चमनलाल मर गए। वैसे तो एक दिन उन्हें मरना ही था। हर कोई मर जाता है । इस फानी दुनिया का और जीवन का यही दस्तूर है , सो जैसे सब एक न एक दिन मर जाते है , वैसे ही वो भी एक दिन मर गए। वैसे कोई ख़ास बात तो नहीं थी उनके मरने में | वो एक औसत और आम आदमी थे। उन्होंने एक औसत और आम आदमी की तरह ही जीवन जिया और करीब 80 साल की उम्र में मर गए। वैसे शायद उनकी उम्र 65 की ही थी | लेकिन अपने जीवन की कठिनाईयों की वजह से वो समय से पहले ही बूढ़े दिखते थे। सच कहा जाए तो जब वो 40 -45 के थे तब ही वो बूढ़े से नज़र आने लगे थे।
कल रात को वो मर गए। रात को सोये तो सुबह नहीं उठे। लोग ऐसा कह रहे थे- भगवान सबको ऐसी ही मौत दे। कोई ये नहीं सोचता है कि इंसान का मन ही कुछ ऐसा है कि वो अंत समय तक नहीं मरना चाहता ।
उनकी नौकरानी रमा रोज सुबह आ जाती थी | रोज चमनलाल सुबह उठकर तैयार हो जाते थे। जब से उन्होंने होश संभाला है , सुबह उठकर स्नान करना और फिर पूजा करके दिनचर्या में शामिल हो जाना उनकी पुरानी आदत थी। उनकी नौकरानी उनके घर की सर्वे-सर्वा यानी कि आल इन वन थी , साफ़ सफाई और खाना बनाना, थोड़े बहुत कपडे धोना इत्यादि सब उसके ही काम थे| चमनलाल अकेले ही रहते थे। रमा रोज सुबह आ जाती थी , तो चमनलाल को वो खाना बना देती थी और फिर घर के सारे काम करके जो कि कोई विशेष नहीं थे, कर जाती थी | खाने में चावल और दाल बना जाती थी। यही चावल और दाल चमनलाल दिन में तीन बार खा कर जीवन जी रहे थे। शाम के वक़्त यही दाल- भात कभी नींद की गोली के साथ तो कभी थोड़ी सी शराब के साथ खा लेते थे |
आज भी जब रमा घर आई देखा तो घर का दरवाजा खुला ही था। अमूनन वो बंद ही रहता था। जब वो अन्दर गयी , तो देखा कि चमनलाल अपनी आराम कुर्सी पर लेटे हुए थे और उनकी गोद में एक फोटो एल्बम था जो कि उनका फॅमिली अल्बम था; जो कि खुला हुआ था . जो पेज खुला हुआ था उसमे उनके बच्चो और दोस्तों की तस्वीरे लगी हुई थी .उनके हाथो में उनकी पत्नी का एक अच्छा सा बड़ा सा फोटो था जो कि पिछले साल ही गुजर गयी थी | चमनलाल की आँखे मुंदी हुई थी और उनके चेहरे पर एक असीम सा संतोष था; जैसे कह रहे हो कि सावित्री अब मैं भी तेरे पास आ रहा हूँ ; तुम अकेली नहीं हो।
नौकरानी ने पहले समझा कि वो सो रहे है | क्योंकि वो अक्सर नींद की गोलियों का सहारा लेकर सोते थे। उन्हें बहुत आवाज दी जोर से पर वो न उठे। उन्हें हिलाया पर उनकी आँखे न खुली , तब नौकरानी को समझा कि शायद कुछ गलत हो गया है | वो दौड़कर पडोसी चोपड़ा जी के घर गयी , उन्हें बुलाया , वो जब आये तो देख कर ही समझ गए कि चमनलाल नहीं रहे। उन्होंने फिर भी दुसरे दोस्त मिश्रा जी को बुलाया , उन्होंने भी देखकर सर हिलाया और कहा कि , "अब चमन नहीं रहा |" सो मोहल्ले के और लोगो को भी बुलाया गया | सब ने अंतिम यात्रा की तैयारी शुरू कर दी |
चमनलाल को हालांकि कई तकलीफे थी , शारीरिक रूप से कमजोर थे। कमर में हमेशा ही दर्द रहा करता था। हाथ पैर भी दर्द में तकलीफ देते रहते थे। अब चूंकि उनका मन पहले ही खराब हो गया था सो शरीर तो खराब होना ही था। सो एक तो बुढापा ऊपर से ढेर सारी बीमारियाँ और एक अनंत एकांत | पता नहीं किस सोच में डूबे रहते थे। कभी कभी हंस देते थे। और कभी तो बस चुप चाप रहते थे। ज़िन्दगी भर शरीर और मन की तकलीफे रही | कभी कराहे तो कभी रोये , पर जब मौत आई तो शायद नींद में ही चुपचाप चल बसे | पर आज उनके चेहरे पर एक परम शान्ति थी |
नौकरानी का रोना रुक ही नहीं रहा था। उसे चमनलाल अपनी बेटी की तरह ही देखते थे। चोपड़ा ने चमनलाल की एक डायरी को ढूंढा , उन्हें पता था कि चमनलाल अपनी कुछ बाते जो कि महत्वपूर्ण हो, उसमे लिखा करते थे। उसमे उनके तीनो बच्चो और दुसरे परिजनों तथा दोस्तों के नाम और पते लिखे हुए थे। और एक कागज़ पर छोटी सी वसीयत लिखी हुई थी | चमनलाल ने अपना सबकुछ [ वैसे भी अब कुछ बचा ही नहीं था | ये घर भर बच गया था उनकी पत्नी की मेहरबानी से ; वरना ये भी चला जाता था दुनिया को बांटने में . चमनलाल ने जीवन भर सबको बांटा ही जो था ] तीनो बच्चो में बाँट दिया गया था | और कुछ रुपया इस नौकरानी को दे देने की बात थी | चोपड़ा ने तीनो बच्चो को और चमन के दो दोस्तों को और चमनलाल के भाई बहन को फ़ोन कर के इस मृत्यु की सूचना दे दी और उन्हें तुरंत आने को कहा | बड़ा लड़का तो ये सुनकर ही सुन्न हो गया , उसने कहा कि जब तक वो न पहुंचे | दाह संस्कार न करे। और बाकी के कार्यकर्म को यथोविधि पूरा करे ,वो पहुँच रहा है | चोपड़ा ने हामी भर दी | वो बड़े लड़के का चमनलाल से प्रेम जानते थे। चमनलाल के बच्चो में ये बड़ा लड़का ही था , जिसका बहुत अनुराग था अपने पिता के लिए।
मिश्रा जी ने कुछ और लोगो के साथ मिलकर चमनलाल के शव को कुर्सी से नीचे उतारा । मिश्रा जी ने कुछ लोगो से घास और पुआल मंगवाया और उस पर एक चादर बिछा कर शव को रख दिया | शव के सर के पास एक दिया जला दिया गया | मोहल्ले के कुछ लोग अंत्येष्टि का सामान खरीदने चले गए | मिश्रा जी ने उन्हें खास तौर से दो बांस , खपच्चियाँ , सफ़ेद कपडा ,मटकी , रस्सी , जौ, कंडे, कपू र ,काला तिल , गुलाल तथा अन्य जरुरत की चीजे लाने को कहा | मिश्राजी ने अपने एक पंडित मित्र को बुला लिया जो कि अंतिम संस्कार की विधि करवाते थे। घर में अब अंतिम संस्कार की विधि को पूर्ण किया जाने लगा |
