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Sunday, December 18, 2016

डायल कुमार फॉर किलिंग




डायल कुमार फॉर किलिंग

: १४ जुलाई :

उस दिन दोपहर से ही बारिश हो रही थी. उन दिनों मेरा मूड वैसे ही खराब रहता था. कोई नया काम नहीं मिल रहा था. रुपये पैसो के मामले में मैं परेशान था. मेरा जीवन भी क्या बेकार सा जीवन था. मैं लेखक था, और पूरी तरह से फ्लॉप था. करियर के प्रारम्भ में मैं खूब बिका लेकिन बाद में इन्टरनेट के युग के आने के बाद लोगों ने जैसे किताबें पढना ही छोड़ दिया और अब मुझ जैसे छोटे लेखकों को कोई नहीं पूछता था ! अच्छे वक़्त में जो कुछ पैसे कमाए थे वो भी करीब करीब ख़त्म हो रहे थे. ये घर भी एक पुराने प्रकाशक मित्र का था जिसने मेरे अच्छे समय में मेरी किताबों से खूब पैसे कमाए थे. उसी ने मुझ पर पुरानी दोस्ती के चलते ये घर देकर रखा था. कहीं से कोई आमदनी नहीं थी. ज्यादा दोस्त थे नहीं तो कोई कितना उधारी देता. कुछ पैसे कभी कभी कोई पत्रिका या अखबार वाला दे जाता था तो उसी के सहारे जीवन कट रहा था.
मैंने शराब की बोतल खोली और पीना शुरू किया, मेरे पास ज्यादा शराब की बोतलें अब नहीं थी. जो थी, मैंने बड़ी हसरत से उन्हें देखा, फिर मैंने अपनी जेबें देखी, इस महीने के ख़त्म होने में करीब १५ दिन और बाकी थे और रुपये थोड़े संभाल कर ही खर्च करने थे. मैंने अपने मन को समझाया. जब कहीं से भी पैसे के आने की संभावना नहीं रहती है तो मनुष्य अपने आप ही कंजूस हो जाता है.
मेरे परिवार में कोई और नहीं था. मैंने शादी नहीं की. एक लड़की किरण से प्रेम हुआ था, कुछ मतभेद हुए, उसके ख्वाब बहुत ज्यादा और बहुत बड़े थे, हम फिर अलग हो गए, उसकी शादी हो चुकी थी, फिर भी किरण की जिद के कारण हम दोनों चुप चुप कर मिलते थे. उसके पति आकाश को एक दिन हमारी मुलाकातों के बारे में पता चल गया. वो किरण को लेकर पास के ही एक टाउनशिप में चला गया. उसका अपना बिज़नेस था. उस घटना के बाद मुझे भी अच्छा नहीं लगा और मैंने भी दुबारा उसे देखने या उससे मिलने की नहीं सोची. करीब दो साल हो गए थे. पर मन में उसके नाम की कसक बाकी थी. मैं वैसे भी तनहा था और अब और तनहा हो चूका था ! जीवन तो पता नहीं किस आश्चर्य की राह में कट रहा था.
मैंने गिलास को मुंह से लगाया तो पाया कि गिलास की शराब ख़त्म हो चुकी थी, मैंने उसमें और शराब डाली, पानी मिलाया और मूंगफली के दानों के साथ घूंट लेने लगा
किरण बड़ी खूबसूरत थी, उसे शानदार ज़िन्दगी चाहिए थी, मेरे पास सब कुछ था सिवाय पैसो से लबालब भरी हुई ज़िन्दगी के. मैंने उसे बड़े दिल से याद किया ! और फिर एक लम्बा सा घूँट लिया !
शाम गहरी हो रही थी. मैं सोचता था कि एक शानदार जीवन जीऊंगा लेकिन अब लगता नहीं था कि वो संभव है ! जीवन की और समाज की अपनी शर्तें होती थी और मुझे उन शर्तों पर जीना मंजूर नहीं था और इसी के चलते मेरी आज ये हालत थी.
अचानक ही मेरे फ़ोन पर कॉल आई, एक अज्ञात नंबर था. मैंने उठाया.
और घोर आश्चर्य कि वो किरण का फ़ोन था, उसने कांपती हुई आवाज़ में मुझे अपने घर को आने को कहा. मैंने पूछा कि क्या बात है, लेकिन उसने अपने नए घर का पता दिया और जल्दी से आने को कह कर फ़ोन कट कर दिया.
