कुछ दिन पहले तक मेरी हालत बहुत खराब थी . मुझे कहीं से कोई भी अटेंशन नहीं मिल रही थी . हर कोई मुझे बस टेंशन देकर चला जाता था , जैसे मैं रास्ते का भिखारी हूँ और मुझे कोई भी भीख में टेंशन दे देता था. मैं बहुत दुखी था . कोई रास्ता नहीं सुझायी देता था. मुझे कहीं से कोई भी अटेंशन मिलने के असार नज़र नहीं आ रहे थे .मैंने बहुत कोशिश की , इधर से उधर , किसी तरह से मुझे अटेंशन मिले , लेकिन मुझे कोई फायदा नहीं हुआ. उल्टा टेंशन बढ गयी . ऊपर से बीबी –बच्चे और आस पड़ोस के लोग और ताना मारते थे, कि इतनी उम्र हो गयी , मुझे कोई जानता ही नहीं था . रोज अखबार और टीवी ,रेडियो में दूसरों के नाम और उनके किये गए अच्छे –बुरे काम देख-पढ़-सुन कर दिल जल जाता था . मुझे लगने लगा था कि मेरा जन्म बेकार हो गया है .
थक –हार कर मैंने अपने सबसे अच्छे दोस्त को फोन लगाया और उससे अपना दुखडा रोया . उसने मुझे बहुत समझाने की कोशिश की ,कि अटेंशन पाने के चक्कर में मेरी टेंशन बढ जायेंगी . उसने कहा कि , अटेंशन सिर्फ बुरे कामो में ज्यादा मिलती है , अच्छे कामो में कम मिलती है . अब इतने बरसो से मैं अच्छा बनकर रहा हूँ , लेकिन मुझे तो कोई अटेंशन नहीं मिली , सो सोच लिया कि बुरा बनकर ही अटेंशन लूँगा .उसने बहुत समझाया ;लेकिन मैंने एक न सुनी , मैंने उससे कह दिया कि अगर वो मुझे कोई उपाय न बताये तो वो मेरा दोस्त नहीं .
अब बरसो की दोस्ती दांव पर थी , उसने मुझसे पुछा कि अगर मैं ऑफिस में कोई पैसो की गडबड करूँ तो मेरा नाम पुलिस के पास जायेंगा और इस तरह से मुझे अटेंशन भी मिलेंगी . मैं थोडा सा हिचखिचाया , मैंने कहा यार इतने बरसो में जो नहीं हुआ , वो काम करके , बुढापे में क्यों अपना नाम खराब करू. .फिर उसने कहा कि मैं अपने बॉस को छुरा भोंक दूं , शायद इससे मुझे प्रसद्धि मिल जाए . मुझे उसका ये उपाय पसंद तो बहुत आया , क्योंकि मैं अपने बॉस को सख्त नापसंद करता था. लेकिन छुरा मारने के नाम से दिल धडक गया , क्योंकि आज तक मैंने कोई मार –पीठ नहीं की थी . मैंने उससे कहा कि मैं उसके खाने में जहर मिला देता हूँ ..दोस्त ने पुछा लेकिन इससे तेरी तरफ कोई अटेंशन नहीं आयेंगा . किसी को जब पता ही नहीं चलेंगा कि तुने ये किया है तो तेरी तरफ किसी की अटेंशन नहीं आएँगी . उसकी बात में दम था . फिर उसने कहा कि उसके चेहरे पर स्याही फ़ेंक दे . जब वो किसी मीटिंग में होंगा , तब तुझे अटेंशन मिल जायेंगी . उसका ये आईडिया मुझे अच्छा लगा.
दूसरे दिन , जब ऑफिस की बोर्ड मीटिंग थी , तब मैंने भरी मीटिंग में अपने बॉस पर चिल्लाया और उससे कहा कि उसने मेरी जिंदगी खराब कर दी है , और ये कहकर गुस्से से अपने पेन की स्याही उसके ऊपर फ़ेंक दी . वो सावधान था , वो झुक गया , और मेरी द्वारा फेंकी गयी स्याही हमारे कंपनी के मालिक पर गिरी . मेरे कंपनी के मालिक ने दुनिया देखी थी , उसने मेरा गुस्सा सहन कर लिया और समझदारी से काम लिया , उसने मेरे बॉस की और मेरी तनख्वाह २५% कम कर दिया और कहा कि अगली बार ,इस तरह की घटना होने पर ,हम दोनों को नौकरी से हटा देंगा . इस घटना से मुझे कोई अटेंशन नहीं मिली .लेकिन घर आने पर पत्नी ने मेरी तनख्वाह कम होने वाली बात पर ऐसा रौद्र रूप दिखाया कि मेरे तिरपन कांप गए.