चमनलाल के तीन बच्चे थे। जो उनके और उनकि पत्नी के जीवनकाल में ही उनसे अलग हो गए थे। शादियाँ हो गयी थी , सबकी अपनी अपनी नौकरी थी। अपना अपना जीवन था। कभी नौकरी के बहाने और कभी साथ न निभने के बहाने से सब अलग हो गए थे। चमनलाल खुश रहना जानते थे। उनकी पत्नी सावित्री को ये सब [ बच्चो का अलग होना और साथ न देना ] न भाया और वो इस दुःख को न सहकर भगवान के पास चली गयी | अंतिम समय में उसने बहुत दुःख झेले , बुढापा अपने आप में दुखदायी होता है | वो हमेशा ही बीमार रहती थी , कुछ और बीमारियों ने अंत समय में उसका दामन पकड़ लिया | अंत समय में चमनलाल उसका हाथ पकड़कर बैठे ही रह गए और वो परमात्मा के पास चली गयी |
मिश्रा और चोपड़ा ने मिलकर कुछ और मोहल्ले वालो के साथ अंतिम यात्रा की तैयारिया शुरू कर दी। चोपड़ा ने जाकर पास वाले शमशान घाट में जाकर सारी औपचारिकताये पूरी करके आ गए , शाम को दिवगंत चमनलाल को ले जाना तय हुआ | मिश्रा ने कहा कि सूरज के डूबने के पहले ही अग्नि देनी होंगी | मोहल्ले के लोग जमा होने शुरू हो गए थे।
चमनलाल के बच्चे न तब आते थे और न ही अब| | एक बेटी थी जो कि शादी के बाद हमेशा अपने धन की कमी को रोती रहती थी | जो हमेशा ही ये सोचती थी उसे दहेज़ में कुछ मिला ही नहीं | जब भी समय मिलता , और जब भी वो इस घर में आती , कुछ न कुछ सामान जरुर ले जाती | चमनलाल कभी न रोकते | बस घर खाली होता गया | दरअसल बेटी को पिता से गुस्सा था । चमनलाल उसे अपने ही एक दोस्त के घर ब्याह करवाना चाहते थे पर बेटी ने प्रेम विवाह किया । चमन ने मना किया , पर उसने एक न सुनी और जब से ब्याह हुआ है , कुछ न कुछ मांगकर ले जाती थी, ये कहकर कि उसे दहेज़ नहीं मिला, उसका भी हक है इस घर पर । चमन ये समझ नहीं पाए आज तक कि वो खुद से होकर ये सब मांगती थी या उसके ससुराल वाले उसे भेजते थे । बड़ा बेटा जरुर मदद करता था । लेकिन उसकी पत्नी लड़ाकू स्वभाव की थी | बस फिर क्या था , उन्हें तो अलग ही होना था। वो फिर भी अपनी पत्नी को न बताकर चमनलाल की हर महीने कुछ मदद जरुर कर देता | छोटा बेटा सोचता था कि उसके साथ अन्याय हुआ है , उसे ठीक से पढाया लिखाया नहीं गया ,क्योंकि उसे विदेश में भेजने के लिए चमनलाल के पास पैसे नहीं बचे थे। | इसलिए वो गुस्से में अलग हो गया । पर हाँ , छोटे की बीबी , जब भी घर आती तो पति की नज़र बचाकर कुछ रुपये चमनलाल के पास छोड़ जाती| उसे चमनलाल में अपने पिता की सूरत दिखायी देती थी | उसके खुद के पिता के भी यही हाल है ...क्या करे भई , ये तो घर घर की कहानी है ....वो भी बड़े बेटे की ही तरह चुपचाप चमनलाल की मदद करती जाती| जो भी हो , चमनलाल ने कभी किसी से कुछ नहीं माँगा , बस जो मिला उसी में खुश हो गए |
मिश्रा जी ; चोपड़ा और मोहल्ले के दुसरे लोगो को कह रहे थे : जातसंस्कारैणेमं लोकमभिजयति मृतसंस्कारैणामुं लोकम्। अर्थात जातकर्म आदि संस्कारों से मनुष्य इस लोक को जीतता है; और मृत-संस्कार, "अंत्येष्टि" से परलोक को। चमनलाल हमेशा ही एक अच्छे आदमी रहे है हमें उनके लिए अच्छा अंतिम संस्कार करना चाहिए |
चमनलाल ने अपनी ज़िन्दगी में जो कुछ भी कमाया सब कुछ बच्चो को ही दे दिया , खुद के लिए कुछ न रखा | लोगो की मदद की | गरीबो में बांटा | बहुत सा रुपया दोस्तों ने ले लिया और जब चमनलाल पर मुसीबत आन पड़ी तो सबने किनारा कर लिया | पर इन सब बातो का और दूसरी दुनियादारी की बातो का चमनलाल पर कोई असर नहीं होता था | वो मनमौजी किस्म के बन्दे थे | और अब जब उनके पास कोई नहीं रहता था , तो जैसे तैसे बड़े बेटे और छोटी बहु के दिए हुए पैसो से ज़िन्दगी गुजार रहे थे। चूँकि कम में ही जीना उन्हें आता था , इसलिए इस बात का उन्हें कोई ज्यादा दुःख भी नहीं था। ये घर बचा रहा गया था | इसी में बस चुपचाप जी रहे थे|
चोपड़ा जी ने मिश्रा जी को बताया कि उन्होंने चमनलाल के बच्चो को बुला लिया था। उनके दोस्तों को खबर कर दी थी | बच्चे शायद शाम तक पहुंचे | दोस्त भी कल तक ही पहुँच पायेंगे | भाई और बहन को भी बता दिया गया था , वो भी शायद कल ही पहुंचेंगे | मिश्रा जी ने सर हिलाकर कहा यार चोपड़ा शाम तक कोई न पहुंचे तो हम ही चमनलाल का अंतिम कार्य करेंगे| कोई हो न हो उनका , हम तो है यार……ये कहते हुए मिश्रा जी की आँखों में आंसू आ गए|
जिन जिन को खबर मिल रही थी वो सब घर पर जमा होते जा रहे थे। मोहल्ले की औरते थोड़ी थोड़ी देर में सुबक उठती थी |
चमनलाल खासे प्रसिद्द थे मोहल्ले में | सब लोग उन्हें पसंद करते थे | उनकी पत्नी सावित्री खूब बतियाती रहती थी मोहल्ले के औरतो में | औरतो के अपने दुःख सुख होते है | सो सारी औरते मिलकर वजह और बेवजह की बाते करती थी और अपनी औलादों के अपने साथ नहीं रहने की खाली जगह को इन सब बातो से भरती थी | सावित्री भी इन्ही में से एक थी | जब तक पत्नी जीवित रही , चमनलाल उसे डांटते रहे कि तुम ये काम ठीक से नहीं कर पाती , वो काम अब तक नहीं हुआ। घर का और मेरा ध्यान नहीं रखती हो , साफ़ सफाई नही रख पाती और इसी तरह की और भी बहुत से बेवजह की बाते | कभी अपनों को लेकर और कभी परायो के लेकर | लेकिन एक बात थी ,सावित्री को उन्होंने कभी कोई कमी नहीं होने दी, उसे उसका मान , प्यार और जीवन में जो स्थान था , वो दिया . लेकिन जैसे कि अक्सर दाम्पत्य जीवन में होता है . दोनो का झगडा होते रहता था और आज देखो तो उन्ही सब कारणों को चुपचाप सूनी आँखों से देखते रहते थे और सावित्री को याद करते थे | अक्सर रमा से अपनी पत्नी की बाते करके रो उठते थे| मिश्रा जी और चोपड़ा दोनों अक्सर शाम को चमनलाल के साथ बैठकर दो दो घूँट शराब के पीते और अपनी बीबियो के अपने साथ नहीं होने के दुःख को शराब के साथ पी जाते | जीवन भी अजब है | क्या क्या रंग दिखाता है | सब कुछ इसी जन्म में नज़र आता है | यही मिल जाता है |
