की बत्तियां बंद कर दी।

मैं गुनगुनाने लगा। “ मायकल की दारु झटका देती है। मायकल की दारु फटका देती है।” ये सुनकर वो हंसने लगा. उसकी हंसी बड़ी अजीब सी थी। मैंने आँखे बंद कर ली। मुझे हलकी सी नींद आ गयी .

||| सुबह 12:30 |||

मोबाइल की घंटी की आवाज़ से मेरी नींद खुली। मैंने समय देखा और मोबाइल में देखा तो मेरे नागपुर वाले कस्टमर का फ़ोन था। उसे रीसिव किया, वो  कह रहा था कि उसे अचानक ही बॉम्बे जाना पड़ रहा है। इसलिए वो मुझसे मिल नहीं पायेंगा. उसने अपॉइंटमेंट कैंसल कर दी थी। मैं सोच में पड़ गया  मैंने बॉस को फ़ोन लगाया। उसे लेटेस्ट डेवलपमेंट के बारे में बताया उसने मुझे कोलकता वापस बुला लिया। मैं उठकर बैठ गया। सर में हल्का सा दर्द था, शायद शराब का ही नशा था। शराब  से मुझे मायकल याद आया। देखा तो वो वैसे ही सामने बैठा था।

उसने कहा – “अब ठीक हो ?” मैंने कहा – “हां, लेकिन टूर कैंसिल हुआ है। अब कोलकता जाना है। देखता हूँ टीटी से बात करके आता हूँ।” मैं गया टीटी से मिला. अपनी इसी टिकट को मैंने कोलकता तक एक्सटेंड करवा लिया।  मैंने फिर प्रभु को धन्यवाद दिया। आजकल टिकट जैसे चीज के लिए भी प्रभु की गुहार लगानी पड़ती है। मैं बाथरूम गया फ्रेश हुआ, चेहरे पर बहुत सा पानी मारा, थोडा अच्छा लगने लगा। वहीँ कोच अटेंडेट से चाय मांगी उसने पैंट्री से चाय लाकर दी। वहीँ पर खड़े खड़े चाय पिया और बाहर की ओर देखने लगा।

कोई स्टेशन था। मैंने अटेंडेट से पुछा, “कौनसा स्टेशन है” उसने कहा  “भुसावल है सर !”  मैं देख ही रहा था कि मेरे पीछे से एक आवाज आई – “कौनसा स्टेशन है।” मैं मुड़ा और देखा, एक शानदार और खुबसूरत औरत खड़ी थी उसके पीछे एक मोटा सा आदमी भी था, मैंने कहा – “भुसावल है जी।” गाडी अब धीमे हो रही थी। प्लेटफार्म आ रहा था। मैंने गौर से औरत और आदमी को देखा।  औरत कुछ दिलफेंक किस्म की लग रही थी। मैंने उसे मुस्कराते हुए देखा। उसने मुझे देखा। वो मुस्करायी। मैंने मन ही मन कहा, "अब ठीक है कुमार भाई सफ़र सही कटेंगा।" मैंने पुछा – “कहाँ जा रहे हो आप।” जवाब मुझे उसके साथ के आदमी ने दिया, कोलकता जा रहे है।” मैंने उसे बड़े गौर से देखा था। अमीरी उसके पूरे व्यक्तित्व में छायी हुई थी। शानदार सूट पहने हुए था। हाथो की दसो उँगलियों में सोने की हीरे जड़ी अंगूठियाँ थी। चेहरे पर अमीरी का घमंड ! मैंने अपने आप से कहा – "ए टिपिकल केस ऑफ़ वोमेन मीट्स मनी !!!" मैं मन ही मन मुस्कराया और मेरे मुह से निकल पड़ा “हूर के साथ लंगूर“, उसे ठीक से सुनाई नहीं दिया वरना वो मुझे पक्का पीट देता।  औरत ने मुझसे पुछा – “आप कहाँ जा रहे हो।“  मैं कुछ कहता, इसके पहले ही आदमी ने फिर कहा, “अरे कोलकता ही जा रहे है न।“ मैंने हंस कर कहा-  “हाँ जी हां।“

मैं कुछ पूछता इसके पहले ही प्लेटफ़ॉर्म पर गाडी रुक गयी। मैं नीचे उतर कर बुक्स की दूकान में गया, अखबार लिया और वापस लौटा। देखा तो वो आदमी और औरत प्लेटफ़ॉर्म पर कुछ खा रहे थे। मैंने मन ही मन कहा -"टिपिकल इंडियन पसेंजेर्स।" मैंने देखा तो मायकल उस औरत और आदमी की ठीक पीछे ही खड़ा था और उन्हें बड़े गौर से देख रहा था। मैं उसे आवाज़ देने ही वाला था कि टीटी ने मुझसे कहा, “आज तो गाडी बिलकुल खाली है।“  मैंने कहा-  “हां जी, नहीं तो गीतांजलि तो भरी हुई होती है।“  टीटी ने चाय के लिए ऑफर किया, मैंने चाय ले ली, उसने कहा-  “बस अगले महीने से दुर्गा पूजा की भीड़ आ जायेंगी जी।“ मैंने सर हिलाया। हम ऐसे ही बात करते रहे। फिर उससे इजाजत ली और अपने केबिन में पहुंचा। देखा तो मायकल वहीं पर बैठा हुआ था। मैंने कहा – “यार कुछ चाय लोंगे या कुछ खाने को ला दू।” उसने कहा- “नहीं जी। आओ बैठो।“

थोड़ी देर में गाडी चल पड़ी। मायकल से मैंने पुछा, “बिजनेस किस चीज का है।“ उसने बताया कि ड्राई फ्रूट्स का है। वो गोवा और केरला से ड्राई फ्रूट्स लेकर हर जगह बेचता है।  छोटा सा बिजनेस है।

उसे मैंने बताया कि मैं एक इलेक्ट्रिक स्विच बनाने वाली कंपनी में काम करता हूँ। मार्केटिंग मेनेजर हूँ और लगातार बस घूमते ही रहता हूँ।  