मैंने एक ट्रेवल बैग लिया. मैंने अपनी गाडी निकाली, आजकल उस कार को मैं कम ही चलाता था, पेट्रोल के बारे में भी सोचना पड़ता था. खैर, उसके बताये हुए पते पर पहुंचा, वो शहर के पास एक छोटा सा टाउनशिप था. टाउनशिप के प्रवेश के पहले काफी बाहर एक पुराना सा बंगला था. मैंने सोचा कि इसी टाउनशिप में तो उसके पति का घर था वो यहाँ क्यों रह रही है. और मैं ये भी सोच रहा था कि इतनी दूर कोई क्यों रहना चाहेगा. और फिर किरण को ऐसी क्या तकलीफ हो गयी थी कि उसे मैं अब याद आया. यही और बहुत सारी बाते सोचते हुए मैं उस घर पर पहुंचा. करीब रात के १० बजे थे. बारिश भी होने लगी थी. बंगला अँधेरे में डूबा हुआ था. मुझे आसार कुछ अच्छे नहीं लग रहे थे. शायद वहां की बिजली चली गयी थी और मुझे लग रहा था कि मैंने यहाँ आकर गलती की है. लेकिन मैं दो तरह के नशे में डूबा हुआ था, एक तो शराब के और दूसरे किरण के पुराने प्रेम के !
मैंने एक गहरी सांस ली और बंगले की ओर बढ़ा.
दरवाजे को खड़काया. थोड़ी देर बाद एक नौकर जैसे व्यक्ति ने दरवाजा खोला. उसके हाथ में एक टॉर्च था. उसने मुझे देखा और मुझसे पूछा, “आप?” मैंने कहा, “मैं कुमार हूँ, किरण मेमसाहब ने मुझे बुलाया है.” उसने मुझे फिर टॉर्च की रौशनी में देखा और अन्दर आने को कहा.
वो एक बड़ा सा बंगला था, बड़ा सा ड्राइंग रूम था उसमें चार लोग थे. उस कमरे में कई मोमबत्तियां जली हुई थी. उन्हीं की हिलती हुई रौशनी में उन चारों को मैंने देखा.
वहां एक सोफे पर बैठे थे - एक अधेड़ पुरुष और स्त्री जो कि किरण के अंकल और आंटी थे, उनके पास थी किरण – मेरी किरण, कितने साल बाद उसे देख रहा था, मैंने एक आह सी भरी, और उसके बगल में व्हील चेयर पर बैठा हुआ एक आदमी, जो कि किरन का पति आकाश था. मैंने उसे देखा हुआ था. वो बड़ा अजीब सा दिख रहा था ! नौकर किरण के पास जाकर खड़ा हो गया.
किरण उठकर मेरे पास आई, मैंने उसे देखा, वो परेशान और बदहवास लग रही थी. मुझे देख कर वो हलके से मुस्करायी और कहा, “वेलकम कुमार, आई नीड यू वैरी बैडली. नाउ !”
मैंने उसके हाथ पर अपना हाथ रखा और सांत्वना के स्वर में कहा, “सब ठीक हो जायेगा, मैं आ गया हूँ न”. उसने मेरी ओर देखा और कहा, “कितना पी कर आये हो. ऐसे में मेरी कैसे मदद कर पाओगे. खैर, आओ भीतर !”
मैं भी सोचने लगा, नहीं पिया होता तो सच में ठीक होता. पर अब क्या किया जा सकता था.
मैं उसके पीछे पीछे सोफे तक चलकर आया. उस घर में अजीब सी गंध फैली हुई थी, जैसे बरसो से उस घर की साफ़ सफाई न की गयी हो.
किरण कह रही थी, “कुमार तुम तो सभी को जानते ही हो”, मैंने किरण के अंकल और आंटी को देखा और मैंने उन्हें नमस्ते किया और उन्होंने मुझे ! किरण मुड़ी और कहने लगी “और ये....” मैंने रोक दिया, “मैं जानता हूँ न.”
किरण ने मेरी ओर देखा और नौकर की तरफ इशारा करके कहा, “ये हमारे घर का नौकर जगन है. घर के काम देखता है.”
मैंने किरण से पूछा, “बात क्या है, क्या हुआ है?” किरण ने कहा, “हमें बहुत डर लग रहा है, ऐसा लगता है कि कोई है इस घर में जो हम सबके पीछे पड़ा है. हमें इस घर में परछाईंयाँ दिखती है. डरावनी आवाजें आती है, हम सब ऊपर रहते है, और लगता है कि कोई रात भर इस घर में चलता है. हम सब बहुत डरे हुए है. पिछले एक महीने में ये सब शुरू हो गया है. हमने सोचा है कि ये जगह छोड़कर चले जायेंगे.”
मैंने पूछा, “वो सब तो कोई बात नहीं, मन का वहम होता है, लेकिन तुम यहाँ इस घर में क्यों हो, आकाश का तो अपना घर है,” उसने कहा, “हमने वो घर छोड़ दिया है, बीच में हम सब कुछ बेचकर जयपुर चले गए थे, फिर वापस यहाँ आये है और अब पिछले महीने से ये परेशानी शुरू है. डर लगता है. हमने सोचा है कि जल्दी से ये जगह छोड़ दे. तुम्हारा नंबर नहीं मिल रहा था, आज किसी से तुम्हारा नंबर मिला तो तुम्हें कॉल किया है. तुम हमारी मदद करो.”