मिश्रा जी ने जिस पंडित मित्र को बुलाया था , उसने गरुड़ पुराण का पाठ शुरू कर दिया | मिश्रा जी कह रहे थे कि धर्म शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि गरुड़ पुराण के पठन और श्रवण से मरने वाले व्यक्ति की आत्मा को शांति मिलती है और हम सभी तो बस यही चाहते है कि चमनलाल की आत्मा को पूर्ण शांति मिले और उसे मोक्ष मिल सके। गरुड़ पुराण के अनुसार हमारे कर्मों का फल हमें हमारे जीवन में तो मिलता ही है परंतु मरने के बाद भी कार्यों का अच्छा-बुरा फल मिलता है। मिश्रा जी कह रहे थे कि धर्म शास्त्रों में सारी ही बाते लिखी गयी है |पर वो मन से जानते थे कि चमनलाल ने जीवन भर दूसरो को सुख ही बांटा , पर उसके हिस्से में बहुत ही कम सुख आये , पर चमनलाल हमेशा ही खुश रहते थे| मिश्रा जी से कहते थे कि यार छोडो तुम भी ये धर्म -पुराण ; बस अपना कर्म हमेशा सही रहना चाहिए | सारे के सारे शास्त्र चमनलाल के तर्कों के आगे कुछ भी नहीं थे| और मिश्रा जी और चोपड़ा जी हमेशा ही चमनलाल की बातो से सहमत रहते थे।
चमनलाल के दो भाई बहन थे। जब तक चमनलाल के हाथो में धन की खनक रही , सब उनके आसपास मंडराते रहे और जैसे ही चमनलाल मंदी के दौर में चले गए , सब दूर हो गए , खैर ये सब तो इस कलयुग में होते ही रहता है | सो उनके साथ भी हुआ | भई वो कहते है न सुख के सब साथी और दुःख में न कोय ! कुछ दोस्त भी थे | कुछ पहले ही भगवान के पास चले गए थे कुछ बुढापे की उदास ज़िन्दगी को जी रहे थे | बस कभी कभी कहीं मुलाकात हो जाए तो ठीक , वरना दिन में कभी कभी बाते हो जाती थी | यही पूछ लिया करते थे कि भाई , अब तक जिंदा हो और खूब ठट्टा मारकर हँसते थे|
लोगो ने अंत्येष्टि का सामान ले आया था | दोपहर हो चली थी | कुछ लोगो ने दो-दो ईंटें को कुछ दूरी पर रखकर उस पर दो लम्बे बांसों को रखा , फिर जो खपच्चियाँ लायी गयी थी , उन्हें एक निश्चित दूरी पर रखकर बांधना शुरू किया | पूरी तरह से बाँधने पर उस पर घास को रखा गया |और फिर एक सफ़ेद कपडे को एक बांस के दोनों सिरों में छेदकर के फंसा दिया | मिश्रा जी ने कहा , भाई शव को नहलाया जाए | अब उनके रिश्तेदार तो यहाँ अब तक नहीं आ पाए थे| इसलिए फिर से कुछ लोगो ने चोपड़ा और मिश्रा के साथ मिलकर चमनलाल को नहलाया | चोपड़ा और मिश्र के आँखों में आंसू आ गए थे| क्योंकि वो दोनों , करीब करीब रोज ही चमनलाल के साथ बैठते थे और खूब बाते करते थे| तीनो में खूब दोस्ती थी।
घर के फ़ोन की घंटी बजी। नौकरानी ने उठाया तो उधर से एक बूढी औरत ने पुछा , चमन है ? नौकरानी ने आवाज पहचानी | ये आवाज़ उस स्त्री की थी जो कभी कभी चमनलाल को फ़ोन करती थी | नौकरानी जानती थी उन्हें | चमनलाल ने उसे बताया था कि ये उनकी एक पुरानी मित्र है | लेकिन जिस उत्साह से ये दोनों बात करते थे , नौकरानी को समझने में ज्यादा समय नहीं लगा था कि दोनों ही कभी प्रेमी थे और अब भी बाते करके एक दुसरे का मन रखते है | ये एक विधवा औरत थी , जो चमन को प्रेम करती थी और वो भी चमन की तरह ही एकांत में जी रही थी , दोनों बस बाते करके ही अपने अकेलेपन को दूर करते थे | नौकरानी ने रोते हुए कहा , “नहीं अम्मा , चाचा नहीं रहे |” ये सुनकर फ़ोन के उस तरफ सन्नाटा छा गया , फिर एक धीमी सी आवाज आई - अच्छा | और फिर सुबकने की आवाज | और फिर फ़ोन बंद हो गया। हमेशा के लिए ! उस औरत का चमन ही एक ही सहारा था , जिससे वो सुख दुःख बांटा करती थी , अब वो भी नहीं रहा |
शाम हो रही थी | तैयारियां पूरी हो गयी थी | बस बच्चो की राह देखी जा रही थी | बच्चे भी आ गए , थोड़ी देर का रोना हुआ | फिर बेटी ने धीरे से चोपड़ा जी से पुछा कि पापा ने वसीयत में क्या लिखा है | चोपड़ा जी ने उसे घूर कर देखा | बड़ा बेटा लगातार रो रहा था| छोटी बहु भी नौकरानी के कंधे से टिक कर रो रही थी | कुछ और लोग भी रो रहे थे| शव को उठाकर बाहर लाया गया और उसे दर्शन के लिए आँगन में रखा गया | चमनलाल का कमजोर शरीर मरने के बाद और कमजोर हो गया था| लोग देख रहे थे | रो रहे थे ,सुबक रहे थे ,बाते कर रहे थे| मिश्रा जी ने धीरे से कहा, “चलो भाई देर हो रही है|”
मिश्रा जी लोगो से कह रहे थे कि बौधायन ने कहा है : जातस्य वै मनुष्यस्य ध्रुवं मरणमिति विजानीयात्। तस्माज्जाते न प्रहृष्येन्मृते च न विषीदेत्। अकस्मादागतं भूतमकस्मादेव गच्छति। तस्माज्जातं मृञ्चैव सम्पश्यन्ति सुचेतस:। अर्थात जो भी मनुष्य जन्मा है वो जरुर मरेंगा | इसीलिए किसी के जन्म लेने पर न तो प्रसन्नता से फूल जाना चाहिए और न किसी के मरने पर अत्यन्त विषाद करना चाहिए। यह जीवधारी अकस्मात् कहीं से आता है और अकस्मात् ही कहीं चला जाता है। इसीलिए बुद्धिमान को जन्म और मरण को समान रूप से देखना चाहिए, इसलिए मित्रो आओ चले , और चमनलाल को विदा करे| ये कहते हुए मिश्रा जी की आँखों में आंसू आ गए |
लोगो ने शव को उठाया | राम नाम सत्य है की गूँज उठी और चमनलाल अपनी अंतिम यात्रा पर चल दिए |
.....उपसंहार ...