उसने अपने बैग से एक डब्बा और निकाला उसमे कुछ ड्राई फ्रूट्स थे। वो मुझे दिए और मैं बड़े चाव से खाने लगा। मैंने फिर उससे पुछा – “यार मायकल आपके शौक क्या क्या है।“ उसने कहा – “म्यूजिक, बुक्स और घूमना।“ मैंने ख़ुशी से कहा, “ऐक्साक्ट्ली ये तो मेरे भी शौक है। यार संगीत जीवन है।“ उसने फिर बैग में हाथ डाला और एक छोटा सा म्यूजिक सिस्टम निकाला  और उसे केबिन के प्लग बॉक्स में लगा कर शुरू कर दिया। किशोर कुमार की आवाज़ से डब्बा भर गया। मैं तो ख़ुशी से उछल पड़ा और उठाकर मायकल को गले लगा लिया। एक अजीब सी गंध उसके कपड़ो से आ रही थी, और मायकल का बदन भी बड़ा कठोर सा प्रतीत हुआ। खैर छोडो मुझे क्या।

हम लोग बहुत देर तक गाने सुनते रहे।

फिर मायकल ने मुझसे कहा – “कुमार, मुझे तुम्हारी लिखी कहानिया बहुत पसंद है।“
मैं चौंक गया, मैंने कहा – “यार तुम्हे कैसे पता?”

उसने कहा, “कुमार मैं तुम्हारी कहानियाँ पढ़ते रहता हूँ। तुम तो बहुत अच्छी अच्छी जासूसी कहानियां लिखते हो। मैं तो फैन हूँ।“

मैंने अचरज से पुछा कि उसने मुझे पहचाना कैसे। उसने कहा- “आपकी फोटो से। आपकी किताब के पीछे आपकी फोटो लगी हुई रहती है। बस इसी  से पहचान लिया।“

उसने फिर मुझसे हाथ मिलाया। मुझे अच्छा लग रहा था। पढने वाले पाठक किसे अच्छे नहीं लगते !
हम लोग फिर बहुत देर तक मेरी कहानियो के प्लॉट्स पर बाते करने लगे।

||| दोपहर 2:30 |||

मैंने ट्रेन की खिड़की से बाहर देखा, एक स्टेशन आ रहा था, शेगांव, मैंने कहा- “यार मायकल यहां की कचोरियाँ बहुत अच्छी होती है। मैंने अभी लेकर आता हूँ।“  मैं प्लेटफार्म पर उतरा और कचोरी ली.  देखा तो वही औरत और आदमी भी कचोरी ले रहे थे। मैंने उन दोनों को हाय कहा और अपने कोच में आ गया। कोच में देखा तो मायकल नहीं था। मैंने सोचा बाथरूम गया होंगा। खिड़की से देखा तो वो उस औरत और आदमी के पीछे ही खड़ा था। मुझे ये बंदा कुछ अजीब सा लग रहा था। खैर मुझे क्या, सफ़र में तो एक से बढ़कर एक नमूने मिलते है। मैं बाथरूम गया और वापस आया तो मायकल अपनी सीट पर बैठा हुआ था। मैंने उसे कचोरी दी, हम दोनों कचोरी खाने लगे।

मायकल ने फिर व्हिस्की की बोतल  निकाली और मुझसे कहा, “एक - एक हो जाए।“ मैंने कहा, “हो जाए जी।“ अब तो कोलकता जाना था इसलिए कोई हिचक नहीं थी. बस खाना पीना और सोना। हम दोनों फिर पीने लगे।

मैंने कोच अटेंडेट से खाना मंगवाया। मायकल ने खाने से मना कर दिया। मैंने उसे जबरदस्ती खाने  को कहा। हमने खाना खाया और मैंने अपने बेड पर लेट गया।

मायकल ने कुछ देर की चुप्पी के बाद पुछा – “यार कुमार ये जो प्लॉट्स तुम सोचते हो कहानी के लिए ये कैसे आते है। मतलब तुम कैसे प्लान करते हो।“ मैंने कहा – “कुछ नहीं जी। पहले एक लूज स्टोरीलाइन बनाता हूँ, फिर उसके कैरेक्टर्स बनाता हूँ, और फिर स्टोरी और उन कैरेक्टर्स को आपस में बुन लेता हूँ। बस हो गयी कहानी तैयार !”

मायकल ने पुछा, “जासूसी कहानी में जो मर्डर का प्लान तुम लिखते हो, वो कैसे लिखते हो” मैंने कहा- “यार बहुत सी किताबे पढ़ी हुई है, फिल्मे देखी  हुई है और अपने समाज में भी कुछ न कुछ अपराध तो होते ही रहता है। बस उसी को बेस बनाकर प्लाट बनाता हूँ।“

मायकल ने कहा – “अच्छा ये बताओ कि क्या कोई फुलप्रूफ मर्डर का प्लान होता है।“ मैंने कहा, “सारे प्लान ही फुलप्रूफ होते है। बस उस प्लान को एक्सीक्यूट करते हुए कुछ गलती हो जाती है जो अनएक्सपेक्टेड होती है। इसी के चलते अपराधी पकड़ा जाता है।“

मायकल चुप हो गया। थोड़ी देर बाद उसने मुझसे कहा – “मुझे जासूसी  कहानियो में बहुत रूचि है. मैं भी एक कहानी लिखना चाहता हूँ। आप थोड़ी मदद करो।“

मैं उठकर बैठ गया। मुझे भी अब मज़ा आ रहा था। मैंने कहा, “बताओ, क्या प्लाट है?”

मायकल ने कहा, “एक औरत अपने पति से बेवफाई करती है। उसे ज़हर देती है और मार देती है। और किसी दुसरे अमीर आदमी से जुड़ जाती है, अब उस औरत को उसकी बेवफाई की सजा देना है।“
मैंने कहा “यार तो बहुत पुराना प्लाट है। कई कहानिया लिखी जा चुकी है और फिल्मे भी बनी हुई है।“

मायकल ने कहा, “फिर भी बताओ कि उसे कैसे सजा दिया जाए।“

मैंने कहा, “दो सवाल है, पहली बात तो ये कि उसे सजा कौन देंगा। और दूसरी बात कि उसे सजा क्या देना है।“

मायकल बहुत देर तक चुप रहा। फिर मुझसे पुछा – “क्या उसे मौत की सजा दी जाए।“ मैंने कहा- “सजा देना बड़ी बात नहीं है. कहानी में हम डाल देंगे कि उसका मर्डर कर दिया गया, लेकिन सजा कौन देंगा.”

