[ Image courtesy : Google Images ]
बात कई साल पुरानी है .जब मेरी नयी नयी नौकरी नागपुर में लगी थी .मैं एक सेल्समेन था और मुझे बहुत टूर करना पड़ता था. मार्च महीने के दिन थे . दोपहर का वक़्त था और तेज गर्मी से मेरा बुरा हाल था . बुरा हो इन इलेक्ट्रिसिटी डिपार्टमेंट वालो का , कम्बक्तो ने उस दिन बिजली काट रखी थी .मेरा दिमाग बहुत ख़राब था .
अचानक मेरे फ़ोन की घंटी बजी , मेरा खराब मन और चिडचिडा हो गया . एक तो उमस भरी गर्म हवाये खिड़की से आकर हाल खराब किये जा रही थी और ऊपर से ढेर सारा काम , मार्च का महिना , टारगेट चेसिंग , एक सेल्समेन की ज़िन्दगी कितनी बेकार हो सकती है , ये तो कोई मुझसे आकर पूछे. फ़ोन की घंटी लगातार बज रही थी . मुझे पक्का विश्वास था की ये जरुर मेरे बॉस का होंगा , मुझे कोई न कोई काम दे रहा होंगा.
खैर बड़े ही अनमने मन से फ़ोन उठाया और कहा, "हेलो ! दिस इज राजेश फ्रॉम सेफ्टी प्रोडक्टस प्राईवेट लिमिटेड .”
उधर से बॉस की खरखराती हुई आवाज आई , " राजेश , तुम आज के आज ही टिटलागढ़ में जाकर वहां के स्टील प्लांट में परचेस ऑफिसर से मिलो . मैं फैक्स भेज रहा हूँ सारी डिटेल्स उसी में है . "
मैंने मिमियाते हुए कहा , " सर बहुत काम है , अगले हफ्ते चले जाऊं ? "
बॉस ने बहुत प्यार से कहा , " नो डिअर , अगले हफ्ते कोई और काम दूंगा , गो गेट इट डन एंड रिपोर्ट मी सून ! "
फ़ोन कट गया और मेरा दिमाग और ख़राब हो गया !
कुछ दोस्तों को फ़ोन किया तो पता चला कि टिटलागढ़ जाने का एक ही रास्ता है और वो है ट्रेन से .. मुझे रायपुर के पास दुर्ग जाना होंगा और वहां से दुर्ग से विशाखापट्नम तक एक पसेंजर ट्रेन जाती है , जो रात को टिटलागढ़ पहुंचाती है .
मैं सोच ही रहा था कि फैक्स आ गया . उसमे उस स्टील कंपनी की डिटेल्स थी और उस परचेस ऑफिसर की डिटेल्स दी गयी थी और उस कंपनी की जरुरत की इंस्ट्रुमेंट्स की डिटेल्स दी गयी थी . पढ़कर लगा कि ये तो १००% सेल्स है , मेरा टारगेट कुछ और पूरा हो जाता . ख़ुशी की बात थी .
मैंने जाने का फैसला कर लिया . और समय देखा तो दोपहर के १२ बज रहे थे. रेलवे स्टेशन में फ़ोन करके ट्रेन्स की बाबत पता किया तो एक ट्रेन थोड़ी ही देर बाद थी , जो कि मुझे दुर्ग शाम ५ बजे तक पहुंचा दे सकती थी . फिर वहां से शाम को 7 बजे दूसरी गाडी. मतलब मुझे अभी ही निकलना होंगा, यही सोचकर सारी पैकिंग कर लिया [ वैसे भी एक सेल्समन का बैग हमेशा पैक ही रहता है ] , मैं स्टेशन निकल पड़ा .
स्टेशन जाकर देखा तो इतनी भीड़ थी कि बस पूछो मत. लगता था कि सभी को बस कहीं कहीं न हमेशा जाना ही होता है . स्टेशन में ही आकर पता चलता है कि हमारी जनसँख्या बढती ही जा रही है .मेरी ट्रेन जो बॉम्बे से हावड़ा जा रही थी वो प्लेटफोर्म पर आ चुकी थी , टिकट लेकर बैठ गया. थोड़ी देर बाद टिकट कलेक्टर बाबू आये तो उन्हें खुशामद करके एक रिजर्वेसन की बर्थ ले ली और उस पर पसर कर सो गया ये सोच कर कि क्या पता रात को नींद मिले या नहीं . थोड़ी देर बाद ही किसी ने उठाया कि बाबु जी , आपका स्टेशन आ गया . बाहर देखा तो दुर्ग स्टेशन का बोर्ड लगा हुआ था .
खैर , बाहर आया , थोड़ी पूछताछ की तो पता चला कि दुर्ग -विशाकापटनम पैसंजर गाडी शाम ७ बजे निकलेंगी . मैंने घडी देखा , करीब डेढ़ घंटे का समय था. मैं ने ये सोचा कि पता नहीं रात को वहां टिटलागढ़ में मुझे कुछ खाने को मिलेंगा या नहीं . अभी ही कुछ खा पी लेता हूँ . स्टेशन के बाहर एक ढाबा था , उसी में बैठकर दाल रोटी खा ली , और एक ग्लास लस्सी पी ली , पेट भर गया . और रात के लिए एक टिफिन बंधवा लिया . और एक थम्प्स अप कोला की बोतल लेकर , उसे आधा पी लिया और फिर उसमे रम मिला दिया [ कोला में सोमरस मिलकर सफ़र करना हर एक योग्य सेल्समन की निशानी है ]...ये कोकटेल सेल्समेन के पास हमेशा ही रहती है .अब मैं अगली यात्रा के लिए तैयार था .
टिटलागढ़ की टिकट लेकर प्लेटफोर्म पर जाकर बैठा . ट्रेन को आने में समय था , सोचा एक किताब खरीद लूं. वहां बुक स्टाल में देखा तो नयी वाली मनोहर कहानिया थी और ब्रोम स्टोकर की ड्रैकुला थी , दोनों ले लिया , उस वक़्त में ये दोनो ही किताबे बड़ी चलती थी . ड्रैकुला मैंने पढ़ा नहीं था , यारो ने बड़ी तारीफ़ की थी , इस लिए इसे खरीद लिया . और हम सेल्समेन के लिए मनोहर कहानिया , बहुत बड़ा टाइम पास हुआ करता था उन दिनों .
खैर थोड़ी देर में हर स्टेशन की तरह इस स्टेशन पर भी लोगो का सैलाब आ गया , चारो तरफ खाने पीने के ठेले और लोगो की भीड़ , फिर धीमे धीमे चलती हुई ये पसेंजर ट्रेन आई , ट्रेन के आते ही लोग टूट पड़े , जिसको जहाँ जगह मिली , वहां सवार हो गया , मैं भी एक डिब्बे में घुस पड़ा और एक खिड़की की सीट हथिया ली. , पूरी ट्रेन लोगो, मुर्गियां और बकरियां , खाने पीने की चीजो और अलग अलग आवाजो से भर गयी . भारत की रेलगाड़ियाँ और उनका सफ़र कुछ ऐसा ही होता है .