मैंने फिर अपने दोस्त को फोन किया , कहा कि मुझे कोई ज्यादा अटेंशन नहीं मिली है और अब लोग इस घटना को भूल भी चुके है . मैं कुछ धमाकेदार कार्य करना चाहता हूँ . कुछ रास्ता बताये. मेरे दुनियादार दोस्त ने कुछ देर सोचा और कहा कि यार तू मोहल्ले की कोई औरत को छेड दे, पुलिस आकर तुझे ले जायेंगी और तुझे इस दुष्ट काम के लिये हर कोई कोसेंगा और तेरी बड़ी बदनामी होंगी . इस काम से तो तुझे १००% अटेंशन मिल जायेंगी . बात में तो दम था, कॉलेज के जमाने में अक्सर ऐसा करने से मोहल्ले में बाते होती थी ..सो मैं उसकी बात मान गया .
मैं शाम को मोहल्ले के नल पर जाकर पानी भरने के लिये बाल्टी हाथ में ली . मेरी पत्नी ने कहा कि , मेरी तबियत तो ठीक है न ? जिस आदमी ने जिंदगी में काम नहीं किया वो अब पानी भरने जा रहा है . मैं कहा कोई खास नहीं , बस यूँ ही तुम्हारी मदद करना चाह रहा हूँ . मोहल्ले में एक ही नल था और शाम को वहां बड़ी भीड़ रहती थी, बहुत सी औरत जिन्हें मैं भाभी कहता था [ और होली के दिन रंग डाल कर छेड़ता था ] वहां पानी भरने आती थी, वो सब वहां पर थी और मुझे देख कर आश्चर्य से हँसने लगी , सबने पूछा कि , आज होली नहीं है , फिर आज पानी भरने यहाँ कैसे. मैंने मुस्कराकर कहा , मैं तो आज ही होली खेलने के बहाने तुम सबको छेड़ने आया हुआ हूँ, ये कह कर मैं जल्दी से अपने पड़ोस की भाभी पर पानी डाल दिया . उसे बहुत गुस्सा आया , वो कुछ कहने ही वाली थी , कि पड़ोस की दूसरी भाभी ने उसके कान में कुछ कहा , बस फिर क्या था, थोड़ी ही देर में मैं और दूसरी औरते मिलकर नल पर पानी की होली खेलने लगे. मैं बड़ी कोशिश कर रहा था कि मैं औरतो को छेड कर भाग जाऊ. लेकिन ऐसा नहीं हुआ , खूब हो हल्ला होने के बाद , वहाँ की औरतो ने मुझे लाकर मेरी धर्मपत्नी को सौंप दिया और कहा कि मैं वह आकार सारी औरतो को पानी डाल डाल कर छेड रहा था. इतना कहकर वो सब तो चली गयी , लेकिन मेरा क्या हाल हुआ होंगा , उसे मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकता .. हाय , उस बात की याद आते ही तन – मन कांपने लगता है .
कुछ दिन बाद मैंने फिर अपने दोस्त को फोन किया , उससे कुछ नया रास्ता बताने को कहा, उसने कहा कि सुन तू किसी शराब के दूकान में जाकर हल्ला कर दे. पुलिस आकर तुझे ले जायेगी .आयडिया अच्छा था. फिर उसने कहा कि शराबी के दो ही ठिकाने , एक तो ठेका और दूसरा थाने !! , मैं मान गया , संध्या समय घर से निकल पडा और मोहल्ले के एकमात्र शराब के ठेके पर पहुँच गया . वहां जाकर शराब पी और नशे में मैंने वहां पर मौजूद दूसरे ग्राहकों और शराबियों से लड़ना शुरू किया , ये देखकर ठेके के मालिक ने मुझे झापड मारा और मैं बेहोश हो गया , उसने मुझे घर लाकर छोड़ा और मेरी प्यारी सी धर्मपत्नी को सारी बात सुनाई . कुछ देर बाद मुझे होश आया , देखा तो सामने यमराज मेरी पत्नी के रूप में बैठा था . उसकी बाद की कथा मत पूछिए .