मायका बहुत देर तक चुप रहा, फिर उसने कहा,  “यार तुम लेखक हो तुम ही कुछ सुझाव दो।“

मैं सोचने लगा। बहुत देर तक सोचा। सोचते ही रहा।  मैंने फिर कहा – “एक बात  हो सकती है। उस मरे हुए आदमी का कोई दोस्त उसे सजा दे.”

मायकल ने कहा,  “हां ये हो सकता है लेकिन अगर उस आदमी का कोई दोस्त न हो तो।“ मैंने कहा, “ऐसे कैसे हो सकता है, हर आदमी का दोस्त होता है। हाँ ये हो सकता है कि उस आदमी के दोस्त को कुछ पता ही न हो।“

मायकल सोचने लगा। मैंने कहा, “मैं आता हूँ यार दरवाजे से थोड़ी ताज़ी हवा लेकर।“

मैं कोच के दरवाजे पर पंहुचा, वहां वो औरत खड़ी थी और साथ में उसका आदमी भी। मैं भी वहीं पंहुचा। ताज़ी हवा अच्छी लग रही थी। मैंने कहा, “मुझे ऐसे दरवाज़े पर खड़े होकर ताज़ी हवा के झोंके अच्छे लगते है।“  सुनकर उस औरत ने भी कहा, “मुझे भी !” आदमी ने मुझे घूरकर देखा और कहा, “सभी को अच्छी लगती है ताज़ी हवा !”

मैंने देखा तो मेरे पीछे मायकल भी खड़ा था ! मायकल उस औरत को देख रहा था ! मैं मुस्करा उठा ! कुछ देर बाद मैं वापस लौट पड़ा।

अपने केबिन में घुसने के पहले मैंने पलटकर देखा। औरत मुझे ही देख रही थी. मैं मुस्कराया। और भीतर घुसा। मायकल अपनी सेट पर बैठा था। मैंने कहा, “अरे अभी तो तुम वहां बाहर थे अभी इतनी जल्दी कैसे आ गए।“  मायकल ने कहा – “कुछ नहीं, जब तुम उस औरत को देख रहे थे, तो मैं वापस लौट पड़ा !”

||| शाम  6:30 |||

शाम गहरी हो रही थी।

मायकल ने कहा, “अच्छा एक बात बताओ अगर तुम उस आदमी के दोस्त होते तो उस औरत को कैसे मारते।“ मैंने हँसते हुए कहा, “यार मैं कोई क्रिमिनल नहीं हूँ। एक राइटर हूँ “, मायकल ने कहा, “यार मेरा ये मतलब नहीं था, उस कहानी पर हम डिसकस कर रहे थे न, मैंने उसी सिलसिले में पुछा है।“

मैं लेट गया और सोचने लगा.  मैंने कहा, “बहुत से तरीके है जिनसे उस औरत को मारा जा सकता है।  ये डिपेंड करता है कि उसे कहाँ मारना है  घर में, बाहर में, कार में, बाज़ार में, हर जगह के लिए अलग अलग तरीको से मर्डर किया जाता है। सारी दुनिया में कई कहानियाँ भरी पड़ी हुई है। दोस्त कोई भी राह चुन लेता।“

मायकल सोचने लगा। थोड़ी देर बाद उसने कहा, “चलो ठीक है लेकिन अगर दोस्त को मर्डर करके बचकर निकलना है तो क्या करे।“  मैंने कहा,  “ये फिर डिपेंड करता है कि उसने मर्डर कहाँ करना है। उस लोकेशन के बेस पर वो प्लान करेंगा ताकि वो बचकर निकल ले, जैसे घर पर हो तो ज़हर दे दे खाने में  या फिर कोई और तरीका। या अगर बाहर में हो तो एक एक्सीडेंट क्रिएट किया जाए। इस तरह से उस दोस्त पर कोई आंच नहीं आएँगी।“

मायकल चुप हो गया। कोच अटेंडेट आया, रात के खाने के बारे में आर्डर लेने के लिए। साथ में पैंट्रीकार का बंदा भी था। मैंने अपने लिए रोटी सब्जी मंगा ली। मैंने पुछा –“खाना कब आयेंगा।“ पैंट्री वाले ने कहा, “अभी कुछ देर में नागपुर आयेंगा उसके बाद खाना मिल जायेंगा !” मैं बेड पर लेट सा गया।

मैंने देखा मायकल चुपचाप था। मैंने कहा, “भाई हुआ क्या। कहानी में खो गए क्या।“ मायकल ने कहा, “हां कुमार, मुझे तुम कोई सुझाव दो।“ मैंने कहा, “करते है यार बाते। अभी तो रात बाकी है। दारु निकालो।“  मायकल ने बोतल और काजू निकाल कर मुझे दे दिया। मैंने दो घूँट लगाया। मायकल वैसे ही पी गया। मैंने देखा कि काजू वाले डब्बे पर “लव यू मार्था” लिखा हुआ था। मैंने मायकल से पुछा. “ये मार्था ?” मायकल ने कहा, “मेरी बीबी है” फिर रूककर कहा, “मतलब थी” मैंने गौर से मायकल को देखा। उसने कहा – “यार हम अलग हो चुके है। मतलब वो अलग हो चुकी है।“ फिर वो चुप हो गया।

ट्रेन बहुत तेजी से भाग  रही थी। मैंने मायकल के चेहरे को गौर से देखा। एक अजीब सा दुःख और उदासी छायी हुई थी। मैंने एक गहरी सांस ली। और आँखे बंद करके सोचने लगा, "या खुदा दुनिया में क्या कोई ऐसा है, जिसे कोई दुःख नहीं है ?" मैंने फिर मायकल से कहा, “आय ऍम सॉरी मायकल भाई।“

मैं केबिन से बाहर आ गया। मुझे अच्छा नहीं लग रहा था, मैंने गहरी सांस ली और कोच अटेंडेट से कहा, “यार सिगरेट मिलेंगी?”  उसने कहा “साब ट्रेन में सिगरेट पीना मना है,” मैंने कहा “यार मुझे सब पता है। मेरे सर में दर्द हो रहा है। तेरे पास है तो दे दे, मैं टॉयलेट में पी लूँगा।“ उसने एक सिगरेट दे दी, मैंने माचिस भी ली और बाथरूम में घुस गया। सिगरेट पीने के बाद बाहर आया। वो अटेंडेट वही खड़ा था। उसे माचिस दी और कुछ रूपये टिप में दे दिया, मुंह धोया और दरवाज़ा खोलकर ताज़ी हवा में साँसे लेने लगा। मायकल के बारे सोचने लगा। कितना भला आदमी था। लेकिन उसकी किस्मत।