खैर ,ट्रेन शुरू हुई और हर जगह रूकती हुई अपने मुकाम पर चल पड़ी , मैंने अपनी थम्प्स अप की बोतल से धीरे धीरे कोला +सोमरस की चुस्कियां लेनी शुरू की और मनोहर कहानियां को पढने के लिए निकाला . ये भूत-प्रेत कथा विशेषांक था. मुझे इस तरह की कहानिया और फिल्मे बड़ी पसंद आती थी . कुछ कहानिया पढ़ने के बाद देखा तो रात हो चली थी . ट्रेन पता नहीं कहाँ रुकी थी , बहुत से मुसाफिर ऊँघ रहे थे , कुछ सो ही गए थे , कुछ बातो में मशगुल थे. मैंने घडी देखी, रात के करीब १० बज रहे थे., मैंने बैग में से अपना टिफिन निकाला और खाना शुरू किया , ये टिफिन मैंने दुर्ग में ढाबा से बंधवा लिया था. खाने के बाद, फिर धीरे धीरे चुस्की लेते हुए मैंने अब ड्रैकुला किताब पढनी शुरू की . ये एक जबर्दश्त नॉवेल था. बहुत देर तक पढने के बाद मैंने देखा घडी रात के १:३० बजा रही थी . मेरा स्टेशन अब आने ही वाला था. आस पास के मुसाफिरों से पुछा तो पता चला की ट्रेन थोड़ी लेट है और करीब २ बजे तक पहुंचेंगी . मैंने अब अपना बैग बंद किया और इन्तजार करने लगा उस स्टेशन का , जहाँ मैं पहली बार जा रहा था और नाम से ही ये कुछ अजीब सा अहसास दे रहा था. टिटलागढ़ , भला ये भी कोई नाम हुआ. खैर , अपने देश में तो ऐसे ही नाम मिलेंगे गाँवों के और शहरो के.
करीब २:१५ पर मेरा स्टेशन आया . मैं उतरा और चारो तरफ देखा , एक अजीब सा सन्नाटा था. कुछ लोग मेरे साथ उतरे और बाहर की ओर चल दिए. मैंने सोचा अब किसी होटल में जाकर रात काट लेता हूँ और सुबह स्टील प्लांट में जाकर काम पूरा कर लूँगा. स्टेशन में एक टीटी दिखा उससे पुछा कि यहाँ कोई होटल है आस पास, उसने हँसते हुआ कहा , " साहेब , ये छोटी सी जगह है यहाँ कौनसा होटल मिलेंगा , आप तो यही वेटिंग रूम में रात गुजार लो और कल जहाँ जाना हो , वह चले जाना ."
करीब २:१५ पर मेरा स्टेशन आया . मैं उतरा और चारो तरफ देखा , एक अजीब सा सन्नाटा था. कुछ लोग मेरे साथ उतरे और बाहर की ओर चल दिए. मैंने सोचा अब किसी होटल में जाकर रात काट लेता हूँ और सुबह स्टील प्लांट में जाकर काम पूरा कर लूँगा. स्टेशन में एक टीटी दिखा उससे पुछा कि यहाँ कोई होटल है आस पास, उसने हँसते हुआ कहा , " साहेब , ये छोटी सी जगह है यहाँ कौनसा होटल मिलेंगा , आप तो यही वेटिंग रूम में रात गुजार लो और कल जहाँ जाना हो , वह चले जाना ."
मैंने सोचा वेटिंग रूम में रात गुजारने से बेहतर है कि मैं एक कोशिश कर ही लूं होटल ढूँढने की . रात भर नींद आ जाए तो दुसरे दिन का काम कुछ बेहतर होता है . मैं स्टेशन के बाहर पहुंचा , देखा तो मरघट जैसा सन्नाटा था , दिन का गर्मी का मौसम अब कुछ सर्द लग रहा था , कुछ तेज हवा भी रह रह कर बह जाती थी . कहीं कोई नहीं दिख रहा था . उस नीम अँधेरे में एक छोटा सा लाइट था लैम्प पोस्ट का , जो एक बीमार सी पीली रौशनी बिखेर रहा था. मैंने कुछ दूर देखने की कोशिश की. थोड़ी दूर पर मुझे अचानक एक तांगा वाला नज़र आया ,. मैं दौड़कर उसके पास पहुंचा , वो एक बहुत पुराना तांगा था , एक मरियल सा घोडा बंधा हुआ था उसके साथ जो कि हिल भी नहीं रहा था. और तांगेवाला , पूरी तरह से एक कम्बल में बंद होकर मूर्ती की तरह बैठा हुआ था. मुझे इस पूरे माहौल में काउंट ड्रैकुला की याद आई , उसने भी कहानी की नायिका को लेने के लिए कुछ ऐसा ही तांगा भेजा था . एक सिहरन सी दौड़ गयी मेरे रीड की हड्डी में.
मैंने जोर लगाकर उस तांगेवाले से पुछा , भैय्या , अगर आसपास कोई होटल हो तो मुझे पहुंचा दोंगे क्या ? तांगेवाले ने अपने चेहरे से कम्बल हटाया , वो एक अजीब सा चेहरा था,. या चेहरा सफ़ेद सा था, या उसकी दाढ़ी थी , पता नहीं , पर मैं असहज हो उठा ,उसे देखकर ! मुझे एक अजीब से गंध आने लगी . मुझे समझ नहीं आ रहा था कि वो गंध कहाँ की है , पर वो कुछ जानी सी गंध थी . उसने एक धीमी सी आवाज में कहा , यहाँ कोई होटल अभी नहीं मिलेंगा ,बाबू जी , आज तो आप वेटिंग रूम में ही आराम कर लो , कल आप यही तैयार हो जाना , मैं आपको स्टील प्लांट छोड़ दूंगा . मैं एकदम चकित होकर पुछा , तुम्हे कैसे मालुम कि मैं प्लांट जाऊँगा, उसने अजीब सी हंसी हँसते हुए कहा , यहाँ सब प्लांट जाने के लिए ही आते है बाबू जी ,. उसकी हंसी मुझे , रात के उस वक़्त , उस बियाबान जगह में बहुत भयानक सी लगी , मैं कहा, ठीक है , मैं यही रुकता हूँ , मेरी बात सुनकर उस की आँखों में एक चमक सी उभरी , मेरे दिमाग में फिर काउंट ड्रैकुला फ्लैश कर गया. मैं पलट कर स्टेशन की तरफ चल पड़ा , मैंने अपने डरते हुए मन को समझाया , यार राजेश , ये सब यहाँ का माहौल और तेरी किताबो का असर है . शांत रह !! मैं कई बरसो से सेल्समन की हैसियत से सफ़र करता आ रहा हूँ , लेकिन उस रात का असर कुछ अलग ही था ,. मैं स्टेशन के भीतर घुसते हुए पीछे पलट कर देखा, वो तांगावाला अब नहीं था. कमाल है , मुझे उसके जाने की कोई आवाज़ सुनाई नहीं दी , न ही घोड़े की टाप , न ही कोई और आवाज . पता नहीं, मैंने सोचा कि , लगता है , कोला और सोमरस की चुस्की कुछ ज्यादा ही हो गयी है शायद.