अब मैं बहुत दुखी हो चूका था. कोई भी मुझे किसी भी प्रकार की अटेंशन नहीं दे रहा था . बल्कि जिंदगी में बहुत से टेंशन पैदा होते जा रहे थे. बहुत दुखी होकर मैंने फिर अपने दोस्त को फोन लगाया . उसे कहा कि ये मेरा आखरी फोन है उसे , अगर वो कुछ न कर पाया मेरे लिये तो मैं आत्महत्या कर लूँगा . मेरी ये बात सुनकर दोस्त ने घबरा कर कहा कि , मैं तुझे आखरी रामबाण उपाय बता रहा हूँ , इसकी सफलता की पूरी गारंटी है . उसने फुसफुसाकर मुझे एक घांसू उपाय बताया , उपाय सुनते ही मैं कह उठा “ WHAT AN IDEA SIR जी !!!” अब रास्ता साफ़ था , मुझे अटेंशन मिलने ही वाली थी .
दूसरे दिन , शहर में उस राजनीतिक पार्टी की महासभा हुई और एक महान भ्रष्ट नेता भी आया . और एक अच्छा आदमी होने के नाते मुझे भी बुलाया गया . उस नेता का भाषण चल ही रहा था कि , मैं उठकर सामने गया और अपना जूता उसे दे मारा . बस फिर क्या था , हंगामा खड़ा हो गया , पुलिस ने मुझे पकड़ लिया , लेकिन फिर अचानक मेरी देखादेखी करीब ५ बंदे और खड़े हो गए और उन्होंने भी अपने जूते उस नेता की तरफ उछाल दिए .चारों तरफ जोरदार हंगामा शुरू हो गया , पुलिस ने हम सबको थाने लेकर गयी . और हमें हवालात में ठूंस दिया गया . शहर में बहुत धूम हो गयी थी , लोग सडको पर आ गए थे . टीवी , रेडियो और प्रेस में मेरी चर्चा हो रही थी . कुछ समय बाद , हमें एक वार्निग देकर छोड़ दिया गया . लोगो ने हमारी रिहायी पर उत्सव मनाया. मेरे गले में फूलो की माला थी और मुझे गाजे बाजे के साथ घर लाकर छोड़ा गया .
मुझे लगने लगा कि अब मुझे अटेंशन मिल रही है . मुझे मेरी अटेंशन एक पाव-किलो नज़र आ रही थी . घर पर मेरी बीबी ने मुझे मुस्कराकर देखा और कहा , तुम तो बड़े बहादुर निकले जी , और मुझे एक झप्पी दी , मुझे अब अटेंशन आधा किलो लगने लगी . थोड़ी देर बाद बेटे ने आकर पाँव छुए और कहा , Dad, I am proud of you . मुझे अब अटेंशन एक किलो नज़र आने लगी , मुझे बड़ी खुशी हो रही थी . पास पड़ोस के लोग आये और कहने लगे , कि मैं उनके मोहल्ले में हूँ , इस बात पर उन्हें गर्व है . मेरी अटेंशन अब ५ किलो हो गयी थी . शहर के लोग मेरा आदर सत्कार कर रहे थे, हर कोई मुझे अपने सभा और कार्यक्रम का अध्यक्ष बना रहा था . मेरा अटेंशन अब १० किलो हो गया था . हर अखबार , टीवी, रेडियो में मेरे ही चर्चे थे, पान ठेले से लेकर सब्जी मार्केट तक और सिनेमा हाल से लेकर लोकसभा तक , हर जगह बस मैं ही छाया हुआ था , अब मेरा अटेंशन ५० किलो का हो गया था . मैं बड़ा खुश था .
मेरे बॉस ने मुझे तरक्की दे दी थी , मेरे सहकर्मी रोज मुझे अपना डब्बा खिलाने लगे , ऑफिस की कुछ औरते मुझे देखकर मुस्कराने लगी ,यार लोग मेरे साथ अब घूमने आने के लिये तडपते थे. मेरी अटेंशन अब १०० किलो से ज्यादा हो गयी थी , मुझे परम खुशी हो रही थी . चारों तरफ मेरा नाम था , टीवी, रेडियो और अखबार मेरे नाम के बिना सांस नहीं ले पाते थे.
फिर अभी कल की ही बात है , जिस राजनैतिक पार्टी के नेता को मैंने जूता मारा था , उसी पार्टी ने मुझे अब मेरे शहर का उम्मीदवार बनाया है और मुझे चुनाव का टिकिट दिया है . अब मेरे चारों तरफ अटेंशन ही अटेंशन है , कहीं कोई टेंशन नहीं है . बस खुशी ही खुशी है . इतना अटेंशन तो मैंने कभी सोचा भी नहीं था . मैं अब अटेंशन के नीचे दब दब जाता था. मैंने अपने दोस्त को फोन करके कहा , यार तेरी युक्ति तो काम कर गयी , अब चारों तरफ अटेंशन ही अटेंशन है . . वो हँसने लगा .
