||| मर्डर इन
गीतांजलि एक्सप्रेस |||
||| सुबह 8:30 ||| नासिक |||
मैंने उतावली आवाज़ में टैक्सी ड्राईवर से पुछा, “और कितनी देर लगेंगी।” उसने कहा – “साहब बस 30 मिनट में पहुंचा देता हूँ।” मैंने घडी देखी, 8:40 हो रहे थे। मैंने झल्लाते हुए कहा – “यार 9:20 की गाडी है। थोडा जल्दी करो यार।” उसने कार की स्पीड
बढ़ा दी। मैं नासिक की सडको को देखने लगा।
मैं अपनी कंपनी के काम से नासिक आया हुआ था। कल ही
काम खतम हो गया था, पर मेरी तबियत कुछ ठीक न होने की वजह से मैं रात को यही रुक
गया था और आज की गीतांजलि एक्सप्रेस से टिकट करवा लिया था और इतने कम समय में
सिर्फ फर्स्ट क्लास एसी केबिन की ही टिकट मिली थी। नासिक रोड स्टेशन पर गीतांजलि
एक्सप्रेस ट्रेन 9:25 को आनेवाली थी जिसमें मैं नागपुर जा रहा था और वहां से अपना काम खत्म करके
कोलकता जाना था।
अचानक एक तेज आवाज के साथ गाडी लहराई और रुक गयी।
मेरे मुंह से चीख निकल गयी। गाडी से उतरा तो पाया कि पंक्चर हो गया था। ड्राईवर
बोला – “सर, I am sorry, आप ऑटो से निकल
जाईये।” मैं उसे क्या कहता, गुस्से में उसे रूपये दिए और राह चलते एक ऑटो को रोका और स्टेशन के लिए चलने
के लिए कहा। वो कितना भी तेज चलाये, लेट हो ही गया था, बस जैसे तैसे स्टेशन
पहुंचा और उसे रुपये देकर स्टेशन के भीतर की ओर दौड़ा !
||| सुबह 9:30 ||| नासिक रोड स्टेशन |||
मैं दौड़ते दौड़ते स्टेशन के भीतर पहुंचा और प्लेटफ़ॉर्म
से धीमी गति में सरकती , निकलती ट्रेन में
किसी तरह से एक बोगी को पकड़ कर भीतर घुसा। हांफते हुए ट्रेन के बोगियों के भीतर ही
भीतर चलते हुए मैं एसी कोच के अपने फर्स्ट क्लास केबिन में पहुंचा और अपने कूप ‘सी’ को ढूँढने लगा . इतने में
केबिन ‘बी’ से एक औरत बाहर आई . मैंने उसे देखा और उसने मुझे . उसके खुले बाल मुझे अच्छे
लगे . मैं हांफते हुए भी हलके से मुस्कराया और अपने कूप में जाकर नीचे की सीट पर
बैठ गया। कुछ देर तो आँखे बंद करके बैठा रहा। और भगवान का शुक्रिया अदा किया कि
ट्रेन मिल गयी, वरना नागपुर में कल की मीटिंग
नहीं हो पाती।
मेरी गहरी और तेज साँसे चल ही रही थी कि टीटी की आवाज़
सुनाई दी। “टिकट प्लीज।” मैंने आँखे खोली और टीटी को अपना टिकट दिखाया। वो चेक
करके चला गया तो मैंने चारो तरफ नज़र दौड़ायी एसी के फर्स्ट क्लास के इस कोच के ‘कूप
सी’ में दो बर्थ थी। इस डब्बे में मैं था और मुझे लगा कि ऊपर की बर्थ पर एक आदमी
सोया हुआ था।
मैंने अपना समान और दूसरा ताम,झाम अपनी सीट के नीचे रखा और अपने बेड की सीट पर पसर कर बैठ गया [ ये नीचे की
बर्थ थी जिसे दो सीट में भी बदला जा सकता था ]
मैंने आँखे बंद कर ली और अपने बारे में कुछ सोचने
लगा। मेरा लिखना पढना बंद ही हो गया था, मैं जासूसी, डरावनी और रहस्य
भरी कहानियाँ लिखता था और बहुत मन से
लिखता था । मेरी कहानियो को लोग खूब चाव से पढ़ते भी थे । कहानियाँ लिखते समय , मैं
खुद ही कहानी का एक किरदार और कभी कभी तो
सारे किरदार मैं ही बन जाया करता था । बहुत डूब कर कहानियाँ लिखता था और मुझे
इसमें खूब रोमांच भी आता था । लेकिन मेरी नौकरी मेरी जान ले रही थी। कहीं कोई सुख
नहीं था, एक आह भरते हुए मैंने सोचा, मेरा भी क्या जीवन है, हमेशा परेशानियां, एक के बाद एक, जीवन जैसे एक रैट-रेस में तब्दील हो गया था ! कही कोई सुख नहीं
था। मैंने एक आह भरी। फिर मैंने सुख की कल्पना की तो लगा गीतांजलि के फर्स्ट क्लास
एसी कोच में बैठना भी एक तरह का सुख ही था। इतना महँगी टिकट थी। मैंने कभी भी एसी
के फर्स्ट क्लास में सफ़र नहीं किया था। आज इसमें भी सफ़र हो गया। मेरे होंठो पर
मुस्कराहट आ गयी। गीतांजलि एक्सप्रेस मुझे बहुत पसंद थी, मैं हमेशा इसमें ही सफ़र
करता था।
गीतांजलि एक्सप्रेस प्रतिदिन चलने वाली एक शानदार
गाडी थी, जो कि मुंबई और हावड़ा के बीच
चला करती थी। ये सुपरफ़ास्ट ट्रेन्स की कैटेगिरी में आती थी। ये करीब 30:30 घंटो में 1968 km की दूरी तय करती
थी। वापसी में ये समय बढ़कर 31:50 घंटे हो जाता था। इसमें 25 बोगिया लगी होती थी। गीतांजलि एक्सप्रेस अपनी इस
यात्रा के दौरान 25 स्टेशन पर रूकती थी और इसकी एवरेज स्पीड 64 km/hr. थी। जो कि मुझे काफी पसंद थी। इस ट्रेन में स्लीपर
के 14 कोचेस थे, तीन जनरल कोचेस थे, दो लगेज के कोचेस थे और एसी के चार कोचेस थे। इसमें एक कोच के आधे भाग को एसी
सेकंड क्लास टायर और बचे हुए आधे भाग को एसी फर्स्ट क्लास टायर में तब्दील कर दिया
गया था। इसी एसी फर्स्ट क्लास में दो केबिन और एक कूप होता था। केबिन में 4 बर्थ
होती थी और कूप में दो बर्थ और इसी ‘सी’ कूप के एक बर्थ पर मैं बैठा था और ऊपर की
बर्थ पर कोई भला आदमी सोया हुआ था।
मुझे थोड़ी थकान हो रही थी। कल से ही मेरी तबियत कुछ
ठीक नहीं लग रही थी। ये नौकरी मेरी जान लेकर ही मानेगी, जल्दी ही कोई नई नौकरी ढूंढता हूँ। ये सोच कर मैंने अपनी आँखे खोली। देखा तो मेरे सामने की सीट [ एक ही
बर्थ एक दो हिस्से थे ] पर एक आदमी बैठा था। वो शायद ऊपर सोया हुआ बंदा था । पर वो
नीचे कब आया, मुझे पता ही नहीं चला।
वो मेरी ओर ही देख रहा था, मैं उसे देखकर मुस्कराया और उसे गौर से देखा। वो एक फ्रेंच,कट दाढ़ी के साथ सूट बूट पहने हुए करीब ४० साल का बंदा था। मैंने उसकी ओर हाथ
बढ़ाया और मुस्कराते हुए कहा – “हेल्लो, आय ऍम कुमार। आप कहाँ जा रहे
है, मैं तो नागपुर जा रहा हूँ।”
वो कुछ देर हिचकचाया फिर उसने भी अपने हाथ बढाए और
मुझसे हाथ मिलाकर कहा, “आय ऍम मायकल,मैं कोलकता जा रहा हूँ।” मैंने गौर किया कि उसके हाथ पर सफ़ेद दस्ताने थे और उसकी आँखे बड़ी सर्द थी।
उसकी कोट पर एक सफ़ेद गुलाब का फूल लगा हुआ था। मुझे थोडा अजीब लगा, पर मुझे क्या, ये दुनिया एक से बढ़कर एक नमूनों से भरी हुई है।
कुछ देर बाद मैंने उससे पुछा “आप क्या करते हो।” उसने कहा – “कुछ नहीं बस, गोवा में छोटा सा बिजनेस है।” मैंने कहा, “मैं एक कंपनी में मार्केटिंग करता हूँ। मैं कोलकता में रहता हूँ। यहाँ नासिक
में काम के सिलसिले में आया था।”
फिर हम दोनों चुप से हो गए। कुछ देर में चाय वाला आया, अब मुझे ठण्ड भी लग रही थी। मैंने उससे दो चाय ली और
मायकल को एक कप दिया। उसने कहा – “मैं चाय नहीं पीता हूँ।” मैंने दोनों कप की चाय खुद ही पी ली।
कुछ देर मैं आँखे बंद करके बैठा रहा, पर ठण्ड फिर भी लग रही थी। मैंने कोच अटेंडेट को
बुलाया और उसे एसी कम करने को कहा, उसने कहा – “साब ये तो 24 डिग्री पर है। कम ही है। आपको बुखार तो नहीं, जो आपको इतनी ठण्ड लग रही है।” मैंने उससे एक बेडरोल और मंगा लिया और कम्बल ओढ़कर बैठ गया।
मैंने मायकल को देखा वो चुपचाप बैठा था। उसने मुझसे
कहा – “आप कोई स्वेटर पहन लो। नहीं है तो मैं अपना कोट देता हूँ।” मैंने कहा – “थैंक्स मायकल। देखता हूँ थोड़ी
देर में ठण्ड शायद चली जाए। आपको ठण्ड नहीं लग रही है ?”