मैंने धीरे धीरे पूरे स्टेशन पर गौर किया , पूरा का पूरा स्टेशन ही सुनसान था. प्लेटफोर्म के अंतिम छोर पर एक छोटे से कमरे के आगे लिखा था वेटिंग रूम . मैं उसी में घुस पड़ा . देखा तो एक छोटा सा गन्दा सा कमरा था. एक पीला बल्ब जल रहा था. एक बेंच थी . उस पर एक बुढा बैठा था, उसके सामने नीचे में एक बूढी बैठी थी और साथ में दो जवान बच्चे थे . मुझे आया देखकर सबने मेरे तरफ देखा .फिर नीचे बैठे बूढी और दोनों बच्चो ने उस बूढ़े की ओर देखा . उस बूढ़े ने उनसे धीमी आवाज़ में कुछ कहा और फिर मुझे पुकारा , " आओ बाबूजी , आईये , यहाँ बैठिये. " मैं बहुत अच्छा सा महसूस नहीं कर रहा था . कुछ अजीब जी बात थी .. जो मुझे उस वक़्त डिस्टर्ब कर रही थी .. लेकिन क्या ये समझ नहीं आ रहा था. मैंने सोचा "बस राजेश यार ; कुछ घंटो की बात है , यहाँ इस वेटिंग रूम में गुजार कर कल अपना काम ख़त्म करके वापस चलते है" . मैं उस बूढ़े की ओर बढ़ा और बेंच पर बैठ गया . मुझे फिर से वही अजीब से गंध आने लगी . मैंने याद करने की कोशिश की , कि वो गंध कहाँ की है , पर कुछ याद नहीं आया. मैंने उन चारो की ओर देखा. चारो कम्बल से अपने आप को ओडे हुए थे. किसी का भी चेहरा उस कम रौशनी में दिख नहीं रहा था. माहौल में अचानक ठण्ड आ गयी थी , मैं सोच भी रहा था , मार्च महीने में ठण्ड ? मैंने उस बूढ़े से पुछा , "यहाँ का मौसम कुछ अजीब है , मार्च में ठण्ड लग रही है ?" बूढ़े ने खरखराती हुई आवाज में कहा , "बाबु जी , ये जगह चारो तरफ से पहाडियों से घिरी हुई है . इसीलिए ये ठण्ड महसूस होती है . आप कहाँ से आ रहे हो , मैंने कहा , मैं नागपुर से आ रहा हूँ ", बुढा चुप हो गया . बूढ़े ने थोड़ी देर बाद पुछा , "स्टील प्लांट के लिए आये हो ?", मैं चौंक गया , उसकी तरफ देखा तो , पहली बार उसका चेहरा देखा , एक बुढा आदमी , बहुत सी झुरीयाँ एक अजीब सा सफेदी का रंग चेहरे पर. मैंने थोड़ी सावधानी से कहा , "आपको कैसे मालुम , कि मैं यहाँ किसलिए आया हूँ ." बूढ़े ने हंसकर कहा , यहाँ सब उसी के लिए आते है ..
मुझे फिर से बहुत तेजी से वो गंध आई .. मुझे लगा मैं बेहोश हो जाऊँगा . मैं ने फिर उनसे कहा कि आप लोग कौन है , और कहाँ जायेंगे. , ये सुनकर चारो ने एक साथ मुझे देखा , उन चारो की आँखों में एक चमक आई , मैं सकपका बैठा ,. यही चमक मुझे उस तांगेवाले की आँखों में भी दिखी थी .बूढ़े ने कहा , "हम तो यही के है बेटा , हम कहाँ जायेंगे ". मैं असहज हो रहा था. मैंने अपने बैग से बचा हुआ कोला पी लिया , सिगरेट का एक पैकट निकाल कर बाहर आने की कोशिश की , लगा , नींद आ रही है , फिर मैंने उस बूढ़े से पुछा. "आपके पास माचिस है?" , ये सुनकर चारो एक दम से डर से गए , बूढ़े ने तुरंत कहा , " नहीं , नहीं , हम माचिस नहीं रखते." मैं वेटिंग रूम के बाहर आ गया ,. अब कोई गंध नहीं आ रही थी . मैं ने एक फैसला किया कि मैं बाहर ही रुकुंगा,. मैंने घडी देखी , करीब ३:३० बज रहे थे. मैं ने अपने आपको समझाया कि बस यार कुछ देर और. मैंने बैग में टटोला तो एक पुरानी माचिस मिल गयी , मैंने सिगरेट सुलगाया और पीछे मुड़कर देखा . देखा तो ठगा सा खड़ा रह गया , चारो मेरे पीछे ही खड़े थे. और मुझे देख रहे थे. मैं सकपकाया . और फिर से सिगरेट पीने लगा , फिर मैंने मुड़कर देखा तो वो चारो वेटिंग रूम के दरवाजे पर खड़े होकर मुझे देख रहे थे. मेरी सिगरेट ख़त्म हो चली थी , मैं धीरे धीरे चलने लगा फिर मैंने दूसरी सिगरेट सुलगाई और फिर देखा तो उन चारो के आँखों में एक अजीब सी चमक आ गयी थी . मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था , नींद के भी झोंके भी आ रहे थे. मेरी आँखे भी रह रह कर मुंद जाती थी .
अचानक किसी ने मेरी बांह पकड़कर खींचा और चिल्लाया मरना है क्या , मैंने देखा तो एक ट्रेन आ रही थी और मैं प्लेटफोर्म के किनारे में था. अचानक ही ऐसा लगा कि बुढा मेरे पास खड़ा है और मुझे धक्का देना चाहता है . मैं घबरा कर देखा तो स्टेशन मास्टर था. उसने कहा कि बेंच पर जाकर सो जाओ . मैंने वही फैसला किया , स्टेशन पर एक बेंच थी , उस पर जाकर लेटा और सोने की कोशिश करने लगा , अब मुझे डर भी लग रहा था. अचानक करवट बदली तो देखा वही बुढा पास में खड़ा था , मैं उठकर बैठ गया , मैंने कहा , "क्या बात है , क्या चाहते हो ?" मुझे लगने लगा कि वो चोरो की टोली है , जो मेरे बैग छीनना चाहते है .