अब कोई टेंशन नही है . आह जिंदगी कितनी खूबसूरत है ...वाह मज़ा आ गया !!!! हर तरफ सिर्फ मेरे लिये ही अटेंशन है .
अटेंशन जिंदाबाद !!! राजनीति जिंदाबाद !! जनता जिंदाबाद !! अटेंशन जिंदाबाद !!
मजेदार व्यंग्य।
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं....
जय हिंद... वंदे मातरम्।
विविध भारती की फ़रमाइश पर पत्र भेजते रहें तो अवश्य ही आपका नाम झूमरितलैया की तरह प्रसिद्ध हो जाएगा:)
ReplyDeletemajedar vyang...gantantra diwas ki shubhkamnayen...
ReplyDeleteअब अगर आपकी इस पोस्ट पर कमेंट न करूं तो आपको टेंशन हो जाएगी और करता हूं तो मुझको। मेरे व्यंग्य जिन अखबारों में छपते हैं अब वहां पर विजय कुमार के छपेंगे इससे बड़ी 500 किलो की टेंशन और क्या होगी, मैंने तो लगता है आपको व्यंग्य लिखने की सलाह देकर अपने साबुत पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है। इससे तो आप कविता लिखते ही अच्छे लगते थे। आखिर अखबार में छपते तो नहीं थे और अब तो व्यंग्य छपने की जगह भी हाथ से जाने ही वाली हैं और जो पारिश्रमिक के चैक और हिंदी चिट्ठाकारी लेखन से मिलने वाले प्रतिमाह 15 हजार रुपये पर भी डाका डलता दिख रहा है और डाकू मेरे परम प्रिय शिष्य विजय कुमार जो दिखलाई दे रहे हैं सबसे बड़े दुष्ट।
ReplyDeleteआदरणीय अविनाश जी ,
Deleteआज मेरा लेखकीय जीवन धन्य हो गया .आपका कमेन्ट मेरे लिये सबसे बड़ा प्रसाद है . आपका शिष्य बनकर एक गुरु से जो आशीर्वाद प्राप्त होना था . वो मुझे मिल गया. आपको मेरा लेख अच्छा लगा . मन को एक पवित्र तृती प्राप्त हुई.
आपका दिल से धन्यवाद.
[ वैसे ये पारिश्रमिक वाली बात मालूम नहीं थी , इस पर कुछ रौशनी अवश्य डालिए , १५ हज़ार में से कुछ भी मिल जाए तो आनंद आ जाए . हा हा . ]
विजय
आज के चर्चा मंच पर आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
ReplyDeleteका अवलोकन किया ||
बहुत बहुत बधाई ||
सटीक....बधाई.
ReplyDeleteआपकी व्यंग्य कथा में रस है.....
ReplyDeleteकथा पढ़कर मानस में कई बातें एक साथ तैर गयीं ... कुछ लोग उलटे काम करके लाइमलाइट में आते हैं तो कुछ स्वभाव के विपरीत काम करके लाइट में आते हैं....
— मायावती का गांधी को गाली-गलौज करके राजनीति में आना और सफल होना...... याद आया.
— पासवान का दिल्ली रेलवे स्टेशन पर झाड़ू लगाकर सफाई-कर्मचारियों में सफाई के प्रति उत्साह भरना... और अपनी पार्टी के प्रति दलित संवेदना को मोड़ना....... याद आया.
— बूटासिंह का गुरुद्वारे में बूट साफ़ करके अपने पापों का प्रायश्चित करना........ याद आया.
— नेहरू जी के कबूतर उड़ाने के शौक को शांतिवाद से जोड़कर देखना....... भी याद आया.
— जोर्ज बर्नाडशा का चौराहे पर सर के बल खड़ा होना... और भीड़ जमा होने पर प्रभावशाली भाषण देना.... भी याद आया.
.... आज के मीडिया-युग में यह एक तरीका बन गया है कि उलटा काम करने वाले सफल हैं.... लालू की तरह जोकरी करो... नेताओं की तरह भद्दा बोलो... ध्यान आकर्षण के लिये कोई भी गंदा काम करो ... के बड़ी भीड़ आपको जान जायेगी.... फिर अपनी छवि सुधार के लिये कोशिश करना सहज होगा...
... इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए कि किसी क्षेत्र में विजय के लिये अनुचित मार्ग नहीं अपनाना चाहिए.
फिर भी हर क्षेत्र में अनुचित मार्ग को चुनकर ही सफलता मिल रही है... वह चाहे चित्रकला हो... अथवा अभिनय कला...