मैंने कहा, “क्या मदद चाहिए बोलो, मैं खुद किसी कि मदद की तलाश में हूँ. मैं क्या हेल्प कर सकता हूँ. फिर भी तुम कहो.”
किरण ने मुझे गहरी नज़र से देखा और कहा, “मैं कल सुबह बात करती हूँ. हमारे साथ चलो किसी नए शहर में. मैं तुम्हारी मदद करना चाहती हूँ और तुम मेरी मदद करो. मेरे पास कुछ रुपए बचे है, उसी से कुछ नया काम शुरू कर लेते है.”
मैं ये सुन कर चुप हो गया. मुझे समझ में ही नहीं आ रहा था कि बात क्या है. क्या हुआ है.
किरण ने जगन को कहा, “कुमार साहब को गेस्ट रूम में लेकर जाओ, अंकल और आंटी आप भी सोने जाइये. मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही है, मैं भी सोने जा रही हूँ. जगन साहब को छोड़कर तुम अपने घर चले जाओ.”
मैंने देखा कि सबने किरण की बात ख़ामोशी से सुनी और अपने अपने कमरे की ओर चल पड़े. मैंने सबको जाते हुए देखा, आकाश पर मेरी नज़र पड़ी, उसने मुझे देखा और मुस्कराया, मैं भी मुस्कराया. मैंने देखा कि किरण अकेली ही जा रही थी. आकाश वही बैठा हुआ मुझे देख रहा था. बड़ा अजीब सा माहौल था.
जगन ने मुझे एक कमरे में छोड़ा. एक मोमबत्ती जलाया और मुझसे कह गया, “साहब, थोडा संभल कर रहिये. घर में माहौल कुछ ठीक नहीं है, मैं दिन में रहता हूँ, तो मुझे डर लगता है, रात को तो पता नहीं क्या हाल होता होगा. अच्छा मैं घर जा रहा हूँ, कल सुबह आऊंगा.” मैंने उसे बाय कहा और उसके जाने के बाद कमरे का दरवाजा बंद कर दिया.
थोड़ी देर तक अपने आपको मानसिक रूप से ठीक किया, इतने में बंगले की बिजली आ गयी. मैंने देखा तो पाया कि मेरा कमरा ठीक ठाक ही था. मैंने जाकर वाशरूम में अपना चेहरा धोया, अब कुछ ठीक लग रहा था. मैं वापस आया तो ठिठक कर रुक गया. कमरे में आकाश अपने व्हील चेयर में बैठा हुआ था. मैंने उसे देखा और फिर से मुस्करा कर कहा, “हेलो आकाश कैसे हो. क्या तुम अब भी मुझसे नाराज़ हो.” वो मुझे देख कर मुस्कराया.
मैं उसके सामने बैठ गया और उसे ध्यान से देखा. वो काफी उम्र दराज़ लग रहा था, वो पहले बहुत सुन्दर था. क्रिकेट का प्लेयर होने की वजह से अच्छा गठीला जिस्म था. उसे फिल्म में काम करने का भी शौक था, कुछ फिल्मों में उसने काम भी किया था, जिसकी वजह से किरण उसकी तरफ आकर्षित हुई थी. फिर ये व्हील चेयर और ये हाल. मैंने उससे पूछा, “ये क्या हुआ और कैसे हुआ.”
उसने मुझे देखा और कहा, “तुम्हें शुरू से बताता हूँ. जब किरण से मैंने शादी की थी, तो मैं अपने बिज़नेस में सफल था और काफी पैसे बना लिए था. मेरे साथ किरण के अंकल और आंटी भी रहते थे. तुम्हारी वजह से शुरू में मेरे और किरण के बीच में झगडे तो हुए करते थे. फिर एक दिन तुम दोनों के मिलते रहने के बारे में जाना, जिसकी वजह से मैंने ये शहर छोड़ दिया था. मैंने जयपुर में बिज़नेस शुरू किया और काफी सक्सेसफुल रहा. फिर एक दिन किरण से झगडा हुआ वो भी तुम्हारे कारण ही! मैंने गुस्से में गाडी चलायी और बुरी तरह से मेरा कार एक्सीडेंट हुआ, जिसमें मैं विकलांग हो गया, और इसी व्हील चेयर पर सिमिट गया.”
मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था ये कहानी सुन कर. मेरा गला सूखने लगा !
उसने मेरी ओर देखा और कहा, “बिस्तर के पास वाली अलमारी में ड्रिंक्स है, ले लो. तुम्हें इसकी जरूरत है.” मैंने उसे गौर से देखा और कुछ नहीं कहा. मैं अलमारी के पास गया और ड्रिंक्स लेकर अपने लिए एक जाम बनाया और उसे पूछा, तुम्हें चाहिए, उसने कुछ नहीं कहा, मैंने फिर पूछा, उसने देखा भी नहीं, मैंने दो पैग बनाये और उसके सामने बैठ गया और उसे एक गिलास दिखा कर कहा, लोगे ? उसने नहीं में सर हिलाया, मैंने अपना पैग पी लिया और उसे देखने लगा. वो अजीब सा दिख रहा था, पता नहीं क्यों ! शायद वो उस बंगले के माहौल का असर था या बाहर के वातावरण का !