उसने कहा – “नहीं। मुझे ठण्ड नहीं लगती है। जहाँ मैं रहता हूँ वहां काफी ठण्ड रहती है।
इसलिए मैंने अपने साथ वहां की कुछ
ठण्ड को लेकर चलता हूँ..............हा….हा….हा......!”
मुझे ये बात बड़ी अजीब सी लगी। पर मैं भी हंसने लगा !
फिर थोड़ी देर रुक कर उसने कहा, “एक बात हो सकती है , मेरे पास थोड़ी सी व्हिस्की है अगर आप एक घूँट ले लो
तो शायद आपको ठण्ड न लगे !”
मैंने कहा – “हां यार ये ठीक रहेंगा।” उसने ये सुनकर
अपने सीट के नीचे से एक पुराने से बैग से ‘ब्लेंडर्स प्राइड’ की एक बोतल
निकाली। मैंने देखकर कहा , “अरे ये तो मेरा ब्रांड है, पर गिलास का क्या।” मायकल ने कहा – “अरे ऐसे ही लगा
लो, कोई वान्दा नहीं है। पर तुम्हे गिलास चाहिए तो मेरे पास उसका भी इंतजाम है।”
उसने बैग से दो अच्छे से वाइन ग्लासेज निकाला। ये देखकर मैंने कहा – “अरे यार तुम
तो बड़े छुपे रुस्तम हो। सारा इंतजाम करके निकलते हो।” हम दोनों ने उन्ही ग्लासेज
में व्हिस्की के साथ थोडा पानी मिलाकर लम्बे घूँट लिए। मेरा कलेजा जल गया, पर कुछ मिनट में राहत लगने लगी।
मायकल ने फिर बैग से एक छोटा सा चांदी का डब्बा
निकाला, उसमे काजू थे, उसने मुझे खाने को कहा। मुझे तो मज़ा ही आ गया। मुझे
अब थोडा सा सुरूर आ रहा था।
ड्रिंक्स हो गए, अब मैं बेड पर लेट गया था। मायकल ने ऊपर के बेड से कहा “बत्तियां बंद कर दो। मुझे रोशनी ज्यादा पसंद नहीं है।“ मैंने केबिन की बत्तियां बंद कर दी।
मैं गुनगुनाने लगा, “ मायकल की दारु झटका देती है।
मायकल की दारु फटका देती है।” ये सुनकर वो हंसने लगा। उसकी हंसी बड़ी अजीब सी थी।
मैंने आँखे बंद कर ली। मुझे हलकी सी नींद आ गयी।
||| सुबह 12:30 ||| भुसावल स्टेशन |||
मोबाइल की लगातार बजने वाली घंटी की आवाज़ से मेरी
नींद खुली। मैंने समय देखा और मोबाइल में देखा तो मेरे नागपुर वाले कस्टमर का फ़ोन
था। उसकी कॉल को रीसिव किया, वो कह रहा था कि उसे अचानक ही
बॉम्बे जाना पड़ रहा है। इसलिए वो मुझसे मिल नहीं पायेंगा। उसने अपॉइंटमेंट कैंसल
कर दी थी। मैं सोच में पड़ गया, मैंने बॉस को फ़ोन लगाया। उसे लेटेस्ट डेवलपमेंट के बारे में बताया तो उसने
मुझे कोलकता वापस बुला लिया। मैं उठकर बैठ गया। सर में हल्का सा दर्द था, शायद शराब का ही नशा था। शराब से मुझे मायकल
याद आया। देखा तो वो ऊपर की बर्थ पर बैठा था।
मैंने उसे नीचे बुला लिया। हम दोनों नीचे के बेड पर
उसे सीट में बदल कर बैठ गए। उसने कहा – “अब ठीक हो ?” मैंने कहा – “हां, लेकिन मेरा टूर
कैंसिल हुआ है। अब कोलकता जाना है। देखता हूँ टीटी से बात करके आता हूँ।” मैं गया
और टीटी से मिला। अपनी इसी टिकट को मैंने कोलकता तक एक्सटेंड करवा लिया। ट्रेन खली
थी , सो टिकेट मिल गयी । मैंने फिर प्रभु को धन्यवाद दिया। आजकल टिकट जैसे
चीज के लिए भी प्रभु की गुहार लगानी पड़ती है। मैं बाथरूम गया फ्रेश हुआ, चेहरे पर बहुत सा पानी मारा, थोडा अच्छा लगने लगा। वहीँ कोच अटेंडेट से चाय मांगी,
उसने पैंट्री से चाय लाकर दी। वहीँ पर खड़े खड़े चाय पिया और बाहर की ओर देखने लगा।
कोई स्टेशन था। मैंने अटेंडेट से पुछा, “कौनसा स्टेशन है” उसने कहा “भुसावल है सर !”
मैं देख ही रहा था कि मेरे पीछे से एक आवाज आई – “कौनसा स्टेशन है।” मैं
मुड़ा और देखा, वही औरत जो सफ़र के शुरुवात में
मुझे अपने कोच में प्रवेश करते समय दिखी
थी , मुस्कराते हुए खड़ी थी उसके पीछे एक
मोटा सा आदमी भी था, मैंने कहा – “भुसावल
है जी।” गाडी अब धीमे हो रही थी। प्लेटफार्म आ रहा था। मैंने गौर से औरत और आदमी
को देखा। औरत कुछ दिलफेंक किस्म की लग
रही थी। मैंने उसे मुस्कराते हुए देखा। उसने मुझे देखा। वो मुस्करायी।
मैंने पुछा , “कहाँ जा रहे हो आप।” जवाब मुझे उसके
साथ के आदमी ने दिया, “ हम कोलकता जा रहे
है।” मैंने उसे बड़े गौर से देखा था। अमीरी उसके पूरे व्यक्तित्व में छायी हुई थी।
शानदार सूट पहने हुए था। हाथो की दसो उँगलियों में सोने की हीरे जड़ी अंगूठियाँ थी।
चेहरे पर अमीरी का घमंड ! मैंने अपने आप से कहा – "ए टिपिकल केस ऑफ़ वोमेन
मीट्स मनी !!!" मैं मन ही मन मुस्कराया और मेरे मुह से निकल पड़ा “हूर के साथ
लंगूर“, उसे ठीक से सुनाई नहीं दिया
वरना वो मुझे पक्का पीट देता। औरत ने मुझसे पुछा , “आप कहाँ जा रहे हो।“
मैं कुछ कहता, इसके पहले ही आदमी
ने फिर कहा, “अरे कोलकता ही जा रहे है न।“
मैंने हंस कर कहा, “हाँ जी हां।“
मैंने उन्हें बताया कि मैं ‘सी’ कूप में हु, उन्होंने
बताया कि वो ‘बी’ केबिन में है। मैंने कोच अटेंडेंट से पुछा, गाडी खाली है क्या ?