चमनलाल को बहुत समय पहले कविता -कहानी लिखने का शौक था और काफी हद तक बहुत सी पत्रिकाओ में भी छपे। कुछ किताबे भी छपवा ली। लोगो को अपनी कविता सुनाते और खुश हो जाते थे मन ही मन में। समय बीतता गया और अब वो बात न रही । भाई ,वक़्त तो ऐसे ही चलता है ,कभी किसी का तो कभी किसी और का। यही तो दुनिया है। खैर अब मन हो रहा है कि चलते चलते ; आप सभी को उनकी लिखी एक कविता सुना दूं ; क्योंकि ये उनकी अंतिम कविता थी , जो कि उन्होंने किसी को नहीं बतायी थी ....
आज मैंने एक आदमी की लाश देखी,
यूँ तो मैंने बहुत सी लाशें देखी है,
पर ;
इस लाश की तरफ़ मैं आकर्षित था,
यूँ लगा कि ;
मैं इस आदमी को पहचानता था,
इस आदमी की जिंदगी को जानता था
इस लाश के चारो तरफ़ एक शांती थी
एक युग का अंत था ....
एक प्रारम्भ था .....
मैंने लाश को गौर से देखा !
इस लाश के पैरो को देखा,
उसमे छाले थे और पैर फटे हुए थे...
कमबख्त जिंदगी भर जीवन की कठिन राहों पर चला होंगा
मैंने लाश की कमर को देखा,
कमर झुक गई थी और उसमे दर्द उभरा हुआ था ;
कम्बखत ने जिंदगी भर जीवन का बोझ ढोया होंगा .
मैंने लाश के हाथों को देखा,
हाथो की लकीरें फटी हुई थी;
कम्बखत ने जिंदगी भर जीवन को सवांरा होंगा.
मैंने लाश के चेहरे को देखा,
उस पर एक अजीब सा सुख छाया था ;
भले ही कम्बखत ने जीवन के मौसमो को सहा होंगा;
इस लाश की तरफ़ मैं आकर्षित था,
यूँ लगा कि ;
मैं इस आदमी को पहचानता था,
इस आदमी की जिंदगी को जानता था
इस लाश के चारो तरफ़ एक शांती थी
एक युग का अंत था ....
एक प्रारम्भ था .....
मैंने लाश को गौर से देखा !
इस लाश के पैरो को देखा,
उसमे छाले थे और पैर फटे हुए थे...
कमबख्त जिंदगी भर जीवन की कठिन राहों पर चला होंगा
मैंने लाश की कमर को देखा,
कमर झुक गई थी और उसमे दर्द उभरा हुआ था ;
कम्बखत ने जिंदगी भर जीवन का बोझ ढोया होंगा .
मैंने लाश के हाथों को देखा,
हाथो की लकीरें फटी हुई थी;
कम्बखत ने जिंदगी भर जीवन को सवांरा होंगा.
मैंने लाश के चेहरे को देखा,
उस पर एक अजीब सा सुख छाया था ;
भले ही कम्बखत ने जीवन के मौसमो को सहा होंगा;
ज़िन्दगी भर दुःख सहा होंगा ,
पर उसके चेहरे पर एक शान्ति थी .
मैंने फिर चारो और देखा,
उसके चारो तरफ़ उसके रिश्तेदार थे;
वो सब थे ,जिनकी खातिर वो जिया ,
और एक दिन मर गया ;
कोई दुखी था ,कोई सोच रहा था ,कोई रो रहा था , कोई हंस रहा था
सच में हर कोई जी रहा था और ये ही मर गया था ...
अब मैं लाश को पहचान गया था
वो मेरी अपनी ही लाश थी
मैं ही मर गया था !!
मैंने फिर चारो और देखा,
उसके चारो तरफ़ उसके रिश्तेदार थे;
वो सब थे ,जिनकी खातिर वो जिया ,
और एक दिन मर गया ;
कोई दुखी था ,कोई सोच रहा था ,कोई रो रहा था , कोई हंस रहा था
सच में हर कोई जी रहा था और ये ही मर गया था ...
अब मैं लाश को पहचान गया था
वो मेरी अपनी ही लाश थी
मैं ही मर गया था !!
जी हाँ दोस्तों , मैं ही चमनलाल हूँ और अब चूँकि बिना अपनों के प्यार के जीना , सहज नहीं रह गया था , इसलिए मैंने कल रात को ढेर सारी नींद की गोलियों को खा लिया था और मर गया | वैसे मैं आत्महत्या करने वालो में से नहीं हूँ | ज़िन्दगी भर मैंने लोगो से यही कहा कि आत्महत्या नहीं करना चाहिए | लेकिन ये बात कोई नहीं समझ पाता कि हम बुढो को पैसो से ज्यादा प्यार चाहिए . अपनों का अपनापन चाहिए . हमें ज़िन्दगी नहीं मारती ; बल्कि एकांत ही मार देता है | कृपया आप यदि बूढ़े हो तो एकांत से बाहर निकलो और यदि आपके पास कोई बुढा है तो उसे एकांत मत दो . हमें भी जीना है , हमने बहुत सा जीवन बनाया है, बहुतो को जीवन दिया है ; अब अंत समय में कम से कम हमारे हिस्से का जीवन हमें दो | लेकिन ये बात काश कोई समझ पाता । अच्छा अब चलता हूँ | सावित्री शायद मेरा इन्तजार कर रही हो | नमस्कार |
दोस्तों ;
ReplyDeleteनमस्कार ;
मेरी नयी कहानी "चमनलाल की मौत" आप सभी को सौंप रहा हूँ ।
दोस्तों चमनलाल कोई भी हो सकता है , मैं भी , आप भी या कोई और. चमनलाल आदमी भी हो सकता है और औरत भी . कहानी का सार यही है की बुढो को एकांत ही मार देता है . हो सकता है कि बहुत सी बातो पर हमारे जीवन में मौजूद बुढो से हमारे differences हो , पर मैं समझता हूँ कि अपने जीवन का कुछ हिस्सा उन्हें देकर , कुछ हिस्सा उनके समय का और उनके जीवन का हम आलोकित कर सकते है , ।
कहानी का plot / thought हमेशा की तरह 5 मिनट में ही बन गया । कहानी लिखने में करीब 20 दिन लगे | कहानी के thought से लेकर execution तक का समय करीब ६ महीने था । इस बार आलस ने नहीं , बल्कि ज़िन्दगी की कुछ और तकलीफों ने देरी करवाई । आगे से कोशिश करूँगा कि जल्दी जल्दी आपको अपनी नयी कहानियो से रुबुरु करवाऊं । कहानी में मौजूद ,संस्कृत मंत्रो को मैंने नेट साहित्य से लिया है , जिन किसी महोदय ने इन्हें लिखा है .उनका ह्रदय पूर्वक आभार ।
दोस्तों ; कहानी कैसी लगी , बताईये , आपको जरुर पसंद आई होंगी । कृपया अपने भावपूर्ण कमेंट से इस कथा और समाज के इस पहलु के बारे में लिखिए .और मेरा हौसला बढाए । कोई गलती हो तो , मुझे जरुर बताये ।
आपका अपना
विजय
चमनलाल की कहानी आजकल के अधिकांश बुजुर्गों की कहानी है, जीवन भर जिनके सुख के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करते हैं, अंतिम समय उन्हें उनके कांधे तक नसीब नहीं होते... मार्मिक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteशुक्रिया संध्या जी . आपने सही कहा , ये कथा आज के लगभग हर बुजुर्ग की है . आपने बहुत अच्छा कमेंट दिया है . बहुत बहुत धन्यवाद आपका.
