कल से इस छोटे से
शहर में दंगे हो रहे थे. कर्फ्यू लगा हुआ था. घर, दूकान सब कुछ बंद थे. लोग अपने अपने घरो में दुबके
हुए थे. किसी की हिम्मत नहीं थी कि बाहर निकले. पुलिस सडको पर थी.
ये शहर छोटा सा था, पर हर ६ – ८ महीने में शहर में
दंगा हो जाता था. हिन्दू और मुसलमान दोनों ही लगभग एक ही संख्या में थे. कोई न कोई
ऊन्हे भड़का देता था और बस दंगे हो जाते थे. पुलिस की नाक में दम हो गया था, हर बार के दंगो से निपटने में. नेता लोग अपनी अपनी राजनैतिक रोटियाँ
सेकते थे. पंडित और मुल्ला मिलकर इस दंगो में आग में घी का काम करते थे. आम जनता
को समझ नहीं आता था कि क्या किया जाए कि दंगे बंद हो जाए. उनके रोजगार में, उनकी
ज़िन्दगी में इन दंगो की वजह से हर बार
परेशानी होती थी.
एक फ़क़ीर जो कुछ
महीने पहले ही इस शहर में आया था, वो भी सोच में बैठा था. उससे मिलने वाले मुरीदो में हिन्दू और मुसलमान
दोनों ही थे और आज दो दिन से कोई भी उसके पास नहीं आ पाया था.
आज वो शहर में निकल
पड़ा है, हर गली जा रहा है. और
लोगो से गुहार लगा रहा है. न कोई उससे मिल पा रहा है और न ही कोई भी उसे कुछ भी
नहीं दे पा रहा है. फ़कीर को दोपहर तक कुछ भी नहीं मिला.
वो थक कर एक कोने
में बैठ गया. एक बच्चा कही से आया और फ़क़ीर के पास बैठ गया, फ़क़ीर ने उससे पुछा क्या हुआ, तुम बाहर क्यों आये हो, देखते नहीं शहर में दंगा हो
गया है.
बच्चा बोला, “मुझे
भूख लगी है, घर
में खाना नहीं बना है. माँ भी भूखी है, बाबा को कोई काम नहीं
मिला आज. हम क्या करे. हमारा क्या कसूर है. हम क्यों भूखे रहे इन दंगो के कारण !”
फ़क़ीर का मन द्रवित
हो गया. फ़क़ीर के पास ५० रूपये थे. उसने वो ५०
रूपये बच्चे को दे दिए और कहा, “जाओ घर जाओ और बाबा को कहो कि गली के मोड़ पर पंसारी के
घर में बनी हुई दूकान से कुछ ले आये और खा ले.”
बच्चा ख़ुशी ख़ुशी घर
की ओर दौड़ पड़ा. फ़क़ीर उसे जाते हुए देखता रहा.
थोड़ी देर बाद कुछ
सोचकर फ़क़ीर पुलिस स्टेशन पंहुचा. वहां के अधिकारी भी फ़क़ीर को जानते थे. उन्होंने
फ़क़ीर को बिठाया और चाय पिलाई. फ़क़ीर ने कहा, “कर्फ्यू खोल दो बाबा.” अधिकारी बोले, “फ़कीर बाबा नहीं, दंगा बढ़ जायेंगा. पता नहीं कितने लोग घायल हो जाए.”
फ़क़ीर ने कहा, “आप
शहर में खबर करवा दो कि फ़क़ीर बाबा मिलना चाहते है.”
और फिर वैसा ही हुआ लोग
आये. फ़क़ीर ने बहुत सी बाते कही, एक दुसरे के साथ मिलकर रहने की बात कही, ये भी कहा कि आज के बाद कोई अगर
दंगा करेंगा तो फ़क़ीर अपनी जान दे देंगे. लोगो पर असर हो ही रहा था कि किसी बदमाश ने
कहा, “फ़क़ीर तो नाटक करता है, सब झूठ बोलता है.” इसी तरह की बाते होने लगी और वहां फिर
संप्रदाय और जातिवाद का जहर फैलने लगा.
कुछ लोगो ने गुस्से
से उस बोलने पर हमला कर दिया, वो किसी और जाति का निकला, फिर उस जाति के लोगो ने
इन लोगो पर हमला कर दिया, खूब मारपीट होने लगी, फ़कीर बीच में पहुंचे बीचबचाव के लिए, तब तक मारपीट फिर से दंगे में बदल
गया था.
पुलिस ने लाठीचार्ज
किया, सबको अलग किया तो देखा, फ़क़ीर बाबा, इस छोटे से दंगे में फंसकर मर चुके थे.
सारे लोगो में
सन्नाटा छा गया. उसी वक़्त शहर में ये तय हुआ कि कोई भी दंगा नहीं होंगा. उस दिन से शहर में शान्ति छा गयी. फिर कभी उस छोटे शहर में दंगा नहीं हुआ.
समाप्त