मैंने उससे शर्मिन्दिगी से भरे स्वर में कहा, “मुझे माफ़ कर दो, जाने अनजाने में तुम्हारे साथ जो हुआ उसके लिए कहीं न कहीं मैं जिम्मेदार हूँ.”
उसने फिर मुझे कहना शुरू किया, “मेरे अपाहिज होते ही घर का माहौल बदल गया और साथ ही सबका व्यवहार. मेरे इलाज में बहुत पैसा खर्च होने लगा. मैं दो बार स्विट्ज़रलैंड जाकर आया, लेकिन मेरी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ. किरण और उसके अंकल और आंटी का स्वभाव बदल गया. मैं जैसे उनपर बोझ बन गया. मुझे तुमसे भी चिड़ होने लगी, क्योंकि बार बार किरण मुझे तुम्हारे नाम से ताना देती थी. और मेरे एक्सीडेंट की वजह भी तुम ही थे”
मुझे ये सुनकर अच्छा नहीं लगा. मैंने उसके लिए बनाया हुआ पैग भी पी लिया.
उसने मेरी ओर देखा और कहा, “तुम ने मेरी ज़िन्दगी ख़राब कर दी.” मैंने कुछ नहीं कहा. बस चुप रहा. मैं फिर अलमारी के पास पहुंचा, अलमारी खोली और उसमें से शराब की बोतल निकाली. बोतल निकालते वक़्त, अलमारी के कोने में मेरी नज़र पढ़ी. वहां रुपयों की गड्डी रखी हुई थी. मैंने सर घुमा कर देखा, कुमार मेरे पीछे ही दिखा, व्हील चेयर में बैठा हुआ और मेरी ओर देखता हुआ. उसने मुझसे कहा, “ ये ५ लाख रुपये है. और ये तुम्हारे हो सकते है. आओ बैठो.” मैं उसके सामने बैठ गया
फिर उसने मुझसे कहा, “कुमार मैं जानता हूँ कि तुम्हें पैसो की मदद चाहिए, तुम्हारी माली हालत बहुत ख़राब है कुमार, अगर तुम मेरा एक काम कर दो तो मैं तुम्हें ये ५ लाख दे सकता हूँ, आज और अभी.”
मैं ये सुनकर बहुत आंदोलित हुआ, कुछ समझा नहीं कि क्या कहना है और क्या नहीं, आज की तारीख में ५ लाख रुपये मेरे लिए बहुत थे. मेरे कई महीने ठीक से गुजर सकते थे. बहुत सारा क़र्ज़ था वो चुकाया जा सकता था. कहने का मतलब ये था कि ये पैसे मेरे लिए बहुत बड़ी ख़ुशी की वजह बन सकते थे !
मैंने एक गहरी सांस ली और शराब पीने लगा. बहुत देर की चुप्पी के बाद मैंने कहा, “मुझे क्या करना होगा आकाश !”
उसने बहुत देर तक मेरी ओर देखा और कहा. “मैं एक फिल्म बनाना चाहता हूँ, जिसके लिए मुझे एक स्टोरी चाहिए. मेरा एक सपना था, बहुत दिनों का और वो ये था कि मैं फिल्म बनाऊँ दुर्भाग्य से मेरा ये एक्सीडेंट हो गया और मैं किसी काम का नहीं रहा. लेकिन अब मैं चाहता हूँ कि मेरे बचे हुए पैसे से मैं एक फिल्म बनाऊँ, और उसके लिए तुम्हें कहानी लिखना है. बस कहानी जैसे मैं कहूँ वैसे ही लिखना है.”
मैंने उससे पूछा, “अगर तुम्हारे कहे से ही लिखना है तो तुम ही क्यों नहीं लिख लेते हो. मेरा ऐसा क्या काम है. और फिर मैं एक फ्लॉप राइटर हूँ.”
आकाश ने मुझे देखा और मुस्कराते हुए कहा, “तुम एक बहुत अच्छे राइटर हो, इस कहानी को लिखने के बाद तुम्हारा जीवन बदल जायेगा. मैंने तुम्हें पढ़ा हुआ है न इसलिए कह रहा हूँ. तुम बहुत अच्छी तरह से स्टोरी लाइन को जस्टिफाई कर सकते हो.”
मैंने कहा, “क्या लिखना है. क्या स्टोरी लाइन है.”