Deleteकहानी अच्छी है पर तस्वीर दूसरा रुख मेरे लेख http://www.pravakta.com/i-have-to-say-from-buhjhurgon मे पढ कर देखें।
ReplyDeleteशुक्रिया बीनू जी , मैंने आपका लिंक पढ़ा और सच कहूँ मुझे आपका लिखा हुआ बहुत अच्छा लगा . आपने जो सुझाव दिए है , बुजुर्गो ने वो सब वाकई करना चाहिए . आपका बहुत धन्यवाद.
Deleteकहानी एक हालत के मारे बुझुर्ग व्यक्ति की मृत्यु जैसे गंभीर विषय को समेटे हुए है...लेकिन हास्य का पुट दे कर आपने कितनी सहजता से कलमबद्ध की है!...बहुत बहुत बधाई!
ReplyDeleteशुक्रिया अरुणा जी . आपने कहानी की गंभीरता को समझा . हास्य का पुट मैंने जान-बूझ कर दिया है , क्योंकि कहानी खुद चमनलाल कह रहे है . और वो एक जिंदादिल इंसान थे , इसलिए मैंने कहानी में comedy का undertone रखा है .
Deleteआपको पसंद आई . शुक्रिया जी .
मुझे भी मेरे जीवन की एक झलक इस कहानी में मिल गयी. सुंदर प्रस्तुति. आभार.
ReplyDeleteशुक्रिया सुब्रमण्यम सर . मैंने यही कहा है की ये कथा कहीं कहीं न हम सबकी है .
Deleteआपका बहुत धन्यवाद.
विजय
comment by email :
ReplyDeleteAd. Vijay ji
Vijay Bhai Aapki Kahani "ChamanLal ki mout" ati sundar kahani hai... meri aur se Lakh-Lakh Badhaiyen Swikaar ho...
Aapka Anuj
Mahavir Uttranchali
शुक्रिया महावीर जी . आपको पसंद आई , मुझे ख़ुशी हुई ,
Deleteआपका आभार
विजय
ऐसे कितने ही चमन लाल हमारे आस् पास देखने को मिलते है ,उसके सूख दुःख हमारे सांझे है ,आजकल कि भागदौड़ वाली जिंदगी में ऐसा होंबा मुमकिन है !पर सामान्य घटनाओं के विस्तृत वर्णन से कहानी कुछ लंबी हो गयी है..
ReplyDeleteशुक्रिया रजनीश जी ,घटनाक्रम को कहानी में रोचकता के लिए डाला है ..पर मूल मुद्दा तो यही है की हमें चारो तरफ ही चमनलाल मिल जायेंगे . धन्यवाद आपका .
Deleteविजय ...आपकी पूरी कहानी पढ़ी ...और एक लेखक होने के नाते मैं ये ही कहूँगी कि सच में बुढ़ापा और अकेलापन अच्छे से अच्छे इंसान को अंदर तक तोड़ कर रख देता है ...
ReplyDeleteऔर जो लोग आज कल की भाग दौड़ वाली जिंदगी में व्यस्त है क्या वो ये नहीं जानते कि उनका आने वाला कल इस से भी भयानक होगा .....वक्त निकालने से निकलता है ...ना कि वक्त को ले कर रोते रहने से .....एक बात और जो मुझे कहनी है ....अकेलेपन को बीमारी का रूप देने से अच्छा है ....अपने मन की बातों को साँझा करने के लिए एक ऐसे साथी की तलाश की जाए जो अंत तक साथ दे |
शुक्रिया अंजू . आपने सही कहा की बुढापा और एकांत इंसान को भीतर तक तोड़ देता है . और आपने बहुत अच्छा विकल्प भी सुझाया की मन की बातो को सांझा करने के लिए एक साथी की तलाश की जाए . मैंने कहानी में वो hint भी दिया है .
Deleteआपका धन्यवाद.
Vijay ji sir you are gr8 . . . .
ReplyDeleteDil se roya ho is kahani ko padh kar
Mujhe bhi kisi chaman lal ki yaad aa gayi ........
Thanks sir
शुक्रिया सर जी . ये कहानी हम सब की ही है .
Deleteहम सबमे कोई न कोई चमनलाल है .
धन्यवाद.
बस....बुढ़ापा और एकाकी जीवन...उफ्फ! मार्मिक कहानी...
ReplyDeleteसच कहा आपने समीर जी ,ये अकेलापन ही इंसान को मारने के लिए काफी है . आपका धन्यवाद समीर जी .
Deleteaapki is kahani ne dil par gehra asar kiya hai,aaj yeh sachchai esi hai jise bahut se bujurg bhogne ke liye abhishapt ho gae hain
ReplyDeleteअशोक जी , आपका शुक्रिया ये तो एक ऐसा ज्वलंत सच है की बस सिर्फ दुःख ही होता है . आपके कमेंट के लिए धन्यवाद.
Deleteemail comment :
ReplyDeleteDayanidhi Vats
ऐसा लग रहा है कि हर किसी के अन्दर एक चमनलाल है... बेहद छूने वाली सत्य कथा..
शुक्रिया दया भाई . और ये सच है की चमनलाल हम सब में मौजूद है .
Deleteबहुत ही सलीके से रखा है आपने मृत्यु से संबंधित पक्षों को..कहानी के माध्यम से दर्शन की बातों को उतारना ही होता है..बहुत ही सुन्दर।
ReplyDeleteशुक्रिया प्रवीण जी . मृत्यु अपने आप में ही परम दर्शन है और इस तरह की मृत्यु तो हमें सोचने पर मजबूर कर देती है . आपका बहुत धन्यवाद.
Deleteविजय
बहुत मार्मिक कहानी....आज का हरेक बुज़ुर्ग इस अकेलेपन की त्रासदी को झेल रहा है. उसे प्रेम के अलावा और किसी वस्तु की ज़रुरत नहीं, पर आज की पीढ़ी शायद यह देने में भी समर्थ नहीं..अकेलापन कितना भयावह होता है इसे भुक्तभोगी ही समझ सकता है...आखें नम कर गयी आपकी कहानी...
ReplyDeleteशुक्रिया कैलाश जी . आपने सही कहा . अकेलापन भयावाह ही है . आपका आभार मेरी कथा को पसंद करने के लिए .
Deleteसुन्दर और भावुक कहानी है। बुजुर्गों को ही नहीं, परिस्थितियों के दुष्चक्र में फंसे हर व्यक्ति को ऐसी रचनाएँ कुछ पलों का सुकून दे जाती हैं।
ReplyDeleteशुक्रिया उमेश जी , आपने सच कहा . कुछ शब्द अपने से लगते है . मेरी कथा को पसंद करने के लिए आभार
DeleteKAVITA HO YAA KAHANI , AAPKEE VISHESHTA HAI KI AAP VISHAY MEIN
ReplyDeleteKHOOB DOOB KAR LIKHTE HAIN . AAPKEE IS MARMIK KAHANI NE MAN PAR
APNA GAHRA PRABHAAV CHHODA HAI . YUN HEE LIKHTE RAHIYE . SHUBH
KAMNAAON KE SAATH .
आदरणीय प्राण जी , आपका आशीर्वाद मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है. कहानी आपको पसंद आई , मुझे बहुत ख़ुशी हुई. हाँ ,आपने सही कहा कि कहानी के किरदार में मुझे डूबना पढता हैः ताकि , कहानी के साथ इन्साफ हो सके.
Deleteआपका बहुत धन्यवाद.