उसने बताया, “सर फर्स्ट एसी में बस आप ही
लोग है। सेकंड एसी आधा भरा है बाकी नागपुर
से फुल हो जायेंगा।”
मैं कुछ और पूछता इसके पहले ही प्लेटफ़ॉर्म पर गाडी
रुक गयी। मैं नीचे उतर कर बुक्स की दूकान में गया, अखबार लिया और वापस लौटा। देखा तो वो आदमी और औरत प्लेटफ़ॉर्म पर कुछ खा रहे
थे। मैंने मन ही मन कहा ,"टिपिकल इंडियन
पसेंजेर्स।" मैंने देखा तो मायकल उस औरत और आदमी की ठीक पीछे ही खड़ा था और
उन्हें बड़े गौर से देख रहा था। मैं उसे आवाज़ देने ही वाला था कि टीटी ने मुझसे कहा,“आज तो गाडी बिलकुल खाली है।“ मैंने कहा, “हां जी, नहीं तो गीतांजलि तो
भरी हुई होती है।“ टीटी ने चाय के लिए
ऑफर किया, मैंने चाय ले ली, उसने कहा, “बस अगले महीने से दुर्गा पूजा की भीड़ आ जायेंगी जी। और फिर वैसे भी
एसी फर्स्ट क्लास में आजकल कौन सफ़र करता है। वैसे नागपुर से गाडी फुल होने वाली है
“ मैंने सर हिलाया। हम ऐसे ही इधर
उधर की बात करते रहे। फिर उससे इजाजत ली और अपने केबिन में पहुंचा। देखा तो मायकल
वहीं पर बैठा हुआ था। मैंने कहा – “यार कुछ चाय लोंगे या कुछ खाने को ला दू।” उसने
कहा, “नहीं जी। आओ बैठो।“
थोड़ी देर में गाडी चल पड़ी। मायकल से मैंने पुछा, “बिजनेस किस चीज का है।“ उसने बताया कि ड्राई फ्रूट्स
का है। वो गोवा और केरला से ड्राई फ्रूट्स लेकर हर जगह बेचता है। छोटा सा
बिजनेस है।
उसे मैंने बताया कि मैं कोलकत्ता की एक इलेक्ट्रिक
स्विच बनाने वाली कंपनी में काम करता हूँ। मार्केटिंग मेनेजर हूँ और लगातार बस
घूमते ही रहता हूँ।
उसने अपने बैग से एक डब्बा और निकाला उसमे कुछ ड्राई
फ्रूट्स थे। वो मुझे दिए और मैं बड़े चाव से खाने लगा। मैंने फिर उससे पुछा – “यार
मायकल आपके शौक क्या क्या है।“ उसने कहा , “म्यूजिक, बुक्स और घूमना।“ मैंने ख़ुशी से कहा, “ऐक्साक्ट्ली ये तो मेरे भी शौक है। यार संगीत ही जीवन है।“ उसने फिर बैग में
हाथ डाला और एक छोटा सा म्यूजिक सिस्टम निकाला और उसे केबिन के प्लग बॉक्स में लगा कर शुरू कर दिया। किशोर कुमार की आवाज़ से
डब्बा भर गया। मैं तो ख़ुशी से उछल पड़ा और उठाकर मायकल को गले लगा लिया। एक अजीब सी
गंध उसके कपड़ो से आ रही थी, और मायकल का बदन भी
बड़ा कठोर सा प्रतीत हुआ। खैर छोडो जी .....मुझे क्या।
हम लोग बहुत देर तक गाने सुनते रहे।
फिर मायकल ने मुझसे कहा , “कुमार, मुझे आपकी लिखी कहानिया बहुत पसंद
है।“
मैं चौंक गया, मैंने कहा, “यार तुम्हे कैसे पता?”
उसने कहा, “कुमार मैं आपकी लिखी कहानियाँ पढ़ते रहता हूँ। तुम तो बहुत अच्छी-अच्छी जासूसी
कहानियां लिखते हो। मैं तो तुम्हारा फैन हूँ यार ।“
मैंने अचरज से पुछा कि उसने मुझे पहचाना कैसे। उसने
कहा, “आपकी फोटो से। आपकी किताब के
पीछे आपकी फोटो लगी हुई रहती है। बस इसी से पहचान लिया।“
उसने फिर मुझसे हाथ मिलाया। मुझे अच्छा लग रहा था।
पढने वाले पाठक किसे अच्छे नहीं लगते !
हम लोग फिर बहुत देर तक मेरी कहानियो के प्लॉट्स पर
बाते करने लगे।
||| दोपहर 2:30 ||| शेगांव स्टेशन |||
मैंने ट्रेन की खिड़की से बाहर देखा, एक स्टेशन आ रहा था, शेगांव, मैंने कहा, “यार मायकल यहां की कचोरियाँ बहुत अच्छी होती है। मैंने अभी लेकर आता हूँ।“ मैं प्लेटफार्म पर उतरा और कचोरी ली। देखा तो
वही औरत और आदमी भी कचोरी ले रहे थे। मैंने उन दोनों को हाय कहा और अपने कोच में आ
गया। कोच में देखा तो मायकल नहीं था। मैंने सोचा बाथरूम गया होंगा। खिड़की से देखा
तो वो उस औरत और आदमी के पीछे ही खड़ा था। मुझे ये बंदा कुछ अजीब सा लग रहा था। खैर
मुझे क्या, सफ़र में तो एक से बढ़कर एक नमूने
मिलते है। मैं बाथरूम गया और वापस आया तो मायकल अपनी सीट पर बैठा हुआ था। मैंने
उसे कचोरी दी, हम दोनों कचोरी खाने लगे।
मायकल ने फिर व्हिस्की की बोतल निकाली और मुझसे
कहा, “एक , एक हो जाए।“ मैंने कहा, “हो जाए जी हो जाए ।
मैं गाने लगा , “ एक एक हो जाए तो फिर घर चले जाना !“ अब तो कोलकता जाना था इसलिए
कोई हिचक नहीं थी। बस खाना पीना और सोना। हम दोनों फिर पीने लगे।
मैंने कोच अटेंडेट से खाना मंगवाया। मायकल ने खाने से
मना कर दिया। मैंने उसे जबरदस्ती खाने को कहा। हमने खाना खाया और मैंने अपने
बेड पर लेट गया। मायकल ऊपर की बर्थ पर लेट गया !
मायकल ने कुछ देर की चुप्पी के बाद पुछा – “यार कुमार
ये जो प्लॉट्स तुम सोचते हो कहानी के लिए ये कैसे आते है। मतलब तुम कैसे प्लान
करते हो।“ मैंने कहा – “कुछ नहीं जी। पहले एक लूज स्टोरीलाइन बनाता हूँ, फिर उसके कैरेक्टर्स बनाता हूँ, और फिर स्टोरी और उन कैरेक्टर्स को आपस में बुन लेता
हूँ। बस हो गयी कहानी तैयार !”
मायकल ने पुछा, “जासूसी कहानी में जो मर्डर का प्लान तुम लिखते हो, वो कैसे लिखते हो” मैंने कहा, “यार बहुत सी किताबे पढ़ी हुई है, फिल्मे देखी हुई है और अपने समाज में भी कुछ न कुछ अपराध तो होते ही
रहता है। बस उसी को बेस बनाकर प्लाट बनाता हूँ।“
मायकल ने कहा – “अच्छा ये बताओ कि क्या कोई फुलप्रूफ
मर्डर का प्लान होता है।“ मैंने कहा, “सारे प्लान ही फुलप्रूफ होते है। बस, उस प्लान को एक्सीक्यूट करते हुए कुछ
गलती हो जाती है जो unexpected होती है। इसी के चलते अपराधी पकड़ा जाता है।“
मायकल चुप हो गया। थोड़ी देर बाद उसने मुझसे कहा –
“मुझे जासूसी कहानियो में बहुत रूचि है। मैं भी एक कहानी लिखना चाहता हूँ।
आप थोड़ी मदद करो।“
मैं उठकर बैठ गया। मुझे भी अब मज़ा आ रहा था। मैंने
कहा, “बताओ, क्या प्लाट है?”
मायकल ने कहा, “एक औरत अपने पति से बेवफाई करती है। उसे ज़हर देती है और मार देती है। और किसी
दुसरे अमीर आदमी से जुड़ जाती है, अब उस औरत को उसकी बेवफाई की सजा देना है।“
मैंने कहा “यार तो बहुत पुराना प्लाट है। कई कहानिया
लिखी जा चुकी है और फिल्मे भी बनी हुई है।“
मायकल ने कहा, “फिर भी बताओ कि उसे कैसे सजा दिया जाए।“
मैंने कहा, “दो सवाल है, पहली बात तो ये कि
उसे सजा कौन देंगा। और दूसरी बात कि उसे सजा क्या देना है।“
मायकल बहुत देर तक चुप रहा। फिर मुझसे पुछा – “क्या
उसे मौत की सजा दी जाए।“ मैंने कहा, “सजा देना बड़ी बात नहीं है। कहानी में हम डाल देंगे कि उसका मर्डर कर दिया
गया, लेकिन सजा कौन देंगा।”
मायका बहुत देर तक चुप रहा, फिर उसने कहा, “यार तुम लेखक हो तुम ही कुछ सुझाव दो।“
मैं सोचने लगा। बहुत देर तक सोचा। सोचते ही रहा।
मैंने फिर कहा – “एक बात हो सकती है। उस मरे हुए आदमी का कोई दोस्त उसे सजा दे।”
मायकल ने कहा, “हां ये हो सकता है लेकिन अगर उस आदमी का कोई दोस्त न हो तो।“ मैंने कहा, “ऐसे कैसे हो सकता है, हर आदमी का दोस्त होता है। हाँ ये हो सकता है कि उस आदमी के दोस्त को कुछ पता
ही न हो।“
मायकल सोचने लगा। मैंने कहा, “मैं आता हूँ यार दरवाजे से थोड़ी ताज़ी हवा लेकर।“
मैं कोच के दरवाजे पर पंहुचा, वहां वो औरत खड़ी थी और साथ में उसका आदमी भी। मैं भी
वहीं पंहुचा। ताज़ी हवा अच्छी लग रही थी। मैंने कहा, “मुझे ऐसे दरवाज़े पर खड़े होकर ताज़ी हवा के झोंके अच्छे लगते है।“ सुनकर
उस औरत ने भी कहा, “मुझे भी !” आदमी ने
मुझे घूरकर देखा और कहा, “सभी को अच्छी लगती
है ताज़ी हवा !”