मैं कुछ इसी सोच में था कि पीछे से आवाज़ आई- “हमें भी चाहिए ताज़ी हवा।“ मैंने मुड़ कर देखा। वही औरत थी। इस बार उसका आदमी साथ नहीं था। मैंने कहा, “हां हां आ जाईये, कुदरत ने सब के लिए फ्री में ये नेमते दे रखी है।“ उसने कुछ उलझन से मेरी ओर देखा और कहा – “आपने क्या कहा, मुझे तो समझ ही नहीं आया।“ मैं हंस पड़ा, मैंने कहा-  “जी, ये उर्दू के अलफ़ाज़ है। मैं ये कह रहा था कि नेचर ने ये सब कुछ फ्री में ही रखा है। हवा पानी।“ उसने मुस्कराते हुए कहा, “हां ये तो सही है।“ फिर वो दरवाजे पर खड़ी हो गयी। इतने में उसका आदमी आया पीछे से.  मुझे घूर कर देखा और कहा- “यहाँ क्या कर रहे हो?”  मैंने कहा, “हवा खा रहा हूँ। आईये आप भी लीजिये।“ उसकी औरत ने पीछे मुड़कर देखा और उस आदमी से कहा, “अरे आओ न कितनी अच्छी और ताज़ी हवा आ रही है। वो खड़ा हो गया उस औरत के पीछे।“

मैं थोड़ी दूर खड़ा होकर मायकल के बारे में सोचने लगा। गाडी धीमे होने लगी थी। मैं मुड़ा, देखा तो पीछे  मायकल खड़ा था। उस औरत को प्यार से देखते हुए। उसे देखकर मेरे मन में यही बात आई कि उसकी बीबी ने जो उसे छोड़ दिया था, उसी का मलाल होंगा उसे। इसलिए औरो की बीबीयो को देखता था ! खैर मुझे अब उससे सहानुभूति थी। मैंने कहा, “चलो यार केबिन में चलते है।“ वो चुपचाप मेरे साथ चलने लगा और केबिन में आ गया। उसने फिर शराब की बोतल निकाली और पीने लगा। मैं उसे देख रहा था। मैंने कहा, ”यार मुझे भी दो।“ मुझे भी किसी को भुलाना था। कोई अचानक ही याद आ रहा था। मैंने उससे बोतल लेकर मुंह में लगा दी। मुंह से लेकर कलेजे तक और कलेजे से लेकर पेट तक एक आग सी लग गयी। शराब भी क्या चीज है यारो। सारे दुखो की एक ही दवा, दारु का पानी और दारु की ही हवा !!! मैंने जोर से हंस पड़ा ! मायकल ने पुछा क्या हुआ ? 

मैंने शराब की बोतल  उठाकर कहा-  “मायकल की दारु झटका देती है, मायकल की दारु फटका देती है।“ वो भी हंसने लगा. उसकी हंसी भयानक सी लगी।  ट्रेन रुक गयी। नागपुर स्टेशन आ गया था।

मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। नागपुर से वैसे भी मेरी बहुत सी दुखद यादे जुडी हुई थी। मुझे इस स्टेशन पर आना ही अच्छा नहीं लगता था। बस नौकरी के चलते आना होता था, नहीं तो मैं कभी भी नहीं आऊ.  मैंने मुस्कराते हुए खुद से कहा, ‘या खुदा। ज़िन्दगी के दुःख भी कैसे कैसे होते है।‘

मायकल ने मुझसे पुछा, “क्या हुआ? क्या कह रहे हो यार?”
मैंने कहा, “कुछ नहीं दोस्त, बस जैसी तुम्हारी कहानी है, वैसे ही मेरी भी एक कहानी है। दरअसल दुनिया में कोई ऐसा नहीं जिसकी कोई कहानी न हो !”
मायकल ने एक गहरी सांस ली और कहा,  “हाँ सही कह रहे हो दोस्त !”

||| रात 9:00 |||

खाना आ गया था और हम दोनों चुपचाप खा रहे थे। मैं खाना के बाद बाहर निकल पर दरवाजे पर खड़ा हो गया। ताज़ी हवा अच्छी लग रही थी। ट्रेन की रफ़्तार कभी कभी अच्छी लगती है। मैं थोड़ी देर बाद मुड़ा तो देखा वो औरत खड़ी थी और मुझे देख रही थी। मैं उसे देखकर मुस्कराया। वो मुझे देखकर हंसी। मैंने कहा, “मेरा नाम कुमार है।“ उसने कहा, “मैं आपको जानती हूँ। आप राइटर है न। मेरे हसबैंड आपको बहुत पढ़ते थे।“ मैंने सर झुका कर कहा, “शुक्रिया जी !”

मैं कुछ कहने जा रहा था कि उसका आदमी प्रकट हुआ। हम दोनों को बाते करते देखकर उसके चेहरे का रंग बदला। फिर उसने औरत से कहा, “यहाँ क्या कर रही हो। कितनी बार यहाँ दरवाज़े पर खड़ी हो जाती हो। गिर गयी तो।“ औरत ने हँसते हुए कहा, “अरे मैं नहीं गिरने वाली। मुझे बचपन से गाडी के दरवाजे पर खड़ी होकर सफ़र करना अच्छा लगता है और फिर गिरी तो तुम हो न मुझे बचाने के लिए !” आदमी खुश होकर बोला, “हां न मैं हूँ न। संभाल लूँगा।“ मैंने मुस्कराते हुए खुद से मन ही मन कहा – “अबे पहले खुद को तो संभाल ले मोटे, फिर इस हसीना को संभाल लेना !”