विजय
अकेलेपन की त्रासदी को बखूबी बयान किया है …………आज समय आ गया है इससे सबक लेकर अपना भविष्य सुरक्षित करने का क्योंकि बुढापा तो आयेगा और अकेलापन भी लायेगा तो क्यों ना उसके लिये अभी से एक योजना बना लेनी चाहिये ताकि जीवन जीना आसान हो जाये।
ReplyDeleteवंदना , तुमने सही कहा की भविष्य के लिए क्यों न एक योजना बनाया जाए . शुक्रिया कहानी को पसंद करने के लिए .
Deletebahut hi sunder bhaavpoorna rachna... naino mein aansu bhar gaye
ReplyDeleteshubhkamnayen
शुक्रिया प्रीती ,
Deleteआपको कहानी पसंद आई . सच्चाई हमेशा ही रुलाती है .
धन्यवाद.
विजय
paristhitiyon ka varnan karti ek sundar kahani...
ReplyDeleteशुक्रिया कविता जी , ये हालात हमारे आसपास ही मौजूद है .
Deleteधन्यवाद
आपकी इस कहानी ने रुला दिया....... :(((
ReplyDelete~सादर!!!
शुक्रिया अनीता . जैसे की मैंने कहा है की जीवन कुछ ऐसी ही सच्चाईयो से भरा हुआ है , जो रुला देती है .
Deleteधन्यवाद.
बहुत बढ़िया कहानी है .....
ReplyDeleteशुक्रिया उपासना जी . कहानी को पसंद करने के लिए
Deleteविजय
चमनलाल की मौत शायद आज के सभी बुजुर्ग की दशा कहती है और हम सब को एक सबक भी देती है। यह बहुत ही भवनात्मक कहानी है। शायद चमनलाल किसी न किसी रूप में हमारे आसपास रहता है, बिलकुल एकांत, अपनेपन की तलाश में।
ReplyDeleteआदरणीय शंकर जी , आपने सही कहा , हम सबमे एक चमनलाल मौजूद है .
Deleteकहानी आपको पसंद आई . शुक्रिया सर
nice
ReplyDeleteशुक्रिया सुमन जी ,
Deleteemail comment :
ReplyDeleteSandeip Agrawal
story is excellent ...but too depressing.
thanks Sandeip Agrawal . yes the reality is always depressing .
Deleteemail comment :
ReplyDeleteप्राण शर्मा :
कहानी दमदार है , क्योंकि उसमें निखार ही निखार है , क्योंकि उसमें जीवन की सच्चाई का सार है .
शुक्रिया प्राण जी , आपका आशीर्वाद यूँ ही सदा बना रहे मुझ पर.
Deleteविजय
email comment :
ReplyDeletesheel Nigam :
kahani to marmik hai hi,kavita aur kahani ka achcha sanyojan hai.vijay ji.Badhayi!!!
शुक्रिया शील जी . आपका सपोर्ट यूँ ही हमेशा साथ रहे.
Deleteधन्वाद कहानी और कविता को पसंद करने के लिए.
विजय
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ReplyDeleteBhogi Prasad
जातस्य वै मनुष्यस्य ध्रुवं मरणमिति विजानीयात्। तस्माज्जाते न प्रहृष्येन्मृते च न विषीदेत्। अकस्मादागतं भूतमकस्मादेव गच्छति। तस्माज्जातं मृञ्चैव सम्पश्यन्ति सुचेतस:। अर्थात जो भी मनुष्य जन्मा है वो जरुर मरेंगा |
शुक्रिया भोगी प्रसाद जी .
DeleteEmail Comment :
ReplyDeleteअशोक जैन 9:
मार्मिक अभिव्यक्ति
शुक्रिया अशोक जी .
DeleteEmail Comment :
ReplyDeleteUmesh Shukla
bahut khub vijay ji
शुक्रिया उमेश जी
Deleteबहुत खूब...
ReplyDeleteअकेलेपन की त्रासदी आज हर इंसान के भाग्य में जैसे अनिवार्य रूप से लिखी जा रही है विधाता के द्वारा...!उम्र के इस मुकाम पर हम सभी अकेले ही होते जाते हैं....जिस खूबसूरती से आपने यहाँ दिखाया है इसे लगता है चमनलाल हम में से ही कोई एक है...!
बधाई...
शुक्रिया पूनम .
Deleteआपने सही कहा, अकेलेपन की त्रासदी हम सब में अब अनिवार्य रूप से ही है . और ये भी सभी है की चमनलाल , हम सब में मौजूद है .
धन्यवाद
विजय
बहुत ही मार्मिक सत्य और उतनी ही मार्मिक अभिव्यक्ति, बधाई विजयजी
ReplyDeleteशुक्रिया वंदना
Deleteकहानी को पसंद करने के लिए .आपका आभार
email comment :
ReplyDeletevandana M Sharma:
विजयजी,
कहानी बहुत ही मार्मिक और अभिव्यक्ति उससे भी अधिक मार्मिक।
हाल ही मैं 85 वर्षीय पिता को खोया है, माँ के बाद वृद्धावस्था के अकेलेपन की पीड़ा उनकी डायरी में निरंतर उभरी, जो हमने उनके जाने के बाद पढ़ी .
बुढ़ापे में हर आदमी चमनलाल बनकर रह जाता है.
बधाई....
सद्भावना सहित,
डॉ. वंदना मुकेश
शुक्रिया वंदना .
Deleteआपने बिलकुल सही कहा की बुढापे में हर इंसान ही चमनलाल बन जाता है , चाहे वो आदमी हो या औरत .
धन्यवाद
विजय
Email comment :
ReplyDeleteJitendra Kothari
very very nice story & poem...I love it.....This gives an inspiration of JEVAN JINE KI KALA......thank u so much VIJAY BHAI..pl. keep writing
thanks a lot Jitendra ji . YES you are very right sir. we must learn how to live in our last days .
Deletethanks again
vijay
bhai aapne aaj kee suchhayee likh dee hai..... aaj ghar ke bujurg is baat se dukhee nahee ki unke paas paisa nahee,ya unka shareer kamjor ho gaya hai... dukhee is baat se hain ki riste kamjor ho gaye hain... jinke paas bujurg rahanaa chahate hain wahee unse door hote chale jaa rahe hain...BAHUT ACHHEE KAHANEE HAI.....
ReplyDeleteशुक्रिया हरी जी . लगभग हर घर में कुछ कुछ ऐसा ही है . एकांत और अपनों से दूरी बहुत दर्दनाक होती है हर बूढ़े इंसान के लिए .
Deleteधन्यवाद
bahut achchhi hai.
ReplyDeleteशुक्रिया चन्द्रशेकर जी . कथा को पसंद करने के लिए.
Deleteemail comment :
ReplyDeleteKanak Tiwari
kudos to u very nice story likhate rahiye
शुक्रिया कनक जी . बस आपका आशीर्वाद रहे यूँ ही तो और लिखोंगे.
Deleteविजय
email comment :
ReplyDeleteFrom: Usha Verma
आपकी कहानी पढ़ी, जिसमें आपने अपने समय की विसंगतियों व विद्रूप को उजागर किया है। कहानी में दो बार क्लाइमेक्स लाकर
उसे अत्यंत रुचिकर बनाया है, कहानी बिना पूरी पढ़े बीच में छोड़ी नहीं जा सकती ।भाषा की सरलता अनुकरणीय है।
इतनी अच्छी कहानी भेजने के लिए धन्यवाद और बधाई।
प्रशंसकः उषा वर्मा
शुक्रिया उषा जी . आपने कहानी पसंद की . दूसरा क्लाइमेक्स बहुत जरुरी था. चमनलाल का ये सबसे बड़ा सच था.