मैंने पलटकर देखा तो मेरे पीछे मायकल भी खड़ा था !
मायकल उस औरत को देख रहा था ! मैं मुस्करा उठा ! कुछ देर बाद मैं वापस लौट पड़ा।
अपने केबिन में घुसने के पहले मैंने पलटकर देखा। औरत
मुझे ही देख रही थी। मैं मुस्कराया। और भीतर घुसा। मायकल अपनी सेट पर बैठा था।
मैंने कहा, “अरे अभी तो तुम वहां बाहर थे
अभी इतनी जल्दी कैसे आ गए।“ मायकल ने कहा – “कुछ नहीं, जब तुम उस औरत को देख रहे थे, तो मैं वापस लौट पड़ा !”
मैंने अपना लैपटॉप निकाला और उस पर काम करने लगा।अपने
नासिक के टूर के नोट्स और टूर रिपोर्ट लिखने लगा। मेल्स चेक किया, कोई इम्पोर्टेन्ट मेल नहीं थी । कुछ जॉब्स में अप्लाई किया था, वहाँ से
रिजेक्शन के मेल थे, मेरा मन वितृष्णा
से भर गया, पता नहीं मेरी किस्मत कब
सुधरेंगी। मैं अपनी कहानी के ब्लोग्स पर गया, उस पर कुछ पाठको के कमेंट्स आये थे, उन्हें धन्यवाद लिखा और सोचा कि लिखना नहीं बंद करूँगा। और फिर लैपटॉप बंद कर
के बैग में डाल दिया।
देखा थे मायकल मुझे ही देख रहा था। मैं उसे देख कर मुस्कराया और कहा, क्या करे यार रिपोर्ट्स लिखना पड़ता है, पापी पेट का सवाल है। वो भी मुस्कराया और बोला, हां वो तो है, नौकरी, काम धन्धा
तो करना ही पड़ता है।
हम दोनों अपने अपने बर्थ पर लेट गए।
||| शाम 6:30 |||
शाम गहरी हो रही थी। ट्रेन की अपनी रफ़्तार थी।
गीतांजलि एक्सप्रेस भारत की सबसे प्रसिद्द ट्रेन में से एक थी। ये ट्रेन मुंबई से
कोलकत्ता और कोलकत्ता से वापस मुंबई के सफ़र पर चलती थी। इसका सफ़र आरामदायक ही थी।
ट्रेन में खाना भी अच्छा मिल जाता था और ट्रेन की रफ़्तार के सभी दीवाने थे !
मायकल की खुरदरी आवाज से मेरी सोचने की तन्द्रा टूटी।
मायकल ऊपर से झाँक कर मुझसे कह रहा था, “अच्छा एक बात बताओ अगर तुम उस आदमी के दोस्त होते तो उस औरत को कैसे मारते।“
मैंने हँसते हुए कहा, “यार मैं कोई
क्रिमिनल नहीं हूँ। एक राइटर हूँ “, मायकल ने कहा, “यार मेरा ये मतलब
नहीं था, उस कहानी पर हम डिसकस कर रहे थे
न, मैंने उसी सिलसिले में पुछा
है।“
मैंने उसे नीचे बुला लिया और उठा कर बैठ गया। और
सोचते हुए कहा कहा, “बहुत से तरीके है
जिनसे उस औरत को मारा जा सकता है। ये डिपेंड करता है कि उसे कहाँ मारना है घर में, बाहर में, कार में, बाज़ार में, हर जगह के लिए अलग अलग तरीको से मर्डर किया जाता है। सारी दुनिया में कई
कहानियाँ भरी पड़ी हुई है। दोस्त कोई भी राह चुन लेता।“
मायकल सोचने लगा। थोड़ी देर बाद उसने कहा, “चलो ठीक है लेकिन अगर दोस्त को मर्डर करके बचकर
निकलना है तो क्या करे।“ मैंने कहा, “ये फिर डिपेंड करता है कि उसने मर्डर कहाँ करना है। उस लोकेशन के बेस पर वो
प्लान करेंगा ताकि वो बचकर निकल ले, जैसे घर पर हो तो ज़हर दे दे खाने में या फिर कोई और तरीका। या अगर बाहर में हो तो एक एक्सीडेंट क्रिएट किया जाए। इस
तरह से उस दोस्त पर कोई आंच नहीं आएँगी।“
मायकल चुप हो गया। कोच अटेंडेट आया, रात के खाने के बारे में आर्डर लेने के लिए। साथ में
पैंट्रीकार का बंदा भी था। मैंने हम दोनों के लिए रोटी सब्जी मंगा ली। हालांकि
मायकल ने खाने के लिए मना किया था। मैंने पुछा –“खाना कब आयेंगा।“ पैंट्री वाले ने
कहा,“अभी कुछ देर में नागपुर आयेंगा
उसके बाद खाना मिल जायेंगा !” मैं बेड पर लेट सा गया।
मैंने देखा मायकल चुपचाप था। मैंने कहा, “भाई हुआ क्या। कहानी में खो गए क्या।“ मायकल ने कहा, “हां कुमार, मुझे तुम कोई सुझाव दो।“ मैंने कहा, “करते है यार बाते। अभी तो रात बाकी है। काजू
निकालो। खाने का मन हो रहा है “ मायकल ने बोतल और काजू निकाल कर मुझे
दे दिया। मैंने हिचकते हुए एक घूँट लगाया।
मुझे पीने का मन नहीं हो रहा था, शायद तबियत फिर
ख़राब हो रही थी। मायकल वैसे ही पी गया। मैंने देखा कि काजू वाले डब्बे पर “लव यू
मार्था” लिखा हुआ था। मैंने मायकल से पुछा। “ये मार्था ?” मायकल ने कहा, “मेरी बीबी है” फिर रूककर कहा, “मतलब थी” मैंने गौर से मायकल को देखा। उसने कहा – “यार हम अलग हो चुके है।
मतलब वो अलग हो चुकी है।“ फिर वो चुप हो गया।
ट्रेन बहुत तेजी से भाग रही थी। मैंने मायकल के चेहरे को गौर से देखा। एक
अजीब सा दुःख और उदासी छायी हुई थी। मैंने एक गहरी सांस ली। और आँखे बंद करके
सोचने लगा, "या खुदा दुनिया में क्या कोई
ऐसा है, जिसे कोई दुःख नहीं है ?" मैंने फिर मायकल से कहा, “आय ऍम सॉरी मायकल भाई।“
मैं केबिन से बाहर आ गया। मुझे अच्छा नहीं लग रहा था, मैंने गहरी सांस ली और कोच अटेंडेट से कहा,“यार सिगरेट मिलेंगी?” उसने कहा “साब ट्रेन
में सिगरेट पीना मना है,” मैंने कहा “यार
मुझे सब पता है। मेरे सर में दर्द हो रहा है। तेरे पास है तो दे दे, मैं टॉयलेट में पी लूँगा।“ उसने एक सिगरेट दे दी, मैंने माचिस भी ली और बाथरूम में घुस गया। सिगरेट पीने
के बाद बाहर आया। वो अटेंडेट वही खड़ा था। उसे माचिस दी और कुछ रूपये टिप में दे
दिया, मुंह धोया और दरवाज़ा खोलकर ताज़ी
हवा में साँसे लेने लगा। मायकल के बारे सोचने लगा। कितना भला आदमी था। लेकिन उसकी
किस्मत।
मैं कुछ इसी सोच में था कि पीछे से आवाज़ आई, “हमें भी चाहिए ताज़ी हवा।“ मैंने मुड़ कर देखा। वही औरत थी। इस बार उसका आदमी
साथ नहीं था। मैंने कहा, “हां हां आ जाईये, कुदरत ने सब के लिए फ्री में ये नेमते दे रखी है।“
उसने कुछ उलझन से मेरी ओर देखा और कहा – “आपने क्या कहा, मुझे तो समझ ही नहीं आया।“ मैं हंस पड़ा, मैंने कहा, “जी, ये उर्दू के अलफ़ाज़ है। मैं ये
कह रहा था कि नेचर ने ये सब कुछ फ्री में ही रखा है। हवा पानी।“ उसने मुस्कराते
हुए कहा, “हां ये तो सही है।“ फिर वो
दरवाजे पर खड़ी हो गयी। इतने में उसका आदमी आया पीछे से। उसने मुझे घूर कर
देखा और कहा, “यहाँ क्या कर रहे हो?” मैंने कहा, “हवा खा रहा हूँ। आईये आप भी लीजिये।“ उसकी औरत ने पीछे मुड़कर देखा और उस आदमी
से कहा, “अरे आओ न कितनी अच्छी और ताज़ी
हवा आ रही है। वो खड़ा हो गया उस औरत के पीछे।“
मैं थोड़ी दूर खड़ा होकर मायकल के बारे में सोचने लगा।
गाडी धीमे होने लगी थी। मैं मुड़ा, देखा तो पीछे मायकल खड़ा था। उस औरत को प्यार से देखते हुए। उसे देखकर
मेरे मन में यही बात आई कि उसकी बीबी ने जो उसे छोड़ दिया था, उसी का मलाल होंगा उसे। इसलिए औरो की बीबीयो को देखता
था ! खैर मुझे अब उससे सहानुभूति थी। मैंने कहा, “चलो यार केबिन में चलते है।“ वो चुपचाप मेरे साथ चलने लगा और केबिन में आ गया।
उसने फिर शराब की बोतल निकाली और पीने लगा।
मैं उसे देख रहा था। मैंने कहा, ”यार मुझे भी दो।“ मुझे भी किसी को भुलाना था। कोई
अचानक ही याद आ रहा था। मैंने उससे बोतल लेकर मुंह में लगा दी। मुंह से लेकर कलेजे
तक और कलेजे से लेकर पेट तक एक आग सी लग गयी। शराब भी क्या चीज है यारो। सारे दुखो
की एक ही दवा, दारु का पानी और दारु की ही हवा
!!! मैंने जोर से हंस पड़ा ! मायकल ने पुछा क्या हुआ ?