मैं मुस्कराते हुए अपने केबिन की ओर बढ़ा। देखा तो मायकल खड़ा था ! मैंने उससे कहा, “चलो यार अन्दर चलो। कहानी पर डिसकस करते है” वो लगातार उस औरत को देखे जा रहा था और औरत मुझे देख रही थी। मैं मुस्कराया।

मैंने केबिन में मायकल से कहा, “हां यार बताओ तो कहानी पर हम कहाँ थे?” मायकल ने मुझे कहा “यार तुम तो उस औरत को बड़े घूर रहे थे।“ मैंने हँसते हुए कहा- “यार मायकल, मुझे औरतो में कोई दिलचस्पी नहीं रही। मुझे अब किसी से कोई मोहब्बत नहीं होने वाली। ये तो पक्की बात है। बस सफ़र में हंसी मज़ाक की बाते होती रहनी चाहिए इसलिए मैं उनसे बकबक कर रहा था, लेकिन मायकल वो जोड़ी है बड़ी अजीब। मुझे तो पक्का लगता है कि उस औरत ने उस मोटे से सिर्फ पैसे के लिए ही शादी की है। बाकी कोई मतलब नहीं और मुझे तो कम से कम ऐसे औरतो में कोई दिलचस्पी नहीं !”

मायकल ने उठाकर मुझसे हाथ मिलाया। और गले लगाया। मैं उससे गर्मजोशी से गले मिला, आखिर हम दोनों का मसला एक था। दोनों के दुःख एक थे  और दोनों ने एक ही शराब की बोतल  से पिया था इसलिए अब हम शराबी भाई भी थे। पर यार उसके कपड़ो से ये गंध.......उफ्फ्। और मुझे उसका शरीर इतना अकड़ा हुआ सा क्यों लगता था , जरुर पीठ में रॉड डाले होंगे , स्पाइन ऑपरेशन हुआ होंगा . खैर जी मुझे क्या ...!

||| रात 10:30 |||

ट्रेन रुकी हुई थी, शायद कोई क्रासिंग थी। बहुत देर से रुकी हुई थी !

कुछ देर से केबिन में ख़ामोशी थी।

फिर मायकल ने पुछा, “कुमार अगर तुम उस आदमी के दोस्त होते तो कैसे बदला लेते।“

मैंने कहा, “मैं उस आदमी के लिए जो कि मेरा दोस्त होता, जरुर बदला लेता ! मैं उस औरत को मार डालता।“

मायकल ने जोश में पुछा, “कैसे मार डालते। बताओ, मुझे भी बताओ !”

मैंने कहा – “अगर उसे घर में मारना होता तो मैं उसे ऐसे मारता जिससे कि वो आत्महत्या का केस लगे चाहे उसे ज़हर देता, या गैस से मारता या फिर फंदा लगाकर मार डालता या किसी और तरीके से, लेकिन वो लगता आत्महत्या का केस ही !”

मायकल ने गहरी सांस ली और कहा, “और अगर वो बाहर हो तो।“

मैंने थोड़ी देर सोचा और फिर कहा, “बाहर में तो मैं उसे ऐसे मारता, जिससे वो एक एक्सीडेंट ही लगे। चाहे कार से या किसी और तरीके से, लेकिन वो एक एक्सीडेंट सीन ही होता। मैंने कई नावल पढ़े है कई फिल्मे देखी  है। ऐसा ही होता है।“

मायकल ने मुस्कराकर कहा, “यार तुम तो बड़े जीनियस हो। मैं तुम्हे एक शानदार चीज पिलाता हूँ।“ उसने बैग में से एक बोतल  निकाली। उसमे सफ़ेद सा पानी भरा हुआ था। मैंने उससे पुछा, “ये क्या है?’ उसने कहा, “ये गोवा की फेनी है। जिसे तुम कच्ची शराब भी कह सकते हो। इसका टेस्ट भी अलग है, लो इसे पीकर देखो।“ मैंने उसका एक घूँट लिया। बहुत ही कड़वा था, पर एक अजीब सी गंध थी मैंने दो घूँट और लिया। इसका भी एक अलग सा नशा था !

मैंने थोडा और पिया और काजू खाने लगा। रात गहरी हो रही थी।

मायकल ने पुछा, “कुमार तुमने कहा है कि अगर वो औरत बाहर रहे तो कार का एक्सीडेंट बता सकते हो। इसी तरह अगर वो औरत ट्रेन में रहे ; तो उसे कैसे मारते तुम।“  

मुझ पर हल्का सा नशा तारी था। मैंने कहा, “यार, उसके खाने में ज़हर मिला देते या फिर ट्रेन से धक्का दे देते।“

मायकल ने कहा, “खाने में ज़हर मिलाना तो मुश्किल होता पर ट्रेन से धक्का, हां ये हो सकता है।”

मैंने कहा, “यार नशा ज्यादा हो गया है मैं बाथरूम जाकर आता हूँ !”

मैं बाथरूम में जाकर खूब सारे ठन्डे पानी से चेहरा धोया। सर गीला किया। और ट्रेन का दरवाज़ा खोलकर खड़ा हो गया। गाडी अभी भी खड़ी थी। ठंडी हवाओं के थपेड़े चेहरे पर लगने लगे। कुछ ही देर में अच्छा लगने लगा।

मैंने घडी देखी, रात के बारह बजने वाले थे। दूर से रोशनी दिख रही थी, शायद कोई स्टेशन आने वाला था। मैंने पूरे कोच में यूँ ही घूमना शुरू किया। अच्छा लग रहा था। गाड़ी की पहियों की भीषण खड़खड़ाहट का शोर नहीं था और पूरे कोच में शान्ति थी। दोनों कोच अटेंडट सोये हुए थे। हर केबिन का दरवाज़ा बंद था और बत्तियां बुझी हुई थी। मैं फिर गाड़ी के दरवाजे पर खड़ा हो गया।