उस बूढ़े ने कहा , "यहाँ मत सोओ बेटा , वहां वेटिंग रूम में सो जाओ " .मैंने कहा कि , "मैं यही सो जाऊँगा और अगर तुम यहाँ से नहीं गए तो मैं स्टेशन मास्टर के पास तुम्हारी शिकायत करूँगा." ये सुनकर वो मुस्कराया , उसकी मुस्कराहट ने मेरी रीड की हड्डी में कंपकंपी पहुंचा दी. वो एक सर्द मुस्कराहट थी. मुझे वो गंध फिर आने लगी . वो चला गया .
उसके जाते ही मैं गहरी नींद में चला गया . कुछ देर बाद किसी गाडी की आवाज ने मुझे उठा दिया . देखा तो सुबह हो चुकी थी , रात के बारे में सोचा तो हंसी आ गयी .मैंने अपने आप से कहा , कि मैं खामख्वाह डर रहा था. मुझपर लगता था कि किताबो का असर ही हो गया था. मैंने समय देखा , सुबह के ७ बज रहे थे. सोचा कि यही वेटिंग रूम में तैयार हो जाता हूँ , और फिर स्टील प्लांट जाकर शाम की गाडी से वापस चले जाऊँगा . एक दिन के होटल के पैसे भी बच जायेंगे और इस भुतहा जगह से पीछा छूट जायेंगा.
वापस वेटिंग रूम में गया , देखा तो बहुत से लोगो से भरी हुई थी . कुछ अच्छा लगा पहली बार इतनी भीड़ को देखकर. उस बूढ़े को ढूँढने /देखने की इच्छा हुई , लेकिन वो वहां नहीं था . मैं तैयार हुआ , बाहर निकला , सोचा चाय और नाश्ता करके सीधा प्लांट चला जाऊँगा . चाय की दूकान पर जाकर चाय वाले से चाय के लिए कहा , इतने में पीछे से आवाज आई ,"हमें चाय नहीं पिलाओंगे बाबू जी ? " आवाज सुनकर जेहन को झटका लगा , मुड़कर देखा तो वही बुढा ,बूढी और दोनों बच्चे थे .
दिन की रौशनी में भी मुझे एक अजीब सा डर लगने लगा. अचानक वही तेज गंध फिर से आने लगी , गौर से उन सबको देखा , सबके चेहरे थोड़े सफ़ेद से नज़र आये , सबकी आँखों में वही चमक , जो तांगेवाले के आँख में थी , उस तांगेवाले के याद आई.. स्टेशन के उस पार देखा तो उसी लैम्प पोस्ट के पास वो खड़ा था और मेरी ओर ही देख रहा था .
मैंने फिर गौर से बूढ़े की ओर देखा , मुझे लगा बेचारा बहुत ही गरीब है , कुछ मदद कर देनी ही चाहिए . मैंने पुछा. "कुछ पैसे चाहिए बाबा ?"
बूढ़े ने कहा , "नहीं , सिर्फ चाय पिला दो . तुम मेरे बेटे की उम्र के हो ..इसलिए तुमसे ही मांग रहा हूँ" . ये सुनकर मुझे दया आ गयी . मैं स्वभाव से ही बड़ा दयालु था .
मैं ने चाय वाले से कहा , " भाई इन चारो को भी चाय पिला दो ". चाय वाले ने मुझे गौर से देखा और पुछा , "किन चारो को बाबू जी ?", मैंने पलटकर देखा तो वो चारो फिर गायब थे. मेरा दिमाग फिरने लगा .पहली बार मुझे डर लगा .मैंने चारो तरफ देखा .. मुझे पसीना आ रहा था. पता नहीं लेकिन बहुत डर लग रहा था पहली बार .
अचानक देखा तो स्टेशन के गेट से मेरा एक पुराना दोस्त बाहर निकल रहा था , मैंने उसे आवाज़ दी , "उमेश , यहाँ इधर आ , मैं राजेश हूँ नागपुर से " उसने मुझे देखा और पास आया और पुछा, "यहाँ कैसे बे ?" मैंने कहा "यार स्टील प्लांट में परचेस में मिलने आया हूँ ". वो बोला कि "मैं भी वही जा रहा हूँ , चल साथ मेरे ." मुझे बड़ी राहत मिली , मैंने चारो ओर देखा , कोई नहीं था , न बुध और न ही बूढ़े का परिवार और न ही वो तांगेवाला .
उमेश से बस बिज़नस की दोस्ती थी और अक्सर हम एक ही कस्टमर के पास मिलते थे और अपने अपने बिज़नस के लिए लड़ते थे , पर आज बहुत अच्छा लग रहा था. हम दोनों प्लांट गए और अपना अपना काम किया . मुझे आर्डर मिल गया और उमेश को भी. हमने सोचा कि रात की गाडी से वापस चले जाते है . उसे रायपुर जाना था . मैं भी वही से गाडी बदलकर नागपुर चले जाऊँगा; ऐसा मैंने सोचा . हम दोनों को ही अपने आर्डर मिल गए थे इसलिए हमने सोचा कि मार्च के आखरी बिज़नस को सेलिब्रेट कर ले. हम एक छोटे से ढाबे पर जाकर खाने पीने में लग गये.. रात के करीब १२ बजे वो ट्रेन थी . हम ११ बजे पहुंचे स्टेशन पर और अपनी टिकिट लेकर इन्तजार करने लगे प्लेटफोर्म पर .
अचानक ही थोड़ी देर बाद मुझे वही अजीब सी गंध आने लगी .मैंने पलटकर देखा तो वही बुढा अपने परिवार और उस तांगेवाले के साथ मेरे पीछे खड़ा था. मैंने चिंहुक कर अपने बगल में देखा तो मेरा दोस्त बैठे बैठे ही सो रहा था. मैंने बूढ़े को देखा ,. वो अजीब सी हंसी हंसा और मुझसे कहने लगा कि "जा रहे हो बाबू जी . हमारे साथ थोड़ी देर और समय बिता जाते ." मैंने कहा देखो , "तुम्हे अगर कुछ पैसे चाहिए तो बोलो , मैं दे देता हूँ , पर मेरा पीछा छोडो ." बूढ़े ने कहा, " हमें पैसे नहीं आप चाहिए बाबू जी . आप बड़े अच्छे लगने लगे हो हमें.. तुम तो हमारे बेटे की उम्र के हो .". कहकर बुढा रोने लगा .. मुझे बड़ा अजीब सा महसूस हो रहा था . मैंने बूढ़े को अपने साथ बैठने को कहा उसी बेंच पर जहाँ मेरा दोस्त बैठा था. एक तो उस छोटे से स्टेशन पर ठीक से रौशनी भी नहीं थी . मुझे अच्छा नहीं लगा रहा था , लेकिन देखा की अब चारो और वो तांगेवाला सभी रोने लगे थे. बूढ़े ने मेरा हाथ थामा . बाप रे .. कितना ठंडा हाथ था उसका . मुझे एक सिहरन सी दौड़ गयी , एक तो वो अजीब सी गंध , दूसरा ये ठंडा हाथ और फिर उन सबका रोना. मेरा दिमाग में एक अजीब सी तारी छाने लगी . मेरी आँखे मुंदियाने लगी .