मैंने शराब की बोतल उठाकर कहा, “मायकल की दारु झटका देती है, मायकल की दारु फटका देती है।“ वो भी हंसने लगा। उसकी हंसी मुझे बहुत भयानक सी
लगी। ट्रेन रुक गयी। नागपुर स्टेशन आ गया था।
मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। नागपुर से वैसे भी मेरी
बहुत सी दुखद यादे जुडी हुई थी। मुझे इस स्टेशन पर आना ही अच्छा नहीं लगता था। बस
नौकरी के चलते आना होता था, नहीं तो मैं कभी भी
नहीं आऊ। मैंने मुस्कराते हुए खुद से कहा, ‘हे भगवान, ज़िन्दगी के दुःख भी कैसे कैसे होते है।‘
मायकल ने मुझसे पुछा, “क्या हुआ? क्या कह रहे हो यार?”
मैंने कहा, “कुछ नहीं दोस्त, बस जैसी तुम्हारी
कहानी है, वैसे ही मेरी भी एक कहानी है।
दरअसल दुनिया में ऐसा कोई नहीं जिसकी कोई कहानी न हो !”
मायकल ने एक गहरी सांस ली और कहा, “हाँ सही कह रहे हो दोस्त !”
हम दोनों अब चुप हो गए थे और अपनी अपनी यादो में खो
गए थे। और ये चुप्पी बहुत भयानक थी।
||| रात 9:00 ||| नागपुर |||
खाना आ गया था और हम दोनों चुपचाप खा रहे थे। मैं
खाना के बाद बाहर निकल पर दरवाजे पर खड़ा हो गया। ताज़ी हवा अच्छी लग रही थी। ट्रेन
की रफ़्तार कभी कभी अच्छी लगती है। मैं थोड़ी देर बाद मुड़ा तो देखा तो मेरे पीछे वो
औरत खड़ी थी और मुझे देख रही थी। मैं उसे देखकर मुस्कराया। वो मुझे देखकर हंसी।
मैंने कहा, “मेरा नाम कुमार है।“ उसने कहा, “मैं आपको जानती हूँ। आप राइटर है न। मेरे हसबैंड
आपको बहुत पढ़ते थे।“ मैंने सर झुका कर कहा, “शुक्रिया जी !”
मैं कुछ कहने जा रहा था कि उसका आदमी प्रकट हुआ। हम
दोनों को बाते करते देखकर उसके चेहरे का रंग बदला। फिर उसने औरत से कहा, “यहाँ क्या कर रही हो। कितनी बार यहाँ दरवाज़े पर खड़ी
हो जाती हो। गिर गयी तो।“ औरत ने हँसते हुए कहा, “अरे मैं नहीं गिरने वाली। मुझे बचपन से गाडी के दरवाजे पर खड़ी होकर सफ़र करना
अच्छा लगता है और फिर गिरी तो तुम हो न मुझे बचाने के लिए !” आदमी खुश होकर बोला, “हां न मैं हूँ न। संभाल लूँगा।“ मैंने मुस्कराते हुए
खुद से मन ही मन कहा – “अबे, पहले खुद को तो संभाल ले मोटे, फिर इस हसीना को संभाल लेना !”
मैं मुस्कराते हुए अपने केबिन की ओर बढ़ा। देखा तो
मायकल खड़ा था ! मैंने उससे कहा, “चलो यार अन्दर चलो। कहानी पर डिसकस करते है” वो लगातार उस औरत को देखे जा रहा
था और औरत मुझे देख रही थी। मैं मुस्कराया।
मैंने केबिन में मायकल से कहा, “हां यार बताओ तो कहानी पर हम कहाँ थे?” मायकल ने मुझे कहा “यार तुम तो उस औरत को बड़े घूर रहे
थे।“ मैंने हँसते हुए कहा, “यार मायकल, मुझे औरतो में कोई दिलचस्पी नहीं रही। मुझे अब किसी से कोई मोहब्बत नहीं होने
वाली। ये तो पक्की बात है। बस सफ़र में हंसी मज़ाक की बाते होती रहनी चाहिए इसलिए
मैं उनसे बकबक कर रहा था, लेकिन मायकल वो जोड़ी
है बड़ी अजीब। मुझे तो पक्का लगता है कि उस औरत ने उस मोटे से सिर्फ पैसे के लिए ही
शादी की है। बाकी कोई मतलब नहीं और मुझे तो कम से कम ऐसे औरतो में कोई दिलचस्पी
नहीं !”
मायकल ने उठकर मुझसे हाथ मिलाया। और गले लगाया। मैं
उससे गर्मजोशी से गले मिला, आखिर हम दोनों का
मसला एक था। दोनों के दुःख एक थे और दोनों ने एक ही शराब की बोतल से पिया था इसलिए अब हम शराबी भाई भी
थे।
पर यार उसके कपड़ो से ये
गंध......................उफ्फ्। और मुझे उसका शरीर इतना अकड़ा हुआ सा क्यों लगता
था, जरुर पीठ में रॉड डाले होंगे, स्पाइन ऑपरेशन हुआ होंगा। खैर जी मुझे क्या।।।!
||| रात 10:30 ||| दुर्ग स्टेशन
– शिवनाथ ब्रिज |||
ट्रेन रुकी हुई थी, शायद कोई ट्रेन क्रासिंग थी। बहुत देर से रुकी हुई थी !
कुछ देर से केबिन में ख़ामोशी थी।
फिर मायकल ने पुछा, “कुमार, अगर तुम उस आदमी के दोस्त होते तो कैसे बदला लेते।“
मैंने कहा, “मैं उस आदमी के लिए जो कि मेरा दोस्त होता, जरुर बदला लेता ! मैं उस औरत को मार डालता।“
मायकल ने जोश में पुछा, “कैसे मार डालते। बताओ, मुझे भी बताओ !”
मैंने कहा – “अगर उसे घर में मारना होता तो मैं उसे
ऐसे मारता जिससे कि वो आत्महत्या का केस लगे चाहे उसे ज़हर देता, या गैस से मारता या फिर फंदा लगाकर मार डालता या किसी
और तरीके से, लेकिन वो लगता आत्महत्या का केस
ही !”
मायकल ने गहरी सांस ली और कहा, “और अगर वो बाहर हो तो।“
मैंने थोड़ी देर सोचा और फिर कहा, “बाहर में तो मैं उसे ऐसे मारता, जिससे वो एक एक्सीडेंट ही लगे। चाहे कार से या किसी
और तरीके से, लेकिन वो एक एक्सीडेंट सीन ही
होता। मैंने कई नावल पढ़े है , कई फिल्मे देखी है। ऐसा ही होता है।“
मायकल ने मुस्कराकर कहा, “यार तुम तो बड़े जीनियस हो। मैं तुम्हे एक शानदार चीज
पिलाता हूँ।“ उसने बैग में से एक बोतल निकाली। उसमे सफ़ेद सा पानी भरा हुआ था।
मैंने उससे पुछा, “ये क्या है?’ उसने कहा, “ये गोवा की फेनी है। जिसे तुम कच्ची शराब भी कह सकते हो। इसका टेस्ट भी अलग है, लो इसे पीकर देखो।“ मैंने उसका एक घूँट लिया। बहुत ही
कड़वा था, पर एक अजीब सी गंध थी मैंने दो
घूँट और लिया। इसका भी एक अलग सा नशा था !
मैंने ना चाहते हुए भी उसे पिया और काजू खाने लगा।
रात गहरी हो रही थी। और मुझे पर नशा गहरा होते जा रहा था। सर में अलग से दर्द हो
रहा था .
मायकल ने पुछा, “कुमार तुमने कहा है कि अगर वो औरत बाहर रहे तो कार का एक्सीडेंट बता सकते हो।
इसी तरह अगर वो औरत ट्रेन में रहे ; तो उसे कैसे मारते तुम।“
मुझ पर हल्का सा नशा तारी था। मैंने कहा, “यार, उसके खाने में ज़हर मिला देते या फिर ट्रेन से धक्का दे देते।“
मायकल ने कहा, “खाने में ज़हर मिलाना तो मुश्किल होता पर ट्रेन से धक्का, हां ! ये हो सकता है।”
मैंने कहा, “यार मुझे नशा कुछ ज्यादा ही हो गया है मैं बाथरूम जाकर आता हूँ !”