आकाश ने कहा, “उसी अलमारी में कुछ कागज़ है. उसी पर लिख लो.” मैं चुपचाप उठा और जाकर अलमारी से कागज ले आया. कागज लेते समय, वहाँ रखे हुए रुपयों पर भी मेरी नज़र पढ़ी. मैं मुस्कराया. बस थोड़ी देर में ये सब मेरे !
मैं कागज लेकर आकाश के सामने बैठा और फिर शराब का एक घूँट लेकर पूछा, “बोलो, क्या स्टोरी लाइन है.”
आकाश ने कहा, “मुझे एक थ्रिलर और मर्डर मिस्ट्री बनानी है. उसी के लिए एक स्टोरी लाइन है. और स्टोरीलाइन के लिए मुझे मेरे अपने घर की कहानी ही सही लगती है.”
मैं लिखने के लिए पेन लेकर बैठा था अब ये सुनकर चौंक गया. मैंने पूछा, “ये क्या है, कितनी सारी तो कहानियाँ है उसी को बेस बनाकर लिख लेते है.”
आकाश ने कहा, “नहीं तुम समझे नहीं एक थ्रिलर के लिए जो एलिमेंट चाहिए वो सब मेरे घर में है. अपाहिज पति, लालची ससुराल का परिवार, बड़े ख्वाब देखने वाली बीवी, तुम लिखो तो सही.”
मैंने पूछा, “मैं लिख तो लूँगा, लेकिन मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है. तुम इन सबसे क्या करना चाहते हो.”
आकाश ने थोड़ी देर की चुप्पी के बाद कहा, “कुछ ऐसा लिखो कि किसी तरह से इन सबका मर्डर हो जाता है, पूरे घर वालो का. और संस्पेंस में ये रखो कि कोई घर का ही आदमी सबका खून कर रहा है.”
मैंने कहा, “आकाश, ये बेकार का स्टोरी प्लाट है, मैं इससे अच्छी कहानी लिख कर दे सकता हूँ.”
आकाश ने ठन्डे स्वर में कहा, “वही लिखो न कुमार जो मैं कह रहा हूँ, तुम्हें पैसे चाहिए और मुझे कहानी. बस. और मुझे मालूम है, तुम बहुत जल्दी लिख लेते हो. कम से कम स्टोरी लाइन तो आज लिख लो, कहानी बाद में भेज देना. मैं तब तक स्टोरी लाइन के बेस पर फिल्म के लिए अरेंजमेंट करता हूँ, टेक्निकल टीम का जुगाड़ करता हूँ.”
मैंने सोचा और पिया, और सोचा और ज्यादा पिया, फिर मैंने कहा, “पैसे कब मिलेंगे.” आकाश ने कहा, “पैसे अभी ले लो, जाओ वहां से ले लो.” मैंने उसे गौर से देखा, मैंने पूछा, “सच में ले लूँ.” उसने कहा, “हाँ. तुम पैसे ले लो, स्टोरी लाइन लिख लो, मैं सुबह देख लेता हूँ, अभी के लिए मैं जाता हूँ.” मैंने अलमारी से पैसे ले लिए और अपने बैग में रख लिए. पैसे लेते ही मेरे अन्दर जोश भर गया. मैंने अलमारी में और देखा, शराब की तीन बोतल रखी हुई थी, मैंने मन ही मन कहा, ‘यार, कुमार, कुछ दिनों का तो तेरा पीने का जुगाड़ हो गया !’
मैं मुड़ा तो देखा आकाश जा चुका था. मैंने लिखना शुरू किया. लिखना मेरा मनपसन्द काम था. और थ्रिलर / मर्डर / मिस्ट्री लिखना तो मुझे बहुत ज्यादा पसंद था.
मैंने उस बंगले के बारे में सोचा, बंगले के रहने वालो के बारे में सोचा और एक छोटा सा प्लाट बुना, जिसमें अपाहिज पति को मारने के लिए, उसके पैसो को हथियाने के लिए उसकी बीवी और उसके परिवार वाले प्लान बनाते है, लेकिन अचानक ही, एक रात पति का एक पुराना दोस्त वहां आता है और जब वो दोस्त पति से मिलता है और बाकी सभी से मिलता है तो उसे समझ में आ जाता है कि परिवार वाले उसके दोस्त का खून करना चाहते है. वो पति से मिलकर उसकी बीवी और उसके परिवार को ही मारने का प्लान बनाता है. वो प्लान बनाता है कि सभी को ऐसा मारा जाए कि सभी हत्याएं, आत्महत्या लगे. जैसे अंकल को गोली मार दिया जाए और उसे आत्महत्या का रूप दे दे. जैसे आंटी को फांसी पर लटका दिया जाए और उसे भी आत्महत्या का रूप दे दे. जैसे बीवी को शराब पिलाकर बाथटब में लिटाकर हाथ की नसें काट दिया जाए और उसे भी आत्महत्या का रूप दे दे. यहाँ आकर मैं रुक गया, अब थकान सी होने लगी थी. मैंने घडी देखी, करीब एक बज रहा था. मैंने स्टोरीलाइन को एक बार फिर से पढ़ा, मैं संतुष्ट हो गया. मैंने सोचा, ‘अब बाकी का कल लिखता हूँ, अभी थोडा सोया जाए.’ मैंने उस कागज को उठाकर अपने बैग में रखा और सोचा कि थोडा टहल लूं. पता नहीं क्यों नींद नहीं आ रही थी.