“अच्छा लग रहा है न।” एक आवाज़ आई, बिना पीछे मुड़े मैं जान गया, वही महिला थी। मैंने कहा, “हाँ। मुझे ये सब बहुत अच्छा लगता है।“ उसने कहा, “मुझे भी।“ मैंने कहा, “आईये आप देखो ये, मैं तो बहुत देर से देख रहा हूँ।“ वो खड़ी हो गयी दरवाजे पर। मैंने कहा, “संभल कर। रात का समय है। नींद का झोंका आ सकता है। आप सो ही जाए तो अच्छा।“ उसने कहा, “नहीं। अभी एक बड़ी सी नदी आने वाली है। वो क्रॉस हो जाए फिर मैं सो जाती हूँ। मुझे रेलवे के ब्रिजेस को पार करना अच्छा लगता है , उसी के लिए जगी हुई हूँ।“  मैंने कहा, “और साहेब कहाँ है ?”  उसने कहा, “वो भी जगे हुए है। वो देखो। आ गए।“ आदमी ने मुझे फिर घूरकर देखा और कहा, “यार तुम हमेशा यही रहते हो क्या दरवाज़े पर?”  मैंने कुछ तल्खी से कहा, “नहीं यार मेरा अपना केबिन है। ये बस इतेफाक है कि जब मैं यहाँ खड़ा होता हूँ आप आ जाते हो। आईये, स्वागत है आपका। मैं चलता हूँ।“

मैं केबिन की ओर मुड़ा तो देखा मायकल खड़ा था, मैंने उससे कहा, “यार तुम सो जाओ, मुझे नींद नहीं आ रही है।“ मायकल ने भीतर आते हुए कहा  “मुझे भी नींद नहीं आती, बल्कि मैं तो कई रातो से नहीं सोया हुआ हूँ।“

मैंने सहानुभूति से कहा, “हाँ होता है दोस्त। मुझे भी कम ही नींद आती है।“ मैंने केबिन में प्रवेश किया और बत्तियां कम कर दी। ट्रेन अब भी रुकी हुई थी।

मायकल ने कहा, “थोड़ी और पिओंगे ?” मैंने कहा, “ नहीं यार अब नहीं। अब ठीक है।“

मैंने कुछ देर बाद पुछा, “मायकल तुम्हारी वाइफ मार्था ने आखिर तुम जैसे अच्छे आदमी को क्यों छोड़ दिया?”

मायकल बहुत देर तक खामोश रहा और फिर उसने कहा, “बात उन दिनों की है जब मैं स्ट्रगल कर रहा था। मार्था बहुत खुबसूरत थी। मैं उसे बहुत चाहता  था लेकिन उसे धन दौलत से ज्यादा प्रेम था, उसे दुनिया की बहुत सारी खुशियाँ चाहिए थी जो मैं नहीं दे सकता था।हम दोनों में अक्सर इस बात को लेकर झगडे हो जाते थे। मेरा ध्यान अपने छोटे से बिज़नस की तरफ ज्यादा था, मैं काम के सिलसिले में बाहर भी रहने लगा। मुझे धीरे धीरे इस बात का अहसास हो रहा था कि उसकी रूचि मुझमें कम होती जा रही थी। हम गोवा में रहते थे और मापुसा बीच के पास मेरा घर था, जो कि गिरवी पड़ा हुआ था। आखिर मैं क़र्ज़ न चूका सका और वो घर भी बिक गया, हम लोग वही पर एक छोटे से किराए के घर में रहने लगे। मैं कुछ दिनों के लिए केरला गया, वही से वापस आने पर मैंने मार्था के रंग ढंग में परिवर्तन देखा। मैंने ये भी जाना कि हमारे ही घर के पड़ोस के होटल में एक बड़ा बिजनेसमैन रहने आया हुआ है। वो गोवा में होटल खोलने का इच्छुक था और कुछ दिनों के लिए मार्किट की स्टडी के लिए उसी होटल में रुका था। उसका नाम राणा था और वो कोलकता से था, जब मैं वापस पहुंचा तो मार्था ने मुझे उससे मिलवाया और कहा कि ये तुम्हारे बिज़नस में मदद कर देंगे। खैर कुमार साहेब मुझे राणा से मदद तो मिली लेकिन एक कीमत पर, उसने मेरी बीबी को अपने पैसो और प्रेम के जाल में फंसा लिया। मेरे पीठ पीछे मेरी बीबी मुझे धोखा दे रही थी। उसको राणा से प्यार हो गया था या फिर यूँ कहिये कि राणा के पैसो से प्रेम हो गया था। खैर मुझे भी कुछ समय में भनक तो लग गयी थी। मेरा राणा से बहुत बड़ा झगडा भी हुआ, लेकिन उस बात का उसपर कोई असर नहीं हुआ और वो बाज न आया। उसने वो होटल खरीद लिया था जिसमे वो  रह रहा था और मेरी बीबी उसी होटल की मेनेजर भी बन गयी थी। मार्था ने मुझसे तलाक माँगा, लेकिन मैंने इनकार कर दिया। मैं भला आदमी था, लेकिन दुनिया में सब भले नहीं होते। उसने और राणा ने मिलकर साजिश रची और मुझे अपने रास्ते से हटा दिया !”

मुझे मायकल की कहानी से दुःख हो रहा था। मैंने फिर भी पुछा, “क्या किया उन्होंने?”

मायकल ने कुछ नहीं कहा, एक गहरी सांस ली और रोने लगा। मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। मैंने उठाकर उसके कंधे थपथपाये, उसे चुप कराया. मैंने कहा, “चलो छोडो ये सब. दारु निकालो, थोडा पीते है।“

हम दोनों पीने लगे। ट्रेन अभी भी रुकी हुई थी। मैं सोच रहा था कि दुनिया में क्या पैसा ही सबकुछ होता है। इंसानियत नाम की कुछ बात होती है या नहीं !

मायकल अब चुप हो गया था।

थोड़ी देर बाद उसने मुझसे कहा, “यदि तुम मेरे दोस्त होते तो क्या उससे बदला लेते ?” मैं कहा, “बिलकुल लेता। मैं तो मार डालता।“ मुझ पर नशा चढ़ गया था। मायकल ने मेरा हाथ पकड़ा और कहा, “थैंक्स यार!”

ट्रेन चलने लगी। और मेरी आँखे नशे में मुंदने लगी। मैंने घडी देखी, रात के एक बज रहे थे, पता नहीं कितनी देर से गाडी खड़ी थी। मैंने उसे कहा, “यार मैं थोड़ी हवा लेकर आता हूँ। अच्छा नहीं लग रहा है।“  

उसने कहा, “मैं भी आता हूँ।“

मैंने देखा ट्रेन के दरवाजे पर वो औरत खड़ी हुई थी, उसके खुले बाल बाहर की हवा में लहरा रहे थे। मैं चुपचाप उसे देखते हुए उसके पीछे जाकर खड़ा हो गया। मैंने मुड़कर देखा, मायकल ठीक मेरे पीछे ही खड़ा था। मैंने मायकल को देखकर उस औरत की तरफ देखकर आँख मारी। मायकल के चेहरे पर कोई भाव नहीं था !