— हुसैन नग्नता परोसकर बड़े चित्रकार बने.... कई फिल्मी नायिकाएं देह खोलकर ही प्रसिद्ध हुईं....कई निर्माता-निर्देशक भी बड़े तब बने जब कथित समस्या को उभारने के लिये वल्गर दृश्यों और संवादों और गानों को परोसा...
आपकी व्यंग्य कथा ने बड़े ही अच्छे तरीके से अपने माध्यम से 'अटेंशन' की कसरत में लगे महत्वाकांक्षी लोगों के कारनामों की पोल खोली है..... बधाई.
आदरणीय प्रतुल जी
Deleteआपका कमेन्ट , एक कमेन्ट न होकर , मेरी कथा को आगे बढ़ाता है . आपने बहुत सार्थक व्याक्या की है . यही होता आ रहा है हर क्षेत्र में , जैसा आपने व्यक्त किया है . दरसल , सही , गलत का अब मार्ग नहीं चुना जाता है . मैं अपने आसपास के परिवेश में आजकल यही देख रहा हूँ. करीब १० दिन पहले मैंने यही सोचा की एक आम आदमी , ये सब देखकर क्या सोचता होंगा , और फ्हिर इस कथा ने जन्म लिया .
आपका बहुत धन्यवाद. अपने दूसरे मित्रों के बारे में भी इस कथा के बारे में बताये .
आपका
विजय
मानव मन की सुप्त तृष्णाओं पर सार्थक व्यंग्य है। प्रतुल जी नें सुन्दर अवलोकन किया।
ReplyDeleteBAHUT HE SHANDAR
ReplyDeleteओह तो सारा माज़रा ये है………चलिये बढिया है अटेंशन के लिये लोग पता नही क्या क्या करते हैं यहाँ भी ऐसा ही है ब्लोगजगत मे भी………हा हा हा…………बच के रहना अविनाश जी………आपका प्रतिद्वंदी मैदान मे आ गया है…………………:))))
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ReplyDeleteSumita Keshwa to me
show details 2:13 PM (4 minutes ago)
विजय जी
नमस्कार, बनारस से कल ही लौटी हूं। आप तो व्यंग्य लेखन में भी माहिर हैं...बधाई आपको इस विधा में लिखना बहुत ही मुश्किल है..पर आपने ..क्या खूब व्यंग्य है जी...आपका यह नुस्खा कई लोगों को प्रेरणा देगा...आज की राजनीति पर करारा प्रहार...नेता तभी आप पर ध्यान देगा जब उसे जूते और थप्पड़ मिलेंगे....चलो जूतों की भी किस्मत चमकी तभी तो आजकल जूते भी काफी मंहगे हो गये हैं...हा-हा-..यह कमेंट ब्लाग पर नहीं जा पा रही है इसलिए यहां लिख दिया।
धन्यवाद
सादर सहित
सुमीता
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ReplyDeleteHari Bindal
Achha samayanukool Vyang hai.
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ReplyDeletemouli pershad
बढिया है विजय कुमार जी॥
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ReplyDeleteBhai Shri Vijayji,
Namaskar,
Meri rai aapse thodi alag hai. Jyada attention pana sone ke pinjre
main rahne jaisa hai, aur apni aazadi ka suda kisi keemat par nahi
kiya ja sakta.Aapki kahani se milta julta ek sher hai mera ki,
'' kuch charcha to ho,kuch jashn to mane,
chalo vishwaso ke murdaghar ka,
kisi mantri se udghatan karwaya jaye.''
[ I feel -jyada logon ke attention dene se kuch apne agar hame
tention mukt rakhe to wo behtar stithi hogi.]Vaise apna apna khayal
hai,logo ko jaroor pasand aayegi.Badhai.
Regards,
Shilpa
इस पर तो पूरी फिल्म बन सकती है, वह भी पूरी हिट..
ReplyDeleteबहुत सुंदर । मेरे पोस्ट पर आपका आमंत्रण है । धन्यवाद ।
ReplyDeletetheek to laga lekin khud itna tension me hoon ki utna attention nahi kar paya...
ReplyDeleteattention paane ka sabse sateek aur achook nuskhaa...joota fenkna. attention without tension aur fir zaroorat nahi laag-bhaag any connection. attension ka wajan 100 kg...fir to Raam jane attension ki list mein kya kya jud jaaye, shayad koi dusra attension pane ke liye joota fenk jaaye. bahut mazedar.
ReplyDeleteवाह! अटेंशन पाने का अचूक तरीका...बहुत सटीक व्यंग...
ReplyDeleteBahut Badhiya...Maine ye kahaani pahle bhi padhi hai shayad...any way congrats for winning award on this wonderful story...
ReplyDeleteNeeraj
गज़ब का है ये अटेंशन का खेला-रेला :)
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