मैं अपने कमरे के बाहर आया, देखा तो ड्राइंग रूम में हलकी सी रौशनी थी, ऊपर के गलियारे में तीन कमरे थे, नीचे ड्राइंग रूम में एक किचन और एक और कमरा था. अजीब सा माहौल था. झींगुरों की आवाज आ रही थी, बार-बार आसमान में बिजली कडक उठती थी. और बारिश तो शुरू ही थी. मुझे अचानक ही एक झुरझुरी सी आ गयी, शायद ठण्ड के कारण, शायद माहौल के कारण, शायद डर के कारण, शायद शराब के नशे के कारण.....पता नहीं. मुझे जोर से खांसी आई. मैं अपने कमरे में वापस आ गया. मैंने पानी पिया और फिर थोडा सोचकर उसी गिलास में शराब ले लिया. और एक घूँट लिया. मुझे लगता था कि मैं अब पक्का शराबी बन चूका हूँ, मेरी निराशा और मेरी असफलताओं ने ने मुझे शराबी बना दिया था. लेकिन फिर मैंने अपने आपको समझाया कि सब दिन एक जैसे नहीं होते है. ५ लाख से मेरी ज़िन्दगी सुधर जायेंगी. मैंने मुस्करा कर अपने बैग को देखा. इतने में एक आवाज़ आई, “क्या मैं अन्दर आ सकती हूँ,” मैंने चौंक कर देखा तो किरण थी. वो भीतर आई और दरवाज़ा बंद कर लिया और मुझसे लिपट गयी. मैं अवाक था. मैंने उसे अपने से दूर किया और कहा, “रिलैक्स, सब ठीक हो जायेगा.”
उसने मेरा हाथ पकड़ कर कहा, “मैं तुम्हें अब भी चाहती हूँ, तुम्हें ढूंढ रही थी. एक महीने से तुम्हें ढूंढ रही थी, अब तुम मिल गए हो तो हम कल ही यहाँ से चले जायेंगे.”
मैं उसकी बात सुन कर भौचक्का रह गया. मैंने कहा, “ये क्या कह रही हो? और आकाश?” उसने मेरी बात को काटकर कहा, “उसे छोडो, बस सिर्फ हम दोनों, क्या तुम मुझे भूल गए हो,” कह कर वो फिर से मुझसे लिपट गयी, मैंने कहा, “अरे छोडो कोई आ जायेगा, उसने कहा, कोई नहीं आयेगा, बस हम दोनों ही है.” मैं बहकने लगा, मैंने कहा, “पहले तुम्हारी प्रॉब्लम तो दूर कर देते है, फिर अपने बारे में सोचते है. तुमने मुझे बुलाया है, बताओ कि क्या बात है”
वो मुझसे लिपट कर कहने लगी, “वो सब बाद में, इतने दिनों बाद मिले हो. पहले प्यार तो कर ले.”
फिर हम दोनों बहकते चले गए. एक अभिसार हुआ और फिर उसने मेरे साथ शराब पिया. हम दोनों बहके हुए थे. इतने में बाहर से कोई आहट आई तो वो उठी और कहने लगी, “मैं जाती हूँ, सुबह मिलते है और बात करते है.” कहकर वो चली गयी, मैं रोकता ही रह गया.
मैं बिस्तर पर पड़ा रहा और इस नई घटना के बारे में सोचने लगा. मेरा नशा हिरन हो चुका था. थकान बढ़ चुकी थी. मैंने फिर शराब ली और गिलास को लेकर कमरे के बाहर निकला. दरवाजे से निकलते ही जैसे मैं पत्थर का हो गया. सामने हाल में व्हील चेयर पर आकाश बैठा था और मेरी ओर ही देख रहा था. मैंने हकलाते हुए पूछा, “आकाश सोये नहीं.” वो हँसते हुए मेरी तरफ आते हुए कहने लगा, “अरे नहीं, मुझे नींद नहीं आती है. कभी खुद की हालत नहीं सोने देती है और कभी लोग नहीं सोने देते है.” ये सुनकर मुझे अच्छा नहीं लगा. मुझे थोडा डर भी लगा, क्या उसने किरण को मेरे रूम से निकलते हुए देख लिया, मैंने उससे पूछा, “चलो अब सो जाओ, तुम्हारा कमरा कहाँ है.” उसने हाल के किनारे में बने हुए कमरे की ओर इशारा किया. और मुझसे कहा, “हां सोने जाता हूँ अब जाग गया हूँ तो सोचा तुमसे पूछ लूं, क्या तुमने कोई स्टोरी लाइन लिखी है.” मैंने हकलाते हुए कहा. “हाँ, लिखा न,” आकाश ने पूछा, “बताओ तो क्या सोचा है, क्या लिखा है.” मैंने उसे पूरी स्टोरी लाइन बतायी. उसने बड़े ध्यान से सुना. और फिर कुछ सोचते हुए कहा, “गुड ! मुझे पसंद आयी ये कहानी ! इस पर ही काम करना होगा ! इस पर ही काम करेंगे.”