Deleteशुक्रिया फिर से !
विजय
kahani aur kavita dono ne bahut prabhavit kiya. muddton baad yesi kahani pdhne ko mili.. shukriya..
ReplyDeleteशुक्रिया जी . आपने कहानी पसंद की , मुझे बहुत ख़ुशी हुई. आपका दिल से धन्यवाद.
DeleteEmail Comment :
ReplyDeleteBhai shri Vijayji,
Nmaskar,
AApki nayi kahani - aajkal ye dard ka sailab badhta hi ja raha
hai....bujurg satark bhi ho rahe hain.....ye nazara badlega....badalna
hi chahiye...kahani achi ban padi hai..magar udas kar deti
hai...savedansheel man ki achi abhiyakti.....
Regards,
Shilpa
शुक्रिया शिल्पा जी . मैं खुद ये चाहता हूँ कि समाज का ये नज़रिय बदलना ही चाहिए . शुक्रिया पसंद करने के लिए.
Deleteकिसी एक की नहीं सबकी यही कहानी है.यही स्थिति होती है जब व्यक्ति अकेला रह जाता है.किसी प्रकार अपने-आप को साधता हुआ जीता है पर उसके भीतर जो घटता रहता उसकी कथा कविता बयान कर देती है.हर तरह लाचार है करे भी तो क्या करे- जीवन की विवशता को बहुत अच्छी तरह उकेरा है!
ReplyDeleteशुक्रिया प्रतिभा जी . आपने बहुत ही अच्छे शब्दों में कथा के भाव को व्यक्त किया है . आपका आभार
Deletekahani ant tak bandhe rakhti hai , bahut achhi sachhai ki bat
ReplyDeleteशुक्रिया सुनील जी . कहानी पसंद करने के लिए . यही हो रहा है आज के समाज में. हमें एक छोटा सा बदलाव लाना है .बस.
Deleteकहानी पढ़ते समय मैं सोच रही थी कि आपसे कहूँ, कविता छोड़िये आप कहानी ही लिखा कीजिये ... लेकिन फिर मिली कविता भी .. अब क्या कहूँ, समझ नहीं पा रही ...
ReplyDeleteआपकी लेखनी में वो ख़ास बात है कि आपको चाहकर भी कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता,खींचकर ले आती है यह पाठक को ..
ऐसे ही लिखते रहिये ,लिखते रहिये .. असंख्यों के पथप्रदर्शक बनिए ... आप जैसे कलमकारों की बहुत जरूरत है आज साहित्य जगत को ..
शुक्रिया रंजना जी . मेरे मन में जो होता है , वो लिख देता हूँ .मेरी कहानिया , अपने आस पास बिखरे हुए किरदार के बारे में ही है . बस आप सभी का स्नेह है , हौसला अफजाई है . दुआ करे की यूँ ही और लिखू . बेहतर लिखू . आभार .
Deleteविजय
हर इंसान में एक चमनलाल है .... लेकिन अत्महत्या क्यों ?..... बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती अच्छी कहानी ।
ReplyDeleteशुक्रिया संगीता जी .
Deleteबुढो के जीवन के बारे में बात करती हुई ये कथा , बहुत कुछ कहती है ,हम सब से.
शुक्रिया और आभार
चमनलाल जैसे मिजाज का आदमी... खुदकुशी? वक़्त कुछ भी करा सकता है. एकांत के वार से कोई भी बच नहीं पाता. जाते जाते चमनलाल ने जो सन्देश दिया, सभी को याद रखना चाहिए. वो वक़्त हम सभी के जीवन में आएगा - एकांत. बहुत मार्मिक और संवेदनशील कहानी. शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteजेन्नी जी ....खुदखुशी दो तरह की होती है , एक तो planned और दूसरी instant .... यहाँ चमनलाल ने एक planned खुदखुशी की है ..उन्होंने बहुत समय तक एकांत के दर्द को झेला , अपनों की दूरियां सही और फिर इस सोच पर पहुंचे कि अब जीने में कोई मतलब नहीं रहा ...एकांत ने उन्हें तोड़ दिया था ..वरना आपने सच ही कहा कि उनके जैसे मिजाज़ का आदमी आत्महत्या कैसे करेंगे.
Deleteआपने कहानी पसंद की , इसके लिए धन्यवाद.
विजय
jivan ka aadhinik satya chitrit hua hai.
ReplyDeleteशुक्रिया सर , आपने कथा को पसंद किया .
Deleteसच कहूं तो आप की कहानी ने दिल को झकझोर कर दिया। वरन इसे कहानी कहना ही गलत है, ये तो वो सच्चाई है जो हमारे हम सब को अपनी ज़िंदगी की स्याह हकीकत से रू-ब-रू करवाती है। चमनलाल और उनके बच्चों जैसी शख्सियत हम सब में बसती है.. बस ज़रूरत है उसे पहचानने की..
ReplyDeleteबधाई!!
शुक्रिया विनीत जी. और ये सच ही है की ये एक कथा नहीं अपितु एक ऐसी सच्चाई है जो हमारे चारो ओर बसी हुई है ..धन्यवाद और आभार आपका .
Deleteविजय जी ! इतनी कमाल की कहानी है कि उसे पढ़ने के बाद हर पाठक को किसी न किसी की याद आ रही है ! कहानीकार और कहानी की सफलता इसीमें है कि उसकी कृति निजी न रह कर सार्वभौमिक हो जाती है ! बहुत ही मार्मिक कहानी है ! इतनी विशिष्ट कृति के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई एवँ शुभकामनायें !
ReplyDeleteसाधना जी , आपका शुक्रिया .
Deleteआपने सही कहा , की हर किसी को इसमें अपना अक्स या अपने अपनों का अक्स नज़र आता है . धन्यवाद आपका
विजय
bahut badhiya kahani hai.
ReplyDeleteशुक्रिया राजपथ जी .. कहानी को पसंद करने के लिए .
Deletesamay ke yatharth se muthbhed krti yh ek bahut hi acchi kahani hai ....ek acchi kahani padhne ka mauka uplabdh krane ke liye shukria Vijay ji
ReplyDeleteशुक्रिया ओमप्रकाश जी , आपको कहानी अच्छी लगी , मुझे बहुत ख़ुशी हुई . धन्यवाद.
Deleteemail comment :
ReplyDeleteनमस्ते
कहानी पढ़ी. शिल्प और विषयवस्तु अच्छी हे.आज के परिप्रेक्ष्य में बुजुर्ग की यही स्थिति हे अच्छी कहानी के लिए बधाई.
पद्मा शर्मा
धन्यवाद पद्मा जी .
Deleteकमीबेशी , हर जगह बुजुर्ग इसी स्तिथि में है . शुक्रिया कहानी पसंद करने के लिए .