मैं बाथरूम में जाकर खूब सारे ठन्डे पानी से चेहरा
धोया। सर गीला किया। और ट्रेन का दरवाज़ा खोलकर खड़ा हो गया। गाडी अभी भी खड़ी थी।
ठंडी हवाओं के थपेड़े चेहरे पर लगने लगे। कुछ ही देर में अच्छा लगने लगा।
मैंने घडी देखी, रात के बारह बजने वाले थे। दूर से रोशनी दिख रही थी, शायद कोई स्टेशन आने वाला था। मैंने पूरे कोच में यूँ ही घूमना शुरू किया।
अच्छा लग रहा था। गाड़ी की पहियों की भीषण खड़खड़ाहट का शोर नहीं था और पूरे कोच में
शान्ति थी। दोनों कोच अटेंडट सोये हुए थे। हर केबिन का दरवाज़ा बंद था और बत्तियां
बुझी हुई थी। मैं फिर गाड़ी के दरवाजे पर खड़ा हो गया।
“अच्छा लग रहा है न।” एक आवाज़ आई, बिना पीछे मुड़े मैं जान गया, वही महिला थी। मैंने कहा, “हाँ। मुझे ये सब बहुत अच्छा लगता है।“ उसने कहा, “मुझे भी।“ मैंने कहा, “आईये, आप देखो ये, मैं तो बहुत देर से
देख रहा हूँ।“ वो खड़ी हो गयी दरवाजे पर। मैंने कहा, “संभल कर। रात का समय है। नींद का झोंका आ सकता है। आप सो ही जाए तो अच्छा।“
उसने कहा, “नहीं। अभी एक बड़ी सी नदी आने
वाली है। वो क्रॉस हो जाए फिर मैं सो जाती हूँ। मुझे ट्रेन के दरवाजे पर खड़े होकर, रेलवे के ब्रिजेस को पार करना अच्छा लगता है, उसी ब्रिज के लिए जगी हुई हूँ।“ मैंने कहा, “और साहेब कहाँ है ?”
उसने कहा, “वो भी जगे हुए है। वो देखो। आ
गए।“ आदमी ने मुझे फिर घूरकर देखा और कहा, “यार तुम हमेशा यही रहते हो क्या दरवाज़े पर?” मैंने कुछ तल्खी से कहा, “नहीं यार मेरा अपना केबिन है। ये बस इतेफाक है कि जब मैं यहाँ खड़ा होता हूँ
आप आ जाते हो। आईये, स्वागत है आपका। मैं
चलता हूँ।“
मैं केबिन की ओर मुड़ा तो देखा मायकल खड़ा था, मैंने उससे कहा, “यार तुम सो जाओ, मुझे नींद नहीं आ
रही है।“ मायकल ने भीतर आते हुए कहा “मुझे भी नींद नहीं आती, बल्कि मैं तो कई रातो से नहीं सोया हुआ हूँ।“
मैंने सहानुभूति से कहा, “हाँ होता है दोस्त। मुझे भी कम ही नींद आती है।“
मैंने केबिन में प्रवेश किया और बत्तियां बंद कर दी। ट्रेन अब भी रुकी हुई थी।
मायकल ने कहा, “थोड़ी और पिओंगे ?” मैंने कहा, “ नहीं यार अब नहीं। कुछ ठीक नहीं लग रहा है, लगता है मुझे उलटी हो जायेंगी “
मैंने कुछ देर बाद पुछा, “मायकल तुम्हारी वाइफ मार्था ने आखिर तुम जैसे अच्छे
आदमी को क्यों छोड़ दिया?”
मायकल बहुत देर तक खामोश रहा और फिर उसने कहा, “बात उन दिनों की है जब मैं बिज़नस में स्ट्रगल कर रहा
था। मार्था बहुत खुबसूरत थी। मैं उसे बहुत चाहता था लेकिन उसे धन दौलत से ज्यादा प्रेम था, उसे दुनिया की बहुत सारी दुनियावी खुशियाँ चाहिए थी जो मैं नहीं दे सकता था।
हम दोनों में अक्सर इस बात को लेकर झगडे हो जाते थे। मेरा ध्यान अपने छोटे से
बिज़नस की तरफ ज्यादा था, मैं काम के सिलसिले
में बाहर भी रहने लगा। मुझे धीरे धीरे इस बात का अहसास हो रहा था कि उसकी रूचि
मुझमें कम होती जा रही थी। हम गोवा में रहते थे और मापुसा बीच के पास मेरा घर था, जो कि गिरवी पड़ा हुआ था। आखिर मैं क़र्ज़ न चूका सका और
वो घर भी बिक गया, हम लोग वही पर एक
छोटे से किराए के घर में रहने लगे। मैं कुछ दिनों के लिए केरला गया, वही से वापस आने पर मैंने मार्था के रंग ढंग में
परिवर्तन देखा। मैंने ये भी जाना कि हमारे ही घर के पड़ोस के होटल में एक बड़ा
बिजनेसमैन रहने आया हुआ है। वो गोवा में होटल खोलने का इच्छुक था और कुछ दिनों के
लिए मार्किट की स्टडी के लिए उसी होटल में रुका था। उसका नाम राणा था और वो कोलकता
से था, जब मैं वापस पहुंचा तो मार्था
ने मुझे उससे मिलवाया और कहा कि ये तुम्हारे बिज़नस में मदद कर देंगे। खैर कुमार
साहब, मुझे राणा से रुपयों की मदद तो मिली लेकिन एक बहुत बड़ी कीमत पर, उसने मेरी बीबी को अपने पैसो और प्रेम के जाल में फंसा लिया। मेरे पीठ पीछे
मेरी बीबी मुझे धोखा दे रही थी। उसको राणा से प्यार हो गया था या फिर यूँ कहिये कि
उसे राणा के पैसो से प्रेम हो गया था। खैर मुझे भी कुछ समय में भनक तो लग गयी थी।
मेरा राणा से बहुत बड़ा झगडा भी हुआ, लेकिन उस बात का उसपर कोई असर नहीं हुआ और वो बाज न आया। उसने वही होटल खरीद
लिया था जिसमे वो रह रहा था और मेरी बीबी उसी होटल की मेनेजर भी बन गयी थी। मार्था
ने मुझसे तलाक माँगा,लेकिन मैंने इनकार
कर दिया। मैं भला आदमी था, लेकिन दुनिया में सब
भले नहीं होते। उसने और राणा ने मिलकर साजिश रची और मुझे अपने रास्ते से हटा दिया
!”
मुझे मायकल की कहानी से दुःख हो रहा था। मैंने फिर भी
पुछा, “क्या किया उन्होंने?”
मायकल ने कुछ नहीं कहा, एक गहरी सांस ली और रोने लगा। मुझे अच्छा नहीं लग रहा था। मैंने उठाकर उसके
कंधे थपथपाये, उसे चुप कराया। मैंने कहा, “चलो छोडो ये सब। दारु निकालो, थोडा ड्रिंक ले लो,सब ठीक हो जायेंगा।“
उसने ड्रिंक निकाला और पीने लगा, मुझसे पीने के लिए पूछा, मैंने मना कर दिया, मुझे लग रहा था कि मैं अब बहुत नशे में हूँ।
ट्रेन अभी भी रुकी हुई थी। मैं सोच रहा था कि दुनिया में क्या पैसा ही
सबकुछ होता है। इंसानियत नाम की कुछ बात होती है या नहीं !
मायकल अब बहुत चुप हो गया था।
थोड़ी देर बाद उसने मुझसे कहा, “यदि तुम मेरे दोस्त होते तो क्या उससे बदला लेते ?” मैं कहा, “बिलकुल लेता। मैं तो मार डालता।“ मुझ पर नशा पूरी तरह से चढ़ गया था। मायकल ने
मेरा हाथ पकड़ा और कहा, “थैंक्स यार!”
ट्रेन चलने लगी। और मेरी आँखे नशे में मुंदने लगी।
मैंने घडी देखी, रात के एक बज रहे थे, पता नहीं कितनी देर से गाडी खड़ी थी। मैंने उसे कहा, “यार मैं थोड़ी हवा लेकर आता हूँ। मुझे अच्छा नहीं लग
रहा है। दारु बहुत ज्यादा हो गयी है। “
उसने कहा, “मैं भी आता हूँ।“
मैंने देखा ट्रेन के दरवाजे पर वो औरत खड़ी हुई थी, उसके खुले बाल बाहर की हवा में लहरा रहे थे। मैं
चुपचाप उसे देखते हुए उसके पीछे जाकर खड़ा हो गया। मैंने मुड़कर देखा, मायकल ठीक मेरे पीछे ही खड़ा था। मैंने मायकल को देखकर
उस औरत की तरफ इशारा करते हुए आँख मारी। मायकल के चेहरे पर कोई भाव नहीं था!