मैं चुपचाप उस औरत के बालो को अपने चेहरे पर आते हुए और जाते हुए देखता रहा। मुझे कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था। मैंने धीरे से कहा, “आप तो बहुत खुबसूरत हो।“ वो चौंक कर मुड़ी और लडखडा गयी मैंने उसे थामा। उसने मुझे बहुत देर तक देखा और मुस्करा दी।

ट्रेन धीमी हो रही थी। मैंने स्टेशन का नाम पढ़ा – दुर्ग जंक्शन। स्टेशन पर चहलकदमी थी। भारत में न स्टेशन सोते है। और न ही ट्रेन की पटरियां। ज़िन्दगी बस चलती ही रहती है। कुछ मिनट रूककर ट्रेन चल पड़ी। धीरे धीरे ट्रेन ने स्पीड पकड़ी।

दौड़ती हुई ट्रेन। पीछे छूटता हुआ शहर और शहर की जलती- बुझती बत्तियां, मुझे कविता लिखने का मन हुआ। जीवन भी अजीब ही है। क्षणभंगुर सा !

ट्रेन की गति बढ़ रही थी।

वो मुड़ी, मैंने देखा वो बहुत खुबसूरत थी, वो मुझे देखकर मुस्करायी। मैं भी मुस्कराया। मैंने कहा, “अब रात हो गयी है, जाकर सो जाईये।“ उसने कहा, “बस थोड़ी देर, एक ब्रिज आने वाला है। वो देख कर चली जाती हूँ।“ मैंने कहा, “हां शायद शिवनाथ ब्रिज है।“ ट्रेन की गति बढ़ गयी थी। वो मुझे देख कर मुस्करा रही थी। मैं उसके करीब हो गया था। ब्रिज आ रहा था। ट्रेन की पटरियों के तेज शोर के बीच में मैंने उससे पुछा –“तुम्हारा नाम क्या है?”

ब्रिज में गाडी दाखिल हुई। शोर बढ़ गया था। उसने मुझसे कुछ कहा मुझे सुनाई नहीं दिया। मैं अपने  कान उसके मुंह के पास लेकर गया। मैंने जानकार थोडा उसके करीब भी हो गया।

उसने कहा, “मेरा नाम मार्था है!”

मुझे एक झटका सा लगा, मैंने उसे पकड़ सा लिया और मुड़कर देखा। मायकल मेरे पीछे ही खड़ा था, उसने मुझसे कहा, “इसे धक्का देकर मार दो, यही वो धोखेबाज औरत है। तुम मेरे दोस्त हो। तुमने मुझसे कहा था कि तुम इस मारोंगे !”

ट्रेन का शोर, पटरियों का शोर, ब्रिज का शोर। मार्था ने अपने हाथ छोड़कर मेरे गले में डाल दिए थे। पीछे से मायकल ने कहा – “मारो धक्का !” और उसने मुझे धक्का दिया, हडबडाहट में मैंने मार्था को धक्का दे दिया, वो जोर से चीखती हुई ब्रिज और पटरियों के बीच में गिरी, पता नहीं वो कितने टुकडो में कट गयी और नदी में गिरी या पटरियों पर ही पड़ी रही। ट्रेन की भयानक आवाज़ में उसकी पतली आवाज़ किसी को नहीं सुनाई दी.

मैं काँप रहा था, मायकल मुझे अपने केबिन में लेकर आया  और अन्दर से दरवाज़ा बंद कर दिया। मैं रोने लगा, मेरा नशा हिरन हो गया था, ये मैंने क्या कर दिया था –एक मर्डर। मैं एक पढ़ा-लिखा नौकरीपेशा आदमी, ये मैंने क्या कर दिया।

मायकल ने मुझे अपने गले से लगाने की कोशिश की। मैंने उसे हटा दिया। मैंने चिल्लाते हुए कहा, “तुम सब जानते थे। तुम शुरू से जानते थे की वो मार्था है, तुम्हे उसे मारना था। तो तुम मारते, मुझसे क्यों करवाया?”

मायकल ने मुझे शराब दी और पीने को कहा, पता नहीं उसके बात में क्या था कि मैंने फिर पीना शुरू किया। मायकल ने कहा, “शांत हो जाओ दोस्त, तुमने एक बुरे इंसान को मारा है और ये पाप नहीं है !”

मैं चुप हो गया। इतने में केबिन का दरवाज़ा किसी ने खटखटाया, मैंने उठकर दरवाजा खोला, दरवाजे पर वही मोटा आदमी था, जो उस औरत के साथ था। उसने मुझे देखा और कहा “यार मार्था नहीं दिखाई दे रही है। ज़रा उसे तलाश करने में मेरी मदद करो।“ मैं क्या कहता, मैंने कहा “आप जाकर बैठो मैं आपके केबिन में आता हूँ।“ उसके जाने के बाद मैंने मायकल से कहा, “अब मैं इसे क्या जवाब दूं  और क्या ये आदमी राणा है !” मायकल ने हां में जवाब दिया। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मैंने मायकल से कहा, “मैं ये किस झमेले में फंस गया यार!” मायकल ने कहा, “जाकर उसे बता दो। सब ठीक हो जायेंगा।“

||| रात 2:00 |||

मैं राणा के केबिन में घुसा, वो परेशान था और ड्रिंक्स ले रहा था। मुझे देखकर उसने कहा, “यार मैं परेशान हूँ क्या करूँ, टीटी को बोलूं या क्या करूँ।“  मैंने कहा, “आप बैठिये, मैं आपसे कुछ बताना चाहता हूँ।“ मैंने कहा, “पहले एक ड्रिंक दो यार।“ हम दोनों ने जल्दी से अपने ड्रिंक लिए !