अचानक ही गाडी के आने की आवाज आई , मेरा दोस्त हडबडाकर उठा और मुझे बोला , "अबे चल; ट्रेन आ गयी है ". मैं भी हडबडा कर उठा. ट्रेन को देखने के चक्कर में इन सब को भूल ही गया . ट्रेन आई , हम दोनों जाने लगे ,मेरा दोस्त चढ़ गया ट्रेन में , मैंने चढ़ने लगा तो बूढ़े ने आवाज दी, " बेटा जा रहे हमें छोड़कर" , मुझे अजीब सा लगा , मैंने सोचा कुछ और फिर जबर्दश्ती बूढ़े के हाथ में कुछ रुपये रखा और झुककर बूढ़े के पैर छूना चाहा . उन दिनों मैं हर उम्रदराज व्यक्ति के पैर छु लिया करता था.
देखा तो बुढा मुड गया था , उसके पैर उलटी दिशा में थे , मैंने सर उठाकर कहने लगा , बाबा पैर तो छूने दो , देखा तो उनका चेहरा मेरी ही तरफ था . फिर नीचे देखा तो पैर उलटी तरफ थे ..........मुझे एक गहरा झटका लगा , मैं जोर से चिल्लाया , और बेहोश हो गया . ......
थोड़ी देर बाद किसी ने मेरे चेहरे पर पानी डाला . आँखे खुली देखा तो मेरा दोस्त उमेश था. मैं गाडी में लेटा था और गाडी चल रही थी ..उमेश बोला "साले, ज्यादा पीता क्यों है , जब संभलती नहीं है ".. मैं अटक अटक कर बोला , "भूत .". वो हंसने लगा , " भूत! अबे इस दुनिया में भूत कहाँ होते है . ये सब बेकार की बाते है , तू सो जा" .... मैं फिर सो गया या बेहोश हो गया था ..
बहुत जोर जोर की आवाजे आ रही थी .. बड़ी मुश्किल से मैंने अपनी आँखे खोला .. देखा तो कोई स्टेशन था. उमेश पहले ही उठ गया था ,.मुझे देख कर कहा .. "उठ जा राजेश... सुबह हो गयी" , मैंने पुछा ,"यार ,कौन सा स्टेशन है " . उसने कहा, " रायपुर है .. मैं उतर रहा हूँ.. तू यही से दूसरी गाडी ले ले नागपुर के लिए .. चल तुझे बिठा देता हूँ.". हम दुसरे प्लेटफोर्म पर पहुंचे .वहां एक गाडी थी जो नागपुर जा रही थी . उमेश जाकर टिकिट , अखबार और चाय ले आया .
मेरी हालत कुछ ठीक नहीं थी .. कल का ही असर था. उमेश ने टीटी से बात करके एक जगह दिलवा दी .. मैं अपनी सीट पर बैठ गया ..उमेश चला गया .. मैंने चाय पी. और अखबार खोला .. तीसरे पेज पर एक खबर पर मेरी निगाह रुक गयी .. मेरी सांस अटक कर रह गयी .. उस खबर में उस बूढ़े का परिवार का फोटो उस तांगेवाले के साथ था. जल्दी जल्दी खबर पढ़ी तो सन्न रहा गया , वो पूरा परिवार उस तांगेवाले के साथ टिटलागढ़ के पास एक एक्सिडेंट में दो दिन पहले ही मारे जा चुके थे. सबकी लाशें मिल गयी थी लेकिन उसके तीसरे बेटे के लाश अब तक नहीं मिली थी ...तस्वीर गौर से देखा तो उसके बेटे का भी एक फोटो दिया हुआ था जिसकी लाश अब तक नहीं मिली थी ...उसका चेहरा मुझसे मिलता था ......मैं सिहर कर रह गया ....... !!
मैं पत्थर सा बन कर रह गया ..तो क्या मैंने शापित आत्माओ के साथ टिटलागढ़ की रात काटी थी ..मुझे अब सब कुछ समझ में आ रहा था., वो तेज गंध शमशान में जल रही लाशो की होती है , जो उस वक्त कल मुझे आ रही थी .....वो सफ़ेद चेहरे लाशो के होते है .... वो चमकीली आँखे भूतो की होती है ... और भारत में ये कहा जाता है कि भूतो के पैर उलटी तरफ होते है ..अब सब कुछ समझ आ रहा था और मैं तेजी से डर के मारे कांप रहा था ...
ट्रेन तेजी से भाग रही थी और मैं कांप रहा था....मेरी हालत देख कर किसी ने पानी पिलाया ...मेरी दिमागी हालत खराब हो गयी थी ..थोड़ी देर बाद एक भिखारी भीख मांगने आया अपने साथियो के साथ . मैंने यूँ ही नज़र डाली तो देखा वही बुढा अपने परिवार और तांगेवाले के साथ था .. मुझे देख कर उसकी आँखे चमक रही थी ... मैं फिर बेहोश हो गया .
[ Image courtesy : Google Images ]
दोस्तों ,
ReplyDeleteनमस्कार .
फिर से पहला कमेन्ट मैं ही लिख रहा हूँ , इसी बहाने आप सभी से कुछ बाते हो जाती है.
दोस्तों , भूत होते है या नहीं , ये एक लम्बी और अंतहीन बहस का मुद्दा है . हाँ , मैं ये मानता हूँ कि कुछ evil forces होती है , कही कहीं paranormal activity भी होती है कुछ supernatural forces के कारण . मार्केटिंग के अपने लम्बे करियर के दौरान मैं अपने देश के कई ऐसे जगहों में गया हूँ , जहाँ ये असहज बाते होती रहती है . बस मैं एक रोचक सी सत्य घटना पर आधारित कहानी लिखना चाहता था . सो लिखा हूँ . सिर्फ अंत में climax के लिए कुछ imagination का सहारा लिया है वरना ये एक सत्य घटना है ..
Horror genre में मेरी लिखने का मन था सो आप सभी के सामने ये कहानी है . ये कहानी किसी भी तरह की सत्यता स्थापित करने के लिए नहीं है. मैं उम्मीद करता हूँ कि आप सभी को ये कहानी पसंद आएँगी , कोई गलती हो तो उसे भी बताये . मात्राओ की और वर्तनी की गलती हो सकती है. सारी गलतियों के लिए माफ़ी.
आपके भावपूर्ण कमेंट्स के इंतजार में…….!
प्रणाम
विजय
Good
DeleteMai Odisha ka, Titilagad k najdik k District k rehne bal hun. Sab ki tarah mujhe v kahani bahat pasand aai. Aur mujhe jyada practical laga kyun ki main iss chotti si sahar se parichit hun. Dhanyabad Sir.