बार बार तेज हवा के कारण, उस औरत के बाल मेरे चेहरे पर आ रहे थे। मेरी नज़र उसके बालो में लगे हुए तितली
के आकर के क्लिप पर पड़ी . उस पर कोच की लाइट्स पड रही थी रही थी और और उसमे लगे
हुए खुबसूरत स्टोन रह रह कर चमक रहे थे.
मैं चुपचाप उस औरत के बालो को अपने चेहरे पर आते हुए
और जाते हुए देखता रहा। मुझे कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था। स्त्री देह का आकर्षण
मुझे आने लगा। मैंने धीरे से कहा, “आप तो बहुत खुबसूरत हो।“ वो चौंक कर मुड़ी और लडखडा
गयी मैंने उसे थामा। उसने मुझे बहुत देर तक देखा और मुस्करा दी।
ट्रेन धीमी हो रही थी। मैंने स्टेशन का नाम पढ़ा –
दुर्ग जंक्शन। स्टेशन पर चहलकदमी थी। भारत में न स्टेशन सोते है। और न ही ट्रेन की
पटरियां। ज़िन्दगी बस चलती ही रहती है। ठीक ट्रेन की तरह ! कुछ मिनट रूककर ट्रेन चल
पड़ी। धीरे धीरे ट्रेन ने स्पीड पकड़ी।
दौड़ती हुई ट्रेन...............पीछे छूटता हुआ शहर और
शहर की जलती-बुझती बत्तियां................मुझे कविता लिखने का मन हुआ। जीवन भी
अजीब ही है..................... क्षणभंगुर सा !
ट्रेन की गति बढ़ रही थी।
वो मुड़ी, मैंने देखा वो बहुत खुबसूरत थी, वो मुझे देखकर मुस्करायी। मैं भी मुस्कराया। मैंने कहा, “अब रात हो गयी है, जाकर सो जाईये।“ उसने कहा, “बस थोड़ी देर, एक ब्रिज आने वाला है। वो देख कर चली जाती हूँ।“
मैंने कहा, “हां शायद शिवनाथ ब्रिज है।“
ट्रेन की गति बढ़ गयी थी। वो मुझे देख कर मुस्करा रही थी। मैं उसके करीब हो गया था।
ब्रिज आ रहा था। ट्रेन की पटरियों के तेज शोर के बीच में मैंने उससे पुछा
–“तुम्हारा नाम क्या है?”
ब्रिज में गाडी दाखिल हुई। शोर बढ़ गया था। उसने मुझसे
कुछ कहा, मुझे सुनाई नहीं दिया। मैं अपने कान उसके मुंह के पास लेकर गया।
मैं जान-बुझकर थोडा उसके करीब भी हो गया।
उसने नशीली आवाज़ में मुझसे कहा, “मेरा नाम मार्था है!”
मेरे जेहन को एक झटका सा लगा, मैंने उसे पकड़ सा लिया और मुड़कर देखा। मायकल मेरे
पीछे ही खड़ा था,उसने मुझसे कहा, “इसे धक्का देकर मार दो, यही वो धोखेबाज औरत है। तुम मेरे दोस्त हो। तुमने मुझसे कहा था कि तुम इस
मारोंगे !”
ट्रेन का शोर........ पटरियों का शोर.......... ब्रिज का शोर..................।
मार्था ने अपने हाथ ट्रेन के दरवाजे को छोड़कर मेरे
गले में डाल दिए थे। पीछे से मायकल ने कहा – “मारो धक्का इसे !” और उसने मुझे धक्का दिया, हडबडाहट में मैंने मार्था को धक्का दे दिया, वो जोर से चीखती हुई ब्रिज और पटरियों के बीच में
गिरी, पता नहीं वो कितने टुकडो में कट
गयी और नदी में गिरी या पटरियों पर ही पड़ी रही। ट्रेन के पहियों की भयानक आवाज़ में
उसकी पतली आवाज़ किसी को नहीं सुनाई दी।
मैं काँप रहा था, मायकल मुझे अपने केबिन में लेकर आया। मैं रोने लगा, मेरा नशा हिरन हो गया था, ये मैंने क्या कर दिया था –एक मर्डर। मैं एक पढ़ा,लिखा नौकरीपेशा आदमी, ये मैंने क्या कर
दिया।
मुझे जोरो से उलटी आई, मैं भागकर वाशबेसिन पर पहुंचा और उलटी करने लगा। मायकल मेरे पीछे ही था, मेरा
सर सहलाने लगा, अचानक ही मुझे अजीब सा महसूस होने लगा था। उल्टियां बंद हो गयी थी, मैंने मुंह धोया और फिर अपने केबिन में पहुंचा और फिर से रोने लगा।
मायकल ने मुझे अपने गले से लगाने की कोशिश की। मैंने
उसे हटा दिया। मैंने चिल्लाते हुए कहा, “तुम सब जानते थे। तुम शुरू से जानते थे की वो मार्था है, तुम्हे उसे मारना था। तो तुम मारते, मुझसे क्यों करवाया?”
मायकल ने मुझे शराब दी और पीने को कहा, पता नहीं उसके बात में क्या था कि मैंने फिर पीना
शुरू किया। मायकल ने कहा, “शांत हो जाओ दोस्त, तुमने एक बुरे इंसान को मारा है और ये पाप नहीं है !”
मैं चुप हो गया। इतने में केबिन का दरवाज़ा किसी ने
खटखटाया, मैंने उठकर दरवाजा खोला, दरवाजे पर वही मोटा आदमी था, जो उस औरत के साथ था। उसने मुझे देखा और कहा “यार
मार्था नहीं दिखाई दे रही है। ज़रा उसे तलाश करने में मेरी मदद करो।“ मैं क्या कहता, मैंने कहा “आप जाकर बैठो, मैं आपके केबिन में आता
हूँ।“ उसके जाने के बाद मैंने मायकल से कहा, “अब मैं इसे क्या जवाब दूं और क्या ये आदमी राणा है !” मायकल ने हां में जवाब दिया। मुझे कुछ समझ में
नहीं आ रहा था। मैंने मायकल से कहा, “मैं ये किस झमेले में फंस गया यार!” मायकल ने कहा, “जाकर उसे बता दो। सब ठीक हो जायेंगा।“
||| रात 2:00 |||
मैं राणा के केबिन में घुसा, वो परेशान था और ड्रिंक्स ले रहा था। मुझे देखकर उसने
कहा, “यार मैं परेशान हूँ क्या करूँ, टीटी को बोलूं या क्या करूँ।“ मैंने कहा, “आप बैठिये, मैं आपको कुछ बताना चाहता हूँ।“
मैंने उससे कहा “देखो एक एक्सीडेंट हो गया है। मार्था
ट्रेन से गिर गयी है! “ ये सुनकर उसकी आँखे फटी की फटी रह गयी, वो चिल्लाने लगा . मैंने उसे जबरन चुप कराया। मैंने
कहा, “शांत हो जाओ। यदि विश्वास नहीं
हो तो मेरे साथी मायकल से पूछ लो, वो भी मेरे साथ सफ़र कर रहा है।“
मायकल का नाम सुनकर वो बुरी तरह चौंका। वो बोला, “कौन मायकल?” मैंने कहा, “मार्था का पहला पति मायकल।“ वो
खड़ा हो गया और पागलो की तरह मुझे झकझोरते हुए कहा, “क्या कह रहे हो! मायकल तुम्हारे साथ कैसे हो सकता है। उसे तो मरे हुए एक साल
हो गया है !!!”
अब मैं जैसे फ्रीज़ हो गया। मैंने कहा, “क्या कह रहे हो यार, आओ मेरे कूप में, वो शुरू से मेरे साथ
है, हमने साथ में खाना पीना किया
है।“ हम दोनों भागते हुए मेरे कूप में पहुंचे। मैंने दरवाज़ा खोलकर देखा तो, वहां कोई नहीं था। मैंने सीट के नीचे झांककर देखा।
वहां कुछ भी नहीं था न उसका बैग और न ही
कोई बोतल। मेरा दिमाग चकरा गया, मैं सर पकड़ कर बैठ गया। राणा मेरे पास खड़ा था वो थर थर काँप रहा था,
मैंने कांपते हुए उससे पुछा, “बताओ मुझे , क्या बात है। क्या हुआ है। मायकल कैसे
मर गया “
उसने कहा, “एक साल पहले मैंने और मार्था ने मिलकर मायकल को ज़हर देकर मार डाला था और उसे
हम दोनों ने ही दफनाया था। वो जिंदा कैसे हो सकता था।“
मैं जैसे बर्फ में जम गया था ; अब मुझे कुछ कुछ समझ आ रहा था। मायकल
की आत्मा शुरू से मेरे साथ थी, वो किसी शरीर रूप का इन्तजार कर रही थी, ताकि उसके द्वारा, वो मार्था को सजा
दे सके। और मैं उसे मिल गया। वो उसके कपड़ो से कब्रिस्थान की गंध, वो उसका मुर्दों जैसा चुपचाप रहना, उसके कॉफिन की वजह से केबिन में बढ़ी हुई ठण्ड ! वो उसका कॉफिन का लास्ट ड्रेस, उसका मुर्दे की तरह कठोर बदन और उसका किसी ओर को दिखाई नहीं देना। मुझे अब सब
कुछ समझ में आ रहा था। वो एक शापित आत्मा थी !