मैंने उससे कहा “देखो एक एक्सीडेंट हो गया है। मार्था ट्रेन से गिर गयी है! “ ये सुनकर उसकी आँखे फटी की फटी रह गयी, वो चिल्लाने लगा मैंने उसे चुप कराया। मैंने कहा,  “शांत हो जाओ। यदि विश्वास नहीं हो तो मेरे साथी मायकल से पूछ लो, वो भी मेरे साथ सफ़र कर रहा है।“

मायकल का नाम सुनकर वो बुरी तरह चौंका। वो बोला, “कौन मायकल?” मैंने कहा, “मार्था का पहला पति मायकल।“ वो खड़ा हो गया और पागलो की तरह मुझे झकझोरते हुए कहा, “क्या कह रहे हो! मायकल तुम्हारे साथ कैसे हो सकता है। उसे तो मरे हुए एक साल हो गया है !!!”

अब मैं जैसे फ्रीज़ हो गया। मैंने कहा, “क्या कह रहे हो यार, आओ मेरे केबिन में, वो शुरू से मेरे साथ है, हमने साथ में खाना पीना किया है।“ हम दोनों भागते हुए मेरे केबिन में पहुंचे। मैंने दरवाज़ा खोलकर देखा तो, वहां कोई नहीं था। मैंने सीट के नीचे झांककर देखा। वहां कुछ भी नहीं था  न उसका बैग और न ही कोई बोतल। मेरा दिमाग चकरा गया, मैं सर पकड़ कर बैठ गया। राणा मेरे पास खड़ा था वो थर थर काँप रहा था,

मैंने उससे पुछा, “बताओ क्या बात है। क्या हुआ है।“

उसने कहा, “एक साल पहले मैंने और मार्था ने मिलकर मायकल को ज़हर देकर मार डाला था और उसे खुद ही दफनाया था। वो जिंदा कैसे हो सकता था।“

अब मुझे कुछ कुछ समझ आ रहा था। मायकल की आत्मा शुरू से मेरे साथ थी, वो किसी का इन्तजार कर रही थी, ताकि वो मार्था को सजा दे सके। और मैं उसे मिल गया। वो उसके कपड़ो से गंध, वो चुपचाप रहना, उसके वजह से केबिन में बढ़ी हुई ठण्ड ! वो उसका कॉफिन का लास्ट ड्रेस, उसका मुर्दे की तरह कठोर बदन और उसका किसी ओर को दिखाई नहीं देना। मुझे अब सब कुछ समझ में आ रहा था। वो एक शापित आत्मा थी !

हम दोनों डर से कांप रहे थे !

मैं डर तो रहा था पर मैंने शांत होते हुए कहा, “ इसी को सर्किल ऑफ़ लाइफ कहते है राणा। जैसा हम दुसरो के साथ करते है, वैसा ही हमारे साथ होता है। अब मायकल वापस आया हुआ है। उसने ही मार्था को मारा है और मार्था ने अपने किये की सजा पा ली और अब शायद तुम्हारी बारी है।“

ये सुनकर राणा काँपने लगा। उसने कहा, “नहीं नहीं मैं मरना नहीं चाहता, मैं अगले स्टेशन पर ही उतर जाऊँगा, मैं आज के बदले कल ही कोलकत्ता जाऊँगा और अब दोबारा कभी गोवा नहीं जाऊँगा।“

मैंने कुछ नहीं कहा। वो दौड़कर अपने केबिन से बैग को लेकर आया और ट्रेन के दरवाजे के पास खड़ा हो गया। मैंने देखा कोई शहर आ रहा था। वो दरवाजे से सर बाहर निकालकर देखने लगा, इतने में पीछे से मायकल नज़र आया। उसने मुझे देखा और राणा को धक्का दे दिया। राणा भी चीखते हुए गिरा और कट गया। ट्रेन के दोनों अटेंडेट उसकी चीख से उठे। गाडी रोक दी गयी। हल्ला मच गया।

कुछ देर बाद ट्रेन का अटेंडेट आकर मुझसे बोला, “साहेब, वो जो बाजू के केबिन में आदमी था वो अपनी बीबी के साथ गिरकर मर गया है, कैसे कैसे लोग है, बीबी का भी मर्डर किया और खुद को भी मार दिया।“

मैं कांपने लगा. मैंने उसे केबिन से बाहर भेजा और दरवाज़ा बंद कर दिया। मैं डर के मारे दरवाजे से सर टिकाकर अपने आपको शांत करने की कोशिश की। थोडा शांत हुआ तो अपने बेड पर बैठने के लिए मुड़ा। देखा तो मायकल खड़ा था, वो मुस्कराया और फिर उसने मुझसे हाथ मिलाया। मैं डर के मारे कांप रहा था.  मायकल ने मेरे सर पर हाथ फेरा और मुझे सोने के लिए कहा।

मैं बेड पर गिरा और पता नहीं कब सो गया या बेहोश हो गया !

||| सुबह/दोपहर :12:30 |||

कोच अटेंडेट ने मुझे उठाया और कहा, “साहेब, हावड़ा आ रहा है। उठ जाईये।“

मैं उठा, मुंह धोया और दरवाजे पर खड़ा होकर पीछे छूटती दुनिया देखने लगा। 

गीतांजलि एक्सप्रेस धीमे धीमे रुक गयी। मेरा स्टेशन आ गया था। मेरे जेहन में मार्था और राणा आ गए। मायकल की आत्मा ने उन्हें भी उनके स्टेशन पहुंचा दिया था। वो स्टेशन जो कि इस फानी दुनिया का सबसे आखरी स्टेशन होता है और जहाँ हर किसी को देर सबेर पहुंचना ही होता है।

जीवन में इसलिए शायद कभी भी किसी के साथ बुरा नहीं करना चाहिए। ज़िन्दगी अपना रास्ता ढूंढ ही लेती है और सबका हिसाब किताब तो बस यहीं पर होता है। इस फानी दुनिया में इतना समय नहीं  है कि हम अपने जीवन के अच्छे कर्मो को छोड़कर बुरे कर्म करे ! इसलिए कभी भी किसी का बुरा नहीं करना चाहिए।......यही सब सोचते सोचते मैं स्टेशन के बाहर निकला।

मैं स्टेशन के बाहर निकला और आसमान की ओर देखा. मैंने एक गहरी सांस ली और घर की ओर चल पड़ा !

उस रोज सांध्य दैनिक न्यूज़पेपर के  मुखपृष्ठ पर ही एक खबर थी- मर्डर इन गीतांजलि एक्सप्रेस !!!

© विजय कुमार