Deleteबहुत ही बेहतरीन लिखा है आपने ... शुरू से अंत तक कभी विश्वसनीय तो कभी मात्र कथानक उत्कृष्ट लेखन के लिए आभार ।
ReplyDeleteशुक्रिया सदा जी .. आपको कहानी पसंद आई .
Deleteआपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
पढते पढते रोंगटे खड़े हो गए ...शुरू से अंत तक उत्सुकता बनी रही ...
ReplyDeleteशुक्रिया अनु
Deleteआपको कहानी पसंद आई .
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
nice stori
DeleteSach hai ya jhooth...pata nahin....lekin kahani dilchasp hai....Vijayji....
ReplyDeleteसंदीप जी , कहानी तो सच्ची ही है .
Deleteआपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
विजय कुमार जी!...बहुत रोचक कहानी है!...मानती हूँ कि इस कहानी में ८०% हकीकत ही होगी!...क्यों कि जीवन मैं ऐसे दो अनुभवों से मैं गुज़री हूँ!
ReplyDeleteअरुणा जी ,
Deleteआपने सच कहा , कहानी तो सच्ची ही है ..
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
दिलचस्प,हैरतअंगेज| अंत तक पाठक को बाँधने में सक्षम|
ReplyDeleteशुक्रिया संजय जी ..
Deleteआपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
Bahut Rochak prastuti...ab yathart ke kitne kareeb hai ......iska andaja laga pana thoda muskil hai mere liye.kyki mai abhi in jaise muddo se 2-4 nahi hua hun...........akhiri tak jigyasa ko banae rakhne ke liye aabhar
ReplyDeleteअमरेन्द्र जी
Deleteआपको कथा पसंद आई , इसके लिये शुक्रिया .
मैं तो सिर्फ इतना ही कहूँगा कि इस तरह की बाते तो होती ही रहती है . इनकी अपनी एक दुनिया होती है . और कभी कभी हमारा इनसे वास्ता पढ़ जाता है .
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
बहुत ही बढ़िया और रोचल लगी आपकी यह कहानी मुझे भी इस तरह की कहानियाँ पसंद है शुरू से आखिर तक पाठक को बांधे रखती है यह कहानी....
ReplyDeleteपल्लवी जी
Deleteशुक्रिया ,मेरी कहानी को पसंद करने के लिये .
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
कहानी मे रोचकता बरकरार रही।
ReplyDeleteवंदना जी
Deleteशुक्रिया जी .आपको कहानी रोचक लगी .
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
Yanha par is vakt raat ho rahi hai aapki khani padhne baithi eak saans men padh to daali par itna dar lag raha hai ab ki apne room se dusre room men jaane ki himmat nahi hai agar ye sach hai to main aapki haalt samjh sakti hun ki kya hui hogi....
ReplyDeleteभावना जी
Deleteआपको कहानी पसंद आई और आप कहानी में इतनी गहरी डूब गयी .
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
nice story, i believe in supernatural feelings.....
ReplyDeleteshubhkamnayen
प्रीती जी
Deleteकहानी को पसंद करने के लिये शुक्रिया .. हाँ न , supernatural activities तो होती ही है .
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
ईमेल के द्वारा कमेन्ट :
ReplyDeleteVijay ji,
bahur hi achi kahani hai, Bue ek sawal tha : Kya Bhoot hote hai?
with regards,
Kosha
कोशा जी
Deleteकहानी पसंद करने के लिये धन्यवाद.
भूत होते है ? इस प्रश्न का सीधा उत्तर तो नहीं है मेरे पास , लेकिन हाँ supernatural powers तो होते है .. मैंने अनुभव किया है .
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
बहुत ही बेहतरीन लिखा है और बहुत ही सुन्दर कहानी है!. ....आभार !
ReplyDeleteशुक्रिया सवाई सिंह जी ..
Deleteआपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
अगर यह सच है , तो मानना पडेगा कि सच मे कोई ऐसी 'योनी' यानि की भूत योनी है ! मगर मुझे अभि तक ऐसा कोई अनुभव हुआ नही है ! आपने बताया कि यह स्त्य घटना है तो मान लेताहु ! वाकई यह डरावनी घटना कह शकते है ! कीतने समय पहले की यह बात है ? और अब उन लोगों से कभी मुलाकात फीर से हुई है क्या ?
ReplyDeleteमहेश जी ..
Deleteये करीब १९९२ की घटना है . दुबारा उन लोगो से कभी मुलाकात नही हुई. क्योंकि उस घटना के बाद भी कई बार राजेश को वहां जाना पढ़ा .बाद में उस प्लांट में आग लग जाने से वो प्लांट ही बंद हो गया . लेकिन वो लोग दुबारा नहीं दिखे .
रही बात अनुभव की तो किसी किसी को होता है , और किसी किसी को नहीं हो पाता .. it depends on several conditions of the situation . लेकिन हाँ , डर तो करीब करीब सभी को लगता है .
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
इस कहानी ने अन्त तक बाँध लिया, शुक्र है कि दिन में कहानी पढ़ रहे हैं।
ReplyDeleteप्रवीण जी , शुक्रिया आपको कहानी पसंद आई , वैसे इस कहानी को पढ़ने का असली मज़ा तो रात में ही है .
Deleteआपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
आप ने सिद्ध कर दिया कि साहित्य की हर विधा पर आप का समान अधिकार है
ReplyDeleteबहुत रोचक ढंग से लिखी गई ये सत्य घटना डराने में भी सफल है :)
इस्मत जी , इज्जत अफजाई और हौसला बढाने के लिये शुक्रिया .
Deleteडर ,इंसान की जिंदगी से जुदा हुआ रहता है और मेरी ये कहानी अगर इसमें सफल है तो मैं धन्य हुआ .
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
आपके कहानी को 2 बार पढ़ चुकी हूँ और अहि तक कन्फ्युज हूँ की ये कहानी है या हकीकत!बहुत ही शानदार लिखा है आपने।
ReplyDeleteक्षमा जी , ये कहानी तो हकीकत पर ही आधारित है ..इसलिए ये इतने करीब लग रही है .और फिर मैं हर कहानी को दिल से लिखता हूँ.
Deleteआपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
बहुत ही शानदार , जानदार ,
ReplyDeleteबधाई
शुक्रिया कमाल जी .. शुक्रिया दिल से .
Deleteआपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
रोचकता पूर्ण अंत तक पढ़ी
ReplyDeleteआशीर्वाद
दादी .. आपको अच्छी लगी .और क्या कहना मुझे. मेरा लिखना सार्थक हो गया .
Deleteआपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
विजय जी, कहानी बहुत ही रोचक और दिलचस्प थी, हर एक लाइन पढ़ने के बाद उत्सुकता और भी बढ़ रही थी । अगर ये सब आप के साथ वाकई में हुआ है तो आप बहुत ही हिम्मती है, जिस तरह मनुष्य योनी होती है ठीक ही वैसे ये सारी योनियां भी होती है, इसलिए मुझे इनमें यकीन है... कोई ज़रुरी नहीं की जो चीज़ हमें नज़र नहीं आती उस चीज का कोई अस्तिव्त नहीं होता, जब हम हवा को मानते हैं तो ये योनियां भी ज़रुर होती है, काफी समय बाद मुझे इतनी दिलचस्प कहानी और सत्य घटना पढ़ने को मिली , बहुत अच्छा लगा ।
ReplyDeleteरुचि राय
रूचि जी , शुक्रिया .
Deleteमैं भी आपसे सहमत हूँ . और मैंने इसे experience भी किया है . supernatural powers does exists . आपको इस कहानी ने बांधे रखा .
मुझे इस बात की खुशी है .
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
यह तो नहीं कह सकता कि ऐसा हो सकता है या नहीं, लेकिन कहानी बहुत दिलचस्प है और शुरु से अंत तक बांधे रखती है..
ReplyDeleteशुक्रिया कैलाश जी ;
Deleteआपको कहानी की रोचकता ने बांधे रखा .
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
बहुत रोमाँचक कहानी है विजय जी। अभी सुबह के छ बज रहे हैं लेकिन शरीर में सिहरन दौड़ गई है। आपकी लेखनी का कमाल है।
ReplyDeleteअद्भुत।
शुक्रिया शिव जी , कहानी को पसंद करने के लिए .
Deleteआपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
विजय भाई, मैं बस इतना ही कहना चाहता हूँ कि आपकी लेखनी में पाठकों को बाँधने के क्षमता है...
ReplyDeleteशुक्रिया सर .
Deleteबस आप सभी का आशीर्वाद चाहिए .
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
aisa bhi ho sakta hai kya... ek baar me pathniya:)
ReplyDeleteशुक्रिया सर जी .कहानी आपको पठनीय लगी .
Deleteआपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
pataa nahiin ki bhoot hote hain yaa nahiin lekin aapki is lajwaab kahani ne poore samay bandhe rakhaa aur yahii iski khubsurtii hai,badhai.
ReplyDeleteअशोक जी
Deleteआपने कहानी का आनंद लिया , इसके लिये आपका धन्यवाद. बस आपका आशीर्वाद है सर . आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
विजय जी मानवीय मन और भावनाओं का समावेश कई बार कई विचित्र अनुभव करवा देता है... परालौकिक संसार का अस्तित्व भी कहीं ना कहीं जरूर है... एक अच्छे कथानक के साथ पूरी न कहानी पाठकों को पढ़ने के लिए मजबूर करती है लेकिन कहानीगत कुछ गुणों की कमी थोड़ा खलती है... प्रस्तुतिकरण ज्यादा सशक्त नहीं हो पाया है... साथ ही घटनाक्रम के मुताबिक़ पात्रों और क्रमिकता का संगुणन थोड़ा असहज लग रहा है.
ReplyDeleteआशुतोष जी ,
Deleteमैंने हमेशा की तरह अपने तरफ से कहानी को १००% दिया हूँ. पर आप सभी पाठको की राय ही मेरे लिये हमेशा ही श्रेष्ट रही है और मैं आप सभी के आदेशो का पालन करता हूँ. मैं अगली बार और बेहतर कोशिश करूँगा . आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
कथानक में वाकई निरंतरता हैं सिलसिलेवार घटनाक्रम बांधे रखता हैं और जिज्ञासा भी पैदा करता हैं
ReplyDeleteहरीश जी .
Deleteआपका बहुत शुक्रिया कि आपको मेरी कोशिश कामयाब लगी .
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
बहुत प्रभावपूर्ण कहानी विजय जी....डरावनी कहानियों के शौकीनों के लिए अति सुन्दर सौगात...शुरु से अंत तक पाठकों को बाँधने में कामयाब...वैसे भूत प्रेतों में विश्वास नहीं करने का कोई कारन नहीं है...मैंने खुद ये अनुभव किया है....
ReplyDeleteशुक्रिया अलोक जी ,
Deleteमैं horror genre में कुछ बेहतर लिखना चाहता था . आपको मेरी कोशिश अच्छी लगी . मैं आगे और कुछ बेहतर लिखूंगा .
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
bahut hi rochak aur dilchasp kahani hai ,, satya ke najdik aur pathak ko bandhe rakhne me purntya samarth...aisa hota hai kai bar ,, hm bhi kai bar tour me gye hai aur rah me ek bar .. safed sadi wali koi khadi dikhi .. satya bilkul samne the .. par jab gadi aage badhi aur palat kar dekha to waha koi nhi tha ....wo jagah exident ke liye mashur tha....ais driver ne bataya ......
ReplyDeletebadhai.....sarthak rachna ke liye badhai ......
सुनीता जी
Deleteआप सही कह रही है . अक्सर एक्सीडेंट वाली जगहों में ऐसा अनुभव होता है . आपको कथा अच्छी लगी . शुक्रिया .
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
ईमेल के द्वारा कमेन्ट :
ReplyDeleteNew comment on your post "टिटलागढ की एक रात"
Author : आर.सिंह
एक अच्छी भुतहा कहानी.
सिंह साहेब .शुक्रिया आपको कहानी पसंद आई .आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
Deleteईमेल के द्वारा कमेन्ट :
ReplyDeletesheel nigam
kahani achchi hai, wakayee mein mar kar bhu atmayein is duniya mein rehtee hai, mera bhi anubhav hua hai kayi baar.
शील जी . शुक्रिया आपको कहानी पसंद आई , जी हाँ ,इनकी अपनी एक दुनिया होती है . आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
Deleteबहुत ही बढ़िया और दिलचस्प कहानी है सर...
ReplyDeleteशुरू से लेकर अंत तक कहानी बांधे रखती है...
बहुत ही बेहतरीन....
पर एक गड़बड़ हो गयी...
उत्सुकतावश मैंने यह कहानी रात में पढ़ ली है...थोडा डर लग रहा है..
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर....
:-)
रीना जी
Deleteशुक्रिया आपको कहानी पसंद आई , वैसे इस कहानी को पढ़ने का असली मज़ा तो रात में ही है . डरना जरुरी है .
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
कहानी दिलचस्प थी | भूतों के बारे में तो मुझे नहीं पता लेकिन एक हंसिकाएं याद आ रही है "भूतों का काम क्या है ,काम के भूत होतें हैं "|
ReplyDeleteसत्येन्द्र जी .शुक्रिया आपको कहानी पसंद आई .
Deleteआपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
ईमेल के द्वारा कमेन्ट .
ReplyDeleteMonika Bhatia
Aap bohut accha likhte hain Vijayji. Thnx for the story.
शुक्रिया मोनिका जी . आपको कहानी पसंद आई .
Deleteआपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
प्रवाह बाँधे रखता है....रोचकता बरकरार रही अन्त तक......बढ़िया.