हम दोनों डर से कांप रहे थे !
मैं डर तो रहा था, पर मैंने शांत होते हुए कहा, “ इसी को सर्किल ऑफ़ लाइफ एंड डेथ कहते है राणा। जैसा हम
दुसरो के साथ करते है, वैसा ही हमारे साथ
होता है। किसी न किसी तरह से हमारा किया हुआ ही हमें वापस मिलता है . चाहे वो फिर
मौत से पहले हो या मौत के बाद. अब मायकल वापस आया हुआ है। उसने ही मार्था को मारा
है और मार्था ने अपने किये की सजा पा ली और अब शायद तुम्हारी बारी है।“
ये सुनकर राणा काँपने लगा। उसने कहा, “नहीं नहीं मैं मरना नहीं चाहता, मैं अगले स्टेशन पर ही उतर जाऊँगा, मैं आज के बदले कल ही कोलकत्ता जाऊँगा और अब दोबारा
कभी गोवा नहीं जाऊँगा। और न ही अब इस ट्रेन में मुझे सफ़र करना है “
मैंने कुछ नहीं कहा। वो दौड़कर अपने केबिन से बैग को
लेकर आया और ट्रेन के दरवाजे के पास खड़ा हो गया। मैंने देखा कोई स्टेशन आ रहा था।
वो बहुत व्याकुल था , डरा हुआ था , और दरवाजे से सर बाहर निकालकर देखने लगा, इतने में मुझे उसके पीछे मायकल नज़र आया। उसने मुझे
देखा और राणा को धक्का दे दिया। राणा भी चीखते हुए गिरा और एक जोरदार धप्प की आवाज़
आई जैसे कोई मोटा समान गिरा हुआ हो । ट्रेन के दोनों अटेंडेट उसकी चीख से उठे। गाडी
रोक दी गयी। हल्ला मच गया। कुछ लोग ट्रेन के नीचे जाकर खोजने लगे , चारो तरफ शोर था । चारो तरफ कोहराम मच
गया ।
कुछ देर बाद ट्रेन का अटेंडेट आकर मुझसे बोला, “साहेब, वो जो बाजू के केबिन में आदमी था वो और उसकी बीबी ट्रेन के नीचे गिरकर मर गए.
मैं कांपने लगा और अपने कूप में घुस कर भीतर से
दरवाज़ा बंद कर दिया। मैं डर के मारे दरवाजे से सर टिकाकर अपने आपको शांत करने की
कोशिश की। लेकिन मैं शांत नहीं हो पा रहा था . मैं अपने बेड पर बैठने के लिए मुड़ा।
देखा तो मायकल मेरे काफी करीब खड़ा वो मुस्कराया और फिर उसने मुझसे हाथ मिलाया। मैं डर के मारे कांप रहा था।
मायकल ने मेरे सर पर हाथ फेरा और मुझे सोने के लिए कहा। और कहा कि कुछ नहीं हुआ है . सो जाओ !
मैं बेड पर गिरा और पता नहीं कब सो गया या बेहोश हो
गया !
||| दोपहर :12:30 ||| हावड़ा स्टेशन - हावड़ा |||
कोच अटेंडेट ने मुझे उठाया और कहा, “साहब, हावड़ा आ रहा है। उठ जाईये।“
मैं बहुत मुश्किल से उठा , मुझसे उठा नहीं जा रहा था
, मेरी तबियत बहुत ख़राब लग रही थी , मुंह पर पानी के बहुत से
थपेड़े मारे और अच्छे से चेहरा धोया और दरवाजे पर खड़ा होकर पीछे छूटती दुनिया देखने
लगा। मेरी तबियत और ख़राब हो रही थी .
सर घूम रहा था पेट दुःख रहा था और मैं
जल्दी से अपने घर जाकर फिर से सोना चाहता था .
हावड़ा स्टेशन पर गीतांजलि एक्सप्रेस धीमे धीमे रुक
गयी। मेरा स्टेशन आ गया था। मेरे जेहन में मायकल, मार्था और राणा आ गए। मेरे सर में इतना दर्द था कि मुझे समझ में नहीं आ रहा
था कि कल क्या हुआ था , सारी घटनाएं मेरे सर में घूम रही थी . मार्था और राणा की
याद आई . मायकल की आत्मा ने उन्हें भी उनके स्टेशन पहुंचा दिया था। वो स्टेशन जो
कि इस फानी दुनिया का सबसे आखरी स्टेशन होता है और जहाँ हर किसी को देर सबेर पहुंचना
ही होता है। मेरा सर चक्कर खा
रहा था , और मुझे लग रहा था कि मैं अब गिरा और अब गिरा .
मैं स्टेशन के बाहर आ गया , फ्री पेड टैक्सी की लाइन
में लगने की मेरी हिम्मत नहीं थी और जैसे तैसे एक टैक्सी वाले को बोला “गरियाहाट चलो” , उसने कहा कि
“साहेब ५० रुपये ज्यादा लगेंगे “, मैंने कहा , “यार ले चल , जो लेना है ले लो , बस घर पहुंचा दे , जल्दी से !”
मैं टैक्सी में बैठ गया मेरे जेहन में सारी घटनाएं घूम रही थी . कल
क्या हुआ था ? क्या भुत होते है ? क्या
मायकल वाकई में था ? मार्था को तो मैं पसंद करने लग गया था. फिर ये सब क्या था ?
टैक्सी ड्राईवर ने गाडी को प्री पेड टैक्सी काउंटर
बूथ से मोड़ा , मैंने यूँ ही खिड़की से बाहर देखा तो मेरी साँसे जैसे जम गयी ! बाहर
प्री पेड बूथ पर राणा और मार्था खड़े थे ! राणा पैसे दे रहा था और मार्था उसे
हाथ के इशारे से कुछ कह रही थी .
मैं आँखे फाड़ फाड़ कर उन्हें देखने लगा , जैसे अचानक
ही कोई बिछड़ा हुआ इंसान आँखों के सामने आ गया हो.
मार्था की नज़र एक पल के लिए मुझ पर पड़ी और वो मुस्करा
उठी. उसने मुझे देखकर हाथ हिलाया और
पीछे राणा की ओर मुड़ी .
मेरी नज़र उसके बालो में लगे हुए तितली के आकर के
क्लिप पर पड़ी . उस पर धुप की किरणे पढ़ रही थी और और उसमे लगे हुए खुबसूरत स्टोन
चमक रहे थे. ठीक कल रात की तरह जब उन पर कोच की
लाइट्स पड रही थी जब वो मेरे सामने खड़ी थी और फिर उसके गिरने का दृश्य मेरी
आँखों के सामने आ गया !
मेरी आँखों के सामने से मायकल ,मार्था और राणा और कल
रात की घटनाएं जैसे चक्करधिन्नी की तरह
घुमने लगी . क्या सच था और क्या झूठ , अगर ये दोनों कल वहां दुर्ग के पास मर गए थे तो फिर ये दोनों यहाँ ,आज हावड़ा में क्या कर रहे है . मायकल क्या वास्तव में था ? क्या वो
ट्रेन में मेरे साथ था ? मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था !
या क्या ये सारी चीजे मेरी ही दिमाग की उपज थी , मेरा माथा झन्नाने लगा !
घबराहट और डर के मारे मेरी हलकी सी चीख निकल गयी .
टैक्सी ड्राईवर ने पलट कर मुझे पुछा, “क्या हुआ
साहेब ? तबियत ख़राब है क्या ? मैंने शायद
उसे हां कहा !
टैक्सी हावड़ा ब्रिज में दाखिल हुई और धीमे धीमे
ट्राफिक में आगे बढ़ने लगी .
अचानक टैक्सी ड्राईवर ने कहा , वो देखिये ऊपर
ब्रिज पर तमाशा साहेब !
मैंने खिड़की से सर निकाल कर ऊपर देखा , लगभग २५- ३०
फीट ऊपर मधुमक्खी का एक बड़ा सा छाता बना हुआ था .
मैं उसे अवाक दृष्टी से उसकी तरफ देखने लगा . जिसका उस जगह पर होना लगभग
असंभव ही था, पर पता नहीं क्यों, अचानक ही उसे देखकर ही मेरी तबियत ठीक होने लगी .
मन शांत होने लगा.
ड्राईवर ने कहा , जो कोई इस छत्ते को छेड़ेंगा , वो
पक्का मरेंगा साहेब !
मैंने हामी भरी और टैक्सी की सीट पर सर टिका कर आँखे
बंद कर ली .
रहस्य, रोमांच और हॉरर को लेकर वो मेरी आखरी कहानी थी
.
समाप्त
कहानी © विजय कुमार
कहानी © विजय कुमार
उत्सुकता में ही एक साथ पूरी पढ़ गई .
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