विजय जी सादर वन्दे ,
ReplyDeleteआपक कहानी को तफ़सील से आज पढ़ा मैंने तो पड़ौस में रहने वाले शंकर की याद आ गई। ऐसे ही चमनलाल जैसे खयालो में जीने वाले शंकर ने भी अपने बच्चो से दूर जाने के बाद , पत्नी के मर जाने के बाद नींद की खूब गोलियां खाकर जान दे दी थी। उसको भी हमेशा दूध देकर उठाने वाले ने घर की आराम कुर्सी पर चिरनिद्रा में सोया पाया था जैसे चमन लाल को उसकी नौकरानी ने पाया। ख़ैर शंकर और चमन लाल जैसे लगभग हर दूसरे घर में प्राणी मिल जायेंगे लेकिन वसीयत में क्या लिखा गया ये पूछने वाले बेटे बेटियाँ भी हर घर में हैं। ये कहानी मेरी नज़र में कहानी से ज्यादा वर्तमान बुजुर्गो के एकाकीपन और उनके परिवार से विमुख किये जाने की तस्वीर हैं। आपके श्रेष्ठ प्रयास को मेरा सेल्यूट।
सादर।।।।।
दुर्ग सिंह राजपुरोहित 'दुर्गेश'
कवि / लेखक
और पत्रकार
इंडिया न्यूज़ /न्यूज़ एक्सप्रेस / पंजाब केसरी
बाड़मेर राजस्थान
+91-9928692444
शुक्रिया दुर्गेश जी .
Deleteये कहानी , लगभग हम सभी की ही है . आपको कहानी पसंद आई , मुझे इस बात की बहुत ख़ुशी हुई . देखिये अगर ये दुसरे मित्रो तक आपके प्रयासों से पहुंचे तो मुझे ख़ुशी होंगी .
धन्यवाद.
बेहतरीन कहानी। आभार।
ReplyDeleteशुक्रिया हिमांशु जी . कहानी पसंद करने के लिए .
Deleteemail comment :
ReplyDeletebahut kmaal kee kahaani hai bhaai...bahut bahut mubarakbad...agar ho paya to iska punjabi anuvad kr ke apni patrika me dene kee koshish karunga.....dr. amarjeet kaunke editor PRATIMAAN.
Regards
Amarjeet Kaunke
शुक्रिया अमरजीत जी .
Deleteआप सभी का हौसला अफजाई ही मेरे लिए बहुत बड़ी बात है . पंजाबी में छपे तो मुझे ख़ुशी ही होंगी . मैं ये चाहता हूँ की ये हर किसी तक पहुंचे .
धन्यवाद.
Email Comment :
ReplyDeleteDear Mr. Vijay,
Namaste.
I don't know who gave you my e-mail ID or from where you got it? In the age of internet these are useless questions.
Your story is really good. I have heard countless people saying, " Nobody has time for others." This may be true but everything is not lost. Humanity was there and will always be there. One has to change one's attitudes.
in 2006 I wrote one story in English entitled 'Birth Day.' It was based on true incident of which I was the eye witness.
It was about an old man of 85 having Five children (3 daughters and 2 sons) and over a dozen grand children. He was living alone in a 2 BHK flat. His children and grand children were coming to visit him every Saturday and Sunday. I was then working as Security Officer. He used to come to my office and chat with me for an hour or o everyday. We became good friends. He was a very wealthy person. One Saturday was his birthday. His children arranged for decoration of his flat and cake which was delivered to him when I was there. Poor chap waited for his children and grand children to come and join him for the celebration. He put a paper on his door on which he wrote, 'Please wake me even if I go to sleep.' None came till midnight. I received four phone calls from his children requesting me to wish him on their behalf which I did.
Next day in the morning when I went to my office I found an ambulance standing in front of the building. this was nothing new. Everyday ambulance used to come because most of the residents were seniors above 70. I asked the janitor staff about the ambulance and she said, " You know sir, Abraham the old man living on fifth floor died last night while in sleep. I think yesterday was his birthday because his flat was decorated and there was a birth day cake lying in his room."
All his children and grand children came. His children thanked me profusely. The eldest son John came to me and gave an envelope and said this is for you from my father. After he went I opened it and found a cheque for $5,000. I donated that money to a charity organisation which is working for seniors.
I am a Senior of 72 and knows very well what it is to be a senior.Fortunately I still get love and care from my wife and children.
I tried to write this in Comment column of your blog but couldn't succeed and hence this message.
God bless you and your family.
Feroz Khan
Dear Firoz ji ,
DeleteThanks a lot for your email . It touched me . It touched me more when I read that you donated the amount to a charity working for seniors.
I believe that in India , there are several OLD people who are facing this problem.
I can only wish that every old should get a good end for his life.
Thanks once again for your valuable comment. I have published it as a comment in my blog.
Thanks and Warm Regards
email comment from Mr.Feroz khan
ReplyDelete[ a must do for all of us ]
Dear Mr. Vijay,
Namaste.
Thank you for your comments. Appreciated.
Thanks again for putting my comments on your blog.
There is an international organisation called Help Age. We have this orgn in India too. They have branches in almost every state. If you google it you'll find it.
Yes, I agree with you that there are several old people in India facing this problem. This is because over there there is too much of poverty. But still everything is not lost.
Every year I donate 10% of my total income on charity by donating the amount to various local charities over here and in India too. And this is in addition to 2.5% of our compulsory Zakaat money in Ramzaan.
I have a suggestion for helping old people. If every earning person can just donate Rs. 50 every month to organisations working for them much of the problems will be solved.
Take care.
Feroz
Thank you Mr. Feroz, This is so wonderful move from you . I am deeply touched by your humble gesture. i have published your comment here just to make all of us aware that we should adopt giving back to society .
DeleteThanks a lot sir , GOD bless you.
Warm Regards
Vijay
Very good Story Vijay ji. Congrats .
ReplyDeletethanks a lot gurinder ji .,
Deleteemail comment :
ReplyDeleteविजय कुमार जी
नमस्कार
'चमनलाल की मौत' कहानी भेजने के लिए अनेक धन्यवाद और उसको पढ़ने मे इतनी देर लगा दी इसके लिए क्षमा चाहती हूँ. कहानी एक बहुत बड़े यथार्थ को उजागर करती हे. आपने कहानीकार होने के धर्म का भरपूर निर्वाह किया हे..बहुत बहुत बधाई!
सुषमा सेनगुप्ता
शुक्रिया सुषमा जी .,
Deleteआपको कहानी पसंद आई , ये मेरे लिए गौरव की बात है . इसी तरह मेरा हौसला बढाये . थैंक्स
विजय
बहुत सुन्दर पात्रों द्वारा गढ़ी गई लाजवाब कहानी | बधाई
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
तुषार जी , आपका बहुत बहुत धन्यवाद.
Deleteविजय
आपकी इस उत्कृष्ट अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (01-06-2014) को ''प्रखर और मुखर अभिव्यक्ति'' (चर्चा मंच 1630) पर भी होगी
ReplyDelete--
आप ज़रूर इस ब्लॉग पे नज़र डालें
सादर
विचारोत्तेजक कहानी
ReplyDeleteचमन लाल कहानी में बुजूर्गों के अकेलेपन को खूब उकेरा ।ये समस्या अब मात्र बुजुर्गों में ही नहीं सभी वर्ग के लोगों को हो रही है ।कारणों पर विचार बहुत विस्तृत विषय है ।कुछ प्रश्न ...1...चमनलाल के पास तो मित्र और महिला मित्र भी थे फिर लेखक ने उससे आत्महत्या क्यों करवाई 2 ....नौकरानी और दवाइयों के ज़िक्र से आर्थिक स्थिति इतनी खराब नहीं होनी चाहिए ।3 ....समस्या का हल सकारात्मक किया जा सकता था जो दिशा देता। ये अंत मात्र सहानुभूति ही बटोरेगा ।कहानी मात्र संस्मरण बन कर रह गई फिर भी अपनी रोचकता से पढ़वा ले जाती है ।बधाई लेखक को ।
ReplyDelete