फिर वो मुड़कर जाने लगा, मैंने एक गहरी सांस ली. वो जाते जाते रुका और मेरी तरफ मुड़कर पूछा, “अच्छा एक बात बताओ, क्या किरण तुम्हें अब भी बहुत प्यार करती है.” मैं सन्नाटे में आ गया. मेरे मुंह से कोई आवाज़ नहीं निकली. फिर मैंने खुद को संभालते हुए कहा, “नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है.”
आकाश ने फिर मुझे देखते हुए पूछा, “और तुम? क्या तुम उससे प्यार करते हो अभी भी !”
मैंने खुद को संभाल लिया था. मैंने कहा, “नहीं यार, सवाल ही नहीं उठता.”
आकाश ने मुझे गहरी नज़र से देखा और मुस्कराते हुए कहा, “चलो सो जाओ. कल का दिन तुम्हारी ज़िन्दगी में एक यादगार दिन होगा. बाय !”
मैं उसे कमरे तक जाते हुए देखता रहा. वो पूरा माहौल ही रहस्यमय था. बाहर में बारिश बंद हो चुकी थी और सायं- सायं की तेज हवाएँ चल रही थी. कहीं कुछ कुत्ते रो रहे थे. मैं बहुत परेशान होने लगा. मैं जल्दी से अपने कमरे में आया और दरवाजा बंद करके, बहुत तेजी से शराब के घूँट लगाए और बिस्तर पर लेट गया. पता नहीं कब मुझे नींद आ गयी.

: १५ जुलाई :

दरवाजे पर तेज दस्तक की आवाज से मेरी नींद खुली. मैंने कुनमुनाते हुए घडी देखी. सुबह के १० बज रहे थे. बाहर से तेज आवाजें आ रही थी. मैं उठा और दरवाजा खोला, दरवाजा खोलते ही नौकर दिखा, डरा हुआ और रोते हुए. पुलिस के कुछ लोग दिखे, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था. एक इंस्पेक्टर कमरे के भीतर घुस आया. उसने मुझसे पूछा, “तुम्हारा नाम कुमार है.” मैंने कहा, “हां, लेकिन हुआ क्या है.” उसने कुछ नहीं कहा, और अपने साथ के हवलदार से कमरे की तलाशी लेने को कहा. हवलदार ने तलाशी लिया और उसे तलाशी में शराब की बोतल, मेरा बैग और बैग में रखे हुए ५ लाख रुपये और वो स्टोरीलाइन मिली. इंस्पेक्टर ने वो सब देखा, स्टोरी लाइन को दो तीन बार पढ़ा और हवलदार को कहा कि मुझे गिरफ्तार कर लिया जाए. मैंने हडबडा कर कहा, “अरे ये क्या कर रहे हो, क्या हुआ है, मुझे क्यों गिरफ्तार कर रहे हो.”
इंस्पेक्टर ने कहा, “तुम्हें, किरण और उसके अंकल और आंटी की हत्या के इल्जाम में गिरफ्तार कर रहे है.” मैं भौचक्का रह गया और चिल्लाया, “अरे क्या कह रहे हो, मैं तो अपने कमरे में सोया हुआ था आप लोगों के आने पर ही मैंने दरवाजा खोला है, और उनकी हत्या कब हो गयी, मुझे कुछ नहीं पता, मुझे कोई आवाज क्यों नहीं आई. कल तो रात तक सब ठीक थे.” मैं चिल्लाने लगा, “मैंने कुछ नहीं किया, मैं तो सोया था.”
इंस्पेक्टर ने मुझे एक झापड़ मारा. और कहा, “ज्यादा बोल मत. वरना यही पर मार मार कर ठीक कर दूंगा. कल यहाँ तुम्हारे अलावा कोई और बाहर से नहीं आया. वो तीनों वैसे ही, और उसी अंदाज में मरे पड़े है, जैसा कि तूने अपने इस कागज में लिखा हुआ है. सुबह ये नौकर आया और चाय बनाकर उनके कमरों में गया तो उनकी लाशें देखी, वो चिल्लाते हुए बंगले से बाहर निकला, उसी वक़्त हमारा एक हवलदार स्कूटर पर जा रहा था, ये नौकर उससे टकराया और उसने जब उसकी बात सुनी तो मुझे फ़ोन किया और हमने यहाँ आकर ये सब देखा. अब जाकर नौकर थोडा होश में आया है तो उसने तेरे बारे बताया और बाकी तो सब आईने की तरह साफ़ है, तूने प्लान बनाया और तूने पैसो के लिए उनको मारा. पैसे तेरे बैग में है.”