ReplyDeleteधन्यवाद समीर जी .
Deleteआपको कहानी पसंद आई .
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
कल 31/05/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
शुक्रिया यशवंत जी .
Deleteआभार और धन्यवाद आपका .
comment on FB
ReplyDeleteAmar Tak
sunder aur rochak khani ke liye dhanyawad.
शुक्रिया अमर जी .
Deleteआपको कहानी पसंद आई .
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
email comment :
ReplyDeleteइतनी अच्छी इतनी डरावनी कहानी के लिए लिखने के लिए ....आपको बधाई ....बहुत रोमाचक स्टोरी और फिर आप कह रहे है ये सच है ..बापरे विजय .....आप मेरा हार्ट अटक करवाओगे लगता है .. वाह विजय मन गए आपको ..............सच खूब डराया आपने ...एक शिकायत ......आप को मैंने लिखा था में रात को पदुगी स्टोरी .....आपने मुझे बता देना था आभा रात में नही पड़ना ...आपको पता है में कितना डर गयी माँ को कस के पकड कर सोयी ... में पानी पिने किचन में भी नही गयी .......जैसे मेरे पीछे ही भुत खड़ा हो ....
शुक्रिया आभा जी ,
Deleteआपको कहानी पसंद आई . डरने के ही लिये तो लिखा है ये कहानी .. :):)मेरी जो इच्छा थी कि horror genre में लिखने की , वो सफल हो गयी .
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
rochak katha...shuru se ant tak baandhe rakhti hai.
ReplyDeleteशुक्रिया कविता जी ..
Deleteआपको कहानी पसंद आई .
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
KAHANI KEE SABSE BADEE VISHESHTA HAI USKAA ROCHAK HONA AUR PATHKON
ReplyDeleteKO BAANDHE RAKHNAA . AAPKEE KAHANI MEIN ROCHAKTA BHEE HAI AUR
PATHKON KO BAANDHE RAKHNE KEE KSHAMTAA BHEE . BADHAAEE .
प्राण जी , आपका दिल से शुक्रिया , आपसे तारीफ़ के दो शब्द भी मिल जाए तो लिखना सार्थक हो जाता है .
Deleteआपको कहानी पसंद आई .
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
बहोत ही अच्छी है ये भयकथा
ReplyDeleteअभय जी
Deleteशुक्रिया
आपको कहानी पसंद आई .
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
विजय भैय्या
ReplyDeleteशुभ प्रभात
ये क्या है...
लोगां तो अंधविश्वास का वहम दूर करने में लगे हैं
और आप....
सादर
यशोदा जी ,
Deleteशुभप्रभात .
मैंने पहले ही कमेन्ट में कहा है कि मैं कोई सत्यता नहीं स्थापित करना चाहता .मैं horror genre based एक कहानी लिखना चाहता था जो एक सत्य घटना पर आधिरित हो .
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
रोचक और दिलचस्प
ReplyDeleteअरुण जी शुक्रिया
Deleteआपको कहानी पसंद आई .
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
उत्सुकता कायम रखती… अच्छी कहानी...सादर।
ReplyDeleteशुक्रिया संजय जी और हबीब जी .
Deleteआपको कहानी पसंद आई .
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
ईमेल के द्वारा कमेन्ट :
ReplyDeletePRAN SHARMA
विजय जी , मुझे आप और आपके लेखन पर गर्व है .आप तो मेरे मन में बसे हैं . काम - काज की वज़ह से देर हो ही जाती है . आपकी नयी कहानी मुझे बहुत ही पसंद आयी है . कहानी का ताना -बाना आपने खूब बुना है . यूँ ही लिखते रहिये .
शुभ कामनाओं के साथ ,
शुक्रिया प्राण सर .
Deleteआप सभी महानुभावो का ही आशीर्वाद है .
आपका
विजय
बहुत ही रोचक कहानी
ReplyDeleteशुरू से अन्त तक कौतूहल बना रहा
to a great extent it reminds me of great Ruskin Bond
आभार
अंजनी कुमार जी .
Deleteशुक्रिया कि आपको कहानी पसंद आई . आपने इसके कथानक की तुलना , महान रस्किन जी से की , इसके लिये आभारी हूँ . लेकिन मैं उनके जितना बड़ा और महान लेखक नहीं हूँ. बस सब आप लोगो की दुवाये है.
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
thik
ReplyDeleteसुमन जी शुक्रिया
Deleteआपको कहानी पसंद आई .
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
रोंगटे खड़े कर दिए आपकी कहानी ने ..... A very effective presentation..!!!
ReplyDeleteसरस जी , शुक्रिया
Deleteआपको कहानी पसंद आई . धन्यवाद कि आपको इसकी प्रस्तुतीकरण पसंद आई .
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
विजय भाई..
ReplyDeleteरम थोड़ी ज़्यादा डाली होती तो कोई कहानी लिखने की नौबत नहीं आती..
कितना पुराना एक्सपीरियंस है अपना..
मनु भाई ...
Deleteसच कहा न :):):)
आपको कहानी पसंद आई .
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
आप सभी महानुभावो का ही आशीर्वाद है
ReplyDeleteBAAKI BHAGWAN AAP PAR APNA AASHIRWAD BANAAYE RAKHE
मनु भाई ,
Deleteआपकी दुआ भी चाहिए जी ..
शुक्रिया
:)
ReplyDeletebahut kuchha seekhne ko mila aapki kahani se thanks sir
ReplyDeleteसनत जी ,
Deleteशुक्रिया ,
आपको कहानी पसंद आई .
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
आप बुरा न माने तो मेरा एक विनम्र आग्रह है आपसे...हो सके तो आगे से आप अधिक से अधिक मात्र में कहानियां ही लिखें...क्योंकि जो धार आपकी कविताओं में है, उससे कई गुना अधिक कहानी में.. यदि आप कहानियो पर एकाग्रचित्त हो काम करें तो निश्चित ही नयी बुलंदियों को छुएंगे...
ReplyDeleteशुक्रिया रंजना जी .. आपने निश्चिंत ही मुझे हौसला दिया है .. दिल से धन्यवाद.
Deleteमैं और लिखूंगा .
आपकी राय के लिये आभार और धन्यवाद.
THANKS FOR POSTING ....
ReplyDeleteRAMESH VERMA
कृपया मुझे काल करे 09456846726
ReplyDeleteमधुर मिश्रा सांसद प्रतिनिधी पीलीभीत उत्तर प्रदेश
good story realy horror
ReplyDeletegood story realy horror
ReplyDeletesach me very intersiting story...
ReplyDeleteबिजय जी आपकी कहानी मेरा दिलो को छु लिया इस कहानी को मै पुरे 100% दुगा । मेरा एक छोटी सी राय है आप कुछ कहानी लिखकर paly store पर अपडेट कर दिजिए ।
ReplyDelete