मैं फिर चिल्लाने लगा, इंस्पेक्टर ने फिर मुझे मारा. मैंने उसे रोकते हुए कहा, “एक मिनट रुको आप आकाश से पूछ लो, वो जानता है मुझे. उसी ने कहानी लिखने को कहा था मुझे, मैंने ये कहानी उसके कहने पर ही लिखा था. और ये पैसे उसने ही मुझे दिया था.”
ये कहकर जब मैं चुप हुआ तो पाया कि सब चुप हो चुके थे और मुझे अजीब सी निगाह से देख रहे थे. नौकर मुझे देखकर चिल्लाया, “अरे आप पागल हो क्या? आकाश बाबू को मरे हुए एक महीना हो रहा है.”
अब शॉक में जाने की मेरी बारी थी, मुझे चक्कर सा आया और मैं लगभग बेहोश सा होकर गिर पड़ा.
जब होश में आया तो मैं जेल में था.

: १७ नवम्बर :

मुझ पर फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट के अंतर्गत मुकदमा चला और बहुत सी बातें साबित हुई. मेरी गरीबी के हालत. मेरे पैसो की तकलीफ. मेरा और किरण का रिश्ता. किरण को डायरी लिखने का शौक था जिसमें उसने मेरे बारे में खूब लिखा हुआ था, हमारे प्यार के बारे में खूब लिखा हुआ था, हम दोनों के कारण उसके और आकाश के बीच मे होने वाले झगड़ो के बारे में लिखा हुआ था, आकाश की मुझ से नाराजगी भी लिखी हुई थी. सारी हत्याएं या आत्महत्यायें वैसी ही हुई थी, जैसा कि मैंने लिखा था. अंकल ने खुद को शूट किया हुआ था. आंटी ने पंखे से खुद को लटका लिया था और किरण ने अपनी हाथों की नसों को काटकर बाथटब में खुद को डुबो दिया था. और ये सब वैसे ही हुआ था, जैसा मैंने लिखा हुआ था. घर में जगह जगह पर मेरी उँगलियों के निशान मिले, मेरा जुर्म साबित हुआ और आज मुझे कोर्ट ने सजाये मौत की सजा सुनाई. अजीब सी विडंबना थी कि आज मेरा जन्मदिन भी था !

: ३१ दिसम्बर :

मेरे जेल के सेल के सीखंचो पर हलचल हुई. मैंने देखा, जेलर, डॉक्टर और एक पंडित और कुछ हवलदार थे. मैं मुस्करा दिया. जेलर ने पूछा, “कुमार चले?” मैंने हामी भरी. डॉक्टर ने मेरी नब्ज जाँची, वो तेज चल रही थी. पंडित ने गीता और गरुडपुराण से कुछ अंश सुनाये. मैंने जेलर से कहा, “चलो अब !”
मैं सेल से बाहर निकला और मेरी आँखों में आंसू आ गए. क्या सोचा और क्या हो गया था. मैंने सेल की ओर मुड़कर देखा. सेल के भीतर व्हील चेयर पर आकाश बैठा था और मुझे मुस्कराते हुए सर्द आँखों से देख रहा था! मैं थोड़ी देर के लिए रुका. अब मुझे कोई आश्चर्य नहीं था. मुझे सब समझ आ गया था. उसने मुझसे कहा, “कुमार तुम्हारे कारण मेरी ज़िन्दगी खराब हुई और मैंने तुम्हें इस बात की सजा दी. एक महीने पहले उन तीनों ने मुझे जहर देकर मार डाला था और किरण ने ये इसलिए किया था ताकि वो मेरी दौलत के साथ तुमसे मिलकर जीवन जी सके. लेकिन जैसे कि कहते है कि बुरा करो तो वो वापस जरूर आता है. मेरी आत्मा भटकती रही और तुम्हारी राह देखती रही. किरण ने तुम्हें बुलाया और मैंने तुम्हारे बनाए हुए प्लान के अनुसार ही उन्हें डरा कर आत्महत्या करने पर मजबूर किया. वो हत्या भी थी और आत्महत्या भी और तुम्हें आज यहाँ तक पहुंचा दिया ! चलो जल्दी जाओ ! मैं तुम सबसे नफरत करता हूँ. तुम सब अब नरक में मिलना !”
मैंने सर हिलाया. कल नया साल शुरू होने वाला था और मेरी ज़िन्दगी आज ख़त्म हो रही थी.
जेलर ने मुझे धक्का दिया और उस खुली जगह में पहुँचा दिया जहाँ फांसी का फंदा मेरी राह देख रहा था !


© विजय कुमार सप्पत्ति


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